नयी ग़ज़ल
बह्र - २१२२ २१२२ २१२
अजनबी हमसे सदा रहता नहीं
चाहता है फिर गिला रहता नहीं
वो जफ़ा कर क्यों खफा तुमसे हुआ
बा वफ़ा साथी जुदा रहता नहीं
आईना टूटा तभी तो रो दिये
नूर आँखों का बुझा रहता नहीं
दोस्त तेरा प्यार मुझ पे इस कदर
टूटकर भी वो ख़फा रहता नहीं
तू मना ले चाह कर भी ऐ “निधी”
नाखुशी से वो ख़ुदा रहता नहीं
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Nidhi Agrawal on November 30, 2016 at 11:00am — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 29, 2016 at 11:49pm — 12 Comments
क्षण भर पीर को सोने दो .....
क्षण भर पीर को सोने दो
चाह को मुखरित होने दो
जाने चमके फिर कब चाँद
अधर को अधर का होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो .....
आलौकिक वो मुख आकर्षण
मौन भावों का प्रणय समर्पण
अंतस्तल को तृप्त तृषा का
वो छुअन अभिनंदन होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो .....
बीत न जाए शीत विभावरी
विभावरी तो विभा से हारी
अंग अंग को प्रीत गंध का
अनुपम उपवन होने दो
क्षण भर पीर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 29, 2016 at 8:34pm — 6 Comments
लिपट चंद्रिका चंद्र, करें वे प्रणय परस्पर।
निरखें उन्हें चकोर, भाग्य को कोसें सत्वर।।
हाय रूप सुकुमार, कंचु अरुणाभा वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥
व्याकुल हुए चकोर, मेघ चंदा को ढक ले।
रसधर सुन्दर अधर, हृदय कहता है छू ले।।
सीमा अपनी जान, लगे सब रीता खाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥
रहे उनीदे नैन, सजग अब निरखे उनको।
देख देख हरषाय, तृप्त करते निज मन को।।
हुए अधूरे आप, नहीं वह मिलने वाली।
स्वर्ग परी…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on November 28, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2016 at 7:48pm — 13 Comments
2122 2122 2122 212
रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा
बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा
वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये
नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा
एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन
मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा
जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का
तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा
अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को
इसलिए पाक़ीज़गी को ही…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 28, 2016 at 11:02am — 16 Comments
अरकान – 2122 12 12 22
कुछ भी मिलता न सच बताने से |
फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से|
कोशिशें लाख हमने की लेकिन,
इश्क छुपता नहीं छुपाने से|
कहकहे उनके गूंजते हरज़ा,
हम तो डरते हैं मुस्कुराने से
लाख सोचा कि भूल जाऊँ पर,
याद आते हो तुम भुलाने से|
मिन्नतें मैंने लाख की लेकिन
क्या मिला मुझको सर झुकाने से
या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’
रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 27, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
सनम छोड़ जाते हैं यादों के मेले
हम उनके बिना भी रहे कब अकेले
मैं समझाऊँ कैसे ये चारागरों को
उन्हें छू के हो जाते मीठे करेले
रहे यूँ ही नफ़रत गिराती नये बम
न कम कर सकेगी मुहब्बत के रेले
मैं कितना भी कह लूँ ये नाज़ुक बड़ा है
सनम बेरहम दिल से खेले तो खेले
इन्हें दे नये अर्थ नन्हीं शरारत
वगरना निरर्थक हैं जग के झमेले
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:30pm — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 26, 2016 at 11:00pm — 9 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 26, 2016 at 8:40pm — 2 Comments
Added by Arpana Sharma on November 26, 2016 at 4:21pm — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on November 26, 2016 at 1:18pm — 11 Comments
51
केवल तुम
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मैं बार बार मन ही मन हर्षित सा होता हॅूं,
हर ओर तुम्हारा ही तो अभिनन्दन है।
मन मिलने को आतुर फिर भी कुछ डर है सूनापन है,
हर साॅंस बनाती नव लय पर संगीत अनोखी धड़कन है,
अब तो हर द्वारे आहट पर तेरा ही अवलोकन है,
मैं इसीलिये नवगीत कंठ करता रहता हॅूं
हर शब्द में बस तेरा ही तो आवाहन है।
मन की राह बनाकर इन नैनों के सुमन बिछाये हैं,
मधुर मिलन की आस लिये ये अधर सहज मुस्काये हैं,
हर पल बढ़ते संवेदन…
Added by Dr T R Sukul on November 26, 2016 at 12:45pm — 6 Comments
अरकान – 212 2 122 122 12
काले बादल कभी जब बिखर जायेंगे |
ए नजारे भी बेशक बदल जायेंगे |
मुस्कुरा के ना देखो हमें आज यूँ,
दिल के अरमाँ हमारे मचल जायेंगे|
हमको मारो न खंज़र से ऐ महज़बी,
रूठ जाओ तो हम यूँ ही मर जायेंगे|
आके देखो कभी तुम हमारी गली,
ए इरादे तुम्हारे बदल जायेंगे|
लैला-मजनू हैं क्या शीरी फरहाद क्या,
प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे|
संग दिल हैं वे…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 25, 2016 at 11:30am — 4 Comments
घूंघट की ओट में .....
खो गयी
एक गुड़िया
घूंघट की ओट में
बन गयी
वो एक दुल्हन
घूंघट की ओट में
ख़्वाबों का
शृंगार हुआ
घूंघट की ओट में
थम थम के
छुअन बढ़ी
घूंघट की ओट में
सब कुछ
मिला उसे
घूंघट की ओट में
बस
मिल न पाया
उसे एक दिल
घूंघट की ओट में
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 24, 2016 at 8:31pm — 10 Comments
221 2121 1221 212/2121
पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम
चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम
बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र से
इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम
बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया
किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम
ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई
सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम
परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी
भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 24, 2016 at 7:37pm — 26 Comments
Added by Ravi Prakash on November 24, 2016 at 1:42pm — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 24, 2016 at 9:59am — 16 Comments
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