===========ग़ज़ल===========
खामोश लब पलकें झुकीं हालात देखिये
इस मौन में सिमटे हुए जज्बात देखिये
हमको मिली जो इश्क की सौगात देखिए
हर सुब्ह रोशन चाँदनी है रात देखिये
इंसानियत से बढ़ के क्या मजहब हुआ कोई
फिर भी वो हमसे पूछते हैं जात देखिये
पंजा कमल हाथी हथोडा सारे हो जमा
समझा रहे हैं आपकी औकात देखिये
पल पल मे बदले रंग वो माहौल देख के
गिरगिट के जैसे हो गयी हर बात देखिए
सब “दीप” मांगे बिन मिला हमको जुगाड़…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 2, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2013 at 11:00pm — 45 Comments
ग़ज़ल |
मेरा मज़हब यही सिखाता है !! |
सारी दुनिया से मेरा… |
Added by SALIM RAZA REWA on March 1, 2013 at 9:17pm — 6 Comments
चार दशकों
के सफर में
चढ़ लिए
मंजिल कई
कुछ ने सांकल
जड़ दिए
बन गए
घुंघरू कई
रूबरू हूं
धूप से अब
चांदनी
मिलती कहां ?
अक्स मेरा
घुल गया है
सब्ज कर
सारा जहां
(मौलिक रचना)
Added by राजेश 'मृदु' on March 1, 2013 at 6:15pm — 9 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |
यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
पर सांसत में जान, पडा इटली से पाला |…
Added by रविकर on March 1, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
अब रंग रंग के फूल खिले हैं,
मेहनत कर रहा माली |
बरसों से था आस लगाये,
रब कब महकेगी डाली |
तड़के उठ कर बाग़ सजाये,
आ जाती है घर वाली |
हरा भरा है बाग़ सुहावन,
देख मनाएं खुशिहाली…
ContinueAdded by Shyam Narain Verma on March 1, 2013 at 5:30pm — 5 Comments
मौलिक - अप्रकाशित
खर्राटों के बीच में, सोया आँखें मीच |
पता नहीं किस तरफ से, देह दबाया नीच |
देह दबाया नीच, सींच कर खेत हटा था-
मग में बीचो बीच, सिंह दमदार डटा था |…
Added by रविकर on March 1, 2013 at 5:15pm — 5 Comments
बजट 2013
लो आ ही गया नवीन बजट
कुछ खिले चेहरे, कुछ गए लटक
शक्कर महंगी, पत्ती सस्ती
बजट हुआ चुनावी कश्ती
गाड़ी लेना है आसान
बढ़ा दिए पेट्रोल के दाम
मँहगा हुआ रेल सफ़र
महगाई से झुकी कमर
चढ़ा सीमेंट उतरा लोहा
मँहगा हो गया कोकोकोला
शून्य व्याज पर मिलेगा लौन
सबके हाथ मै होगा फोन
सस्ती गैस महँगा राशन
बचा रहे अपना…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on March 1, 2013 at 3:30pm — 4 Comments
''सोनू आज तुमने फिर आने में देर कर दी ,देखो सारे बर्तन जूठे पड़ें है ,सारा घर फैला पड़ा है ,कितना काम है ।''मीना ने सोनू के घर के अंदर दाखिल होते ही बोलना शुरू कर दिया ,लेकिन सोनू चुपचाप आँखे झुकाए किचेन में जा कर बर्तन मांजने लगी ,तभी मीना ने उसके मुख की ओर ध्यान से देखा ,उसका पूरा मुहं सूज रहा था ,उसकी बाहों और गर्दन पर भी लाल नीले निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे । ''आज फिर अपने आदमी से पिट कर आई है ''?उन निशानों को देखते हुए मीना ने पूछा ,परन्तु सोनू ने कोई उत्तर नही दिया ,नजरें…
ContinueAdded by Rekha Joshi on March 1, 2013 at 3:00pm — 15 Comments
सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||
नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?
मिटा डाले सभी नगमे…
Added by Manoj Nautiyal on March 1, 2013 at 2:00pm — 8 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह ।
तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।
डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।
जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।
धर्म…
Added by रविकर on March 1, 2013 at 10:45am — 22 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 1, 2013 at 10:38am — 9 Comments
कभी चाह थी बहुत दिल मे
कि छू लूँ मैं भी बढ़ा के हाथ
मिट्टी,हवा,पानी इन सब को
पीछे छोड़ शून्य को
जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की
थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की
जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी
जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी
फिर घेरा ऐसा बादलों ने निराशा के
खुद से बातें करती,हंसती,रोती,बावली
सी, ना चाह रही जीने की ना…
Added by Meena Pathak on February 28, 2013 at 8:30pm — 21 Comments
झूठे वचन हैं जिसके ,भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ ,नेता उसका नाम !!
नेता उसका नाम,जो लूटकर ही खाये !
बेचकर शर्म लाज,स्वयं को सही बताये !!
दिखता बंदरबाट ,तो जनता क्यूँ न रूठे !
नहीं रहा विश्वास ,सभी नेता है झूठे!!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by ram shiromani pathak on February 28, 2013 at 8:27pm — 9 Comments
तुम अविराम हृदय में
गहरे पैठे जाते हो
कैसे रोकूं तुमको कि
जाने क्या कर जाते हो
तुमसा दूजा कौन जगत में
जिसका मैं विश्वास करूं
पर तुम हो मेरे मन में…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 28, 2013 at 8:17pm — 18 Comments
मैं प्रेम हूँ
तुम भी तो प्रेम ही हो
प्रेम से हट कर
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में
हर जन्म में तुमसे
मिलना हुआ
लेकिन मिल के भी मेल
ना हो सका
प्रेम फिर भी रहा
तुम में और मुझ में भी
चलते जा रहें है
समानांतर रेखाओं की तरह
साथ हो कर भी साथ…
ContinueAdded by upasna siag on February 28, 2013 at 3:30pm — 17 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on February 28, 2013 at 12:49pm — 10 Comments
अभिचार सा
करता
छिड़कता जल
चला था,
शून्य पथ
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी
बेहद सुरत
कुछ धुरंधर
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी
ढह ना पाई
रोशनी पर
ना हुई
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शपथ
Added by राजेश 'मृदु' on February 28, 2013 at 12:31pm — 9 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 28, 2013 at 10:11am — 18 Comments
कुछ चट-पटॆ सॆर ...मॆरॆ मौला
मॆरी बद्दुआ मॆं तासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला,
इस कुर्सी कॊ बबासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला !!१!!
ना चल सकॆ न बैठ पायॆ,सलीकॆ सॆ कभी,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
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