गौशाले में गाय खुश, बछिया दिखे प्रसन्न |
बछिया के ताऊ खफा, छोड़ बैठते अन्न |
छोड़ बैठते अन्न, सदा चारा ही खाया |
पर निर्णय आसन्न, जेल उनको पहुँचाया |
करते गधे विलाप, फायदा लेने वाले |
चारा पाती गाय, हुई रौनक गौशाले ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 30, 2013 at 5:20pm — 11 Comments
(1)
हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।
देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे ।
करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे ।
प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥
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(2)
प्रणव नाद सा मुखर जी, पाता है सम्मान |
मौन मृत्यु सा बेवजह, ले पल्ले अपमान |
ले पल्ले अपमान , व्यर्थ मुट्ठियाँ भींचता…
ContinueAdded by रविकर on September 28, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
कुण्डलियाँ
सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ |
अब क्या आशा राम से, हो रहे स्खलित विज्ञ |
हो रहे स्खलित विज्ञ, बने खरदूषण साले |
घालमेल का खेल, बुराई कुल अपना ले |
नित आगे की होड़, रखेंगे बढ़ा ताजिया |
सिया सती की लाज, बचा ले पकड़ हाँसिया ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 25, 2013 at 8:58am — 12 Comments
कुण्डलियाँ छंद
टोपी बुर्के कीमती, सियासती उन्माद |
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद |
पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |
रविकर ऐसा देख, पार्टियां वो ही कोपी |
अब तक उल्लू सीध, करे पहना जो टोपी |
अप्रकाशित/मौलिक
Added by रविकर on September 24, 2013 at 9:37pm — 6 Comments
कुण्डलियाँ-
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।
नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।
लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 24, 2013 at 11:53am — 12 Comments
मसले पर जब बलबला, शब्द मनाते जीत |
भाव मौन रहकर मरे, यही पुरातन रीत |
यही पुरातन रीत, तीर शब्दों के घातक |
दे दे गहरी पीर, ढूँढ़ ले खुशियाँ पातक |
बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 23, 2013 at 11:32am — 9 Comments
तब के दंगे और थे, अब के दंगे और |
हुड़दंगी सिरमौर तब, अब नेता सिरमौर |
अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
ये दंगे के दौर, वोट से थैली भर लें |
मरते हैं मर जाँय, कुचल कर बन्दे रब के |
दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 19, 2013 at 8:42am — 9 Comments
रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |
अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |
करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |
रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 18, 2013 at 9:00am — 13 Comments
टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 12, 2013 at 2:00pm — 5 Comments
ऐंड़ा पेड़ा खाय लें, लेढ़ा जूठन खात |
टेढ़े-मेढ़े साथ में, टेढ़े-टेढ़े जात |
टेढ़े-टेढ़े जात, जात में पूछ बढ़ाये |
खेड़े बेड़े नात, मात त्यौरियाँ चढ़ाए |
टाँय टाँय पर फुस्स, कहीं कुछ नहीं निबेड़ा |
रहा स्वयं ही ठूस, भरे घर रविकर-ऐंड़ा ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 10, 2013 at 11:01am — 7 Comments
सन्ता-बन्ता पर टिके, यदि जनता का ध्यान |
शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान |
पुन: जीत आसान, म्यान में रख तलवारें |
जान-बूझ कर जान, आम-जनता की मारें |
इक प्रकोष्ठ तैयार, ढूँढ़ता सकल अनन्ता |
बना नया हथियार, और भी लाये सन्ता ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 7, 2013 at 7:33pm — 8 Comments
कमा कमा परदेश में, पिया भुलाते नेह |
सुबह-सवेरे ज्वर कमा, तप्त रात भर देह |
तप्त रात भर देह, मेह रिमझिम सावन की |
भर देती सन्देह, खोपड़ी रविकर ठनकी |
भूल गए क्यूँ गेह, शीघ्र आ जाओ बलमा |
किंवा लाये सौत, हमें देते हो चकमा ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 6, 2013 at 2:54pm — 10 Comments
गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल ।
गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी ।
नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी ।
…
ContinueAdded by रविकर on September 5, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
मन की खिड़की पर जमा, छली कुल-जमा एक |
तीनों पाली में छले, बरबस रस्ता छेंक |
बरबस रस्ता छेंक, आह-उच्छ्वास छोड़ती |
पाऊँ कष्ट अनेक, व्यस्त हर कष्ट जोड़ती |
रविकर कैसा मोह, नहीं दे पाऊँ झिड़की |
चिदानन्द सन्दोह, बंद कर मन की खिड़की ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 5, 2013 at 9:33am — 9 Comments
बखियाने से साड़ियाँ, बने टिकाऊ माल |
लेकिन खोंचा मार के, कर दे दुष्ट बवाल |
कर दे दुष्ट बवाल, भूख नहिं देखे जूठा |
सोवे टूटी खाट, नींद का नियम अनूठा |
खोंच नींद तन भूख, कभी भी देगा लतिया |
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 4, 2013 at 4:25pm — 7 Comments
ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 2, 2013 at 6:46pm — 15 Comments
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जैसे ढलती |
रोज करे फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
मौलिक/अप्रकाशित
Added by रविकर on September 2, 2013 at 10:00am — 6 Comments
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |
आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |
रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||
*ईश्वर ना करे -
आदरणीय पाठक गण-कृपया नौज के उपयोग पर कुछ कहें-
मौलिक/अप्रकाशित-
Added by रविकर on September 1, 2013 at 9:00pm — 3 Comments
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