याद तुम्हारी क्या कहूँ, यूँ करती तल्लीन।
घर, दफ़्तर, दुनिया, ख़ुदी, सब कुछ लेती छीन।
जल बिन मछली से कभी, मेरी तुलना ही न।
मैं आजीवन तड़पता, कुछ पल तड़पी मीन।
प्रेम पहेली एक है, हल हैं किन्तु अनेक।
दिल नौसिखिया खोजता, इनमें से बस…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 21, 2021 at 7:00pm — 5 Comments
सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
*
हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
*
पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
*
बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments
2122 1212 22/112
1
उसका जब मेरी कू में आना हो
उठ चुका ग़म का शामियाना हो
2
मिल रहा प्यार जब पुराना हो
लब प तब गीत आशिक़ाना हो
3
हिज्र की रात में वो आए जब
होटों पर वस्ल का तराना हो
4
ऐ ख़ुदा हर गरीब के घर में
पेट भरने को आब ओ दाना हो
5
टूटी कश्ती में बैठ कर कैसे
उस किनारे प अपना जाना हो
6
कह रहा है मरीज़-ए-इश्क़ मुझे
उसका दिल मेरा आशियाना…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on August 18, 2021 at 1:20pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२
होंठ हँसते हैं तो मन में पीर है
जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।
*
जो सिखाता था कलम ही थामना
वो भी हाथों में लिए शमशीर है।२।
*
झूठ को आजाद रक्खा नित गया
सच के पाँवों में पड़ी जंजीर है।३।
*
हाथ जन के वो न आयेगा कभी
उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।
*
रास नेताओं से करती है बहुत
रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।
*
इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं
झूठ की भी क्या गजब तासीर है।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments
221-1221-1221-122
बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी
पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)
माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने
रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)
मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ
कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)
है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा
था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)
ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे
हाकिम की उसी पर ही इनायत भी…
Added by सालिक गणवीर on August 16, 2021 at 8:37pm — 15 Comments
राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रहरी और मणिकर्णिका की वीरता को घर-घर पहुंचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की सुप्रसिद्ध कविता झांसी की रानी की पंक्तियाँ
'बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी...
'सुप्त जनता के दिलों में आजादी का अलाव जगाने आयी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियाँ सुभद्रा जी द्वारा रचित कई कविताओं से ज्यादा ख्याति प्राप्त हैं।
नौ साल की उम्र में पहली कविता ’नीम’ लिखने वाली सुभद्रा जी का…
Added by babitagupta on August 16, 2021 at 2:00pm — 4 Comments
आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं.....
महात्मा गांधी जी ने कहा, आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के बिना स्वराज्य प्राप्ति असंभव हैं। शारीरिक-मानसिक रूप से कमजोर समझने वाले लोगों के खिलाफ जाकर महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ा।और महिलाओं ने लोगों के कहने की परवाह किए बिना अपने आपको तौले मानसिक दृढ़ता के दस्तावेज,संघर्ष के संवेदनशील चित्रण पर डर को खारिज करते हुये समय के फलक पर अपनी कहानी लिख दी।पूर्वाग्रही सोच में जकड़े नकारात्मक…
Added by babitagupta on August 15, 2021 at 12:06am — 1 Comment
प्राणों का कर गये जो परिदान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर लो
आज़ादी का ये दिन है ख़ुशियाँ रहें मुबारक
मर कर भी दे गये जो ज़िंदगी तुम्हें मुबारक
सरहद पे रंग भरते वो जवान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर लो
अक्सर घिरे रहे जो बे-हिसाब मुश्किलों में
होकर शहीद भी वो ज़िन्दा हैं धड़कनों में
उन सच्चे सैनिकों का प्रतिदान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 14, 2021 at 3:12pm — 2 Comments
चुनकर संसद भेजते, उठें उचित सवाल।
साँसद संसद रोक के, करते वहाँ धमाल॥
निज कर्मों के साथ ही, याद रहे प्रभु नाम।
ईश कृपा जब तो मिले, बनते सारे काम॥
करे कमाई जिस तरह, वैसा रहे प्रभाव ।
अर्जित धन अनुचित सदा, देता रहता घाव॥
न व्यक्तित्व हो एक सा, अंतर होता मीत।
विचार जिससे जब मिले, जग जाती तब प्रीत॥
दो छोटों की बात पर, आप हमेशा…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on August 13, 2021 at 8:30pm — 5 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे
व्यवहार करते करते ही सावन गुजर गया।३।
*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन
तैय्यार करते …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments
2122 2122 212
1
अपने रिश्ते की यही तस्वीर है
उसका मैं रांझा वो मेरी हीर है
2
पाँव में रस्मों की जो ज़ंजीर है
मेरे दिल को देती हर पल पीर है
3
जाने किसकी शह में आ कर यार ने
सामने कर दी मेरे शमशीर है
4
हाथ की तहरीर पढ़कर तो बता
रूठी क्यों मुझसे मेरी तक़दीर है
5
होगी तेरे पास दौलत लाखों की
अपनी तो तालीम ही जागीर है
6
अब छिपाने से भी छिप सकती नहीं
आपकी आँखों में जो…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on August 8, 2021 at 12:30pm — 4 Comments
रहगुज़र को मेरी कारवाँ दे गया....
212 212 212 212
रहगुज़र को मेरी कारवाँ दे गया
वो खुदी को अभी पासवाँ दे गया
मुफलिसी वो बुरा ख्वाब थी ज़िन्दगी
था खुदा जात वो कहकशाँ दे गया
आँख भर आए है याद कर के उसे
वो खुदा था मुझे बागवाँ दे गया
ज़िन्दगी को रज़ा की जबाँ दे गया
रास्ता एक था दो जहाँ दे गया
जो बुरा ख्वाब होता मुझे नींद में
वो बदल कर नई दास्ताँ दे…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 7, 2021 at 6:00pm — No Comments
2122 - 1122 - 112/22
(बह्र - रमल मुसद्दस मख़्बून मह्ज़ूफ़)
सर ये जिस दर न झुके दर है कहाँ
हर कहीं पर जो झुके सर है कहाँ
हौसलों से जो भरे ऊँची उड़ान
गिर के मरने का उसे डर है कहाँ
अम्न-ओ-इन्साफ़ जो राइज कर दे
आज के दौर का 'हैदर' है कहाँ
देखते हैं यूँ हिक़ारत से मुझे
हम कहाँ और ये अहक़र है कहाँ
यूँ अज़ीज़ों से किनाराकश हूँ
मुझसे पूछेंगे तेरा घर है कहाँ
फिर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 7, 2021 at 3:41pm — 3 Comments
तुम्हारी कुर्सी का जब है यही आधार नेता जी
कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
*
सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
लगे करने में कुनबे का सदा अभिसार नेता जी।२।
*
जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
जताते क्यों नहीं उस का कभी आभार नेता जी।३।
*
बने केवल धनी का ही सहारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 5:30am — 14 Comments
221-1221-1221-122
ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते
मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते (1)
खोदा था कुआँ सहरा में हमने कभी मिल कर
कुछ लोग घड़े हमको वाँ भरने नहीं देते (2)
इक उम्र गुज़ारी है यहाँ मैंने सफ़र में
अब पाँव भी मंज़िल पे ठहरने नहीं देते (3)
उसने जो कहा है तो वो कर के ही रहेगा
वादे से उसूल उसको मुकरने नहीं देते (4)
छाता है कभी ज़ीस्त में जब ग़म का अँधेरा
डरता हूँ मगर दोस्त सिहरने…
Added by सालिक गणवीर on August 6, 2021 at 11:01pm — 8 Comments
2122, 2122, 2122
1)कर लिया हमने ख़सारा दो मिनट में
हो गया दिल ये पराया दो मिनट में
2)उम्र उसकी राह तकते कट गई है
आ रहा हूँ कह गया था दो मिनट में
3)थी उसे जल्दी तो मैं भी कुछ न बोला
हाल उसको क्या सुनाता दो मिनट में
4)जिस्म कैसे साथ दे अब उम्र भर तक
पक रहा है आज खाना दो मिनट में
5)होती है नाज़ुक बहुत रिश्तों की डोरी
टूट जाता है भरोसा दो मिनट…
Added by Md. Anis arman on August 5, 2021 at 10:12am — 10 Comments
मन पर कुछ दोहे : ......
मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।
मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।
मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।
मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।।
मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । ।
मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।
मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर । ।
मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।
मन में…
Added by Sushil Sarna on August 3, 2021 at 9:28pm — 4 Comments
2122 1212 22 / 112
आज सोया है शहर घर कर के !
खूब रोया खुदा महर कर के !!
क्या बुरा हो गया सनम मुझ से
देखता कब है वो नज़र कर के !
ज़हरीला बन गया हरेक रिश्ता याँ
खत्म हो हर अजाब मर कर के !
हम हैं मारे उसी की बेरुखी के
जिसको देखा नज़र वो भर कर के !
कोई है बात जो लगी दिल को
मिलता कोई नहीं खबर कर के !
क्या करू मिल के ज़िन्दगी से मैं
खौलता खून है …
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 3, 2021 at 12:46am — 2 Comments
यूँ तो अपना था वो कहने को
पर वो अपना हो ऐसा एहसास कहाँ,
उनके दिल में उतर कर देखा जो ख़ुद को
तो जाना उनके दिल में अपना ठौर कहाँ,
ख़ुद तजुर्बा ये मैने है पाया
इस दुनिया में वफ़ा का मोल कहाँ,
झूठे वादों पर चलती है दुनिया
सच का तो अब है मौन यहाँ,
यूँ तो अपना था वो कहने को
पर वो भी अपना हो ऐसा एहसास…
Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 2, 2021 at 11:30pm — 12 Comments
ग़ज़ल
1212 1122 1212 22 / 112
यही समाज की उलझन है क्या किया जाए
कि भाई भाई का दुश्मन है क्या किया जाए
हर एक शख़्स गरानी के दौर में देखो
ख़ुद अपने आप से बदज़न है क्या किया जाए
सभी ये कहते हैं यारो हम आशिक़ों के लिये
ये शब अज़ल ही से बैरन है क्या किया जाए
सफ़र प जाने से पहले ये सोचना है हमें
हर एक गाम प रहज़न है क्या किया जाए
जो तू नहीं है तो…
ContinueAdded by Samar kabeer on August 2, 2021 at 3:59pm — 23 Comments
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