प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज
वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |
वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश
परदेशी हम देश में, लगता है परदेश |
लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग
हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद |
संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |
बना कर लोकतंत्र को,…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 7:30am — 27 Comments
सौंधी सौंधी मिट्टी महके
चीं-चीं चिड़िया अम्बर चहके ।
बाँह भरे हैं जब धरा गगन
बरगद पीपल जब हुये मगन
गांव बने तब एक निराला
देख जिसे ईश्वर भी बहके ।
ऊँची कोठी एक न दिखते
पगडंडी पर कोल न लिखते
है अमराई ताल तलैया,
गोता खातीं जिसमें अहके ।
शोर शराबा जहां नही है
बतरावनि ही एक सही है
चाचा-चाची भइया-भाभी
केवल नातेदारी गमके ।
सुन-सुन कर यह गाथा
झूका रहे नवाचर माथा
चाहे कहे…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 12, 2016 at 10:00pm — 4 Comments
Added by Nita Kasar on September 12, 2016 at 9:30pm — 4 Comments
तुम मुझे मिल जाओगे ...
ये सृष्टि
इतनी बड़ी भी नहीं
कि तुम मेरी दृष्टि की
दृश्यता से
ओझल हो जाओ
असंख्य मकरंदों की महक भी
तुम्हारी महक को
नहीं मिटा सकती
तुम मेरी स्मृति की
गहन कंदरा में
किसी कस्तूरी गन्ध से समाये हो
सच कहती हूँ
तुम मेरे रूहानी अहसासों की
हदों को तोड़ न पाओगे
क्यूँ असंभव को
संभव बनाने का
प्रयास करते हो
अपने अस्तित्व का
मेरे अस्तित्व से
इंकार…
Added by Sushil Sarna on September 12, 2016 at 4:58pm — 4 Comments
सवेरे सवेरे.....
आज आटा गूंधते समय
अचानक उठ आये
छोटी उंगली के दर्द ने
याद दिलाया है मुझे
सुबह गुस्से में जो कांच का
गिलास जमीन पर फेंका था तुमने
उसी काँच के गिलास को
उठाते वक्त चुभा था
काँच के गिलास का वह टुकड़ा,मेरी उँगली में
लाल खून भी अब तो
झलकने लगा है उंगली में
सोच रही हूँ
अब कैसे गूंधूंगी आटा
फिर बायें हाथ से ही
समेटने लगी हूँ
उस आधे गुंधे हुये आटे को
तुम्हें क्या मालूम
हर हाल मे ही
सहना…
Added by Abha saxena Doonwi on September 12, 2016 at 3:10pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 12, 2016 at 12:00am — 14 Comments
ग़ज़ल
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(मफऊल -फाइलात -मफ़ाईल -फाइलुन )
सबको पता है तुझको मेरे दिल ख़बर कहाँ ।
वह डालते हैं सब पे करम की नज़र कहाँ ।
जैसे ही सामना हुआ मेरे हबीब से
बदली में छुप गया है न जाने क़मर कहाँ ।
हातिम की बात हर कोई करता तो है मगर
आता है उसके जैसा नज़र अब बशर कहाँ ।
खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ
जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 11, 2016 at 8:11pm — 12 Comments
शिद्दत की प्यास-----
‘बेटा ----‘
वृद्ध-बीमार पिता ने पुकारा
कोई उत्तर नहीं आया
‘बेटा श्रवण -----‘
पिता ने फिर पुकारा
फिर कोई उत्तर नहीं आया
‘बहू ------ ‘
वृद्ध ने विकल्प तलाशना चाहा
कोई हलचल नहीं हुयी
वृद्ध ने एक और प्रयास करना चाहा
पर खुश्क गले से
नहीं निकल पायी आवाज
उसने कोशिश की स्वयं उठने की
बूढ़े पांवों में नहीं थी
शरीर का बोझ उठाने की ताकत
वह लड़खड़ा कर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 11, 2016 at 3:46pm — 5 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 11, 2016 at 12:30pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
एक दिन है शादमानी की लहर का जागना
रोज़ ही फिर देखना है चश्मे तर का जागना
देख लो तुम भी मुहब्बत के असर का जागना
चन्द लम्हे नींद के फिर रात भर का जागना
चाँद जागा आसमाँ पर, खूब देखे हैं मगर
अब फराहम हो ज़मीं पर भी क़मर का जागना
बाखबर तो नींद में गाफ़िल मिले हैं चार सू
पर उमीदें दे गया है बेखबर का जागना
सो गये वो एक उखड़ी सांस ले कर , छोड़ कर
और हमको दे गये हैं उम्र भर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 10:07am — 4 Comments
बह्र ~ 1222-1222-122
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
मतला ...
नहीं ये आँख में आंसू ख़ुशी के
ये आंसू हैं किसी मुफलिस दुखी के
ग़ज़ल कैसे लिखूं मैं लिख न पाती,
नहीं है लफ्ज़ मिलते शायरी के.
नहीं आदत है हमको तीरगी की ,
जियें कैसे बता बिन रौशनी के.
बहुत ग़मगीन हैं दिल की फिज़ायें,
किसे किस्से सुनाएँ बेबसी के.
कहे हमने नहीं अल्फाज दिल के,
गुजर ही जायेंगे दिन जिन्दगी के.
अगर “आभा…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 11, 2016 at 8:30am — 2 Comments
खोलो दिल के वातायन प्रिय मैं आऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
अलकन में नम शीत मलय की
बाँध पंखुरी
पंकज की पाती से भरकर
मेह अंजुरी
ऊषा की लाली से लाल
हथेली रचकर
कंचन के पर्वत से पीली
धूप खुरच कर
कोना कोना मैं ऊर्जा से भर जाऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
सुरभित कुसुमो के सौरभ को
भींच परों में
चार दिशाओं के गुंजन को
सप्तसुरों में
बन…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 11, 2016 at 8:30am — 14 Comments
बह्र : 2122 2122 2122 212
कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना
चन्द पल में सैकड़ों युग दूर जाती कल्पना
स्वप्न है फिर सत्य है फिर है निरर्थकता यहाँ
और ये जीवन उसी में अर्थ कोई ढूँढ़ना
हुस्न क्या है एक बारिश जो कभी होती नहीं
इश्क़ उस बरसात में तन और मन का भीगना
ग़म ज़ुदाई का है क्या सुलगी हुई सिगरेट है
याद के कड़वे धुँएँ में दिल स्वयं का फूँकना
प्रेम और कर्तव्य की दो खूँटियों के बीच…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 10, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 10, 2016 at 8:15pm — 3 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 10, 2016 at 3:44pm — 2 Comments
रंग बिरंगे हाइकु
*************
1.
ग्रीष्म की रुत
सांकल सी खटकी
पीली लू आयी
२.
लिखती रही
रंगीन सा हाइकू
रात भर मैं
३.
सफ़ेद छोने
बर्फ के सिरहाने
फाये रुई के
...आभा
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 12:32pm — 3 Comments
चले बराती मेघ के ,गरज तरज के साथ |
ओलों ने नर्तन किये ले हाथों में हाथ |1|
आँखों में जब आ गए अश्रु की तरह मेघ |
रोके से भी न रुके तीव्र है इनका वेग |2|
सूर्य किरण हैं कर रहीं नदिया में किल्लोल |
चमक दमक से हो रहा जीवन भी अनमोल |3|
आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 8:00am — 5 Comments
बहर २१२२ २१२२ २१२२ २१२
दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले
चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले |
यारों का अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं
जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|
गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह
सुख कर गुल झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले |
कोशिशें हों ऐसी हर इंसान का होवे भला
उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |
देश भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 10, 2016 at 7:30am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 10, 2016 at 12:28am — 6 Comments
212 212 212 212
वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।
मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।
मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।
देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।
कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।
और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।
सब चुनावी गणित नोट से हल किये।
जीत तो वो गये देश की हार है।।
चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।
बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।
अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।
शाख़ पर उल्लुओं की तो…
Added by डॉ पवन मिश्र on September 9, 2016 at 9:02pm — 6 Comments
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