प्रकृति
उषा अवस्थी
पैसे देकर छ्प गए
ढोया झूठा भार
भावों के सौदागरों का
चलता व्यापार
अक्षर-अक्षर, शब्द हैं
"वाणी" का उपहार
सर्व- समर्थ अनन्त से
जिसके जुड़ते तार
ठुकराती दुर्गा उन्हे
जिनमें अहं विकार
सन्मार्गी को चल स्वयं
दिखलाती प्रभु- द्वार
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 15, 2023 at 1:50am — No Comments
सत्य अटल है , स्थिर है ,
झूठ न अटल है ,न स्थिर है।
समय के अनुसार परिवर्तन शील है ,
परिस्थिति वश बदल जाता है ,
हर हाल से समझौता कर लेता है ,
मुखर है , निडर है ,सर चढ़ कर बोल लेता है ,
बहुरंगी है , बहुधन्धी है ,
इसलिए हर जगह चलता है ,
सत्य स्थिर है , अटल है ,
सत्य खोजना पड़ता है ,
झूट स्वयं उपस्थित हो जाता है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on September 14, 2023 at 10:00pm — 4 Comments
बह्र : 221 2121 1221 212
ज़ालिम बढ़ा दे ज़ुल्म ज़रा हर ख़ता के बाद
होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद
किसने बदल दिया है ये कानून देश का
होने लगी है जाँच यहाँ अब सज़ा के बाद
बीमारियों से देश बचा लोगे जान…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 13, 2023 at 8:17pm — 2 Comments
२२/२२/२२/२
*
कुछ हो मत हो नेता दिख
मुख से निकला वादा दिख।१।
*
दुनिया को गर खुश रखना
उसके हित बस खटता दिख।२।
*
शीष नवायें सब तुझ को
इच्छा है तो दादा दिख।३।
*
लोकतन्त्र की रीत निभा
राजा होकर जनता दिख।४।
*
खबरों में गर आना है
नियमित से बस उल्टा दिख।५।
*
भीड़ जुटानी अगल बगल
जीने से बढ़ मरता दिख।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2023 at 7:49am — 4 Comments
दोहा सप्तक. . . संसार
औरों को देखा मगर, कब समझा इंसान ।
संचित सब कुछ छोड़ता, जब होता अवसान ।।
कहते हैं लगती नहीं, कभी कफन में जेब।
फिर भी धन की लालसा, देती उसे फरेब ।।
आने पर जैसे करें, जीव रूप सत्कार ।
पुष्पों से ढकते कफन ,जब छूटे संसार ।।
जीत क्षुधा मिटती नहीं, मिट जाती यह देह ।
नश्वर तन से जीव का, कब मिटता है नेह ।।
कर्मों का करता सदा, पीछे जगत बखान ।
रह जाती बस जीव की, अमिट यही पहचान…
Added by Sushil Sarna on September 11, 2023 at 2:00pm — No Comments
ना जइयो परदेस सजनवा, बिन तेरे हिया ना लगे रे
तोहरी राह तकते तकते हमरी, प्राण निकल ना जावे रे
जे तू हमरी सुध ना लेवे, ना हमारी पाती लौटावे रे
तोहरी क़सम हम तोहरी खातिर भूख प्यास भी त्यागे रे
ना जइयो परदेस सजनवा, बिन तेरे हिया ना लगे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 9, 2023 at 11:57pm — No Comments
मिट्टी के लोंदे सभी, अनगढ़ था बर्ताव
हमें सिखा कर ककहरा, शिक्षित किया स्वभाव
शिक्षित किया स्वभाव, सभी का योगदान था
निर्मल नेह-दुलार, परस्पर भाव-मान था
कड़क किंतु व्यवहार, सटकती सिट्टी-पिट्टी
शिक्षक थे सब योग्य, सभी ने गढ़ दी मिट्टी
***
सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Saurabh Pandey on September 5, 2023 at 9:30am — 4 Comments
भोर होने को है देखो, छट रहा है अंधेरा
किस संशय ने तुमको अब भी रखा है घेरा
बढ़ा कदम दिखा ताक़त तू अपने बुलंद इरादो की
कौन सी है दीवार यहाँ जिसने तुझको रोखे रखा है
तू अगर चलेगा तो, मंज़िल भी तुझ तक आएगी
भला बता वो तुझसे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 2, 2023 at 7:33pm — No Comments
२२२२/ २२२२
जब दंगों का मंजर देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो मानव जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख तब से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments
सत्य ज्ञान
उषा अवस्थी
औरतों का जीना किया हराम
सरकार हो या विपक्ष
इन्टरनेट मीडिया दुर्लक्ष
पीटती ढोल सुबह -शाम
उन पर क्या बीतेगी?
लाज शर्म,किस तरह छीजेगी?
न लिहाज,न ईमान
बेशर्मी से करते बदनाम
सूचनाओं में विष घोल कर
शब्द-वाणों की शक्ति छोड़,बेईमान
चलाते, देश की इज्ज़त
उछालने का अभियान
महिलाओं पर कर अनुसन्धान
ज्ञान का करते बखान
स्वयं के मन…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2023 at 4:11pm — 4 Comments
ग़ज़ल
1212 2121 1212 122
चला जाऊँगा जहाँ से तुम्हें सँवार कर के
तुम्हारी इन ख़ामियों को कहीं निखार कर के
नवाज़ा मुझको ख़ुदा ने वो अज़्म धार कर के
बुलंदी बख़्शी है उस ने ग़ज़ल बहार कर के
बड़े बड़ो को दिखाया है आइना ख़ुदा ने
निकाल दी हैंकड़ी भी उन्हें सुधार कर के
वो चोर मौसेरे भाई हैं बागबाँ चहेते
उन्हें गिरा दो निगाह से दोस्त ख़ार कर के
बहार सावन की आयी कली- कली खिली है
कि हो…
Added by Chetan Prakash on August 28, 2023 at 2:30pm — No Comments
221 2121 1221 212
अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से
मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से
हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही
मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से
हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर
हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से
अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है
तनहाई मारती रही इनसान जान से
अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर
आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से
आदम…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 24, 2023 at 9:18am — No Comments
वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर चन्द दोहे : ....
दृग जल हाथों पर गिरा, टूटा हर अहसास ।
काया ढलते ही लगा, सब कुछ था आभास ।।
जीवन पीछे रह गया, छूट गए मधुमास ।
जर्जर काया क्या हुई, टूट गई हर आस ।।
गिरी लार परिधान पर, शोर हुआ घनघोर ।
काया पर चलता नहीं, जरा काल में जोर ।।
लघु शंका बस में नहीं, थर- थर काँपे हाथ ।
जरा काल में खून ही , छोड़ चला फिर साथ ।।
वृद्धों को बस दीजिए , थोड़ा सा सम्मान ।
अवसादों को…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2023 at 2:45pm — 4 Comments
मोरा साजन छूटो जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..
पपीहा करत है पी हू पी हू
मोहे जोबन विरह हो जाय
सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!
कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में
मोरा सावन सूखौ जाय
सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!
नाचत मोर बदरिया बरसत है
मोरा आँगन बिसरौ जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!
मरौ ददुरवा बूँद पी रह जाय
लो सोवत रहत साल भर वो तो
मो पै बिन पिया…
Added by Chetan Prakash on August 21, 2023 at 2:30pm — 1 Comment
फोन आया,
कई सालों के बाद
फिर उसका फोन आया
पहले जब
घंटी बजती थी,
दिल की धड़कन भी बढ़ती थी
लेकिन आज फोन बजा
तो धड़कन ने इशारा नहीं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 19, 2023 at 9:00pm — 1 Comment
सीख ......
"पापा ! फिर क्या हुआ" । सुशील ने रात को सोने से पहले पापा की टाँगें दबाते हुए पूछा ।
"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग , हर तरफ चीखें ही चीखें थी । हमने थोड़े से गहने और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।
"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।
"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का एक इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 19, 2023 at 4:49pm — 7 Comments
दोहा त्रयी. . . . मजबूर
आँखों से ही दूर है, अब आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।
वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।
धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।
सुशील सरना / 18-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 18, 2023 at 3:08pm — 4 Comments
1212 - 1122 - 1212 - 112/22
महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे
मुझी से कट के मेरे मेह्रबाँ गुज़रने लगे
*
मशाल इल्म की फिर से बुझा गया कोई
फ़सादी सारे जिहालत में रक़्स करने लगे
*
अवाम जिनको समझती रही भले किरदार
मुखौटे उन के भी चेहरों से अब उतरने लगे
*
ख़ुलूस और महब्बत के पैरोकार भी अब
धरम के नाम पे आपस में वार करने लगे
*
सिला ये हमको मिला उन से दिल लगाने का
जुनून-ए-इश्क़ में हर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 18, 2023 at 8:31am — 4 Comments
212 1222 212 1222
दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में
रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में
रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में
भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में
राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो
बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में
बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं
पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में
भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से
बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने…
Added by Chetan Prakash on August 16, 2023 at 8:30am — 2 Comments
रचनात्मक योगदान से समृद्ध स्वाधीनता का साहित्य'
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सृजनशील लेखनधर्मियों का अतुल्यनीय योगदान.......
स्व की भावना से प्रेरित आजादी का आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन-जन के अवचेतन मन को जाग्रत करने आंदोलन चलाये गए। देशी रियासतों पर राज करते हुये उनके जीवन मूल्यों पर हस्तक्षेप करना, क्रूरता पूर्वक नरसंहार के विरूद्ध चेतना जगाने में साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय हैं। महासंग्राम की धधकती ज्वाला की प्रचंड रूप प्रदान करने में सृजनकारों ने अपने ओजपूर्ण…
Added by babitagupta on August 15, 2023 at 3:14pm — No Comments
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