विधाता छंद वाचिक मापनी का छंद है जिसमे 14, 14 मात्राओं पर यति और दो-दो पदों की तुकांतता होती है। इसका मापनी
1222 1222 1222 1222
पड़े जब भी जरूरत तो, निभाना साथ प्रियतम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
बहे सद प्रेम की सरिता, रगों में आपके हरदम
नहाता मैं रहूँ जिसमें, मिटे सब क्लेश ऐ हमदम
बने दीपक अगर तुम जो, शलभ बनके रहूँगा मैं
मिलेगी ताप जो मुझको, वहीं जल के मरूँगा मैं
फकत इतनी इबादत है, जुड़े तन मन…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 29, 2018 at 8:46am — 3 Comments
कलम उठाई है मैंने अब, सोयी रूह जगाने को
जिस मिट्टी में जन्म लिया है, उसका कर्ज चुकाने को
कलमकार का फर्ज निभाऊं, हलके में मत लेना जी
भुजा फड़कने अगर लगे तो, दोष न मुझको देना जी
सन सैतालिस हमसे यारो, कब का पीछे छूटा है
भारत के अरमानों को खुद, अपनो ने ही लूटा है
भूख गरीबी मिटी नही है, दिखती क्यो बेगारी है
झोपड़ियो के अंदर साहब दिखती क्यों लाचारी है
भारत माता की हालत को, देखों तुम अखबारों में
कैद…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 26, 2018 at 1:23pm — 8 Comments
मकर राशि मे सूर्य का, ज्यों होता आगाज
बच्चे बूढ़े या युवा, बदलें सभी मिजाज।1।
भिन्न भिन्न हैं बोलियाँ, भिन्न भिन्न है प्रान्त
पर्व बिहू पोंगल कहीं, कहीं यहीं संक्रांत।2।
कहीं पर्व यह लोहड़ी, मने आग के पास
वैर भाव सब जल मिटे, झिलमिल दिखे उजास।3।
नदियों में डुबकी लगे, सब करें मकर स्नान
घर मे पूजा पाठ हो, सन्त लगाएं ध्यान।4।
उत्तरायणी पर्व पर, दान धर्म का योग
काले तिल में गुड़ मिले, लगे उसी का…
Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2018 at 11:47am — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 11:22am — 9 Comments
अरकान-फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
ऐसे रिश्ता यार निभाया जाता है
वक़्त पड़े तो ग़म भी खाया जाता है ।।
भूख लगी हो और न हो कुछ खाने को
बच्चे का फिर दिल बहलाया जाता है।।
लाख छुपाने से भी जब ये छुप न सके
फिर क्यों यारो इश्क़ छुपाया जाता है।।
तब होती है घर में बरकत ही बरकत
मुफ़लिस को महमान बनाया जाता है ।।
रुखा सूखा खाना लज़्ज़त दार लगे
माँ के हाथों से जब खाया जाता है ।।
चुंगल में सेठों के…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 8, 2018 at 2:03pm — 11 Comments
पहली जनवरी की सुबह कुहरे की चादर लपेटे, रोज से कुछ अलग थी। सामने कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल, गौरव की दिनचर्या की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से ही होती है, सो आज भी निकल गया हाथ मे एक टार्च लिए।
गली के चौराहे पर रोज की तरह शर्मा जी मिल गए। गौरव ने उनको हैप्पी न्यू ईयर बोला। पर शर्मा जी शुभकामना देने के बजाय भड़कते हुए बोले-
"अरे गौरव भाई! कौन से नव वर्ष की बधाई दे रहे हैं आप? आज आपको कुछ भी नया लग रहा है। क्या?"
क्यों? आपके…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:30pm — 12 Comments
कमरे में घुसकर उसने रूम हीटर ऑन किया। तभी उसे दोबारा कुतिया के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह हॉस्पिटल की भागमभाग से बहुत अधिक थका हुआ था जिसके कारण उसकी इच्छा तुरन्त सोने की हो रही थी लेकिन कुतिया की लगातार दर्द औऱ कराहती आवाज उसकी इच्छा पर भारी पड़ी।
सोहन बाहर आकर इधर-उधर देखा। बाहर घना कुहरा था जिसकी वजह से बहुत दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। स्ट्रीट लाइट का प्रकाश भी कुहरे के प्रभाव से अपना ही मुँह देख रहीं थी। बर्फीली हवा सर्दी की तीव्रता को और बढ़ा रही थी जिससे ठंडी बदन…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 2, 2018 at 2:30pm — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2018 at 2:31pm — 11 Comments
अरकान-: 2122 1212 22
ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है
आदमी बेक़रार सा क्यों है
मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,
नेता हर इक गंवार सा क्यों है
आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,
फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है
मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर
तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है
मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर
उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है
उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,
'फिर हमें एतिबार सा…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 1:47pm — 21 Comments
अरकान- फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
आप अंदाज़ रखें हँसने हँसाने वाला
यही किरदार तो है साथ में जाने वाला।1।
आज क्या बात है, नफ़रत से मुझे देखता है
मेरी तस्वीर को सीने से लगाने वाला।2।
काटने वाले तो हर सिम्त नज़र आते हैं
पर न दिखता है कोई पेड़ लगाने वाला।3।
आख़िरी बार उसे देख ले तू जी भर के
फिर न आएगा कभी लौट के, जाने वाला।4।
आबरू की भी लगा देती है क़ीमत दुनिया
गर चला जाये किसी…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 19, 2017 at 6:27pm — 16 Comments
अरकान :1222 1222 1222 1222
अजब सी कश्मकश से यकबयक दो चार कर देगा
तुम्हे पहचानने से वो अगर इनकार कर देगा
ज़माने में जियो खुल के जवानी साथ है जब तक
करोगे क्या बुढ़ापा जब तुम्हे लाचार कर देगा
हक़ीक़त सामने है आज यह जो, देख लेना कल
सही को भी ग़लत ये सुब्ह का अखबार कर देगा
रखें कुछ भी नहीं दिल में छुपा के आप भी मुझसे
नहीं तो शक खड़ी इक बीच में दीवार कर देगा
समझना मत कभी कमज़ोर, दुश्मन को…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 18, 2017 at 1:30pm — 20 Comments
सब जन हैं आगोश में, धुन्ध धुएँ के आज
अतिशय कम है दृश्यता, सभी प्रभावित काज
सभी प्रभावित काज, नहीं कुछ अपने कर में
जन जीवन बेहाल, छुपे सब अपने घर में
यहीं रहा जो हाल, धुन्ध होगी और सघन
इसका एक निदान, अभी से सोचें सब जन।1।
बच्चे मानों पट्टिका, चाक आपके हाथ
चाहे इच्छा जो लिखें, उनके ऊपर नाथ
उनके ऊपर नाथ, असर वो होगा गहरा
परखें उनके भाव, यथोचित देकर पहरा
दिए जरा जो ध्यान, बनेंगे फिर वो सच्चे
कच्चे घड़े…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 5:07am — 8 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 27, 2017 at 6:30pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 5:40pm — 20 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 7:43pm — 8 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 25, 2017 at 1:31pm — 41 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 24, 2017 at 5:47am — 20 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 23, 2017 at 5:42am — 9 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 9, 2017 at 1:00pm — 11 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 5:04am — 21 Comments
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