बहर : २१२ २१२ २१२ २१२
पेट को चाहिए खाद्य, नारा नहीं
पेट जितने से भर जाय, सारा नही |
भावना की कमी, जाँचना चाहिए
भूखे को चाहिए खाना,चारा नहीं |
सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से
शत्रुवत और हो जाता यारा नहीं |
बात है कर्ण प्रिय ,’आयगा अच्छा दिन”
अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |
देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें
पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |
सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 25, 2016 at 8:30am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2016 at 7:35am — 8 Comments
(चवपैया छंद-10, 8, 12 मात्रा के तीन -तीन चरणों के कुल चार पद , प्रत्येक पद के प्रथम एवं द्वितीय चरण मं समतुक एवं दो-दो पद में 1122 मात्रा या पदांत 2 मात्रा के के साथ समतुक पर हो)
हे आदि भवानी, जग कल्याणी, जन मन के हितकारी ।
माँ तेरी ममता, सब पर समता, जन मन को अति प्यारी ।।
हे पाप नाशनी, दुख विनाशनी, जग से पीर हरो माँ ।
आतंकी दानव, है क्यों मानव, जन-मन विमल करो माँ ।।
...................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 25, 2016 at 7:30am — 2 Comments
Added by S.S Dipu on September 25, 2016 at 12:24am — 6 Comments
श्रद्धांजलि
राज पथ पर अवस्थित
शहीद चौक ..
लोगो का हुजूम
मिडिया वालों का आवागमन
चकमक करते कैमरे
चमकते-दमकते चेहरे
फोटो खिंचाने की होड़
हाथों में मोमबत्तियाँ
नहीं-नहीं, कैंडल....
साथ में लकदक पोस्टर, बैनर
जिनपर अंकित था -
'शहीदों को
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि' !!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2016 at 12:00am — 11 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2016 at 11:54am — 12 Comments
मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना
तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना
वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है
तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना
कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे
होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना
ले लेगी जान मेरी तेरी अदा कसम से
इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना
पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे
ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना
मैं खुश रहूँ वहाँ पर है…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 24, 2016 at 10:45am — 16 Comments
Added by S.S Dipu on September 24, 2016 at 1:28am — 5 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on September 23, 2016 at 11:30pm — 2 Comments
किसी को हँसाये,किसी को रुलाये,
कोई परेशां है,कोई हंसे कोई बिलखे,
कोई चुप- तो कोई चीखे,
उम्र के अलग अलग पड़ावों में,
अभिनय मिले नये-नये किरदारों में,
ज़िन्दगी तू मक़बूल अदाकार है,
कि क्या खूब अदायगी है तेरी...
सब कुछ बिल्कुल मौलिक लगे ।
और उस भगवान् का निर्देशन तो देखो !
कि हम जग के लोगों को सांसारिक लगे ।
आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 23, 2016 at 3:00pm — No Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 23, 2016 at 3:00pm — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 23, 2016 at 5:30am — 10 Comments
Added by S.S Dipu on September 23, 2016 at 12:27am — 6 Comments
क्यों खामोश हो
कुछ बोलते भी नहीं
कुछ कहते भी नहीं
कुछ सुनते भी नहीं
वो देखो वहाँ
क्षितिज के किनारे
आकार ले रहा है
प्यार बादलों में
वो देखो वहाँ
उन लहरों को
जो कर रही है बयां
प्यार चट्टानों से
वो देखो वहाँ
उन परिंदो को
जो उड़ते हुए भी
कर रहे बातें बादलों से
वो देखो वहाँ
रंग बदलते आस्मां को
किस तरह रंग बदलता है
बिलकुल तुम्हारी ही तरह
गुलाबी फ़ज़ाओं…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 22, 2016 at 3:00pm — 10 Comments
Added by Rahila on September 22, 2016 at 12:22pm — 14 Comments
कलम मेरी खामोश नहीं, ये लिखती नई कहानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी, आंखों वाला पानी है।।
सृजन की सरिता इससे बहती
झूठ नहीं ये सच है कहती।
जीवन के हर सुख-दुख में ये,…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on September 22, 2016 at 10:30am — 4 Comments
122 122 122 122
बचा कर रखेगी दुआ हादसों से,
करो अबसे तौबा बुरी आदतों से|
कदम अब बढे है जमाने से आगे,
नहीं रोक सकते हमें पायलों से|
करार तमाचा जवाबी मिलेगा,
रहें अपने घर में कहो दुश्मनों से|
गरीबों को मारा खुले आसमाँ ने,
बरसती है आफत यहाँ बादलों से|
लो मुश्किल हुआ अब यहाँ सांस लेना,
हुए शेर मुजरिम गलत फैसलों से|
सजा बन रहे है मरासिम हमारे,
मिलेगी मुहब्बत…
ContinueAdded by sarita panthi on September 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments
अथ से अभी तक जो जैसा मिला
सर माथे ले कर के जीते रहे
विधाता की झोली सुदामा भी हो गयी
तो बन कर के कान्हा सीते रहे
गिला है न शिकवा ज़माने से
कोई तकदीर से भी तकाज़ा नहीं
जीना कही जब ज़हर भी हुआ
तो मीरा बने प्याले पीते रहे
इन्द्रधनुष दिया कुरुक्षेत्र पाया
सत्ता से सत्ता की पायी लड़ाई
सिंहासन से चस्पा वफादारी देखी
विदुरों के तरकश तो रीते रहे
जतनों से बुनचुन जो सपना संजोया
तकिये बेचारे…
ContinueAdded by amita tiwari on September 21, 2016 at 11:30pm — 2 Comments
1. एक तन .... (क्षणिकाएं) ...
लड़ते-लड़ते
धरा की गोद में
लहुलुहान
कोई सो गया
तिरंगे में
लिपटा हुआ
फिर एक तन
एक वतन
हो गया
... ... ... ... ... ... ... ... ...
2. शेष ....
गोली
बारूद
धमाके
लाशें
चीखें
धुऐं की गर्द
बस
हदों के झगड़ों का
यही था
शेष
... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
3. हल ....
लिपट गया
तिरंगे में
भारत माँ का
एक लाल…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 8:21pm — 2 Comments
जैसे ही पता चला कुछ आंतकवादी हमारी सीमा में घुस गए और मुठभेड़ में जवान कुर्बान हो रहे हैI आनन फानन में एमरजेंसी मीटिंग बुलाई पक्ष विपक्ष दोनों आये गहन चिंतन शुरू हुआI धीरे धीरे आरोप प्रत्यारोप शुरू हुआI गहन चिंतन गाली गलोच में तब्दील हो गयाI अब तो हद हो गयीI एक दूसरे के कपङे फाड़ने लगेI दोनों तरफ क़ुरबानी दे रहे थेI फर्क बस इतना थाI की एक कुर्सी के लिए तो दूसरा धरती माँ के लिएI "मौलिक व अप्रकाशित"
Added by harikishan ojha on September 21, 2016 at 7:40pm — 4 Comments
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