Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 30, 2017 at 11:42pm — 16 Comments
Added by Manoj kumar shrivastava on November 30, 2017 at 11:07pm — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 30, 2017 at 5:30pm — 4 Comments
Added by Rahila on November 29, 2017 at 11:49am — 7 Comments
समय के साँचे में कुछ भभका सहसा
गुन्थन-उलझाव व भार वह भीतर का
चिन्ताग्रस्त, तुमने जो किया सो किया
वह प्रासंगिक कदाचित नहीं था
न था वह स्वार्थ न अह्म से उपजा
किसी नए रिश्ते की मोह-निद्रा से प्रसूत
ज़रूर वह तुम्हारी मजबूरी ही होगी
वरना कैसे सह सकती हो तुम
मेरी अकुलाती फैलती पीड़ा का अनुताप
तुम जो मेरे कँधे पर सिर टिकाए
आँखें बन्द, क्षण भर को भी
मेरा उच्छवास तक न सह सकती थी
और अब…
ContinueAdded by vijay nikore on November 29, 2017 at 7:51am — 15 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 28, 2017 at 10:50pm — 11 Comments
चोर-मन
कमर खुजाती उस स्त्री पर
पंजे मारकर बैठ गई आँख
मदन-मन खुजाने लगा पांख |
अभी उड़ान भरी ही थी कि
पीठ पर पत्नी ने आके ठोका
रसगुल्लामुँह हो गया चोखा |
जवाब में रख दीं बातें इमरती
छत की धूप और सुहानी सरदी
सचेती स्त्री संभल के चल दी |
बहलाने लगा मूंगफली के बहाने
चोर-मन ढूंढता बचने के ठिकाने
भर चिकोटी पत्नी लगी मुस्कुराने |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by somesh kumar on November 28, 2017 at 9:36am — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 28, 2017 at 2:00am — 13 Comments
बचपन को फिर देख रहा हॅूं,
विद्यालय का प्यारा आॅंगन,
साथी-संगियों से वह अनबन,
गुरू के भय का अद्भुत कंपन,
इन्हीं विचारों के घेरे में,
मन को अपने सेंक रहा हूॅं,
बचपन को फिर देख रहा हॅूं,
निष्छल मन का था सागर,
पर्वत-नदियों में था घर,
उछल-कूद कर जाता था मैं,
गलती पर डर जाता था मैं,
लेकिन आज यहाॅं पर फिर से,
गल्तियों का आलेख रहा हूॅं,
बचपन को फिर देख रहा हॅूं,
चिर लक्ष्य का स्वप्न संजोया,
भावों का मैं हार पिरोया,
मेहनत की फिर कड़ी…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 27, 2017 at 9:47pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2017 at 9:00pm — 7 Comments
अबोले स्वर ...
कुछ शब्दों को
मौन रहने दो
मौन को भी तो
कुछ कहने दो
कोशिश करके देखना
एकांत पलों में
मौन तुम्हारे कानों में
वो कह जाएगा
जो तुम कह न सके
वो धड़कनों की उलझनें
वो अधरों की सलवटों में छुपी
मिलन के अनुरोध की याचना
वो अंधेरों में
जलती दीपक की लौ में
इकरार से शरमाना
बताओ भला
कैसे शब्दों से व्यक्त कर पाओगी
हाँ मगर
मौन रह कर
तुम सब कह जाओगी
चुप रह कर भी
अपनी साँसों से…
Added by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 8:25pm — 6 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on November 27, 2017 at 6:57pm — 7 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 27, 2017 at 6:30pm — 4 Comments
(डॉ 0 अनिल मिश्र की अंग्रेजी कविता का हिन्दी रूपांतरण )
सभी जो निरीह हैं वो भ्रूण हों या वयोवृद्ध
सब के सब जीवित शताधिक जला दिये
गोलियों से भूने गए कितने हजार और
कितने सहस्र को निराश्रित बना दिये
और कई पारावार आंसुओं के बार-बार
बाढ़ की तरह नित्य सहसा उफना दिये …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2017 at 8:30pm — 3 Comments
1.
उतारिए चश्मा
पोछिये धूल
चीज़ें खुदबखुद... साफ़ हो जाएँगी ।
2.
ज़रूरी है… सफाई अभियान
शुरुआत कीजिये
दिल से ....
3.
गंदगी सिर्फ मुझमे ही नहीं
तुम में भी है मित्र
ज़रा अंदर तो झाँको ....
4.
जब ईमान गिरवी हो
ज़मीर बिक चुका हो
कौन उठायेगा बीड़ा
समाज की सफाई का ....
5.
साफ़ नहीं होती गंदगी
बार बार उंगली दिखाने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 26, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
ब
“सर, दरवाजा खोलिए” प्रोफेसर राघव की शोध छात्रा नूर ने दरवाजे पर दस्तक देते हुए आवाज दी
“अरे! नूर तुम, दोपहर में अचानक, कैसे?” दरवाजा खोलते हुए प्रोफेसर राघव ने आने की वजह जाननी चाही
“ हाँ सर, एक रिसर्च पेपर में करेक्शन के लिए आई थी”
“ पर अभी तो मैडम घर पर नहीं हैं,और बाज़ार से कब तक लौटें इसका भी अंदाज नहीं है,आखिर तुम कब तक इस धूप में बाहर इंतज़ार करोगी” प्रोफेसर राघव् ने त्वरित जवाब दिया
“ बाहर क्यों सर ?” नूर ने कौतूहल से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2017 at 2:30pm — 11 Comments
Added by जयति जैन "नूतन" on November 26, 2017 at 2:30pm — 2 Comments
काफिया ;इल ; रदीफ़ : में है
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाने दिल में’ है
किन्तु का ज़िक्र दिल से दूगुना महफ़िल में’ है |१|
जानती है वह कि गलती की सही व्याख्या कहाँ
पंख बिन भरती उड़ाने, भूल इस गाफिल में’ है |२|
राम रब कृष्ण और गुरु अल्लाह सब तो एक हैं
बोलकर नेता खुदा पर, पड़ गए मुश्किल में है |३|
गर सफलता चाहिए तुमको करो दृढ मन अभी
जज़्बा’ विद्यार्थी में’ हो वैसा…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 26, 2017 at 9:00am — 7 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 26, 2017 at 1:30am — 9 Comments
सागर जैसी आॅंखों में,
बहते हुए हीरे मेरी माॅं के हैं,
होठों के चमन में,
झड़ते हुए फूल, मेरी माॅं के हैं,
काॅंटों की पगडंडियों में,
दामन के सहारे मेरी माॅं के हैं,
गोदी के बिस्तर में,
प्यार की चादर मेरी माॅं की हैं,
प्यासे कपोलों,
पर छलकते ये चुंबन मेरी माॅं के हैं,
ईश्वर से मेरी,
कुशलता की कामना मेरी माॅं की हैं,
इतराता हूॅं इतना,
पाकर यह जीवन,
मेरी माॅं का है।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Manoj kumar shrivastava on November 25, 2017 at 9:30pm — 10 Comments
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