एक विरह गीत
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रस्सा-कशी खेल था जीवन
एक तरफ का रस्सा छोड़ा |
इतनी भी क्या जल्दी थी जो
मीत अचानक नाता तोड़ा |
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जीवन नदिया अपनी धुन में
अठखेली करती बहती थी |
और खुशी भी इस आँगन में
अपनी मर्जी से रहती थी |
सब कुछ अपने काबू में था
कैसे रहना क्या करना है,
हाँ थोड़े से दुख के झटके
कभी ज़िंदगी भी सहती थी |
लेकिन तुम थे साथ हमेशा
हँस हँस कर सह ली हर…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 25, 2019 at 1:30pm — 6 Comments
एक गीत प्रीत का
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क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ?
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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शुष्क अधर क्यों बाल बिखर कर अलसाये हैं शानों पर ?
काजल क्रोधित होकर पिघला जा पहुँचा है कानों पर |
मीत कपोलों पर जो रहती वह गायब है अरुणाई |
ऐसा लगता है ज्यों खो दी चंद पलों में तरुणाई…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 20, 2019 at 9:00am — 4 Comments
किसी के प्यार की ख़ातिर हमारा दिल तरसे
घटा-ए-इश्क़ तो छाई न जाने कब बरसे
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न तीर दिल पे चला यार ज़ख़्म गर देना
कि इस पे ज़ख़्म हुआ करते जब गुल-ए-तर से
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क़दम बढ़ाना भी मुश्किल है जानिब-ए-मंज़िल
मिला फ़रेब हमें इस क़दर है रहबर से
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करेगा चूर अगर ज़ुल्म की हदें टूटें
उमीद और है क्या आईने को पत्थर से
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ख़ुदाया देख ज़रा भी किसी को, दर्द नहीं
किसी के दर्द बड़े हो गए समंदर से
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लकीरें हाथों की जिसने बनाई मेहनत से
उसे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 18, 2019 at 1:00am — 2 Comments
मिटाने फासले तुझको अगर हैं गुफ़्तगू कर ले
सियेगा ज़ख्म कोई सोच मत ख़ुद ही रफ़ू कर ले
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मुक़ाबिल ख़ौफ़-ए-ग़म होजा अगर पीछा छुड़ाना है
ग़मों से भाग मत इक बार तू रुख़ रूबरू कर ले
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नहीं महफ़ूज़ गुलशन में कली कच्ची अभी तक भी
बचा है कौन अब उसकी जो फ़िक्र-ए-आबरू कर ले
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कोई तो दर्द है दिल में लबों पर आ नहीं पाता …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 26, 2019 at 5:30pm — 2 Comments
बीच समंदर कश्ती छोड़े धोका गर मल्लाह करे
मंज़िल कैसे ढूंढोगे जब रहबर ही गुमराह करे
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आज हुआ है इंसानों में प्यार मुहब्बत क्यों ग़ायब
घर घर की चर्चा है अपने अपनों से ही डाह करे
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पानी मांग नहीं पाता है साँपों का काटा जैसे
ऐसा काम भयानक अक़्सर मज़्लूमों की आह करे
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आज अक़ीदत और इबादत का जज़्बा गुम सा देखा
दिल में जब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 22, 2019 at 8:00pm — 2 Comments
एक गीत प्रीत का
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"मुहब्बत की नहीं मुझसे " , प्रिये ! तुम झूठ मत बोलो |
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लता के सम लिपट जाना , नखों से पीठ खुजलाना |
अधर से चूम लेना मुख,नयन से कुछ कहा जाना |
कभी पहना दिया हमदम,गले में हार बाहों का
अचानक गोद में लेकर,तुम्हारा केश सहलाना |
हथेली से छुपा लेना, तुम्हारा नैन को मेरे
इशारे प्यार के थे या, शरारत भेद यह खोलो |
"मुहब्बत की नहीं मुझसे " , प्रिये ! तुम झूठ मत बोलो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 20, 2019 at 4:00pm — 8 Comments
(११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ )
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ये हुआ है कैसा जहाँ खुदा यहाँ पुरख़तर हुई ज़िंदगी
न किसी को ग़ैर पे है यक़ीं न मुक़ीम अब है यहाँ ख़ुशी
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कहीं रंज़िशें कहीं साज़िशें कहीं बंदिशें कहीं गर्दिशें
कहाँ जा रहा है बता ख़ुदा ये नए ज़माने का आदमी
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कहीं तल्ख़ियों का शिकार है कहीं मुफ़्लिसी की वो मार है
मुझे शक है अब ये बशर कभी हो रहेगा ज़ीस्त में शाद भी
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कहीं वहशतों का निज़ाम है कहीं दहशतें खुले-आम हैं
मिले आदमी से यूँ आदमी मिले अजनबी से जूँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 30, 2019 at 2:30am — 1 Comment
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
ग़म को क़रीब से मियाँ देखा है इसलिए
अपना ही दर्द ग़ैर का लगता है इसलिए'
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जब और कोई राह न सूझे ग़रीब को
रस्ता हुज़ूर ज़ुर्म का चुनता है इसलिए
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बाज़ार के उसूल हुए लागू इश्क़ पर
बिकता है ख़ूब इन दिनों सस्ता है इसलिए
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आसाँ न दरकिनार उसे करना ज़ीस्त से
दिल का हुज़ूर आपके टुकड़ा है इसलिए
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उनके ज़मीर के हुए चर्चे जहान में
मिट्टी के भाव में…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 28, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
सुकून-ओ-अम्न पर कसनी ज़िमाम अच्छी नहीं हरगिज़
अगर पैहम है तकलीफ़-ए-अवाम अच्छी नहीं हरगिज़
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निज़ामत देखती रहती वतन में क़त्ल-ओ-गारत क्यों
नज़रअंदाज़ की खू-ए-निज़ाम अच्छी नहीं हरगिज़
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न रोके तिफ़्ल की परवाज़ कोई भी ज़माने में
कभी सपने के घोड़े पर लगाम अच्छी नहीं हरगिज़
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किसी को हक़ नहीं है ये कि ले क़ानून हाथों में
मगर सूरत वतन में है ये आम अच्छी नहीं हरगिज़
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क़ज़ा को घर बुलाना है तुम्हें तो ख़ूब पी लेना
वगरना मय है पक्की या है ख़ाम अच्छी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 27, 2019 at 9:15pm — 5 Comments
हाय क्या हयात में दिखाए रंग प्यार भी
इस चमन में साथ साथ फूल भी हैं ख़ार भी
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देखते बदलते रंग मौसमों के इश्क़ में
हिज्र की ख़िज़ाँ कभी विसाल की बहार भी
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इंतज़ार की घड़ी नसीब ही नहीं जिसे
क्या पता उसे है चीज़ लुत्फ़-ए-इंतिज़ार भी
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कीजिये सुकून चैन की न बात इश्क़ में
इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी
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चश्म इश्क़ में ज़ुबान का हुआ करे बदल
जो शरर बने कभी कभी है आबशार भी
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प्यार एक फ़लसफ़ा है और नैमत-ए-ख़ुदा
रंज़ है इसे बनाते लोग…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 24, 2019 at 1:30pm — 4 Comments
एक गीत
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मन के आँगन में फूटा जो
प्रीतांकुर नवजात |
खाद भरोसे की देकर अब
सींच इसे दिन-रात |
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ध्यान रहे यह इस जीवन का
बीत गया बचपन |
आतुर है दस्तक देने को
अब मादक यौवन |
उर-आँगन में जगमग हर पल
सपनों के दीपक
और रही झकझोर हृदय को
यह बढ़ती धड़कन |
वयः संधि का काल हृदय में
भावों का उत्पात |
खाद भरोसे की देकर अब
सींच इसे दिन-रात…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 23, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
ताज़ा गर दिल टूटा है तो वक़्त ज़रा दीजै
क़ायम रखना रिश्ता है तो वक़्त ज़रा दीजै
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सिर्फ़ शनासाई से होता प्यार कहाँ मुमकिन
इश्क़ मुक़म्मल करना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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पहले के दिल के ज़ख़्मों का भरना है बाक़ी
ज़ख़्म नया गर देना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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ख़्वाब कभी क्या बुनने से ही होता है कामिल
पूरा करना सपना है तो वक़्त ज़रा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 13, 2019 at 1:30am — 2 Comments
कैसे होते हैं फ़ना प्यार निभाने के लिए
छोड़ जाऊंगा नज़ीर ऐसी ज़माने के लिए
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रूह का हुस्न जिसे दिखता वही आशिक़ है
जिस्म का हुस्न तो होता है लुभाने के लिए
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दरमियाँ गाँठ दिलों के जो पड़ी कब सुलझी
कौन दीवार उठाता है गिराने के लिए
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अच्छे लोगों की कमी रहती है क्या जन्नत में
क्यों ख़ुदा उनको है तैयार बुलाने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 8, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
(१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ )
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वफ़ा ढूंढते हो जफ़ा के नगर में यहाँ पर वफ़ा अब बची ही कहाँ है
बुझी है वफ़ा की मशालें दिलों से वफ़ा का नहीं कोई नाम-ओ-निशाँ है
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यहाँ राज करते हवस के पुजारी किसी की नहीं है मुहब्बत से यारी
इधर बेवफ़ाओं का लगता है मेला कोई बावफ़ा अब न मिलता यहाँ है
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इधर पैसा फेंको दिखेगा तमाशा अगर जेब ख़ाली मिलेगी हताशा
इधर है न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 31, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
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रंज-ओ-ग़म हो न अगर आँखें कभी रोती क्या ?
बेसबब साहिल-ए-मिज़गाँ पे नमी होती क्या ?
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ज़ख़्म ख़ुद साफ़ करें और लगाएं मरहम
ज़ख़्म क़ुदरत किसी के ज़िंदगी में धोती क्या ?
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चन्द लोगों के नसीबों में लिखी है ग़ुरबत
ज़ीस्त सबकी ग़मों का बोझ कभी ढोती क्या ?
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बाग़बाँ फ़र्ज़ निभाता जो तू मुस्तैदी से
तो कली बाग़ की अस्मत को कभी खोती क्या ?
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क्यों किनारे पे कई बार सफ़ीने डूबे
इस तरह रब कभी क़िस्मत किसी की…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 28, 2019 at 12:30am — 4 Comments
कितना अफ़्कार में मश्ग़ूल हर इक इन्साँ है
कोई बेफ़िक्र अगर है तो सियासतदाँ है
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ख़ाक उड़ती है जिधर देखूँ उधर सहरा-सी
इस क़दर दिल का नगर आज मेरा वीराँ है
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बात गुस्से में कही फिर से ज़रा ग़ौर तो कर
"जी ले तू प्यार के बिन " कहना बहुत आसाँ है
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कोई अफ़सोस नहीं गर मेरी रुसवाई का
शर्म से क्यों हुई ख़म यार तेरी मिज़गाँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 26, 2019 at 9:30pm — 2 Comments
(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )
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मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है
उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है
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किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर
ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है
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किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई
जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 13, 2019 at 1:00am — 3 Comments
मौज ख़ुद आपको साहिल पे लगाने से रही
और क़ुदरत भी कोई जादू दिखाने से रही
***
हौसला आपका दे साथ करम हो रब का
फिर किसी सिम्त बला कोई सताने से रही
***
हो सके जितना हक़ीक़त ये समझ लो सारे
मौत मर्ज़ी से कभी आपकी आने से रही
***
इम्तिहाँ रोज़ ही देने हैं यहाँ जीने को
रोने धोने से तरस ज़िंदगी खाने से रही
***
हो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
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मिलती अवाम को ख़ुशी की जलपरी नहीं
रुख़्सत अगर वतन से हुई भुखमरी नहीं
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उल्फ़त जनाब होती नहीं है रियाज़ियात
चलती है इश्क़ में कोई दानिशवरी * नहीं
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उम्र-ए-ख़िज़ाँ में आप जतन कुछ भी कीजिये
नक्श-ओ-निग़ार-ए-रुख़ की कोई इस्तरी नहीं
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बरसों से काटती है ग़रीबी में रोज़-ओ-शब
कैसी अवाम है कहे खोटी खरी नहीं
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घर में न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 26, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 23, 2019 at 7:00pm — 6 Comments
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