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हर जंगल को नित्य मिटाने(गजल)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

आँखों में घड़ियाली  आँसू  अधरों पर चिंगारी हो

उन लोगों से बचके रहना जिनमें ढब हुशियारी हो।१।

*

सिर्फ जरूरत भर को लोगो पेड़ काटना अच्छा है

हर जंगल को नित्य मिटाने क्यों हाथों में आरी हो।२।

*

सभी पीढ़ियों कई युगों की यही धरोहर इकलौती

सिर्फ तुम्हारी एक जरूरत क्यों धरती पर भारी हो।३।

*

अल्प जरूरत अति बताकर नष्ट करो मत धरती

आज कहीं तो सुन्दर अच्छे आगत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2023 at 7:01am — 2 Comments

तज़मीन बर ग़ज़ल उस्ताद-ए-मोहतरम समर कबीर साहिब

221-1221-1221-122

हालाँकि किया आपने इज़हार नहीं है

ये बात समझना कोई दुश्वार नहीं है

अब छोड़िए इज़हार भी दरकार नहीं है

"ख़ामोश है लब पर कोई तकरार नहीं है

मैं जान गया हूँ तुझे इंकार नहीं है"



ये बात अलग है कि दिल-ओ-जान से चाहूँ

पाने को तुम्हें जान मैं क्या कुछ नहीं कर दूँ

ये भी है हक़ीक़त कि कभी होगा नहीं यूँ

"मैं बेच के ग़ैरत को तेरा प्यार ख़रीदूँ

इस बात पे राज़ी दिल-ए-ख़ुद्दार नहीं है"



भाती है ग़ज़ल सब को, जो भाता हो ग़ज़ल…

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Added by Gurpreet Singh jammu on February 15, 2023 at 3:41pm — 5 Comments

14 फरवरी

प्यार-शहादत का दिन ये

क्यूं जज़्बात से किसी के खेले

एक ओर है पुलवामा की घटना

उधर, ले प्रेमियों के दिल हिचकोले।।

कितनों के सुहाग उजड़ गए

दुनियाँ, कितनों के लाल थे छोड़े

भाई बिन कितनी बहनें रोती

कितने, पिता की याद में रोते।।

कोई खुश है प्रेम को पाकर

कोई इंतजार में इत-उत डोले

रात-दिन है कोई जागता

कुछ प्रेमी की याद में रोते।।

बड़ा है दिन ये दोनों का ही

क्यूं अहमियत न इसकी समझें

श्रृद्धा-सुमन तू…

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Added by PHOOL SINGH on February 14, 2023 at 9:30am — No Comments

दिल का दादी होना

दिल का दादी होना 

 तब कोई हैरानी भी नहीं होती थी
जब कागा मुंडेर पर कगराता था
और सांझ तक कोई अतिथि आ भी जाता था


तब कोई हैरानी भी नहीं होती थी…

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Added by amita tiwari on February 14, 2023 at 4:00am — No Comments

प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए ( गीत-१७)-



शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर

प्यार करने  के  लिए  मौसम  नहीं मन चाहिए।।

*

भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।

वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।

कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।

ओट पाते  वासना  के  द्वार  पलपल खोलता।।

भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।

प्यार करने  के  लिए  तो  पूर्ण जीवन चाहिए।।

*

देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।

आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।

आज उपमा लिख  रही  उपभोगवादी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2023 at 6:35pm — 3 Comments

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अब तक मैं अपना  

पहचान ही नहीं पा सका 

भीड़ में दबा कुचला व्यथित मानव 

दड़बे में…

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Added by जगदानन्द झा 'मनु' on February 13, 2023 at 9:16am — 3 Comments

शांति दूत श्री कृष्ण

अज्ञातवास जब समाप्त हुआ

पांडवों में साहस भरा

कनक सदृश तप कर आए

उनमें प्रखर उत्साह का तेज बड़ा।।

कायर दहलता विपत्ति में अक्सर

शूरमा विचलित न कभी हुआ

गले लगाकर हर दुःख-विध्न को

धीरज से उसका तेज हरा।।

कांटो भरी राह पर चलकर

उफ्फ तक न वो कभी किया

धूल के गहने पहन चरण में

साहस के सहारे बढ़ता गया।।

उद्योग निरत नित करता रहता

उसने सब सुख-सुविधाओ का त्याग किया

शूलों के सदा समूल विनाश को

राह स्वयं के विकास की…

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Added by PHOOL SINGH on February 12, 2023 at 8:29am — 2 Comments

यादों ने यादों की खिड़की-(गीत-१६) -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।

नये वर्ष की  अँखियाँ  भीगी, बीती  जून जुलाई में।।

*

हिचकी आयी भोर भये से,ना रुकने का नाम लिया।

तभी पुरानी राहों ने  फिर, सोचा किसने याद किया।।

पलपल, पगपग जाने कितने, रंगो को था नित्य जिया

कई सूरतें उभरीं  मन  में, गठरी  को जब  खोल दिया।।

*

चुपके-चुपके नभ रोया नित, शरद भरी जुन्हाई में।

यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।।

*

कितना चाहो भले भूलना, हिर फिर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2023 at 5:42am — No Comments

मनमोहन छंद

मनमोहन छंद (प्रथम प्रयास )
8,6-पदान्त 111

कान्हा जी से, लगी लगन ।
पागल मन ये , हुआ मगन ।
मन में जागी, प्रीत  अगन ।
भूल गया मन , धरा गगन ।

***

मनमोहन   तू, बड़ा  चपल ।
तुझे   निहारें ,  नैन   सजल ।
हरदम  लगता , रूप  नवल ।
छलकें नैना , छल छल छल ।

सुशील सरना /

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 11, 2023 at 3:22pm — No Comments

पिया का पत्र

आज खुशी से झूमूँ सखि री पत्र पिया का आया है

भाव भरे अक्षर-अक्षर ने ये तन-मन हर्षाया है

लिखते, प्रिये! तुम्हीं से सब कुछ, सुख-दुख की सहभागी तुम

तुमने इस जीवन में खुशियों का सावन बरसाया है 

रहता था निर्वासित सा मन जीवन के निर्जन वन में

पावन प्यार भरा गृह इसको तुमने ही लौटाया है

कहते- पीर भरा यह जीवन जो तपते मरुथल सा था

पाकर तेरा स्नेह सलिल अब हरा भरा हो आया है

नीरव हिय का रंगमहल था साज-बाज सब सूने थे

तेरी पायल…

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Added by रामबली गुप्ता on February 11, 2023 at 9:30am — No Comments

भगवान परशुराम और कर्ण

हवन की अग्नि बुझ चुकी थी

शिक्षा प्राप्ति की आई बात

गुरू द्रोण ने जब इंकार किया तो

भगवान परशुराम की आई याद।।

नीड़ो में था कोलाहल जारी

फूलों से महका उपवन

ज्ञान की जिज्ञासा थी मन में भड़की

निकला खोज में जिसकी कर्ण।।

द्वार तृण-कुटी पर परशु भारी

आभाशाली-भीषण जो भारी भरकम

धनुष-बाण एक ओर टंगे थे

पालाश, कमंडलू, अर्ध अंशुमाली एक पड़ा लौह-दंड।।

अचरज की थी बात निराली

तपोवन में किसनें वीरता पाली

धनुष-कुठार…

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Added by PHOOL SINGH on February 11, 2023 at 7:21am — No Comments

करूंगा याद तुम्हें इतना

करूंगा याद तुम्हें इतना, मुझे भुला ना पाओगे

जपूँगा नाम मैं इतना, कि पानी पी ना पाओगे

हरेक आहट पर ये सोचोगे, मेरी आहट कहीं ना हो

दिखूँगा ख्वाब में इतना, कभी तुम सो ना पाओगे

रहूँगा पास मैं इतना, जुदा तुम हो ना पाओगे

रहूँगा सांस में ऐसे, अकेले रह ना पाओगे

कभी जो छोड़ना चाहो, मुझे तन्हा अंधेरे में

है मेरा वायदा तुमसे, अकेले चल ना…

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Added by AMAN SINHA on February 11, 2023 at 7:17am — No Comments

पथ पर चलते रहो निरंतर(गीत-१५)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

पग की गति हो चाहे मन्थर।

पथ पर  चलते  रहो निरंतर।।

*

सूनापन  हो   या  निर्जन  हो।

तमस भले ही बहुत सघन हो।।

विचलित थोड़ा भी ना मन हो।

मत पाँवों में  कुछ अनबन हो।।

*

शूल चुभें या कंकड़ पत्थर।।

पथ पर चलते रहो निरंतर।।

*

जो भी इच्छित क्यों सपना हो।

चाहे जितना भी खपना हो।।

हर नूतन पथ बस अपना हो।

धैर्य न डोले जब तपना हो।।

*

मत करना जीवन में अन्तर।

पथ पर चलते रहो निरंतर।।

*

अंतिम परिणति जैसी भी हो।

जीवन  से …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 10, 2023 at 12:24pm — No Comments

अंगराज कर्ण

सूर्य कहलाएं पिता थे जिसके

माता सती कुमारी

जननी का क्षीर चखा न जिसने

वो वीर अद्भुत धनुर्धारी।।

 

निज समाधि में निरत रहा जो

स्वयं विकास किया था भारी

पालना बनी थी आब की धारा

बिछौना बनी पिटारी।।

 

ज्ञानी-ध्यानी, प्रतापी-तपस्वी

जिसका पौरुष था अभिमानी

कोलाहल से दूर नगर के

जो सम्यक अभ्यास का था पुजारी।।

 

नतमस्त्क करता प्रतिबल को

लगाता घात विजय की खूब दिखा

प्रचंडतम धूमकेतु-सा…

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Added by PHOOL SINGH on February 10, 2023 at 11:00am — No Comments

चन्दा मामा! हम बच्चों से (बालगीत) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

रूठे हो बहनों से या फिर,  मद में अपने चूर बताओ।

चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।

*

जल भरकर थाली में माता, हमको तुमसे भले मिलाती।

किन्तु काल्पनिक भेंट हमें ये, थोड़ा भी तो नहीं सुहाती।।

हम बच्चों की इच्छा खेलें, यूँ नित चढ़कर गोद तुम्हारी।

लेकिन तुमको भला बताओ, कब आती है याद हमारी।।

*

कौन काम से निशिदिन इतने, हो जाते मजबूर बताओ।

चन्दा मामा! हम  बच्चों  से, क्यों  हो  इतने दूर बताओ।।

*

हमको भी तुम जैसा भाता, ये लुका छिपी का…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2023 at 11:07am — 2 Comments

मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?

उषा अवस्थी

मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?

वे घर ,जो दिखते नहीं

मिलते हैं धूल में, टिकते नहीं

पर "मैं" कहाँ मानता है?

विचारों के कुरुक्षेत्र में,खाक़ छानता है

एक के पश्चात दूसरा,तत्पश्चात तीसरा

ख़्यालों का समुंदर लहराता है

अनवरत प्रवाह में 

डूबता, उतराता है

जीवन और मौत के बीच

झूल - झूल जाता है

मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?

मौलिमन क…

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Added by Usha Awasthi on February 4, 2023 at 7:14pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . . .

साथ चलेंगी नेकियाँ, छूटेगा जब हाथ ।

बन्दे तेरे कर्म बस , होंगे   तेरे  साथ ।।

मिथ्या इस  संसार में,  अर्थहीन सम्बंध।

देह घरोंदा जीव का, साँसों का अनुबंध ।।

रह जाएगी जगत में, कर्मों की बस गंध ।

इस जग में है जिंदगी, दो पल का अनुबंध ।।

आभासी संसार के,  आभासी संबंध ।

मिट जाता जब सब यहाँ, रहती कर्म सुगंध ।।

जब तक साँसें देह में, चलें देह सम्बंध ।

शेष रहे संसार में, जीव कर्म  की …

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Added by Sushil Sarna on February 3, 2023 at 2:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल-रफ़ूगर

121 22 121 22 121 22



सिलाई मन की उधड़ रही साँवरे रफ़ूगर

कि ज़ख्म दिल के तमाम सिल दे अरे रफ़ूगर



उदास रू पे न रंग कोई उदास टांको

करो न ऐसा मज़ाक तुम मसखरे रफ़ूगर



हज़ार ग़म पे छटाक भर की ख़ुशी मिली है

तुझे अभी कुछ पता नहीं मद भरे रफ़ूगर



कहीं पलक से टपक न जाये हरेक आँसू

भला हो तेरा न और दे मशविरे रफ़ूगर



यही भरोसा है एक दिन फिर से आ मिलेंगे

यहीं कहीं खो गये सभी आसरे रफ़ूगर



कि 'ब्रज' इसी इक उधेड़बुन में रहे हमेशा…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2023 at 9:30pm — 5 Comments

दोहे वसंत के - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जिस वसंत की खोज में, बीते अनगिन साल

आज स्वयं ही  आ  मिला, आँगन में वाचाल।१।

*

दुश्मन तजकर दुश्मनी, जब बन जाये मीत

लगते चहुँ दिश  गूँजने, तब  बसन्त के गीत।२।

*

आँगन में जिस के बसा, बालक रूप वसन्त

जीवन से उसके हुआ, हर पतझड़ का अन्त।३।

*

कहने को आतुर हुए, मौसम अपना हाल

वासन्ती  संगत  मिली, हुए  मूक  वाचाल।४।

*

करने कलियों को सुमन, आता है मधुमास

जिसके दम पर ही मिटे, हर भौंरे की प्यास।५।

*

आस बँधा कर पेड़ को, हवा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2023 at 1:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल : बलराम धाकड़ (पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।)

22 22 22 22 22 2

 

पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।

उनके मन में भी सौ अजगर बैठे हैं।

 

'ए' की बेटी, 'बी' का बेटा, 'सी' की सास,

दुनियाभर का ठेका लेकर बैठे हैं।

 

कहाँ दिखाई देती हैं अब वो रस्में,

भाभीमाँ की गोद में देवर बैठे हैं।

 

मैं दरवाज़े पर ताला जड़ आया हूँ,

दुश्मन घर में घात लगाकर बैठे हैं।

 

अब हम सब सीसीटीवी की ज़द में हैं,

चित्रगुप्त कब खाते लेकर बैठे हैं।

 

अदबी…

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Added by Balram Dhakar on February 1, 2023 at 11:00pm — 8 Comments

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