For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2012 Blog Posts (200)

कविता : हालत हो गयी है अपनी भूटान की तरह.

आमदनी घट रही है,होंठों से मुस्कान की तरह.

और खर्चे बढ़ रहे है, चौराहे पे दूकान की तरह.

भले ही रहते है यारों हम आलीशान की तरह.

पर हालत हो गयी है अपनी भूटान की तरह.



अरे किस से सुनाये दर्द,जब सबका यही हाल है.

ये बेबस जिंदगी उधार की,बस जी का जंजाल है.

बड़ी मुश्किल से लोग,हंसने का रस्म निभाते है.

वरना चुटकुले भी आँखों में आंसू भर के जाते है.

खुशिया लगती है सुनी,मातम के सामान की तरह.

और हालत हो गयी है अपनी, भूटान की तरह.



महंगाई के…

Continue

Added by Noorain Ansari on September 27, 2012 at 9:30am — 6 Comments

बुरे वक़्त का साया

सुना था बुरे वक़्त में

साया भी साथ छोड़ देता है

कमबख्त बुरे वक़्त का साया

मरते दम तक साथ चिपका रहता है

कभी नहीं छोड़ता

गर एक पल भी अच्छा पल मिला

उसने चुपके से आके

यादों की सुई चुभा दी

भूल मत भूल मत

कहता हुआ

मैं हूँ तेरा कल

तेरी परछाई

तेरी तन्हाई का साथी

तेरे बुरे वक़्त का साया

साया जो कभी नहीं छोड़ता साथ

सुखों में

दुखों में हर पल

रहता है पल पल

साथ

सच्चा दोस्त हूँ मैं

बुरे वक़्त का साया…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2012 at 8:50am — 2 Comments

एक सपना है जीवन .......

एक सपना था जो टूट गया फिर,

व्यर्थ का ये प्रलाप है क्यों,

ख़ाबों के टूटने पर भी कभी,

कोई जान देता है भला,…



Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 26, 2012 at 10:13pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
खामोश आखर..

 

मूक रूदन
सहमे लब, खामोश आखर..
हृदय क्रंदित 
सूखी मरू सम, नयन गागर..
रिक्ततामय
शून्य विस्तृत, श्याम सागर..
क्षुद्र लोभन 
डाह विषमय, मनस अंतर..
नव्य चेतन 
सृजन स्नेहिल, बरसे जलधर..
स्वर्ण सम फिर 
दिव्य दमके, पूर्ण भूधर..

Added by Dr.Prachi Singh on September 26, 2012 at 8:00pm — 20 Comments

बंद - लघुकथा

महेश कोचिंग जाने के लिये तैयार हो रहा था कि तभी उसके पिता श्यामल बाबू ने उसे आवाज दी| "जी पिताजी" महेश ने उनके पास जा के पूछा| "हाँ महेश, सुनो मेरा तुम्हारी माँ के साथ झगडा हो गया है, वो कल उसने पकौड़े थोड़े फीके बनाये थे न, इसी बात पर| इसलिए आज सारा दिन तुम घर में बंद रहोगे और बाहर नहीं निकलोगे और यदि तुमने बाहर निकलने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारे कमरे को पूरा तोड़-फोड़ दूंगा|" श्यामल बाबू इतना कह के चुप हो गये|

महेश ने हैरानी से अपने पिता को देखते हुए कहा - "पिताजी, यदि…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 26, 2012 at 8:00pm — 6 Comments

शुभ्रांशु जी के हास्य लेखन से प्रेरित हो कर एक हास्य लिखने की कोशिश ...........

जब भी शुभ्रांशु जी के हास्य-व्यंग्य के लेख पढ़ती हूँ ...लगता है कितनी आसानी और सहजता से से वो सब कुछ लिख जाते हैं और हँसा भी देते हैं ......एक दिन अचानक ही लगा दरअसल वो आसानी से लिख नहीं जाते है बल्कि यह लिखना बहुत आसान है l  क्यों न मै भी कुछ  हास्य व्यंग टाइप की चीज़ लिखूँ .

कविता में तो बड़ी पेचीदगियां है ..... एक कविता लिखने में तो…

Continue

Added by seema agrawal on September 26, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

बादल ने पूछा मानव से

बादल ने पूछा मानव से :

क्यों वृक्षों को काट दिया ?



धरती माँ का धानी आँचल

सौ टुकड़ों में बाँट दिया !



बन जायेंगे उन पेड़ों से कुछ खिड़की , कुछ दरवाज़े ...

देते रहना फिर बारिश की बूंदों को तुम आवाज़े ...



मानव ! तुमको कंक्रीट के जंगल बहोत सुहाते हैं ,

बोलो , क्या उनमें सावन के मोर नाचने आते हैं ?



बिन बरसे बादल लौटे तो धरती शाप तुम्हें देगी -

तपती , गरम हवा , सूखी नदिया संताप तुम्हें देगी !



वृक्ष धरा का आभूषण हैं , वृक्ष…

Continue

Added by Prabha Khanna on September 26, 2012 at 3:30pm — 4 Comments

क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्‍हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

उजड़े उपवन के माली से
प्रस्‍तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

Added by राजेश 'मृदु' on September 26, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

कौन अपना कौन पराया

 

कौन अपने है कौन पराये

बात हमे ये

भ्रमित और झकजोर

क्यूँ जाए

विरह के जब

मेघ मंडराए

एकल बैठ के

हम अश्रु बहाए          

वेदना ने

बेहाल किया जब            

असहाए तब

स्वयं को पाए

जग की रीत

है बड़ी पुरानी

हर पीड़ित की

यही कहानी

व्यथा दे जब

हमें सताये

समक्ष स्वयं के

कोई न पाए

जीवन देता

सबक सिखायें

सत्य का तब

बोध करायें

अपना…

Continue

Added by PHOOL SINGH on September 26, 2012 at 12:07pm — 2 Comments

ईमान

"गलती हमारा या हमारे आदमियों का नहीं है रमाकांत बाबू"| बाहुबली ठेकेदार तिवारी जी, डीएसपी रमाकांत प्रसाद को लगभग डाँटते हुए बोले| "हम उसको पहिलहीं चेता दिए थे कि ई रेलवे का ठेका जाएगा तो ठेकेदार दीनदयाल राय के पास जाएगा नहीं तो नहीं जाएगा, लेकिन उ साला अपनेआप को बहुत बड़का बाहुबली समझ रहा था| अब खैर छोडिये, जो हो गया सो हो गया| जो ले दे के मामला सलटता है, सलटाइए|"

"आप समझ नहीं रहे हैं सर| बात खाली हमारे तक नहीं है कि आपका कहा तुरंत भर में कर दें| हमारे ऊपर भी कोई है, उप्पर से ई मीडिया…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 26, 2012 at 11:32am — 2 Comments

क्या लिखूं अब मैं .....

क्या लिखूँ अब मैं

सब तो लिख दिया मैंने

अपने दिल की बाते

टूटे ख्वाबों की यादे

सब..............

क्या लिखूँ अब मैं................

सब तो लिख दिया मैंने.............................



जिन्दगी----- कल भी तो ऐसी ही थी

कुछ भी तो नही बदला

कल भी जी रहे थे बिन अपनों के हम

और आज भी तो जी ही रहे है............

कुछ भी तो नही बदला

क्या लिखूँ अब मैं......

सब तो लिख दिया मैंने..............



जब सीखा था अपने दिल को कागज़ पर…

Continue

Added by Sonam Saini on September 26, 2012 at 11:00am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
नम हो गया अंश वक़्त का

तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं
************************

Added by rajesh kumari on September 26, 2012 at 10:30am — 16 Comments

कुछ हाइकू

चाँद से दूर
चाँद का एहसास
चाँद की आस
 
चाँद पर ही
बनाते आशियाना
घर बसाते
 
चाँद से कहें…
Continue

Added by Neelam Upadhyaya on September 26, 2012 at 10:30am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३५ (हस्रतें मरने लगी हैं घर बसानेकी हौले हौले)

निस्बतें यूँ बढ़ीं हमसे ज़माने की हौले हौले

खुलती गईं सब तहें अफ़साने की हौले हौले

 

हस्रतें मरने लगी हैं घर बसानेकी हौले हौले

कीमतें कुछ यूँ बढ़ीं आशियानेकी हौले हौले

 

बस्तियोंमें भी नशा-सा होने लगा है सरेशाम

दीवारें टूटने लगी हैं मयखाने की हौले हौले

 

फर्क मिट गए हस्पतालों और होटलोंके अब

सूरतें बदल गईं हैं शिफाखाने की हौले हौले

 

ये कोई प्यार नहीं हैकि दफअतन हो जाता

आदतें आईं दुनिया से निभाने की…

Continue

Added by राज़ नवादवी on September 26, 2012 at 8:42am — 6 Comments

कवि का काम है

कवि का काम है।
जो नहीं कहा गया हो,
अब तक जमाने में,
वो कहा जाये।
पिछला कहा हुआ
सच रहे,बचा रहे।
उससे आगे कुछ कहा जाये।।
आदमी बोलता रहे
आदमी चुप न होने पाये।
पानी से पत्थर को काटा जाये।
खुद को बार-बार डाँटा जाये।।
दूसरों से प्यार किया जाये
आदमी को आदमी ही रहने दिया जाये।
आदमी बहुत बेहतर है।
मशीन भी बनाई जाये।
लेकिन ज्यादा न चलाई जाये।
अपनी आँखों में ही,
सबकी आँखों को लाया जाये।


।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on September 25, 2012 at 11:30pm — 3 Comments

शीत करे राजनीति मनरेगा है हताश ........

शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||



सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही

धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही

शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को

समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को

बच्चो के खेल सब कमरों में गए बिखर

ठिठक गए चौराहे भी खम्भों के इधर उधर

सुलग उठे हल्के हल्के बल्बों के मन उदास



शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |

शीत के दुर्दिन का…

Continue

Added by ajay sharma on September 25, 2012 at 11:30pm — No Comments

बाबु जी निबटा रहे अपना ओवर टाईम | |

मासिक वेतन मीत है पेंसन है सम्बन्ध |

जीवन अंधी खोह है न सूरज न चंद |



इअमाई लोन का है वेतन पर राज | |

टीडीएस इस कोढ़ को बना रहा है खाज|



कन्याये है कैजुअल लड़के अर्जित आवकाश | |

इक तरसती मोह को दूजा देता त्रास | |



काम सभी छोटे बड़े जब लगते है खास |

आकस्मिक की छुटिया करती है उपहास ||



आकस्मिक , अर्जित सभी जब हो गयी उपभोग |

मना रहे है छुटिया बना बना कर रोग | |



महगाई के बोझ से बोनस गया लुकाय |

ऐसे में एस्ग्रीसिया मरहम…

Continue

Added by ajay sharma on September 25, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

वो लोगों के दिलों में झाँकता है

वो लोगों के दिलों में झाँकता है |

वो कुछ ज्यादा ही लंबी हाँकता है ||

चला रहता है, वो कुछ खोजने को |

वो नाहक धुल-मिटटी, फाँकता है ||

न जाने, किस जहाँ में, है वो रहता |

वो अपनी, हद कभी न लाँघता है ||

परखता है, न जाने, किस तरह वो |

कसौटी कौन सी, पे जाँचता है ||

वो साँसों कि तरह, लेता है आहें ||

वो जब चादर, ग़मों कि, तानता है ||

वो कहता है कि, हर बन्दा, खुदा है |

खुदा को, कब खुदा, वो मानता है ||

'शशि' कुछ मशवरा, उस से ही ले लो |…

Continue

Added by Shashi Mehra on September 25, 2012 at 8:30pm — 1 Comment

नशेमन है हमारा दिल जनाब हल्का हल्का सा

रखा जो आपने रुख पे नकाब हल्का हल्का सा

चमकता चाँद दिखता आफताब हल्का हल्का सा



झुकी पलकें उठी दीदाबराई करने के खातिर

हया छलकी बढाने को शबाब हल्का हल्का सा



दिया बोसा मेरे लब सिल गए सफाई जो मांगी

सवालों का हसीं आया जवाब हल्का हल्का सा…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 11:34am — 2 Comments

आशियाना !

कभी कभी इस दिल में सिसक उठती थी,

की शायद वो दिन भी आयेंगे जब हम भी अपना घर बनायेंगे !

या फिर यूँ ही किराये के मकान में अपना सारा जीवन बिताएंगे !!



माता-पिता की जिम्मेदारियां  इतनी थी की ऐसा ख्वाब भी उन्हें नसीब न था..

कभी हम भी यही सोचा करते थे की क्या हम भी कभी उनका हाथ बटा पाएंगे !!



जिम्मेदारियों के साथ-साथ  बढ़ती महंगाई का साया था..

चाहते हुए भी कभी  घर का सपना बुनना शायद सपने की परछाई थी !

माँ की बीमारियों के साथ, पढाई का खर्च भी उठाना था…

Continue

Added by Mukesh Sharma on September 24, 2012 at 11:06pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service