एक जनम मुझे और मिले मैं देश की सेवा कर पाऊं
दुध का ऋण उतारा अब तक, मिट्टी का ऋण भी चुका पाऊं
मुझको तुम बांधे ना रखना अपनी ममता के बंधन में
मैं उसका भी हिस्सा हूँ तुमने है जन्म लिया जिसमे
शादी बच्चे घर संसार, ये सब मेरे पग को बांधे है
लेकिन मुझसे मिट्टी मेरी बस एक बलिदान ही मांगे है
सब ही आंचल मे छुपे तो देश को कौन सम्हालेगा
सीमा पर शत्रु सेना से फिर कौन कहो लोहा लेगा
तुमने दुध पिलाया मुझको…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 15, 2023 at 1:30pm — No Comments
जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।
देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।
*
पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।
मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।
राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।
भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।
*
सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।
स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।
*
भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।
इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments
*रोला छंद*
बहुत दिखाते ज्ञान, तनिक उस पर क्या चलते
बोल कर्म के साथ, मिलें तो क्यों घर जलते
कोरी है बक़वास, शास्त्र की बातें करना
अपना ही व्यवहार, परे उससे यदि धरना।
रहें हजारों साथ, अकेले या वे रह लें
सच को कितना झूठ, झूठ को या सच कह लें
दुष्टों के क्या कृत्य, सही फल दे पातें हैं
कुटिल सदा ही मात, सुजन से खा जातें हैं।
धरती का दिल आज, देख कर जाए घटता
चहुँदिक दे आवाज़, शीश मानव का कटता
कुढ़ता शुद्ध विचार, शील पर चलती…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 14, 2023 at 7:41pm — 5 Comments
ग़ज़ल
1212 1212 1212 1212
सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से
मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से
निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से
वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से
रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में
मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से
हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है
ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से
निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 14, 2023 at 2:30pm — 2 Comments
ठंडा है मीठा है थोड़ा सा गाढ़ा है
पर मेरे घर तक आता है नलके का पानी
जब भी दिल चाहे प्यास बुझाता है
ठंडक दे जाता है नलके का पानी
जब से घर आया है सबको लुभाया है
हिम्मत बढ़ाया है नलके का पानी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 13, 2023 at 9:10am — No Comments
चौपाई छंद - जीवन
जीवन का जो मर्म न जाने ।
दर्द किसी के क्या पहचाने ।।
जग में निष्ठुर वो कहलाता ।
जो साँसों को समझ न पाता ।1।
*
यौवन के जब दिन हैं आते ।
आँखों में सपने लहराते ।।
रातें लगतीं सदा सुहानी ।
हर पल लिखता नई कहानी ।2।
*
यादों का है दिल से नाता ।
दिल आँसू को सदा छिपाता ।।
आँखों में रातें छिप जातीं ।
कह न व्यथा अन्तस की पातीं ।3।
*
…
Added by Sushil Sarna on August 12, 2023 at 2:41pm — 2 Comments
हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।
हो जाता है इस से जग में, देश हमारा नंगा।।
एक साथ में रहते देखो, बीतीं कितनी सदियाँ।
फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।
*
क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।
क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।
जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।
झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।
*
वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2023 at 4:28pm — No Comments
फूलों की चोरी
उषा अवस्थी
फूलों की चोरी
बिना किसी परिश्रम
न पानी डालने का श्रम
न माली के खर्च का गम
पकी -पकाई रोटियाँ
खाने को तैयार
करने को प्रभु को प्रसन्न
सर्व सुलभ हथियार
कुछ कर्म करते-करते
स्वाभाविक हो चले हैं
वह पाप नहीं
आदत में शुमार,
लगते भले हैं
उनके लिए यह चोरी नहीं
साधारण सी बात है
दूसरों की मेहनत
उनकी ख़ैरात है
चोरी का आरम्भ ,
उस पेन्सिल के समान
जिस…
Added by Usha Awasthi on August 7, 2023 at 6:36pm — 2 Comments
तुमको पढ़ा तुमको जाना तो ये समझ में आया है
कितनी बेकरारी को समेट कर तूने कोई एक शेर बनाया है
रईसी ऐसी की बस इशारों में मुआ हर काम हो जाए
फकीरी ऐसी की जो सब पाकर भी बेइंतजाम हो जाए
हमने सुने है किस्से तेरी बेरुखी की ज़िंदगी से
शोहरत पाकर भी कोई कैसे तुझसा बेनाम हो जाए
लिखा जो तूने कहा जो तूने कोई ना जान सका
तू सभी का है अभी पर तब तुझे कोई ना पहचान सका
आज नज़्में तेरी दासतां बताती है
कैसे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 6, 2023 at 8:56pm — No Comments
दोहा पंचक
खुद पर खुद का जब नहीं, चलता कोई जोर ।
निर्णय उस इंसान के , पड़ जाते कमजोर ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, यहाँ फूल अरु शूल ।
सुख के पथ पर है पड़ी , यहाँ दुखों की धूल ।।
रिश्ते कागज पुष्प से, हुए आज निर्गंध ।
तार -तार सब हो गए, रेशम से अनुबंध ।।
कौन यहाँ पर पारसा, किसे कहें हम चोर ।
सच्चाई की राह में, मचा झूठ का शोर ।।
मीठी लगती चाँदनी, तीखी लगती धूप ।
ढल जाएगा एक दिन, चाँदी जैसा रूप…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2023 at 1:06pm — 2 Comments
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी
मानस भवन में आरय़जन जिसकी उतारे आरती।
भगवान भारतव्रष में गूंजें हमारी भारती।।
हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५ में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य रचना 'रंग में भंग'रचने वाले गुप्त जी को मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत दद्दा के नाम से विख्यात हुए.इस विख्यात रचनाकार का विषय भारतीय संस्कृति और देश…
Added by babitagupta on August 3, 2023 at 2:01pm — No Comments
दोहा त्रयी : बदनाम
उल्फत में रुसवा हुए, मुफ्त हुए बदनाम ।
आँसू आहों का मिला , इस दिल को ईनाम ।।
शमा जली महफिल सजी, चले जाम पर जाम ।
रिन्दों ने की मस्तियाँ, शाम हुई बदनाम ।।
वफा न जाने बेवफ़ा ,क्या उस पर इल्जाम ।
खाया फरेब इस तरह, इश्क हुआ बदनाम ।।
सुशील सरना / 3-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2023 at 1:59pm — No Comments
कौन बाँधे तू बता, बिल्ली ...घंटी आज ।
चूहों की बारात है, गधों के सर स्वराज।।
ग़ज़ल की बज़्म है सजा, चूहों.. का दरबार ।
कहते कलाम... शोहदे, होते ....हाहाकार ।।
रोबोट हो गये सखा, सच के पैरोकार ।
शेर हथेली पीटते, करते हैं जयकार ।।
अब तो शिकार हो रहे, शायर मंच विकार ।
रीमोट, सिद्ध बन गये, ग़ज़ल कहें..दरबार ।।
बनते मूर्ख बुद्ध यहाँ, फँसे हैं वाग्जाल ।
कौन यहाँ है पूछता, मरहूम…
Added by Chetan Prakash on August 3, 2023 at 12:00pm — No Comments
पास आ गया है बेहद
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का
आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने …
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 2, 2023 at 8:26pm — 4 Comments
.
दफ़्तर में तू पहला दिख
काम न कर पर करता दिख.
.
ये बाज़ार का मंतर है
सस्ता बिक पर महँगा दिख.
.
कर व्यवहार परायों सा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 31, 2023 at 11:05am — 8 Comments
कोई भी नेता हमारा वादे का सच्चा नहीं
घोषणा करता मगर कुछ लोक को देना नहीं।१।
*
हर बहस के पीछे केवल कुर्सियों की टीस है
शेष सन्सद में हमारे हित कोई झगड़ा नहीं।२।
*
बस चुनावी वक्त में ही रात दिन चर्चा में हम
शेष वर्षों में हमीं को उन का दिल धड़का नहीं।३।
*
लोक को बाँटा है ऐसे इस सियासत ने यहाँ
भीड़ में भी बोलिए तो कौन अब तन्हा नहीं।४।
*
विष घुली नदिया सा जीवन कर के नेता चैन में
लोक उनके आचरण को क्यों भला समझा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2023 at 5:48am — 4 Comments
कभी दिलबर बताते हो, कभी रहबर बताते हो
ये मर्ज़ी है बस तेरी, जो मर्ज़ी बताते हो
कभी सुनते हमारी बात, कबसे जो दबी दिल में
हमें अपना बताकर तुम, बड़ा दिल को जलाते हो
जीवन है सफर लंबा, मगर जो तुम हो तो कट जाए
राह है जो सदियों की, वो पल भर में सिमट जाए
बिना तेरे ना चल पाएं, कदम दो चार भी हम तो
थाम कर हम तेरा दामन, चलो उस पार हो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 29, 2023 at 10:20pm — No Comments
यह तन जो साँसों का घर है।
टूटेगा ही, जब नश्वर है।।
*
साँस महज है पवन डोलती।
तन रहने तक समय तोलती।।
केवल मन की हमजोली बन,
तन को उकसा द्वार खोलती।।
*
कच्ची स्याही, कच्चा कागज,
मिटने वाला हस्ताक्षर है।
*
अभिलाषा पर अभिलाषा गढ़।
मन बढ़ जाता, तन सीने चढ़।।
उस पर भी कर सीनाजोरी,
सब दोषों को तन पर दे मढ़।।
*
मन के कर्मों का अपराधी,
तन हो जाता यूँ ऊसर है।।
*
सतरंगी चञ्चलता मन की।
सह ना पाती जड़ता तन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2023 at 5:52pm — 2 Comments
ढूँढता हूँ कब से मुझमे मुझसा कुछ तो हो
सोच हो, आवाज़ हो, अंदाज़ हो, ना कुछ सही सबर तो हो
क्यूँ करूँ परवाह खुद की संग क्या ले जाना है
बिन बुलाये आए थे हम बिन बताए जाना है
क्यूँ बनाऊ मैं बसेरा डालना कहाँ है डेरा
जिस तरफ मैं चल पड़ा हूँ उस गली है बस अंधेरा
क्या करूँ तालिम का मैं बोझ सा है पड गया
है सलिका खूब इसमे, पर, सर पर मेरे चढ़…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 23, 2023 at 7:55am — 2 Comments
दोहा पंचक. . . ( क्रोध )
क्रोध मूल है बैर का, करे बुध्दि का नाश ।
काट सको तो काट दो ,क्रोध रास का पाश ।।
रिश्तों को पल में करे, खाक क्रोध की आग ।
जीवन भर मिटते नहीं, इन जख्मों के दाग ।।
क्रोध पनपता है वहाँ , होता जहाँ विरोध ।
हरदम चाहे आदमी , लेना बस प्रतिशोध ।।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित परिणाम ।
जीवित रहते शूल से, अंतस में संग्राम ।।
मित्र क्रोध से क्रोध का, मुश्किल है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 21, 2023 at 2:07pm — 2 Comments
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