कहानी ..........
पढ़ सको तो पढ़कर देखो
जिन्दगी की हर परत
कोई न कोई कहानी है
कल्पना की बैसाखियों पर
यथार्थ की हवेलियों में
शब्दों की खोलियों में
दिल के गलियारों में
टहलती हुई
कोई न कोई कहानी है
पत्थरों के बिछौनों पर
लाल बत्ती के चौराहों पर
बसों पर लटकी हुई
रोटी के लिए भटकी हुई
आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज
कोई न कोई कहानी है
सच
पढ़ सको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
उपवनों में फूल कलियाँ तितलियाँ दिखतीं नहीं
रोज कोयल खोजती अमराइयाँ दिखतीं नहीं
हो गई आँखों से ओझल ऋतु बसंती प्यार की
तप रहा मन का मरुस्थल बदलियाँ दिखतीं नहीं
कौन सा यह आवरण ओढ़ा हुआ है आपने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 16, 2021 at 1:19pm — 10 Comments
कैसी फ़ितरत के लोग होते हैं ?
दूसरे की आँखों में धूल झोंकने हेतु
नम्बर वही मोबाइल पर
नाम कुछ और जोड़ लेते हैं
दुर्जनों के दुर्वचन
सहिष्णुता की परख होते हैं
अपनी नहीं खुद उनकी
औक़ात बता देते हैं
उनकी माँ नहीं थीं, मेरे पिता
वे मुझमें माँ ढूँढते रहे,मैं उनमें पिता
उन्हे ना माँ मिलीं, ना मुझे पिता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 16, 2021 at 10:43am — 4 Comments
22 22 22 22 22 2
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चेहरे पर मुस्कान बनाकर बैठे हैं
जो नकली सामान बनाकर बैठे हैं
दिल अपना चट्टान बनाकर बैठे हैं
पत्थर को भगवान बनाकर बैठे हैं
जो करते बातें तलवार बनाने की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2021 at 9:30pm — 4 Comments
मन पर दोहे ...........
Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अगर हक़ माँगते अपना कृषक, मजदूर खट्टे हैं
तो ख़ुश्बू में सने सब आँकड़े भरपूर खट्टे हैं
मधुर हम भी हुये तो देश को मधुमेह जकड़ेगा
वतन के वासिते होकर बड़े मज़बूर, खट्टे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2021 at 10:28pm — 7 Comments
हमने तो अब ये ठाना है
कोरोना को हराना है
अब साथ न छूटेगा ये
वादा हमें निभाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
जाना हो जब ज़रूरी
सबसे दो गज़ की दूरी
कर हाथ सेनिटाइज़्ड
और मास्क भी लगाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
बाहर से जब भी आओ
अच्छी तरह नहाओ
ज्वर, छींक हो या खाँसी
डाॅक्टर को ही दिखाना है
कोरोना को …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 12, 2021 at 7:02pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 22 22
इक रोज़ लहू जम जायेगा इक रोज़ क़लम थम जायेगी
ना दिल से सियाही निकलेगी ना सांस मुझे लिख पायेगी
जिस रोज़ नये लब गाएंगे जिस रोज़ मैं चुप हो जाऊंगा
इक चाँद फ़लक से उतरेगा इक रूह फ़लक तक जायेगी
फिर नये नये अफ़सानों में कुछ नये नये चहरे होंगे
फिर नये नये किरदारों के किरदार नये गहरे होंगे
फिर कोई पिरोयेगा रिश्तों को नये नये अल्फाज़ों में
फिर कोई पुरानी रश्मों को ढालेगा नये रिवाज़ों…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 11, 2021 at 8:00pm — 7 Comments
Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments
" कूड़े मल इस दुकान को मैंने खरीद लिया है, अब से एक हफ़्ते में खाली कर देना"
" क्या.... क्या बकवास कर ती हो, मैं कई वर्ष पुराना किरायेदार हूँ, मेरी रोज़ी - रोटी चलती है, यहाँ से! बिल्कुल खाली नहीं करूँगा" ! कूड़े मल कस्बे का बड़ा किराना व्यापारी था! बूढ़े, कमज़ोर राम आसरे का मूल किरायेदार था जिसको उसने किराया देना बंद कर दिया था! हारकर राम आसरे ने दबंग, झगड़ालू औरत सुनहरी देवी को आधी कीमत अग्रिम लेकर पावर आफ अटार्नी कर दी थी!
कूड़े मल अब परेशान था! भागा-भागा अपने वकील साहब के…
ContinueAdded by Chetan Prakash on April 11, 2021 at 4:00am — 1 Comment
कौन आया काम जनता के लिए
कह गये सब राम जनता के लिए।१।
*
सुख सभी रखते हैं नेता पास में
हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
*
देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
*
छाँव नेताओं के हिस्से हो गयी
और तपता घाम जनता के लिए।४।
*
अच्छे वादे और बोतल वोट को
हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
*
न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता साम …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 10:01pm — 3 Comments
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
कितने दाने महफूज़ रहते हैं उन फलियों की आगोशी में
कुछ टेढ़े से कुछ बुचके से कुछ फुले से कुछ पिचके से
हू ब हू रिश्तों के जैसे लगते हैं
कुनबे से परिवारों से कुछ सगे या रिश्तेदारों से
पर सभी आज़ाद होना चाहते हैं कैद से
रिवायतों से बंदिशों से बागवाँ से साजिशों से
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Added by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 2:00pm — 4 Comments
कोई ख़्वाब न होता आँखों में
कोई हूक न उठती सीने में
कितनी आसानी होती
या रब तन्हा जीने में
दिल जब से टूटा चाहत में
रिंद बने पैमानों के
ढलते ढलते ढल गई
सारी उम्र गुजर गई पीने में
यूँ ही सांसें लेते रहना
यूँ ही जीते रहना बस
हर दिन साल के जैसा 'गुजरा
हर इक साल महीने में
दुनिया डूबी लहरों में
हम डूबे यार सफ़ीने में
देखीं कैसी कैसी बातें
अज़ब ग़ज़ब दुनियादारी
वो कितने ना पाक…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 11:30am — 2 Comments
2122 2122 2122 212
इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा ।
जो भरम दिल में बचा है खुद रिहा हो जाएगा ।
इतने बुत मौजूद है तेरे खुदा के भेष में,
सजदा करते-करते तू खुद से जुदा हो जाएगा ।
सब पुराने पेड़ों को गर काट दोगे तुम यूं ही,
घर सलामत भी रहा तो लापता हो जाएगा।
ढूंढना अब छोड़ दे उस तक पहुँच का रास्ता,
खुद को पाले तो तू खुद ही रास्ता हो जाएगा ।
छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर ,
ऐसा करने…
Added by मनोज अहसास on April 8, 2021 at 12:14am — 3 Comments
2122 1122 2112 2122
जैसे जैसे ही ग़ज़ल रूदाद ए कहानी पड़ेगी
वैसे वैसे ही सनम दिल की फज़ा धानी पड़ेगी
रश्म हर दिल को महब्बत में ये उठानी पड़ेगी
दिल जलाकर भी कसम दिल से ही निभानी पड़ेगी
ख़ुश न होकर भी ख़ुशी दिल में है दिखानी पड़ेगी
कुछ न कहकर भी रज़ा दिल की यूँ सुनानी पड़ेगी
हुस्न वालो की सुनो ना ख़ुद पे भी इतना इतराओ
लम्हा दर लम्हा महंगी तुम्हें न'दानी…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे
कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)
मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी
था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)
मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ
दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)
अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था
बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)
देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का
हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे…
Added by सालिक गणवीर on April 7, 2021 at 1:51pm — 9 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
बोली जवानी क्रोध में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
*
घर के बड़े भी काट के पेड़ों को खुश हुए
बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
*
तस्कर तमाम आ गये गुपचुप से मोल को
माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
*
आँखों से उस की धार ये रुकती नहीं है अब
भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
*
वो सब विहीन रीड़ के श्वानों से बन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 1:00pm — 10 Comments
121 22 121 22 121 22
अगर कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना
मेरी उदासी मुझे अकेला न छोड़ देना
बिना तुम्हारे ये ज़िन्दगी अब कटेगी कैसे
जो तू नहीं तो नफ़स की डोरी भी तोड़ देना
जरा सी कोई रहे हरारत न जान बाकी
कि जाते जाते बदन हमारा निचोड़ देना
कभी हमारे ग़मों पे तुझको दुलार आये
वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना
तेरे ग़मो का उसे न होगा पता, है मुमकिन
मगर सिरा 'ब्रज' उदासियों का न जोड़…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2021 at 10:30am — 11 Comments
2122 1212 22/ 112
भारती धर्म अपना क़द करे हैं !
माँ की खायी कसम न मद करे हैं !
तीरगी को हटाया जाँ हमी ने,
रघुवंशी हम उजालों क़द करे है !
मोमबत्ती भी जिनसे जल न सकी,
सूरज होने का दावा ज़द करे हैं !
जाने क्या वो अँधेरों के हामी
वरिष्ठों के है अदु वो हद करे हैं !
सावन अंधे जुड़ाव हो कैसे ?
है रतौंधी उन्हें अहद करे…
ContinueAdded by Chetan Prakash on April 7, 2021 at 9:30am — No Comments
2212 2212 2222 2
मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है
तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है
आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है…
Added by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 8:00am — 4 Comments
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