2122 2122 2122 212
बिन मेरे जब दिल तुम्हारा जीने के काबिल हुआ।
देख ले मझधार ही मेरे लिए साहिल हुआ।
जो नहीं है पास अपने उसकी बेचैनी के साथ,
उसको जाया कर दिया है जो हमें हासिल हुआ।
सामने आकर खड़ी हो जाती हैं सूरत कईं,
खुद में खुद को खोजना मेरे लिए मुश्किल हुआ।
कह नहीं पाया मैं अपने दिल की सारी बात पर,
तू मेरी ग़ज़लों में लगभग हर दफा शामिल हुआ।
वेदनाओं के सफर में साथ है तू हर घड़ी,
और तेरा…
Added by मनोज अहसास on September 2, 2021 at 11:51pm — 3 Comments
1
सांसारिक कर्मों संग, याद रहे प्रभु नाम।
ईश कृपा बनी रहे, बन जाएँ सब काम॥
2.
जैसा जैसा समय हो, वैसे होते काम।
चिंता काहे हम करें, मदद करें श्री राम॥
3.
कोमल तन कटि क्षीण सी, सुंदर मोहक रूप।
वेणी नागिन सी बनी, चंचल नयन अनूप ॥
4.
कर्म कमाई आपकी, बदले सब संस्कार।
अनुचित अर्जित संपदा, हो दुख का आधार॥
5.
दुर्योधन ने कब किया,…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on September 2, 2021 at 2:30pm — 3 Comments
हमें पाकर भी उन्हें क्या मिलेगा
पल भर की खुशी फिर रोज़ हीं जलेगा
चाहे कहे या ना कहे वो होठों से मगर
ये सिलसिला तो अब रोज़ हीं चलेगा
नही पता उसने ऐसा क्यों किया
हमें जानकर भी अपना दिल क्यों दिया
ज़ख़्म उसे सुकून देते हैं शायद
तभी उसने दर्द से अपना दामन भर लिया
मेरी लाख लानतों के बाद भी
क्यों वो हर रोज़ चला आता है
लगता है उसे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 2, 2021 at 11:00am — 6 Comments
कहो सूरमा! जीत लिए जग?
तुम्हें पता है जीत हार का?
केवल बारूदों के दम पर
फूँक रहे हो धरती सारी
नफरत की लपटों में तुमने
धधकाई करुणा की क्यारी
कितना आतंकित है…
ContinueAdded by आशीष यादव on September 2, 2021 at 1:00am — 5 Comments
आज जब सुबह मैं सैर कर रहा था , तब इक आवाज़ मेरे कानों से टकराई ,साहिब जी नमस्कार ।
मैंने खुद को रोका और उस पर नज़र डाली, आज उसने बहुत सुंदर लाल कमीज़,काली ऐनक और सिर पे टोपी पहनी हुई थी ।
धीरे से उस ने अपनी ट्राई साइकिल मेरे पास लाते हुए कहा,"साहिब जी, आज भोले नाथ का जन्मदिन है ,आज कुछ हो जाए,ये मुझे समझ आ गया था ।"क्योंकि वह जब भी मुझे मिलता, उस को उम्मीद होती कि मैं उसे कुछ पैसे दूं।"
"नहीं भाई, आज शिव रात्रि नहीं, भाई आज तो जन्माष्टमी है ।"
"मैंने उस की ट्राईविलर के…
Added by मोहन बेगोवाल on September 1, 2021 at 5:00pm — 2 Comments
एक दोहा गज़ल - नज़रें -(प्रथम प्रयास )
नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार ।
नज़र नज़र में बिक गया, एक जिस्म सौ बार।
*
नजरों को झूठी लगे, अब नजरों की प्रीत ,
हवस सुवासित अब लगे, नजरों की मनुहार ।
*
नजरों से छुपती नहीं , कभी नज़र की बात ,
नजरें करती हैं सदा, नजरों से व्यापार ।
*
भद्दा लगता है बड़ा ,काजल का शृंगार ,
लुट जाता है जब कभी ,नजरों का संसार ।
*
कह देती है हर नज़र , अन्तस की हर बात ,
कहीं नज़र की जीत है, कहीं नज़र की…
Added by Sushil Sarna on August 31, 2021 at 11:12pm — 7 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
ख़ून की जब तक ज़रूरत थी मेरे चाहा मुझे
बा'द अज़ाँ बस दूध की मक्खी समझ फेंका मुझे
उसने जब मंज़िल की जानिब गामज़न पाया मुझे
तंज़ से मा'मूर नफ़रत की नज़र देखा मुझे
हक़-ब-जानिब बढ़ गए जब ये क़दम रुकते नहीं
मुश्किलों ने बढ़के यूँ तो लाख रोका था मुझे
अपने अहसाँ के 'इवज़ वो कर गया ख़ूँ का हिसाब
यारो …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 31, 2021 at 10:55pm — 2 Comments
पंजाबी साहित्य की प्रथम कवयित्री, निबंधकार, उपन्यासकार, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त, 1919 गुजरांवाला, पंजाब में हुआ था। अपनी रचनाओं में विभिन्न रूपो मे नारी चित्रण करने वाली अमृता प्रीतम के साहित्य संसार की नारी अपनी स्वतंत्रता के प्रति सजग रह्ती हैं।
सामाजिक परंपराओं के जाल को काटकर अपना अस्तित्व गढ़ती हैं। हिंदी भाषा में सरलता, सौंदर्यता से अंतर्मन की भावनाओं को पहुंचाने में कामयाब रहीं। गद्य-पद में समान रूप से ख्याति प्राप्त बहुमुखी प्रतिभा की धनी…
ContinueAdded by babitagupta on August 31, 2021 at 1:30pm — 1 Comment
122 122 122 12
1 तुझे जिसके लहज़े में ताना लगा
मुझे दिल से वो शख़्स सच्चा लगा
2 ये मत पूछ क्या उसमें अच्छा लगा
वो मासूम इक ज़िद्दी बच्चा लगा
3 तू सुन शोर पहले मेरे दिल का फिर
बता क्यों तुझे मैं अकेला लगा
4 बता वास्ता उससे रक्खूँ भी क्यों
मुझे आदमी जब वो झूठा लगा
5 थी कुछ बात या इश्क़ का था सरूर
हरिक चेहरा जो मुझको तेरा लगा
6 मुहब्बत ही की है गुनह तो…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on August 30, 2021 at 12:00pm — 7 Comments
सूरज किरणें देता जग को
नदिया देती निर्मल पानी।
पालन करती युगों-युगों से
धरती ओढ़ चुनरिया धानी।
शीतल छाया देता तरुवर
प्राणवायु यह पवन सुहानी।
फूल चमन को देते खुशबू
परम सार संतों की बानी।
उऋण हुए गुरु विद्या देकर
निर्धन को धन देकर दानी।
कैसे सबका मोल चुकाऊँ?
दीन अकिंचन मैं अज्ञानी।
हे चंडी! दे वर दे मुझको
रार अगर दुश्मन ने ठानी।
मातृ-भूमि के चरणों पर मैं
अर्पण कर दूँ शीश…
Added by Dharmendra Kumar Yadav on August 29, 2021 at 2:38pm — 4 Comments
दोहा मुक्तक :.....
1
मिथ्या मैं की डुगडुगी, मिथ्या मैं के ढोल ।
मिथ्या मैं का आवरण, मिथ्या मीठे बोल ।
मिथ्या जग के कहकहे, मिथ्या सब सम्बंध -
मिथ्या मौसम प्रीत के, मिथ्या प्रीत के कौल ।
............................................................
2
हर लकीर में जिन्दगी, जीती एक विधान ।
मरता है सौ बार तब , जीता है इन्सान ।
रख पाया है वक्त की, वश में कौन लगाम -
श्वास पृष्ठ पर है लिखा, आदि संग अवसान ।
सुशील सरना / 29-8-21
मौलिक…
Added by Sushil Sarna on August 29, 2021 at 10:48am — 4 Comments
1212 1122 1212 112
हैं मुन्तज़िर मेरे अहबाब देखने के लिए ।
जमीं पे उतरेगा महताब देखने के लिए ।।1
न जाने कैसा नशा है तुम्हारी सूरत में ।
सुना है रिन्द हैं बेताब देखने के लिए ।।2
तू अपनी तिश्नगी पे यार आज काबू रख ।
मिलेंगे और भी ज़हराब देखने के लिए ।।3
बहेंगे आप भी दरिया ए अश्क़ में इक दिन ।
अगर यूँ आएंगे शैलाब देखने के लिए ।।4
कुछ इस तरह से ख़ुदा ने नसीब बख़्शा है ।
हमें मिला ही…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2021 at 8:52am — 4 Comments
बह्र-ए-मीर
मुद्दत से वीरान पड़े इस उजड़े खंडर की
अब कौन करे परवाह जहाँ में दीदा-ए-तर की
गलियों में सन्नाटा पसरा शमशानों में शोर
आँखों को उम्मीद नहीं थी ऐसे मंज़र की
पास तुम्हारे बढ़ने लगता है जब कोलाहल
याद बड़ी तब आती है अपने सूने घर की
मिलकर मंज़िल पा लेंगे कब ऐसा बोला था
लेकिन तैयारी करते दोनों एक सफ़र की
अक्सर दरवाजे पे आ 'ब्रज' ने राह निहारी
इक दिन तो चिट्ठी आयेगी मेरे दिलबर की
अन्दर के खालीपन से डर डर के घबरा के
'ब्रज' आया…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:06pm — 6 Comments
वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
*
मथुरा में पर कंस का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
*
बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
*
लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये तेज से, कारागृह के द्वार।४।
*
हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा गेह में, किया कंस से दूर।५।
*
गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
चलो अच्छा हुआ वो अब पता पाने नहीं आते ।
खलिश ये रह गई दिल में सितम ढाने नहीं आते।
मुझे उस पार के लोगों से बस इतनी शिकायत है,
सफर कैसा रहा वो ये भी बतलाने नहीं आते।
तमाशा बन गई है दोस्ती नफरत की दुनिया में,
पुराने यार भी मुश्किल में समझाने नहीं आते।
हमारी बात तो दिलकश तुम्हें लग ही नहीं सकती,
हमें तहज़ीब तो आती है अफसाने नहीं आते ।
झुलस जाती है मेरी सोच अनचाहे ख्यालों से…
ContinueAdded by मनोज अहसास on August 24, 2021 at 11:47pm — 3 Comments
1212 1122 1212 22 / 112
मेरे अपनों का ही खंजर मेरी तलाश में है ।
जिन्हें बनाया था अफसर मेरी तलाश में है ।।
जड़ों को सींच रहा हूँ शुरू से ओ बी ओ की,
नये आए हैं वो चाकर मेरी तलाश में हैं ।
जताते झूूठा वो हक़ जो ग़ज़ल की शोहरत पर,
उन्हीं के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है ।
बहुत गुमान है उनको तो जन्म के शहर का,
नगर का हूँ मैं तो रहबर मेरी तलाश में हैं ।
जहाँ में सच…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 24, 2021 at 7:00pm — 5 Comments
आखिरकार जंगल के पेड़ों की गिनती के उपरांत पक्षियों और पशुओं की, उनकी जाति आधारित गिनती प्रारंभ हुई।कौवे कांव कांव करने लगे कि हम भी संख्या में कम नहीं हैं। गिद्ध अलग ही राग छेड़े हुए थे कि हम लुप्तप्राय हैं तो क्या,हमारी हिस्सेदारी जंगल की चीजों में कम क्यों हो?तीतर -बटेर,गौरैए आदि हर तरह के पक्षी जंगल की चीजों पर अपना हक जमाने के लिए बेताबी से अपने अपने तर्क रखते।कोई संख्या,तो कोई समझ पर जोर देता।कोई मुफ्तखोरी के चलते आलसी हो चुके परिंदों के हाथ पांख चलाने,खाना चुगने की जुगत पर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on August 24, 2021 at 8:00am — 5 Comments
झेलती मझधार अपनी जिन्दगी
कब लगेगी पार अपनी जिन्दगी ।१।
*
आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए
खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।
*
शब्द इस में है न कोई हर्ष का
बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।
*
यूँ कमी उल्लास की होती न फिर
होती गर त्यौहार अपनी जिन्दगी।४।
*
हम ने ही जन्जीर बाँधी पाँव को
कैसे ले रफ्तार अपनी जिन्दगी ।५।
*
सोच मत आकर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments
झाड़ू -पोंछा कर रही
अन्तर में अनुराग
स्वस्थ रहें सब, उल्लसित
हृदय भैरवी राग
दाल, सब्जियाँ पक रहीं
उफन रही है प्रीत
क्यों ना खा सब तृप्त हों?
जब पवित्र मन मीत
चकले पर रोटी बिली
तवे पकाया प्यार
उमग खिलाती प्रेम से
गृहणी नेह सम्हार
बरतन हैं जब मँज रहे
सृजन हो रहा गीत
ताल बद्ध , लय बद्ध हो
बजता नव संगीत
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 22, 2021 at 8:30pm — 6 Comments
2122 - 1122 - 1122 - 22/112
काश होता न जो तक़दीर का मारा मैं भी
देता इफ़लास-ज़दाओं को सहारा मैं भी
रौशनी मेरे सियह-ख़ाने में रहती हर शब
टिमटिमाता जो कोई होता सितारा मैं भी
वो निगाहों में मिरी जैसे बसे रहते हैं
काश नज़रों में रहूँ बनके नज़ारा मैं भी
वो भी मेरी ही तरह दर्द सहे आहें भरे
यूँ ही तन्हा न रहूँ इश्क़ का मारा मैं भी
जिस तरह क़ैस ने सहरा में गुज़ारे थे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 22, 2021 at 5:00pm — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |