सच की जीत मनाएँ हम
टूटे दिलों को एक मनाएँ हम
आज के दिन को एकता के रूप मैं मनाएँ हम
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई एक होजाएँ हम
जीत हुई सच्चाई की
और रावण हार गया
छोड़ कर जीवन परलोक सिधार गया
सच्चाई के रखवालों ने
नेकी के करने वालों ने
एक एसा सबक़ सीखा दिया उसको
हमेशा के लिए मिटादिया उसको
सारे नेकी के करने वालों ने
उस को याद करेगें शेतानो मैं
राम का नाम रहेगा हर…
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Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30pm —
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धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल
विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;
जन सेवा का लिया व्रत और स्वयमसेवक जो कहलाये
सघन पेड़ बरगद का जैसे ,फैलता फैलते ही जाएँ
श्रम साधित वन्दना हमारी मानवहित करते जाएं
बन कर भारती पूत अमोल केशव माधव हरी हरी बोल ;
धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल
विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;
डगर कठिन ये सफर कठिन हो हम को निज मंजिल…
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Added by DEEP ZIRVI on October 17, 2010 at 8:00am —
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सच्चे मोती की हे तलब मुझ को
कितने दरया खंगालता हूँ मैं
ठोकरे एक सबक़ सिखाती हैं
खुद को गिर कर संभालता हूँ मैं
फिर भी तारों को छू नही पाता
लाख खुद को उछालता हूँ मैं
एक तबस्सुम सजा के होटो पर
दर्द को अपने पालता हूँ मैं
आओ दरयाओं पानी लेजाओ
अपने आँसू निकालता हूँ मैं
Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30am —
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आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना
तुम दर्द अगर हो तो फिर मुझ मैं बिखर जाना
रस्ता ना बताए गा मंज़िल के इलाक़े को
तुम खूब समझते हो तुमको है किधर जाना
वो आग उठा लाया सूरज के इलाक़े से
मैने था कभी जिस को साए का शजर जाना
रुकती हैं कहाँ जाकर यह इल्म नहीं कोई
हमने तो हवाओं को मसरूफ़े सफ़र जाना
ए शाम के शहज़ादो क्यूँ जश.न मैं डूबे हो
क्या तुमने अंधेरों को सामने सहर जाना
Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 16, 2010 at 10:30pm —
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माँ को क़ुदरत सलाम करती हॅ
माँ को फ़ितरत सलाम करती हॅ
प्यार के सब बने पुजारी हैं
आस्था के बने भिखारी हैं
जब दिया मैं जलता हूँ
देख कर तुझ को मुस्कुराता हूँ
अपने सीने से तू लगा मुझ को
और स्नेह से तू सजा मुझ को
अपनी ममता का आसरा दे दे
अपने चरणो मैं तू जगह दे दे
फूल बनकर महकता जाऊँ मैं
और स्नेह मैं गुनगुनाऊँ मैं
मेरी माता महान है कितनी
यह हक़ीक़त जवान है कितनी
दरदे दिल की मेरे दवा…
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Added by mohd adil on October 16, 2010 at 7:30pm —
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आज वह अखबार पढते हुए ना जाने क्यों इतना उदास था ! इसी बीच उसकी नन्ही बच्ची ग्लोब लेकर उसके पास आ गई और कहने लगी:
"पापा, आज क्लास में बता रहे थे कि भारत ऋषि मुनियों और पीर फकीरों की धरती है, और उसको सोने की चिड़िया भी कहा जाता है ! आप ग्लोब देख कर बताईये कि भारत कहाँ हैं ?"
उसकी नज़र सहसा अखबार के उस पन्ने पर जा टिकी जो कि हत्या, लूटपाट,आगज़नी, दंगा फसाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख से होने वाली मौतों,धार्मिक झगड़ों और मंदिर-मस्जिद विवादों से भरा पड़ा था ! उसकी बेटी ने एक बार फिर…
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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:20pm —
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महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:
"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"
"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !
तो उधर से एक और आवाज़ आई:
"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"
द्रौपदी ने शर्म से…
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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm —
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मुलजिम को संबोधित करते हुए न्यायधीश ने कहा:
"तुम पर आरोप है कि तुम सीमा पार से ५ लाख रुपये की जाली करंसी, १० लाख रुपये ने नशीले पदार्थ और भारी मात्रा में गोला बारूद लाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए हो ! इस से पहले कि अदालत कोई निर्णय सुनाये, क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहोगे?"
दोनों हाथ जोड़ कर मुलजिम ने जवाब दिया,
"केवल एक सवाल पूछने की इजाज़त चाहूँगा हुज़ूर !"
"इजाज़त है", न्यायधीश ने कहा
"जाली करंसी, नशीले पदार्थ और हथियारों का ज़िक्र तो आपने कर दिया, मगर मुझ से…
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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm —
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बला का चेहरा तमाशा दिखाई देता है
हक़ीक़तों मैं जनाज़ा दिखाई देता है
चमक रहा था जो आकाश पर बना सूरज
ज़मीं पे आन के बोना दिखाई देता है
किसी चिता की यह जल कर बढ़ाएगा शोभा
वो एक दरखत जो सूखा दिखाई देता है
हमारी धरती पे नफ़रत के बीज बो के कोई
हवा के दोश पे उड़ता दिखाई देता है
हुआ ना आज भी सेराब बद दुआ लेकर
वतन से दूर जो भागा दिखाई देता है
Added by mohd adil on October 16, 2010 at 6:30pm —
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(हर नारी मिनौती है .. यहाँ दृश्य अरुणाचल का है , इसलिए बांस, धान , सूरज , सीतापुष्प , पहाड़ के बिम्ब भी उसी प्रदेश के हैं. बरई, न्यिओगा वहाँ के लोक जीवन से जुड़े गीत हैं - जैसे हम बन्ना- बन्नी , आला , बिरहा से जुड़े हैं ... इस संगीत को बांसों से जोड़ा है .. जैसे बांस के खोखल से निसृत होकर ये मिनौती की आत्मा में पैठ गए हैं ... नारी के मन और आत्म को समझाते हुए पुरुष से अंतिम प्रश्न पर कविता समाप्त होती है ...)
मेरे बांस
पहचानते…
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Added by Aparna Bhatnagar on October 16, 2010 at 5:00pm —
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यह तमन्ना है मुझे आज पुकारे वो भी
मेरी आँखो के करे आके नज़ारे वो भी
सिर्फ़ बाक़ी हे तेरी याद का हल्का सा दिया
यादे माज़ी के छुपे सारे सितारे वो भी
खुदगर्ज़ जेहन से मिट जाए अना की तस्वीर
अपनी पोशाक रयाकार उतारे वो भी
चाँदनी रात हे खूशबू की महक हे हर सू
आके दरया पे ज़रा ज़ुल्फ संवारे वो भी
जो बहुत दूर है. नज़रों से तखय्युल के परे
फलसफा कहता हे रोशन हैं सितारे वो भी
Added by mohd adil on October 16, 2010 at 5:00pm —
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आंधियां चल दीं आज़मानें सौ ,
गढ़ लिए हमने आशियानें सौ.
जिनकी हस्ती नहीं बसाने की ,
वो चले बस्तियां ढहानें सौ.
पुलिस के वास्ते बस एक थाना ,
माफिया के यहाँ ठिकानें सौ.
जीते जी तो हुआ न कोई एक,
अब मरा है चले नहानें सौ.
सफेदी ज़ुल्फ़ की यूँ ही तो नहीं ,
एक दिल यहाँ फसानें सौ.
लाख हैं बालियाँ चिडियाँ दस बीस,
खेत में बन गयीं मचानें सौ.
कटी उस ओर है खुशियों की पतंग,
लूटने चल दिए दीवानें…
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Added by Abhinav Arun on October 16, 2010 at 4:03pm —
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तंगी नट भैरव हुई और भूख मदमाद ,
महंगाई के कंठ से फूटे अभिनव राग.
हांथी की चिंघाड से दहके सब आधार,
साइकिल पंचर हो गयी और कमल बेकार.
महंगाई बढती गयी नहीं बड़ी तनख्वाह,
अभिनव इस सरकार को बहुत लगेगी आह.
योजना के संदूक पर बैठे सौ सौ नाग,
भूखा पेट गरीब का कैसे गाये फाग.
राजनीति के खेल में कैसी शह और मात,
संसद में सुबह हुई हवालात में रात.
स्वयं मलाई खा रहे हमें सिखाते योग,
सन्यासी के भेस में कैसे कैसे लोग.
(बाबा…
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Added by Abhinav Arun on October 16, 2010 at 3:30pm —
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फिल्मकार भी कभी-कभी नहीं, अधिकतर अपनी फिल्मों के जरिए परिवार में परेशानियां ही पैदा कर देते हैं। बाॅबी देओल ने बरसात में नीला चष्मा पहना तो मेरा सुपुत्र ;फिलहाल सुपुत्र ही कहना पड़ेगाद्ध जिद पर अड़ गया कि उसे भी नीला चष्मा पहनना है, टीवी सीरियल पर कोमलिका नाम के कैरेक्टर को देखकर अर्धांगिनी ने चढ़ाई कर दी कि उसे भी कोमलिका जैसे गहने, सौंदर्य प्रसाधन चाहिए। इन सब परेशानियों से तो जैसे तैसे निपट लिया, पर सबसे बड़ी परेशानी पैदा की भैंस की पूंछ ने, अरे भई, मैं शाहरूख खान अभिनीत चक दे इंडिया की बात कर…
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Added by ratan jaiswani on October 16, 2010 at 11:30am —
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कोहरे से और बर्फ से, मिला हवा ने हाथ!
अबकी जाड़े में दिया, फिर सूरज को मात !! १
काँप रहा है भीति से, लोक तंत्र का बाघ!
संबंधों में शीत है, और फिजां में आग !!२
रिश्ते नातों में लगा, शीतलता का दाग !
काँप रही है देखिये, कैसे थर-थर आग !!३
फिर पतझड़ की याद में, वृक्ष हो गए म्लान!
छेड़ रहे हैं रात भर, दर्द भरी एक तान !!४
धूप भली लगती कहाँ, याद आ रही रात !
ऊष्ण वस्त्र तो हैं नहीं होना है हिमपात !!५
पहरा देती है हवा,…
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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 15, 2010 at 11:00pm —
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इक अट्टहास... गूंजा...
पल को चौंक... देखा चारो ओर...
पसरा था सन्नाटा... ... ...
वहम समझ, बंद की फिर आँखें...
मगर फिर हुई पहले से भयानक, और ज्यादा रौद्र गूँज...
उठ बैठ... तलाशा हर कोना डर से भरी आँखों ने...
सिवाए मेरे और सन्नाटे के, ना था किसी का वजूद मगर...
तभी सन्नाटे को चीरती इक आवाज नें छेड़ा मेरा नाम...
कौन... ... ...???
बदहवास-सी... इक दबी चीख निकली मेरी भी...
तभी देखा... अपना साया... जुदा हो…
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Added by Julie on October 15, 2010 at 10:30pm —
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अभी तो शहर मैं हंगामा बहुत है
फिर इस के बाद इक सन्नाटा बहुत है
हवाओं इक ज़रा झोंका इसे भी
चीरगे राह इतराता बहुत है
भला सूरज से कैसे लड़ सके गा
जो चिंगारी से घबराता बहुत है
हुआ क्या है मेरे चेहरे को आख़िर
उदासी को यह छलकाता बहुत है
मुझे महलों की ज़ीनत मत दिखाओ
मुझे मिट्टी का काशाना बहुत है
Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 15, 2010 at 8:30pm —
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तितलियाँ
तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.
फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..
*
तितलियों को देख भँवरे ने कहा.
भटकतीं दर-दर, न क्यों एक घर रहीं?
कहा तितली ने मिले सब दिल जले.
कौन है ऐसा जिसे पा दिल खिले?.
*
पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.
गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..
*
बागवां के गले लगकर तितलियाँ.
बिदा होते हँसीं, चुप हो, रो…
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Added by sanjiv verma 'salil' on October 15, 2010 at 4:00pm —
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यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,
मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II
ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,
जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II
तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,
पिए बिन ही मेरी साँसों को तेरा सुरूर हो गया II
ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,
कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II
चला गया जो तू जल्दी जल्द उठने की ख्वाहिश मे,
तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो…
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Added by Veerendra Jain on October 14, 2010 at 11:43pm —
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► निर्झरण से झरण की ओर ::: ©
समय का बहाव, पवन का प्रवाह,
सख्त भौंथरी चट्टान,
अब तीखे नक्श पाने लगी है,
न चाहते हुए भी,
मन का खुद को बरगलाना,
जैसे पानी का बर्फ बन,
चट्टान के भ्रम संग,
खुद को बरगलाना,
वक्ती थपेड़े पड़े हैं मगर,
आज नहीं कल ही सही,
बदलेगा प्रारब्ध मेरा भी,
क्षण-भंगुर हो,
भटक-चटक रही है,
चंचलता-कोमलता, मेरे मन की,
पिघल-बहाल हो रही…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on October 14, 2010 at 2:08am —
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