१२२२ १२२२ १२२२ १२
बहर---हजज मुसम्मन महजूफ
काफिया ---ना
रदीफ़ ----लगा
सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा
तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा
…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 14, 2013 at 3:00pm — 25 Comments
बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ
वज्न : 2122, 2122, 212
........................................
सभ्यता सम्मान अपनापन गया,
आदमी शैतान जबसे बन गया,
भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,
ज्ञान गुण आदर कि अनुशासन…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 12:00pm — 17 Comments
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये
दशानन था रावण
इनके हैं सौ- सौ सर
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर
रहे बजबजा इनके भीतर
फिर भी जरा नहीं शर्माए .
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये .
पंडित था रावण ,
था, अति बलशाली ,
धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,
विवेकशून्य , मर्यादा से खाली.
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 14, 2013 at 10:30am — 18 Comments
"प्रकाश आपने मेरी बहन…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 10:30am — 53 Comments
सार्थक दशहरा
***************
धर्म की विजय हुई त्रेता में, राम ने मारा रावण को।
उसकी याद में हमने भी, हर साल जलाया रावण को॥
कलियुग में मायावी रावण, रूप बदलकर आता है।
वो भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, अनाचारी कहलाता है॥
अधर्मी रावण का पुतला, हर बरस जलाया जाता है।
कई रूप में अंदर बैठा रावण, हँसता है, मुस्काता है॥
अपने अंदर के रावण को ,…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments
दिल के बिना जैसे कोई नादान जिन्दा रह गया
वैसे हो बेघर इक हसीं अरमान जिन्दा रह गया
है आदमी ही आदमी की जान का दुश्मन हुआ
यारों खुदा का है करम इंसान जिन्दा रह गया
टूटा हमारा हौसला उम्मीद फिर भी थी जवां
रख आरजू जीने की ये बेजान जिन्दा रह गया
मेरे खुदा मुझ पर तेरा रहमो करम हरदम रहा
तूफ़ान में अदना सा ये इंसान जिन्दा रह गया
लगते रहे हर रोज ही इल्जाम तो हम पर बड़े
माँ की दुआओं से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 3:46pm — 22 Comments
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जुम्मन ख़ाँ
__________________
अब तो थोड़ा सोचो और विचारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
सच्चाई को कब तक ओढ़ो और बिछाओगे
ख़ुदग़र्ज़ी से, मक्कारी से आँख चुराओगे
मुँह में रखकर राम बगल में छुरी नहीं रखते
नीयत कभी किसी की ख़ातिर बुरी नहीं रखते
निश्छल चेहरे पर छाया जो ये भोलापन है
सच मानो जुम्मन ख़ाँ सबसे शातिर दुश्मन है
थोड़ा सा तो डूबो धन-दौलत की चाहत में…
Added by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 13, 2013 at 2:30pm — 12 Comments
5+7+5+7……..+5+7+7 वर्ण
जीवन कैसा
एक चिटका शीशा
देह मिली है
बस पाप भरी है
भ्रम की छाया
यह मोह व माया
अहं का फंदा
मन दंभ से गन्दा
शब्द हैं झूठे
सब अर्थ हैं छूटे
तृप्ति कहीं न
सुख-चैन मिले न
फाँस चुभी है
एक पीर बसी है
प्यास बढ़ी जो
अब आस छुटी जो
किसे पुकारें
अब कौन उबारे
एक सहारा
माँ यह तेरा द्वारा
हे जगदम्बे!
शरणागत तेरे
आरती…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 1:00pm — 33 Comments
1222, 1222, 122.
.
ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?
लहू दिल से निचोड़ा क्यूँ करें हम?
.
फ़ना हो जाएगा सबकुछ जहां में,
ये झूठा फिर दिखावा क्यूँ करें हम?
.
उगेंगे एक दिन कांटें ही कांटें,
ज़हन में याद बोया क्यूँ करें हम?
.
नहीं परवाह है उनको हमारी,
बिना कारण ही रोया क्यूँ करें हम?
.
हमारे काम खुद ही बोलतें है,
ज़ुबानी कोई दावा क्यूँ करें हम?
.
जुदा है रास्ते तुमसे हमारे,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2013 at 12:30pm — 26 Comments
भूख
यह सच्ची घटना कई साल पहले की है जब मैं मात्र १८ वर्ष का था। गुजरात के आनन्द शहर से दिल्ली जा रहा था। रास्ते में बड़ोदा (अब वरोदरा) स्टेशन पर ट्रेन बदलनी थी.. फ़्रन्टीयर मेल के आने में अभी २ घंटे बाकी थे। रात के लगभग ११ बजे थे। समय बिताने के लिए मैं स्टेशन के बाहर पास में ही सड़क पर टहलने चला गया। एक चौराहे पर छोटी-सी लगभग ५ साल की बच्ची खड़ी रो रही थी, रोती चली जा रही थी। मेरा मन विचलित हुआ। मैंने उससे पूछा..." क्या नाम है तुम्हारा?" ..वह रोती चली गई। पास में एक…
ContinueAdded by vijay nikore on October 13, 2013 at 12:00pm — 17 Comments
2122. 1212. 22
कब वो खाली शराब पीता है
हुस्ने ताजा शबाब पीता है
कैसे खिलती वहाँ कली अबतर
वो तो खूने हिजाब पीता है
इतनी भोली खला कि क्या जाने
फिर वो अर्के गुलाब पीता है
ऐसी तदबीर जानता है वो
दिल में उठते हुबाब पीता है
जाने तसतीर भी नहीं उसकी
तब भी सारे खिताब पीता है
ऐसी तौक़ीर दूरतक जानिब
सबकी खाली किताब पीता है
पीना फितरत बना लिया उसने
बैठे ही लाजवाब पीता है
हिजाब -…
Added by Poonam Shukla on October 13, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !
साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं
क्या बकता है हरामखोsss
माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by वीनस केसरी on October 13, 2013 at 12:00am — 25 Comments
बोलो किसको राम कहूँ मै
*********************
सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 12, 2013 at 9:30pm — 38 Comments
मेरे अल्लाह ! तू लड़की बनाना
मुझे आता नहीं, चोटी बनाना//१
.
बनाना चाहता हूँ ‘आदमी’ को
बुरा है पर, ज़बरदस्ती बनाना//२
.
मुझे इक 'माँ' लगे है, देख लूं जो
सनी मिट्टी लिए रोटी बनाना//३
.
न डूबेगा समंदर में, लहू के
शिकारी सीख ले कश्ती बनाना//४
.
चला वो, तीर-भाले को पजाने
सिखाया था जिसे बस्ती बनाना//५
.
उजालों से मुहब्बत है, मुझे भी
सिखा दे माँ मुझे तख्ती…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 12, 2013 at 5:00pm — 33 Comments
बह्र— 2122/2122/2122/22
थाम के कांधे को हाथों में कलाई देना
याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना
प्यार ने जिसके बना डाला है काफिर मुझको
ऐ खुदा उनको जमाने की खुदाई देना
तरबियत आंसू की कुछ ऐसे किया है हमने
अब तो मुश्किल है मेरे गम का दिखाई देना
याद आती है जुदाई की घड़ी जब हमको
तो शुरू होता है चीखों का सुनाई देना
बिन तेरे खुश रहने का इल्जाम था सिर मेरे
काम आया मेरे अश्कों का सफाई देना
जब भी रूठा हूं…
Added by शकील समर on October 12, 2013 at 3:30pm — 24 Comments
सुकुमार के पास और कोई चारा नहीं बचा था, व्यापार में हुए 200 करोड़ रुपये के घाटे वह सहे तो कैसे, अब या तो वह शहर-देश छोड़ कर भाग जाए या फिर काल का ग्रास बन जाए| सुकुमार को कोई राह सुझाई नहीं दे रही थी| सारे बंगले, ज़मीनें, कारखाने बेच रख कर भी इतना बड़े नुकसान की पूर्ति नहीं कर सकता था| फिर भी वो पुरखों की कमाई हुई सारी दौलत और जायदाद का सौदा करने एक बहुत बड़े उद्योगपति मदन उपाध्याय के पास जा रहा था| मदन उपाध्याय देश के जाने-माने उद्योगपति थे, उनके कई सारे व्यवसायों में…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 12, 2013 at 1:20am — 20 Comments
रमाकांत को पचास वर्ष की आयु में सात पुत्रियों के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ती हुयी थी | आज बेटे की छठी बड़े धूमधाम से मनाई जा रही थी | मित्रों और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था कहीं तिल रखने की भी जगाह नही थी घर में | महिलाएँ बधाई गीत गा रहीं थीं | रमाकांत सपत्नी खुशी से फूले नही समा रहे थे | बेटियाँ चुपचाप ये सब देख रहीं थीं | सबसे छोटी बेटी जो मात्र तीन वर्ष की थी अपनी सबसे बड़ी बहन की गोद में बैठी थी | सभी बहने देख रहीं थी कि कैसे सभी उसके नन्हें से भाई को गोद में ले कर स्नेह दिखा रहे थे | माँ…
ContinueAdded by Meena Pathak on October 11, 2013 at 5:36pm — 24 Comments
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
जग से नाता तोड़ चला हूँ,मैं
जग से नाता तोड़ चला हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
उनसे मिलन की, आस लिए
अंधरों बड़ी प्यास, लिए
दर बदर मैं, भटक रहा हूँ, हाँ
दर बदर मैं, भटक रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
आएगी कब वह, रात सुहानी
होंगी जब वो,मेरी दीवानी
रात और दिन यही, सोच रहा हूँ, मैं
रात और दिन यही, सोच रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
हर…
ContinueAdded by Devendra Pandey on October 11, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी
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चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ
पल भर तो ठहर जाना
नैनों की भाषा क्या है
कुछ गुनगुना सुना-ना
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*आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
कोमल-कठोर बोल तू
पलकें उठा , शरमा-ना
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आँखों मे आँखें डाले
मै मूर्ति बन गया हूँ
पारस पारस सी हे री !
तू जान डाल जा ना
------------------------
खिलता गुलाब तू…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 11, 2013 at 12:00am — 22 Comments
कैकई के मोह को
पुष्ट करता
मंथरा की
कुटिल चाटुकारिता का पोषण
आसक्ति में कमजोर होते दशरथ
फिर विवश हैं
मर्यादा के निर्वासन को
बल के दंभ में आतुर
ताड़का नष्ट करती है
जीवन-तप
सुरसा निगलना चाहती है
श्रम-साधना
एक बार फिर
धन-शक्ति के मद में चूर
रावण के सिर बढ़ते ही जा रहे हैं
आसुरी प्रवृत्तियाँ
प्रजननशील हैं
समय हतप्रभ
धर्म ठगा सा…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on October 10, 2013 at 11:30pm — 26 Comments
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