स्वप्न-मिलन
रात ... कल रात
कटने-पिटने के बावजूद
बड़ी देर तक उपस्थित रही
नींद के धुँधलके एकान्त में
पिघलते मोम-सा
कोई परिचित सलोना सपना बना…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments
ज़िन्दगी सपेरे की रहस्यमयी पिटारी हो मानो
नागिन-सी सोच की भटकती हुई गलियों में
हर रिश्ते की कमल-पंखुरी मुरझा कर
सूखकर भी झड़ जाने से पहले लिख जाती है
विचार-भाव में कोई लम्बी भीषण कहानी
अद्भुत है सृष्टि हर रिश्ते की
कभी किसी आकाशीय स्नेह से द्रवित
कभी परिवर्तित हृदय-संबंध से आतंकित
तारिकायों के संग नृत्य में प्र्फुल्लित
या कभी शून्य की सियाह सुरंग से उद्विग्न
पल भर में कहाँ से कहाँ घूम आता है…
ContinueAdded by vijay nikore on December 13, 2019 at 7:58am — 14 Comments
आशंका के कगार
जानता हूँ
हर पिघलती सचाई में
फीकी सचाई के पार
कुछ झुठाई भी है
तभी तो आशंका की परतों के बीच
किसी भी परिस्थिति को परखते
किसी का झूठ जानते हुए भी
सचाई की लाश को मानो
थपकियाँ देते
कभी खिड़की का शीशा
कभी मन काआईना
कोना-कोना साफ़ करते
खिसक जाते हैं दिन
ज़िन्दगी हाथ फैलाए
मांगती है…
ContinueAdded by vijay nikore on November 17, 2019 at 6:12pm — 7 Comments
ठण्डी गहरी चाँदनी
चिंताओं की पहचानी
काल-पीड़ित
अफ़सोस-भरी आवाज़ें ...
पेड़ों से उलझी रोशनी को
पत्तों की धब्बों-सी परछाई से
प्रथक करते
अब महसूस यह होता है
सपनों में
सपनों की सपनों से बातें ही तो थीं
हमारा प्यार
या उभरता-काँपता
धूल का परदा था क्या
विश्वासों में पला हमारा प्यार
आईं
व्यथाओं की ज़रा-सी हवाएँ
धूल के परदे में झोल न पड़ी
वह तो यहाँ वहाँ
कण-कण जानें…
ContinueAdded by vijay nikore on November 4, 2019 at 5:15pm — 12 Comments
चिन्तन-प्रश्न
आस्था की अनवस्थ रग को सहलाते
सचाई के अब भयावने-हुए मुख पर
उलझनों के ताल के उस पार उतर कर
अचानक यह कैसा उठा प्रश्नों का चक्रवात
चिंता की हवाओं का मंडराता विस्तार
एकाएक
यह क्या हुआ ?
कैसा खतरनाक है यह
सतही ज़िन्दगी का सतही स्तर
बाहरी चीख-चिल्लाहट
सुनाई नहीं देता है आत्मा का स्वर
ऐसे में असहज है कितना
द्वंद्व-स्थिति में संकल्प-शक्ति से
किसी भी…
ContinueAdded by vijay nikore on October 25, 2019 at 1:22pm — 4 Comments
स्वप्न-सृष्टि
बुझते दिन का सहारा बनी
गहन गंभीर अभागी शाम
मन में अब अपने ही पुराने घाव की
मौन वेदना की गुथियाँ समेटती
बूँद-बूँद गलती
पहले स्वयं सरकती-सी रात की ओर
अंधेरा होते ही फिर घसीट लेती है रात
बेरहमी से अपनी काली कोठरी में …
ContinueAdded by vijay nikore on October 15, 2019 at 4:30am — 2 Comments
अनपेक्षित तज्रिबों को लीलती हुई
मन में सहसा उठते घिरते
उलझी रस्सी-से खयालों को ठेलती
गलियाँ पार करती चली आती थी तुम
तब साथ तुम्हारा था
साहस हमारा
तुम्हारी मनोहर महक
थी दमकती हवाओं का उत्साह
और तुम्हारे चेहरे की चमक
थी हमारी शाम की अजब रोशनी
और मैं ...
तुम्हारी बातें सुनते नहीं थकता था
हँसी के पट्टे पर कूदते-खेलते
बीच हमारे कोई सरहदें
सीमाएँ न थीं
समय के पल्लू में…
ContinueAdded by vijay nikore on October 14, 2019 at 9:23am — 8 Comments
रात-अँधेरे सारी रात
टटोलते कोई एक शब्द
स्वयं में स्माविष्ट कर ले
जो तुम्हारे आने का उल्लास
चले जाने का विषाद
कभी बूँद-बूँद में लुप्त होती
खिलखिलाती रंग-बिरंगी हँसी
और प्यारी हिचकियाँ तुम्हारी
आँसू ढुलकाती, मेरी ओर ताकती
दीप-माला-सी तुम्हारी आँखें
कि मोहनिद्रा में जैसे
मेरे ओठों पर तुम
अपने शब्दों को खोज रही हो
यह प्रासंगकि नहीं है क्या
कि मैं रात-अँधेरे सारी रात
टटोल रहा…
ContinueAdded by vijay nikore on October 1, 2019 at 3:30pm — 8 Comments
कितने "अपने"
पहचाने थे यही रास्ते
पेड़ों की छाँह ओढ़े
कुहनी टेक
सरक जाते थे कितने
अच्छे-बुरे तजुर्बे
अचानक
चौंक जाती थी शाम
"मुझको घर जाना है"
तुम्हारे अरुणिम ललाट पर
अकस्मात चिंता की छायाएँ
और फिर ...
और फिर देख
मेरी आँखों में अपनी आँखों की चमक
तुम्हारा ही मन नहीं करता था
हाथ छोड़ चले जाने को
कि मानो जाते-जाते रुक जाती थी शाम
एक "और" आज के प्रेम-पत्र…
ContinueAdded by vijay nikore on September 30, 2019 at 10:22pm — 6 Comments
भीतर तुम्हारे
है एक बहुत बड़ा कमरा
मानो वहीं है संसार तुम्हारा
वेदना, अतृप्ति, विरह और विषमता
काले-काले मेघ और दुखद ठहराव
इन सब से भरा यह कमरा बुलाता है तुमको
जानती हूँ यह भी कि इस कमरे से तुम्हारा
रहा है बहुत पुराना गहरा गोपनीय रिश्ता
इस आभासी दुनिया के मिथ्यात्व से दूर होने को
तुम कभी भी किसी भी पल धीरे हलके-हलके
अपराध-भाव-ग्रस्त मानों फांसी के फंदे पर झूलते
बिना कुछ बोले उस कमरे में जब भी…
ContinueAdded by vijay nikore on September 16, 2019 at 9:39am — 6 Comments
पूर्तिहीन संवाद
आकुलित असंवेदित भाव
अपाहिज हुई वह जो होती थी
स्नेह की अपेक्षित शाम
गई कहाँ वह ममतामयी प्रतीक्षातुर बाहें
दिशायों से आती तुम्हारे आने की आहट
ऊब गई है, उकता गई है कब से
नपुंसक दुखजनित अजनबी हुई आस्था
महिमामयी स्मृतियों के आस-पास
मटमैली रौशनी सुनसान गहरी उदास
फिर क्यूँ जोड़ती हैं हमें देहहीन परछाइयाँ
आसाधारण अपूर्ण प्रवाही दिशाहीन हवा-सी
कसकती…
ContinueAdded by vijay nikore on September 8, 2019 at 3:58pm — 2 Comments
अजीब अवस्था है
कोई खुरदरी विवशता है
और है अद्भुत चित्ताकर्षण ....
पलकों के आसपास
गहन दूरता का आवरण
कि जैसे हो फैल रहा
मूर्छा का मौन वातावरण
अपरिचित भीड़ में खो गईं
कितनी परिचित संज्ञाएँ
सरोवर-सदृश संवेदनाएँ
फिर भी न जाने कैसे
दरिद्र हुई धड़कन में भी आदतन
कोई वादा निभाने के बहाने ही शायद
डरी हुई बाहें फैलाए
व्याकुलतर गति से छू लेती हैं
आज भी…
ContinueAdded by vijay nikore on September 3, 2019 at 7:27am — 4 Comments
अचानक अजीब मनोदशा
अँधेरी हो रही हैं धुँधली आँखें
कुछ नहीं जानता मैं अब भँवर में
कुछ भी नहीं पहचानता हूँ अंत में
यह निसत्बध्ता, यह काया
एकाकार हो रहे हैं क्या ?
साथ बंधी आ रही हैं कभी की
रात देर तक करी हमारी बातें
समुद्र की लहर-सी छलकती
अमृत के झरनों-सी हम दोनों की हँसी
आँखों में ठहरे कभी के अनुच्चरित प्रश्न
पल में तुम्हारा परिचित चिंता में डूब जाना
उफ़्फ़.. इतने वर्षों के बाद भी वही है…
ContinueAdded by vijay nikore on August 8, 2019 at 6:14pm — 8 Comments
कहे-अनसुने-से रहे कुछ जज़्बात
उसपर अनकहे एहसासों का भार
अजीब-सी बेचैन बेकाबू धड़कन का
तकलीफ़-भरा भयानक शोर ...
पन्नों पर उतर तो आते हैं यह
पर भरमाया घबराया मन
इनकार भरा
भार कोई हल्का नहीं होता
पगलाई अन्दरूनी हवाएँ
खयालों-सी वेगवान
झकझोरती आसमानी तूफ़ान बनी
लफ़्ज़ों से लफ़्ज़ टकराते
सूखे पेड़ों-से छूटे पत्तों की तरह
आढ़ी-टेढ़ी लकीरों को बेतहाशा समेटते
लुढ़क जाती है स्याही
रात अँधेरी…
ContinueAdded by vijay nikore on August 5, 2019 at 7:52am — 6 Comments
जाड़े की सुबह का ठिठुरता कोहरा
या हो ग्रीश्म की तपती धूप की तड़पन
अलसाए खड़े पेड़ की परछाईं ले अंगड़ाई
या आए पुरवाई हवा लिए वसन्ती बयार
उमड़-उमड़ आता है नभ में नम घटा-सा
तुम्झारी झरती आँखों में मेरे प्रति प्रतिपल
धड़कन में बसा लहराता वह पागल प्यार
इस पर भी, प्रिय, आता है खयाल
फूल कितने ही विकसित हों आँगन में
पर हो आँगन अगर बित्ता-भर उदास
छू ले सदूर शहनाई की वेदना का विस्तार
तो…
Added by vijay nikore on July 29, 2019 at 2:49am — 4 Comments
उर-विदारक उलझन
बर्फ़ीला एहसास
गूँजता-काँपता
एक सवाल
तुम्हा्रा स्नेह भरा संवेदित हृदय
सुनता तो हूँ उसमें नित्य नि:सन्देह
संगीत-सी तरंगित अपनी-सी धड़कन
फिर क्यूँ तुम्हारे आने के बाद
मन के तंग घेरों में लगातार
सिर उठाए ठहरा रहता है हवा में
आदतन एक ख़याल
एक अंगारी सवाल --
शीशे के गिलास का
हाथ से छूट जाना
तुम्हारे लिए
सामान्य तो नहीं है न ?
…
ContinueAdded by vijay nikore on July 22, 2019 at 7:08am — 4 Comments
स्मृतियाँ आजकल
आए-गए अचानक
कांच के टुकड़ों-सी
बिखरी
चुभती
छोटी-से-छोटी घटना भी
हिलोर देती है हृदय-तल को
हँसी डूब जाती है
नई सृष्टि ...
नए संबंध आते हैं
पर अब दिन का प्रकाश
सहा नहीं जाता
सूर्योदय से पहले ही जैसे
हम बुला लेते हैं शाम
मंडराते रह जाते हैं पतंगों की तरह
प्यार के कुछ शब्द
धुंधले वातावरण में भीतर
नए प्यार के आकार की रेखाएँ
स्पष्ट नहीं…
ContinueAdded by vijay nikore on July 21, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
कण-कण, क्षण-क्षण
मिटती घुटती शाम से जुड़ती
स्वयँ को सांझ से पहले समेट रही
विलुप्त होती अवशेष रोशनी
प्रस्थान करते इंजिन के धुएँ-सी ...
दिन की साँस है अब जा रही
मृत्यु, अब तू अपना मुखौटा उतार दे
हमारे बीच के वह कितने वर्ष
जैसे बीते ही नहीं
कैसी असाधारणता है यह
कैसी है यह अंतिम विदा
मैं तुम्हें याद नहीं कर रहा
तू कहती थी न
“ याद तो तब करते हैं
जब भूले हों किसी को…
ContinueAdded by vijay nikore on July 17, 2019 at 4:56pm — 4 Comments
आज फिर ... क्या हुआ
थरथरा रहा
दुखात्मक भावों का
तकलीफ़ भरा, गंभीर
भयानक चेहरा
आज फिर
दुख के आरोह-अवरोह की
अंधेरी खोह से
गहरी शिकायतें लिए
गहराया आसमान
आज फिर
ढलते सूरज ने संवलाई लाली में रंगी
कुछ खोती कुछ ढूँढ्ती
एक और मटमैली
उलझी-सी शाम
आज फिर
सिमटी हुई कुछ डरी-डरी
उदास लटकती शाम
डूबने को है ...
डूबने दो
मन में…
ContinueAdded by vijay nikore on July 14, 2019 at 2:27pm — 18 Comments
हवस की हवायों के चक्रवात नहीं बदले
न हम बदले, न हमारी विवेकहीन सोच
खूँखार जानवर-से मानव की छाती में
ज़हरीली हवस की घनघोर लपटें
घसीट ले जाती हैं सोई मानवता को बार-बार
मृत्यु से मृत्यु, और फिर एक और
मृत्यु की गोद में
सुविचारित सोच की सरिताएँ हट गईं
डूब गया विवेक अविवेक के काले सागर में
राक्षसी-दानव-मानव ने ओढ़ा नकाब
और स्वार्थ-ग्रस्त ज़हरीले हाथों से किए
मासूम असहाय बच्चियों पर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 24, 2019 at 5:26pm — 6 Comments
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