नन्हा गुलाब कर रहा विनंती
जीवन दान मुझे, तुम दे दो
खिलने दो मुझको भी पूरा
बस इतना सा वरदान तुम दे दो |
वो देखो उस नन्ही चिड़िया को
उसको उड़ते हुए देखना है मुझको
अभी तो है वह घोंसले में अपने
रहने दो अपनी क्यारी में मुझको |
वो देखो रंग-बी-रंगी तितली को
गुंजन कर रहा भँवरा भी सुन लो
क्यों तोड़ लेते हो हम सब को
जीवन हमको हमारा तुम दे दो |
नहीं लिखवाया अमरपट्टा कोई…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 30, 2020 at 4:49pm — 4 Comments
विचार में प्रवाह हो स्वभाव में उजास हो
नवीन वर्ष में नवीन गीत रंग रास हो
प्रभात धूप हो खिली समीर मस्त हो बहे
अनन्त हर्ष को लिए सुवास भाव भी रहे
कपाट बंद खोल के धरे नवीन ज्ञान को
समर्थ अर्थ में रखे सदैव स्वाभिमान को
रहे कहीं न दीनता सदा यही प्रयास हो
नवीन वर्ष में नवीन गीत रंग रास हो।।१
विकार काम क्रोध मोह लोभ क्षोभ त्याग दे
कुमार्ग पे चले नहीं विनाश का न राग दें
कहीं दिखे अधर्म तो अधर्म देह चीर दें
समाज …
Added by नाथ सोनांचली on December 30, 2020 at 2:54pm — 10 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
*
उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
*
इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
*
खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
*
सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments
इक मैं थी इक मेरा साथी,सुन्दर इक संसार था
संसार नहीं था एक समंदर,बसता जहां बस प्यार था
छोटे बडे़ सभी रिश्तों की,मर्यादा यहाँ पालन होती थी
प्यार की हर नदिया का,सम्मान यहाँ पर होता था
मिलती जब कोइ नदिया समुद्र से,हर्षोल्लास बरसता था
बाहें फैला समुद्र भी अपनी,सबका स्वागत करता था
ना जाने फिर इकदिन कैसा एक बवंडर आया था
सारा समंदर सूख गया,बस मरुस्थल ही बच पाया था
आज प्रयत्न मैं कर रही,मरुभूमि में कुछ पुष्प खिलाने का
कुछ सुकूं…
ContinueAdded by Veena Gupta on December 26, 2020 at 10:54pm — 2 Comments
अब जब दामिनी चली गई है
चले जा चुके हैं उसके हत्यारे भी
वो नर पशु
जिनसे सब स्तब्ध रहे
दरिंदगी से त्रस्त रहे
हर तरफ मौत की मांग उठती रही
दबती रही उठती रही बिलखती रही
मेरी भी एक मांग रही
कि एक बार मुझे उन नर-पशुओं की माताओं से मिलाया…
ContinueAdded by amita tiwari on December 26, 2020 at 3:00am — 2 Comments
122 122 122 122
यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे
मगर याँ अदू भी हैं दो-चार मेरे (1)
कभी भूलकर भी न उनको सज़ा दी
रहे उम्र-भर जो गुनहगार मेरे (2)
हिकारत से अब देखते हैं मुझे भी
यही लोग थे कल तलबगार मेरे (3)
मुझे टुकड़ों में बाट कर ही रहेंगे
हैं दुनिया में जो लोग हक़दार मेरे (4)
जो रिश्ते सभी तोड़ कर जा चुका है
उसी से जुड़े हैं अभी तार मेरे (5)
वही मिल…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on December 24, 2020 at 11:00pm — 10 Comments
जब तक इन्द्रिय भोग में होती मन की वृत्ति
सकल दुखों ,भव - ताप से मिलती नहीं निवृत्ति
उस असीम की शक्ति से संचालित सब कर्म
परम विवेकी संत ही जाने उसका मर्म
पंच तत्व के मेल से बनें प्रकृति के रूप
यह दर्पण , इसमें दिखे सत्य ,'अरूप' , अनूप
दृढ़ संकल्पित यदि रहे नित्य , सनातन जान
डरे भला क्यों मौत से ? अजर , अजेय , अमान
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 23, 2020 at 11:03am — 2 Comments
2122 2122 2122 2122
कैसे कह दें मुल्क में कितनी निखर आयी सियासत ।
क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत ।।
चाहतें सब खो गईं और खो गए अम्नो सुकूँ भी ।
इक तबाही का लिए मंज़र जिधर आई सियासत ।।
नफ़रतों के ज़ह्र से भीगा मिला हर शख़्स मुझको ।
कुर्सियों के वास्ते जब गाँव- घर आई सियासत।।
मन्दिरो मस्ज़िद में बैठे खून के प्यासे बहुत हैं ।
क्या हुआ इस मुल्क में जो इस कदर आई सियासत ।।
आदमी का ख़्वाब देखो फिर ठगा सा…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 23, 2020 at 1:00am — 8 Comments
धन, दौलत तो उपयोग की वस्तु, जाती कभी भी साथ नहीं
कद्र ना होती उस शख्स की, पैसा जिसके पास नहीं ||
आज बचा लो कल मिलेगा, इसे बचाना दोष नहीं
दर-दर की वो ठोकर खाता, गरीब की कोई औकात नहीं ||
सुख-वैभव उसके दर विराजे, पैसो की ना जिसके पास कमी
अनकहे रिश्ते खुद बन जाते, आदर्श बनती हर बात कही ||
कुछ दोष तो यूं छिप जाते, उम्मीद जिसकी होती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 19, 2020 at 1:44pm — 2 Comments
मौन की भाषा सुनो,मौन मुखरित हो रहा है
जाने कितने शिकवे छिपे हैं,जाने कितने हैं फसाने
अपने अंतर में छुपाये,जाने कब से सह रहा है
खामोशी चारों तरफ है,अब न कोइ शोर है
कोइ नहीं है पास में अब,एकाकीपन का ये दौर है
लग रहा है फिर भी ऐसा,ज्यों गूंजता कानों में कोइ शोर है
ध्यान और एकांत ने,धीरे से फिर समझा दिया
मौन तो इक शक्ति है विश्वास है
नयी राहों पर देता ज्ञान का प्रकाश है
एकांत मौन में मिलती नयी उर्जा सदा
मौन चिंतन ही…
ContinueAdded by Veena Gupta on December 18, 2020 at 3:33am — 1 Comment
जीवन की इस नदिया को,बस बहते ही जाना है
लक्ष्य यही है इसका इकदिन,सागर में मिल जाना है
चाहे जितनी बाधाएँ हों,चाहे जितने हों भटकाव
लक्ष्य प्राप्त करना ही होगा,होगा ना उसमें बदलाव
मीठे पानी की नदिया इकदिन,खारा सागर बन जायेगी
इसी तरह ये जीवन नदिया इकदिन,अमर आत्मा बन जायेगी
पर जाने से पहले जीवन में,कुछ ऐसे मीठे काम करो
नदिया जैसे सब याद करें,आत्मा अमर हो जाने दो
मौलिक /अप्रकाशित
वीणा
Added by Veena Gupta on December 18, 2020 at 3:00am — 3 Comments
( एक )
लोग राजनीति में बड़े - बड़े
बदलाव लाने के लिए आते हैं।
सत्ता में आते ही कद-काठी ,
डील-डौल , रंग-रूप , वाणी ,
पहनावा सब बदल जाते हैं ,
सबसे बड़ी बात , चेहरे - मोहरे
और इरादे तक बदल जाते हैं।
( दो )
वह गतिमान है ,
चलते रहना उसकी प्रकृति।
वह समय है , गुजर जाता है।
पर अतीत को छोड़ जाता है ,
और छोड़ जाता है ,
अतीत के अवशेष, धरोहरें,
स्मृतियाँ , स्मारक , कहानियां।
समय प्रति क्षण चलायमान…
Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2020 at 9:30am — 6 Comments
खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है
मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।
*
बात उजाले की नित कर के तारा चोरी करता है
मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।
*
मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो
ऐसा कह कर सब के पग से रस्ता चोरी करता है।३।
*
ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2020 at 7:04am — 9 Comments
एक भ्रात है भरत के जैसा,
जिसमें कुछ पाने का भाव नहीं
समर्पित करता भ्रात चरण में,
राज्य संग सुख, चैन सभी ||
तिलभर भी छल ना मन में,
जग भी उसके साथ नहीं
कठोरता/ताने सहता सारे जन की,
मातृ की करनी उसकी सभी ||
विभीषण भी एक भ्रात उधर है
सिंहासन पर जिसकी आँख लगी
कठिन समय में भ्रात छोड़ता,
शत्रुओं को बताता भेद सभी ||
ना अंतक्रिया भी भ्रात की करता
सुख-भोग से भी इंकार…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 15, 2020 at 6:58pm — 2 Comments
2122 1212 22/122
क़ैद नज़रों में ही रखा है मुझे
उसने आज़ाद कब किया है मुझे (1)
इससे बहतर तो था अदू मेरा
यार दीमक सा खा रहा है मुझे (2)
रात की नींद उड़ गई मेरी
ख़्वाब में जब से वो दिखा है मुझे (3)
सुब्ह तक होश में नहीं आया
रात इतनी पिला चुका है मुझे (4)
मंज़िलों तक पँहुच नहीं पाया
पर वो रस्ता बता गया है मुझे (5)
वो शिकायत कभी नहीं करता
उससे इतना ही अब गिला है मुझे …
Added by सालिक गणवीर on December 14, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
बाढ़-सूखा सूदखोरी हर समय डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
**
हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
*
कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
*
नित्य भूखे पेट सोता है उपज को वो बचाने खेत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2020 at 8:00am — 12 Comments
2122 2122 212
.
1
अपनी हर लग़्ज़िश छिपा ली जाएगी
हाँ क़सम झूठी भी खा ली जाएगी
2
जिंदगी की शान-ओ-शौकत के लिए
बात कुछ भी अब बना ली…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on December 11, 2020 at 11:30am — 10 Comments
विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
ह्रदय बसाये देवी सीता
वन वन भटकें राम
लोचन लोचन अश्रु बावरे
बहते हैं अविराम
सुन चन्दा तू नीलगगन से
देख रहा संसार
किस नगरी में किस कानन में
खोया जीवन सार
हे नदिया हे गगन,समीरा
ओ दिनकर ओ धूप
तृण तृण से यूँ हाथ जोड़कर
पूछ रहे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 10, 2020 at 7:00pm — 8 Comments
नंगे पाँव
ठंड मे ठिठुरते
फुला फुला के गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास गाँव है
गरीब सही पर सुरक्षित पाँव हैं
ठंड मे ठिठुरते
नंगे पाँव गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
इसी उम्र के अपने नौनिहालों को याद करना
उनके लिए शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास बल है बलबूते हैं
उनके पास पाँव हैं
पाँव…
ContinueAdded by amita tiwari on December 10, 2020 at 2:30am — 5 Comments
मेरे छोटे से बेटे तक ने थाली सरका दी । कहा नहीं खाऊँगा । इस खाने को उगाने वाले अन्नदाता यदि भूखे हैं ,बेघर हैं उनकी आवाज़ गले मे घुट रही है तो नैतिकता की मांग है कि मुझे ये खाना खाने का हक़ नहीं है । नहीं जानता हूँ कि कौन कितना गलत है या सही है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि ऐसे मौसम मे घर छोडने का ,सड़कों पर बैठने का और सर पर कफन बांधने का शौक किसी को नहीं हो सकता । जब भविष्य अंधकारमय लगता है तभी वर्तमान ऐसे कदम उठाता है तब जीवन और मौत मे कोई अंतर नहीं रह जाता है । एक आम…
ContinueAdded by amita tiwari on December 9, 2020 at 1:43am — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |