लव यू -लव यू कहते रहो ,मिस यू -मिस यू जपते रहो
पीठ फिरे तो गो टू हैल ,नारा भी बुलंद करो
नहीं रहे वो सच्चे रिश्ते ,प्यार जहां पर पलता था
आज के रिश्ते बस एक छलावा,सबकुछ एक दिखावा है
मात-पिता का प्यार भी अब ,लगता ज़िम्मेदारी है
भाई बहन का प्यार अब बस एक नातेदारी है
रिश्तों का जहां मान नहीं ,कैसा युग ये आया है
कहते हैं वे हमें पुरातन ,पर नवयुग से क्या पाया है ?
पति-पत्नी के रिश्तों की भी ,गरिमा अब है कहाँ बची
नित होते तलाक़ों…
ContinueAdded by Veena Gupta on November 30, 2021 at 1:09am — 2 Comments
बल रहित मैं हूँ भीम कहता है
तुच्छ खुद को असीम कहता है/१
*
जिसकी आदत है घाव देने की
वो स्वयम को हकीम कहता है/२
*
आम पीपल को भूल बैठा वो
और कीकर को नीम कहता है/३
*
राम से जो गुरेज उस को नित
क्यों तू खुद को रहीम कहता है/४
*
धर्म क्या है समझ न पाया जो
धर्म को वो अफीम कहता है/५
*
हाथ जिसका है कत्ल में या रब
वो भी खुद को नदीम कहता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2021 at 10:04pm — 4 Comments
तेरे मेरे दोहे :......
बनकर यकीन आ गए, वो ख़्वाबों के ख़्वाब ।
मिली दीद से दीद तो, फीकी लगी शराब ।।
जीवन आदि अनंत का, अद्भुत है संसार ।
एक पृष्ठ पर जीत है, एक पृष्ठ पर हार ।।
बढ़ती जाती कामना ,ज्यों-ज्यों घटता श्वास ।
अवगुंठन में श्वास के, जीवित रहती प्यास ।।
कल में कल की कामना ,छल करती हर बार ।
कल के चक्कर में फँसा , ये सारा संसार ।।
बेचैनी में बुझ गए , जलते हुए चराग़ ।
उम्र भर का दे गए, इस…
Added by Sushil Sarna on November 28, 2021 at 1:30pm — 16 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कैसे किसी की याद में सब कुछ भुला दूँ मैं
क्यों कर हसीन ख्वाब की बस्ती मिटा दूँ मैं/१
*
बचपन में जिसने आँखों को आँसू नहीं दिया
क्योंकर जवानी जोश में उस को रुला दूँ मैं/२
*
शायद कहीं पे भूल से वादा गया मैं भूल
जिससे लिखा है न्याय में खुद को दगा दूँ मैं/३
*
घर में उजाला मेरे भी आयेगा डर यही
पथ में किसी के दीप तो यारो जला दूँ मैं/४
*
अपना पराया भेद वो भूलेगा इस से क्या
उसकी जमीं में अपनी भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2021 at 11:14pm — 2 Comments
भूख नैसर्गिक है ,
पर रोटी , रोटी
नैसर्गिक नहीं है।
भूख का निदान
स्वयं को करना होता है ,
रोटी कमानी पड़ती है ,
रोटी खरीदनी पड़ती है ,
रोटी पर टैक्स चुकाना पड़ता है ,
रोटी निदान है , आय का जरिया है।
भूख ऐसी कुछ नहीं , उसका निदान ,
आदमी से क्या कुछ नहीं करा देता है ,
उसे एक शब्द में कमाई कह देते हैं।
अपने लिए , अपने पेट के लिए।
सब कुछ नैसर्गिक है ......... ?
व्यापार के लिए , राजस्व के लिए।
मौलिक…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on November 27, 2021 at 11:29am — 2 Comments
११२१/२१२२/११२१/२१२२
भरें खूब घर स्वयं के सदा देशभर को छल के
मिले सारे अगुआ क्योंकर यहाँ सूरतें बदल के/१
*
गिरी राजनीति ऐसी मेरे देश में निरन्तर
कोई जेल से लड़ा तो कोई जेल से निकल के/२
*
मिटा भाईचारा अब तो बँटे सारे मजहबों में
सही बात हैं समझते कहाँ लोग आजकल के/३
*
हुई कागजों में पूरी यूँ तो नीर की जरूरत
चहुँ ओर किन्तु दिखते हमें सिर्फ सूखे नल के/४
*
कई दौर गुफ्तगू के किये हल को हर समस्या
नहीं आया कोई रस्ता कभी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2021 at 11:22pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
जरा सा मसअला है ये नहीं तकरार के क़ाबिल
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल
न ये संसार है मेरे किसी भी काम का हमदम
नहीं हूँ मैं किसी भी तौर से संसार के क़ाबिल
न मेरी पीर है ऐसी जिसे दिल में रखे कोई
न मेरी भावनायें हैं किसी आभार के क़ाबिल
ये मुमकिन है ज़माने में हंसी तुझसे ज़ियादा हों
सिवा तेरे नहीं कोई मेरे अश'आर के क़ाबिल
मेरे आँसू तुम्हारी आँखों से बहते तो अच्छा…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 25, 2021 at 12:00pm — 14 Comments
मिथ्या अगर जगत ये होता ,क्यूँ कर इसमें आते हम
देवों को भी जो दुर्लभ है ,वह मानुष जन्म क्यों पाते हम
ज्ञानी जन बस यही बताते ,मिथ्या जग के सुख दुःख सारे
पर इस जग में आ कर ही तो ,मोती ज्ञान के पाए सारे
ईश्वर की अद्भुत रचना ये सृष्टि ,नहीं जानता कोई कुछ भी
फिर भी ज्ञान सभी जन बाटें ,मानो स्रषटा हैं बस वे ही
जगत सत्य है या है मिथ्या ,क्यूंकर इसपर करें बहस
ईश्वर प्रदत्त अमूल्य जीवन को ,जिएँ सभी हम जी भरकर
उस अद्भुत कारीगर की ,रचना…
ContinueAdded by Veena Gupta on November 19, 2021 at 4:43am — 3 Comments
.
मेरी ज़ीस्त की कड़ी धूप ने मुझे रख दिया है निचोड़ कर,
अभी शाम ढलने ही वाली थी कोई चल दिया मुझे छोड़ कर.
.
मैं था मुब्तिला किसी ख़ाब में किसी मोड़ पर ज़रा छाँव थी
उसे ये भी रास न आ सका सो जगा गया वो झंझोड़ कर.
.
मेरे दिल में अक्स उन्हीं का था उन्हें ऐतबार मगर न था
कभी देखते रहे तोड़ कर कभी दिल की किरचों को जोड़ कर.
.
जो किताब ए ज़ीस्त में शक्ल थी वो जो नाम था मुझे याद है
वो जो पेज फिर न मैं पढ़ सका जो रखा था मैने ही मोड़ कर. …
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 18, 2021 at 5:00pm — 8 Comments
22-22-22-22-22-2
तुम कोई पैग़ाम कभी तो भिजवाओ।
वरना मेरे कबूतर वापिस दे जाओ।
जिसको तुमने अपने दिल से भुलाया है,
क्या ये वाजिब है खुद उसको याद आओ ?
मैने कहा जब,तुमने दिल को ज़ख़्म दिया,
वो बोले, कितना गहरा है, दिखलाओ।
जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,
प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।
आंखों में हैं ख्वाब भरे, पर नींद उड़ी,
गर ये प्यार नहीं तो क्या है, समझाओ।
'वो' कब के…
ContinueAdded by Gurpreet Singh jammu on November 15, 2021 at 11:30am — 6 Comments
2122-1212-22/112
अब तो इंसाफ भी करें साहिब
हक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)
ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिश
लोग सब धूप में रहें साहिब (2)
आप सब क्यों उड़े हवाओं में
हम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)
काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैं
पीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)
न ज़मीं है न आसमाँ अपना
ये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)
इतना अफ़सोस है अगर फिर तो
शर्म से डूब कर मरें साहिब (6)
आप सुनते नहीं…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on November 13, 2021 at 9:54pm — 10 Comments
2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2
बचपन की याद हमको दिलाती हैं बेटियाँ|
उंगली पकड़ के जब भी घुमाती हैं बेटियाँ|
हाथों से अपने जब भी खिलाती हैं देखिये
दादी की याद हमको दिलाती हैं बेटियाँ|
बेटा बसा है देखिये जब से विदेश में
इस घर के सारे बोझ उठाती हैं बेटियाँ |
जर्जर शरीर में जो न आती है नींद तो
दे दे के थपकियाँ भी सुलाती हैं बेटियाँ|
बेटी की शान में मैं भला और क्या कहूँ,
बेटे से बढ़ के…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 11, 2021 at 9:00pm — 3 Comments
यूँ जो दिल खोलकर मिल रही हो तुम
लगता है के अब मैं तुमको बिल्कुल याद नही
ऐसा होता है निकाह के बाद अक्सर
ऐसा होने मे कोइ गलत बात नही
अब मेरे खयालों से आज़ाद हो तुम
किसी और के साथ आबाद हो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on November 11, 2021 at 11:00am — No Comments
बन्धनहीन जीवन :......
क्यों हम
अपने दु :ख को
विभक्त नहीं कर सकते ?
क्यों हम
कामनाओं की झील में
स्वयं को लीन कर
जीवित रहना चाहते हैं ?
क्यों
यथार्थ के शूल
हमारे पाँव को नहीं सुहाते ?
शायद
हम स्वप्न लोक के यथार्थ से
अनभिज्ञ रहना चाहते हैं ।
एक आदत सी हो गई है
मुदित नयन में
जीने की ।
अन्धकार की चकाचौंध को
अपनी सोच की हाला में
मिला कर पीने की…
Added by Sushil Sarna on November 10, 2021 at 1:54pm — 4 Comments
क्या ही तुझ में ऐब निकालूँ क्या ही तुझ पर वार करूँ
ये तो न होगा फेर में तेरे अपनी ज़ुबाँ को ख़ार करूँ.
.
हर्फ़ों से क्या नेज़े बनाऊँ क्या ही कलम तलवार करूँ
बेहतर है मैं ख़ुद को अपनी ग़ज़लों से सरशार करूँ.
.
ग़ालिब ही के जैसे सब को इश्क़ निकम्मा करता है
लेकिन मैं भी बाज़ न आऊँ जब भी करूँ दो चार करूँ.
.
चन्दन हूँ तो अक्सर मुझ से काले नाग लिपटते हैं
मैं भी शिव सा भोला भाला सब को गले का हार करूँ.
.
सब से उलझना तेरी फ़ितरत और मैं इक आज़ाद मनक…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 9, 2021 at 3:30pm — 10 Comments
ज़ुल्म सहना छोड़ कर इन्कार करना सीख ले
है अगर ज़िन्दा पलटकर वार करना सीख ले.
.
एक नुस्ख़ा जो घटा देता है हर दुःख की मियाद
सच है जैसा वैसा ही स्वीकार करना सीख ले.
.
मज़हबों के खेल में होगी ये दुनिया और ख़राब
अपने रब का दिल ही में दीदार करना सीख से.
.
तन है इक शापित अहिल्या चेतना के मार्ग पर
राम सी ठोकर लगा.. उद्धार करना सीख ले.
.
नफ़रतों की बलि न चढ़ जाए तेरी मासूमियत
मान इन्सानों को इन्सां प्यार करना सीख ले.
.
लग न…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 7:30pm — 15 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 7, 2021 at 4:00pm — 8 Comments
2122 2122 2122 2
ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ
नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ
तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में
पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ
ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से
हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ
राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा
ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ
साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा
अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ
- दयाराम मेठानी…
Added by Dayaram Methani on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments
हाँ में हाँ मिलाइये
वर्ना चोट खाइए.
.
हम नया अगर करें
तुहमतें लगाइए.
.
छन्द है ये कौन सा
अपना सर खुजाइये
.
मीर जी ख़ुदा नहीं
आप मान जाइए.
.
कुछ नये मुहावरे
सिन्फ़ में मिलाइये.
.
कोई तो दलील दें
यूँ सितम न ढाइए.
.
हम नये नयों को अब
यूँ न बर्गलाइये.
.
नूर है वो नूर है
उस से जगमगाइए. .
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 5, 2021 at 8:32pm — 9 Comments
जहाँ दिखे अँधियार वहीं पर दीप जलाना
छाये खुशी अपार वहीं पर दीप जलाना
अपने मन के भीतर का जो पापी तम है
'अयं निजः' का भाव जहाँ पलता हरदम है
'वसुधा ही परिवार' जहाँ अंधेरे में है
सबसे पहले यार वहीं पर दीप जलाना
जहाँ दिखे अँधियार………………..
मुरझाए से होठों पर मुस्कान बिछाने
छोटी-छोटी खुशियों को सम्मान दिलाने
जिन दर दीप नहीं पहुँचे हैं उन तक जाकर
रोशन करना द्वार वहीं पर दीप जलाना
जहाँ दिखे…
ContinueAdded by आशीष यादव on November 4, 2021 at 2:30pm — 6 Comments
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