धनी बसे परदेश में, जनधन सदा समेट।
ढकते निर्धन लोग यूँ, यहाँ पाँव से पेट।१।
*
कीचड़ में जब हैं सने, पाँव तलक हम दीन।
राजन के प्रासाद का, क्या देखें कालीन।२।
*
नेताओं की हर सभा, फिरे बजाती आज।
यूँ जनता है झुनझुना, भले वोट का नाज।३।
*
ऊँचे आलीशान हैं, नेताओं के गेह।
दुहरी जिनके बोझ से, हुई देश की देह।४।
*
गूँगे बहरे लोग जब, भरे पड़े इस देश।
कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।५।
*
सुख के दिन दोगे बहुत,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 4:30am — 8 Comments
ममता पर दोहे .....
जाते हैं जो चूमकर, मात-पिता के पाँव ।
राहों में उनके नहीं, आते दुख के गाँव ।1।
जीवन में आते नहीं, उनके दुख के गाँव ।
जिनके सिर रहती सदा, आशीषों की छाँव ।2।
धन वैभव संसार में, मिल जाते सौ बार ।
मिलें नहीं जाकर कभी, मात-पिता साकार ।3।
दृष्टि धुंधली हो गई, काया हुई निढाल ।
आई बेला साँझ की, ढूँढे नैना लाल ।4।
ममता ढूँढे पालने, में अपना वो लाल ।
जिसको देखे हो गए,…
Added by Sushil Sarna on December 13, 2021 at 1:00pm — 8 Comments
होते न अगर मौला समंदर तेरे खारे
अब तक इसे पी जाते सभी प्यास के मारे
कम गिनती में पड़ जाएँ फ़लक के ये सितारे
दिखला दिए हमने जो कभी ज़ख़्म हमारे
मैं ख़ुद को फँसा लेता हूँ तूफ़ान में और फिर
तूफ़ाँ ही मेरी कश्ती…
Added by Md. Anis arman on December 12, 2021 at 8:30pm — 4 Comments
1121 2122 1121 2122
इस्लाह के बाद ग़ज़ल
1
है ये इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के
चला जाएगा वगरना तेरा चैन इस प चल के
2
न…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on December 12, 2021 at 11:00am — 6 Comments
समय का पहिया - लघुकथा -
सुशीला ने घर परिवार और समाज के विरोध के बावजूद एक राजपूत लड़के को अपना हमसफ़र बनाने का निर्णय किया। समूचा वैश्य समाज हतप्रभ था उसके इस फ़ैसले पर। लड़का राजपूत वह भी फ़ौज में अफ़सर। सारी बिरादरी लड़की के भाग्य को कोस रही थी। माँ ने तो रो रो कर घर आँसुओं से भर दिया था। उनकी एक ही चिंता थी कि एक बनिये की बेटी राजपूत परिवार में कैसे निभा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 11, 2021 at 12:30pm — 6 Comments
1121 - 2122 - 1121 - 2122
जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के
वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के
जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक
सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके
तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी
मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के
जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं
चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के
न मिटाओ…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 11:59am — 16 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है
अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है
मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे
मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है
मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको
सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है
लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर
चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है
कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 6:54pm — 18 Comments
.
ग़म-ए-फ़िराक़ से गर हम दहक रहे होते
तो आफ़ताब से बढ़कर चमक रहे होते.
.
बदन की सिगड़ी के शोलों पे पक रहे होते
वो मेरे साथ अगर सुब्ह तक रहे होते.
.
तेरी शुआओं को पीकर बहक रहे होते
मेरी हवस को मेरे होंट बक रहे होते.
.
सुकून मिलता हमें काश जो ये हो जाता
कि हम भी यार के दिल की कसक रहे होते.
.
तेरी नज़र से उतरना भी एक नेमत है
वगर्न: आँखों में सब की खटक रहे होते.
.
लबों का रस हमें मिलता तो शह’द होते हम
अगर जो…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 6:31pm — 20 Comments
122 122 122 122
कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का
वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का
सुधार
नज़र से महब्बत जताना किसी का
हँसाना किसी का रुलाना किसी का
भुलाओगे कैसे सताना किसी का
नहीं रोक पाई कभी चाहकर मैं
दबे पा ख़यालों में आना किसी का
है यह भी महब्बत का दस्तूर यारो
न दिल भूले जो दिल से जाना किसी का
बहुत कोशिशें कीं मनाने की फ़िर भी
न मुमकिन हुआ लौट आना किसी का
दिल ए…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on December 9, 2021 at 11:30am — 19 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
बजेगा भोर का इक दिन गजर आहिस्ता आहिस्ता
सियासत ये भी बदलेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता/१
*
सघन बादल शिखर ऊँचे इन्हें घेरे हुए हैं पर
उगेगी घाटियों में भी सहर आहिस्ता आहिस्ता/२
*
हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब
तपिस आने लगी है जो इधर आहिस्ता आहिस्ता/३
*
हमीं कम हौसले वाले पड़े हैं घाटियों में यूँ
चढ़े दिव्यांग वाले भी शिखर आहिस्ता आहिस्ता/४
*
अभी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2021 at 6:30am — 8 Comments
निर्णय तुम्हारा निर्मल
तुम जाना ...भले जाना
पर जब भी जाना
अकस्मात
पहेली बन कर न जाना
कुछ कहकर
बता कर जाना
जानती हो न, चला जाता…
ContinueAdded by vijay nikore on December 7, 2021 at 12:00pm — 3 Comments
दोहा त्रयी. . . . . .
ह्रदय सरोवर में भरा, इच्छाओं का नीर ।
जितना इसमें डूबते, उतनी बढ़ती पीर ।।
मन्दिर -मन्दिर घूमिये , मिले न मन को चैन ।
मन के मन्दिर को लगें, अच्छे मन के बैन ।।
झूठे भी सच्चे लगें, स्वार्थ नीर में चित्र ।
मतलब के संसार में, थोड़े सच्चे मित्र ।।
सुशील सरना / 6-12-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 6, 2021 at 3:08pm — 10 Comments
तेरे स्नेह के आंचल की छाँह तले
पल रहा अविरल कैसा ख़याल है यह
कि रिश्ते की हर मुस्कान को
या ज़िन्दगी की शराफ़त को
प्यार के अलफ़ाज़ से
क़लम में पिरो लिया है,
और फिर सी दिया है... कि
भूले से भी कहीं-कभी
इस रिश्ते की पावन
मासूम बखिया न उधड़े
और फिर कस दिया है उसे
कि उसमें कभी भी अचानक
वक़्त का कोई
झोल न पड़ जाए।
सुखी रहो, सुखी रहो, सुखी रहो
हर साँस हर धड़कन दुहराए
स्नेह का यही एक ही…
ContinueAdded by vijay nikore on December 5, 2021 at 5:06pm — 18 Comments
मन से मन की हो गई, मन ही मन में बात ।
मन ने मन को वस्ल की, दी मन में सौगात ।
मन मधुकर मन पद्म में, ढूँढे मन का छोर -
साथ निशा के हो गया , मन में उदित प्रभात ।
तन में चलते श्वास का, मत करना विश्वास ।
इस तन के अस्तित्व का, श्वास -श्वास आभास ।
ये जीवन है मरीचिका , इसकी साँझ न भोर -
झूठा पतझड़ है यहाँ, झूठा है मधुमास ।
सुशील सरना / 4-12-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 4, 2021 at 12:00pm — 4 Comments
रहीम काका - लघुकथा -
"गोविन्द, यार कहाँ है तू? बस चलने वाली है।हम बार बार बस वालों को निवेदन कर रुकवा रहे हैं। अब उन्होंने केवल दस मिनट का समय दिया है।”
"मैं पांच मिनट में पहुंच रहा हूँ।"…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 4, 2021 at 9:27am — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
मन था सुन्दर तो वदन की हर कमी अच्छी लगी
उस के अधरों ने कही जो शायरी अच्छी लगी/१
*
सात जन्मों के लिए वो बन्धनों में बँध गये
जिन्दगी के बाद जिनको जिन्दगी अच्छी लगी/२
*
आँख चुँधियाती रही जो पास में अपनी सनम
दूर तम में बैठकर वो रोशनी अच्छी लगी/३
*
एक हम ही भागते रंगीनियों से दूर नित
और किसको बोलिए तो सादगी अच्छी लगी/४
*
हाथ में था हाथ उनका दूर तक कोई न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2021 at 7:32pm — 8 Comments
22-22-22-22-22-22-22-2
उस लड़की को डेट करूँ ये मेरी पहली ख़्वाहिश है।
और ये ख़्वाहिश पूरी हो जाए बस ये दूजी विश है।
हँसना, शर्माना, भरमाना और फिर ना ना ना करना,
उस लड़की का हर इक नख़रा सचमुच कितना गर्लिश है।
मेरा बांकपना और उसकी मस्ती जब आपस में मिले,
ये जो प्यार हमारा है ये उस पल की पैदाइश है।
मेरे ख़्वाब में आना हो तो छाता लेकर आना तुम,
मेरी आँखों के ख़ित्ते में अक्सर रहती बारिश है।
क्यों न हुई वो मेरी?…
ContinueAdded by Gurpreet Singh jammu on December 2, 2021 at 7:39pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |