बहू के बदन पर देख,
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 15, 2014 at 11:27am — 6 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2014 at 10:30am — 9 Comments
इश्क बेक़रार करता,खूब बेक़रार करता,
कहते मर जायेंगे,न कोई बेक़रार मरता।
तौबा करेंगे, हद हो गयी राह तकने की,
मुरीद-ए-इश्क,बे-इंतहा इन्तजार करता?
हुआ-सो-हुआ,न करेंगे इश्क,खूब अकड़ता,
क्या पता फिर क्यूँ इश्क बार-बार करता?
मरने की ख़्वाहिश कहीं पालता है कोई?
कैसे कहें क्यूँ इश्क पर बार-बार मरता?
इश्क का कायल,कह देते,टूट जाता आदमी,
पर,दिखता खुद से लड़ता,सरहदों पे मरता।
*"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 15, 2014 at 8:30am — 4 Comments
अभी हांथों की मेहँदी भी नहीं सूखी थी और ये हादसा |
" भगवान को यही मंजूर था " , लोग दिलासा दे रहे थे |
" लेकिन जिस भगवान को ये मंजूर था वो भगवान हमें मंजूर नहीं ", और उसके मन के भाव दृढ हो गए |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on October 14, 2014 at 9:55pm — 8 Comments
जीते जी जिन्दगी खत्म नहीं होती
सिर्फ एक अध्याय खत्म होता है
जब तक एक भी साँस है
हौसले हैं
तब तक रास्ते हैं
कहीं भी, किसी पल
किसी भी मोड़ पर
नई शुरूआत हो सकती है
मिटा देता है वक्त गुज़रते-गुज़रते
पुरानी लिखावट को
और एक कोरा पन्ना छोड़ जाता है
आते-आते
वही वक्त एक और मौका देता है
कि उसी कोरे पन्ने पर
फिर अपनी ज़िन्दगी लिखें
फिर शुरूआत करें
(मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 14, 2014 at 9:33pm — 12 Comments
वाहनों से भरी सडक पर एक बाबा पैदल चले जा रहा था .. उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था की वो थक गया है और सहायता चाहता है , थके होने की वजह से वो बार बार मुड के पीछे देख रहा था !
आगे का रास्ता किसी वाहन पर करने की उम्मीद लिए जिसको भी हाथ देता वो उसको अनदेखा कर आगे निकल जाता ..मायूसी चेहरे पर थी पर बिना रुके चल भी रहा था ...
इस आपा धापी की जिंदगी में सबको जल्दी है पर कुछ दूर अगर छोड़ा जाता तो कुछ जाता नहीं उल्टा हमें जो आशीर्वाद मिलता वो जरूर फलता....जो शायद मेरे भाग्य में…
ContinueAdded by Alok Mittal on October 14, 2014 at 6:00pm — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 14, 2014 at 3:27pm — 14 Comments
"क्या बताऊँ मेरा कुत्ता टाॅमी दो दिन से बीमार है, बचा हुआ सारा खाना फेंकना पडता है "
"अरे बो मेरी बर्तन चौका बाली महरी को दे देना वह बासा कूसा सब खा लेती है। दुआ देगी, तुम्हे पुण्य लाभ होगा।"
पडोस की भाभी ने गम्भीरता से कहा ।
डाॅ संध्या तिवारी
Added by Dr.sandhya tiwari on October 14, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
सूनी पड़ीं हैं कब से, रिश्तों की महफ़िलें ये,
आओ हम तुम मिल के, ये महफ़िलें सजा दें।
छेड़ी जो तान तुमने, मायूसी के शहर में,
हम भी हंसी की छोटी सी डुगडुगी बजा दें॥
बंद हैं दरवाजे, बहरों की बस्तियों में,
तो हम भी बन के गूंगे, इन्हें कोई सदा दें।
कुछ ग़म की है उधारी, कुछ क़र्ज़ बेबसी का,
दे बेक़सी के सिक्के, ये क़र्ज़ कर अदा दें॥
खाते लज़ीज़ व्यंजन, समझोगे क्या ग़रीबी,
होता नहीं निवाला, किसी भूखे को खिला दें।
सर पर हमारे बैठे, हैं…
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 14, 2014 at 10:00am — 8 Comments
"पापा ,आपको अब हमारे यहाँ दो महीने हो गए हैं, अब छोटू का नंबर है !आपकी टिकट करवा दी है !"
"ठीक है ,बेटा !"
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 14, 2014 at 7:00am — 13 Comments
1.
नफरतों का सिलसिला चारों तरफ है
फिर चुनावों की हवा चारों तरफ है
दौर फिर हैवानियत का आ गया लो
आदमीयत गुमशुदा चारों तरफ है
है मुकर्रर दिन क़यामत का सुना था
हाँ इसी की इब्तदा चारों तरफ है
छिड़ गई है जंग फिर से भाइयों में
इक महाभारत नया चारों तरफ है
दानवों ने शोर कितना फिर मचाया
मौनधारी देवता चारों तरफ है
ज़िंदगी से भागकर जायें कहाँ हम
मौत से बढ़कर कज़ा चारों तरफ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on October 13, 2014 at 10:30pm — 7 Comments
उसका मानना था उसमे और बांकी की औरतो में कोई खास फरक नहीं है बल्कि उसकी स्थिति उनसे कहीं बेहतर है । उसके पास कम से कम चॉइस है किसके साथ जाना है किसके साथ नहीं वो उसका चुनाव खुद करती है लेकिन उसके जैसो के अलावा के पास कोई चॉइस नहीं है और उनको ये सब करके कोई खास ख़ुशी नहीं मिलती, मज़बूरी में करती है । लेकिन जिस काम को करके कोई ख़ुशी नहीं मिलती उसमे आत्मा मर जाती है रह जाता है सिर्फ शारीर; पैसा पॉवर और प्रमोशन ऐसी बहुत सी जिजिबिषा है जिसके लिए उन्हें अपनी आत्मा को मारना पड़ता है और जिंदगी भर ढोते है…
ContinueAdded by priyanka om prakash on October 13, 2014 at 7:00pm — 2 Comments
Added by seemahari sharma on October 13, 2014 at 5:34pm — 14 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2014 at 3:30pm — 25 Comments
ज़िंदगी की आखिरी करामात हो जाए ,
चलो आज मौत से मुलाकात हो जाए ।
इस उम्मीद में निकला हूँ, मिल जाए कोई इंसां ,
बरसों चुप रहा, अब किसी से बात हो जाए ।
बरसात आ गई है, कुछ बीज मैं भी बो दूँ ,
शायद हरी-भरी फिर ये क़ायनात हो जाए ।
अक्सर ही पूछता हूँ, मैं ये सवाल खुद से ,
क्या करूँ कुछ ऐसा , कि वो खुशमिज़ाज़ हो जाये।
उम्र से ही पहले दिखने लगा हूँ बूढ़ा ,
चलो सफ़ेद बालों में, अब ख़िज़ाब हो जाए ।
पीठ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 1:30pm — No Comments
प्रथम प्यार की आस में
मैने किया प्रयास
सजनी एट्टीट्यूड में
तनिक न डाले घास
पोथी पढ़कर प्यार की
तनिक न असर बुझाय
जब-जब भी कोशिश किया
चप्पल-जूताखाय
हर महफिल हर रंग में
चेहरा जिसका भाय
उसने राखी बाँध के
भाई लिया बनाय
घरवालों की मान के
डाल दिया जयमाल
दो दो मेरे सालियाँ
पकड़ के खीचें गाल
मारा-मारा फिर रहा
जबसे हुआ विवाह
बीबी ऐसी मिल गई
रहती…
Added by Pawan Kumar on October 13, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
एक ओर हैं ,
जनरल की बोगीं।
जिसमें बैठते हैं...
दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,
कुछ योगी,
और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,
असंख्य रोगी।
दूसरी ओर हैं ,
उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।
जिनमें बैठते हैं...
भोगों से घिरे हुए,
भोग भोगते भोगी,,
और ग़रीबी से अछूते,
कई निरोगी।
कितना अनोखा,
यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,
जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,
ये सरकार…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 10:00am — 6 Comments
पूरे मोहल्ले में केवल बब्लू के घर की ही पक्की छत थी, बाकि सारे मकान कच्चे थे. बब्लू को बचपन से ही पतंगबाजी का बड़ा शौक था. हमेशा छत पर चढ़कर पतंग उड़ाकर वो मोहल्ले के लोंगो, जो कि अपने आँगन से पतंगबाजी करते थे, सभी की पतंग काट दिया करता था. अभी चार माह पहले ही पतंग उड़ाते हुए ,छत से बुरी तरह से नीचे जमीन पर गिर जाने के बाद भी बब्लू का पतंग उड़ाने का शौक तो नही गया, किन्तु अब छत की हद को बार-बार ध्यान में रखता है, और एक दिन में कई पतंगें कटवा देता…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 8:00am — 20 Comments
मेरा सूरज है तू...!
मंदिरों में दिये सजाए जाते
नित्य सुबह और शाम!
जला दी जाती हैं बातियॉं
ज्ञान की राह में,
रोशनी की आस में,
बेटों की कतार में,
चिरागों की मृगतृष्णा,
ताख को काला कर देती है।
बातियां,
सारी उम्र जल कर
रोशनी देती,
खुशियां बांटती।
दीपक,
पल-पल तेल सोखता
चतुर महाजन सा
ब्याज पहले और मूलधन बाद में
स्वयं के होने का एहसास कराता।
बातियां भ्रूण सी,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 12, 2014 at 5:30pm — 2 Comments
Added by Dr. Rakesh Joshi on October 12, 2014 at 5:27pm — 7 Comments
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