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ग़ज़ल

===========ग़ज़ल===========



खामोश लब पलकें झुकीं हालात देखिये

इस मौन में सिमटे हुए जज्बात देखिये



हमको मिली जो इश्क की सौगात देखिए

हर सुब्ह रोशन चाँदनी है रात देखिये



इंसानियत से बढ़ के क्या मजहब हुआ कोई

फिर भी वो हमसे पूछते हैं जात देखिये



पंजा कमल हाथी हथोडा सारे हो जमा

समझा रहे हैं आपकी औकात देखिये



पल पल मे बदले रंग वो माहौल देख के

गिरगिट के जैसे हो गयी हर बात देखिए



सब “दीप” मांगे बिन मिला हमको जुगाड़…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 2, 2013 at 12:00pm — 9 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : ईलाज / गणेश जी बागी

लघुकथा : ईलाज
                  न दिनों मेरी नियुक्ति सुदूर जिले में थी । घर पर छुट्टियाँ बिता कर वापस ड्यूटी पर जा रहा था । आने जाने हेतु एकमात्र साधन ट्रेन ही थी । छोटी लाइन की पैसेंजर ट्रेन से यात्रा करनी पड़ती थी । जाड़े का मौसम था । रात 11 वाली पैसेंजर ट्रेन मिली थी । भीड़ बहुत…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2013 at 11:00pm — 45 Comments

GAZAL-मेरा मज़हब यही सिखाता है !! SALIM RAZA REWA

                   ग़ज़ल 
मेरा  मज़हब  यही  सिखाता है !!
सारी  दुनिया  से    मेरा…
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Added by SALIM RAZA REWA on March 1, 2013 at 9:17pm — 6 Comments

सब्‍ज कर सारा जहां (छोटी सी कविता/राजेश कुमार झा)

चार दशकों
के सफर में
चढ़ लिए
मंजिल कई
कुछ ने सांकल
जड़ दिए
बन गए
घुंघरू कई
रूबरू हूं
धूप से अब
चांदनी
मिलती कहां ?
अक्‍स मेरा
घुल गया है
सब्‍ज कर
सारा जहां

(मौलिक रचना)

Added by राजेश 'मृदु' on March 1, 2013 at 6:15pm — 9 Comments

जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना-

मौलिक / अप्रकाशित



जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |

पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |



यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |

पर सांसत में जान, पडा इटली से पाला |…



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Added by रविकर on March 1, 2013 at 5:30pm — 9 Comments

नसीब के मारे |

अब रंग रंग के फूल खिले हैं,

मेहनत कर रहा  माली |

बरसों से था आस लगाये,

रब कब महकेगी डाली |

तड़के उठ कर  बाग़ सजाये,

आ जाती है  घर वाली |

हरा भरा है  बाग़ सुहावन,

देख मनाएं  खुशिहाली…

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Added by Shyam Narain Verma on March 1, 2013 at 5:30pm — 5 Comments

हास-परहास :मग में बीचो बीच, सिंह दमदार डटा था

मौलिक - अप्रकाशित

खर्राटों के बीच में, सोया आँखें मीच |

पता नहीं किस तरफ से, देह दबाया नीच |



देह दबाया नीच, सींच कर खेत हटा था-

मग में बीचो बीच, सिंह दमदार डटा था |…

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Added by रविकर on March 1, 2013 at 5:15pm — 5 Comments

बजट 2013

        बजट  2013

लो आ ही गया नवीन बजट

कुछ खिले चेहरे, कुछ गए लटक

शक्कर महंगी, पत्ती सस्ती

बजट हुआ  चुनावी कश्ती

गाड़ी लेना है आसान

बढ़ा दिए पेट्रोल के दाम  

मँहगा हुआ रेल सफ़र

महगाई से झुकी कमर

चढ़ा सीमेंट उतरा लोहा

मँहगा हो गया कोकोकोला

शून्य व्याज पर मिलेगा लौन

सबके हाथ मै होगा फोन

सस्ती गैस महँगा राशन

बचा रहे अपना…

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Added by Dr.Ajay Khare on March 1, 2013 at 3:30pm — 4 Comments

पति परमेश्वर[लघु कथा ]

''सोनू आज तुमने फिर आने में  देर कर दी ,देखो सारे बर्तन जूठे पड़ें है ,सारा घर फैला पड़ा है ,कितना काम है ।''मीना ने सोनू के घर के अंदर दाखिल होते ही बोलना शुरू कर दिया ,लेकिन  सोनू चुपचाप आँखे झुकाए किचेन में जा कर बर्तन मांजने लगी ,तभी मीना ने उसके मुख की ओर ध्यान से देखा ,उसका पूरा मुहं सूज रहा था ,उसकी बाहों और गर्दन पर भी लाल नीले  निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे । ''आज फिर अपने आदमी से पिट कर आई है ''?उन निशानों को देखते हुए मीना ने पूछा ,परन्तु सोनू ने कोई उत्तर नही दिया ,नजरें…

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Added by Rekha Joshi on March 1, 2013 at 3:00pm — 15 Comments

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में

जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?

मिटा डाले सभी नगमे…

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Added by Manoj Nautiyal on March 1, 2013 at 2:00pm — 8 Comments

जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया-

 

मौलिक / अप्रकाशित

करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह ।

तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।

डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।

जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।

धर्म…

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Added by रविकर on March 1, 2013 at 10:45am — 22 Comments

गले में फिर कुछ अटक गया

कहनी होती है जो बात

कह नहीं पाते

संकोच उठता है

मन में डर लगता है

कहीं शब्द रचना भूल जाएँ

बाहर निकलते निकलते शब्द

अपना रास्ता भूल जाएँ

बात कोई खास नहीं होती

साधारण शब्द होते हैं

पर पेट से उठते हैं और

गले में अटक जाते हैं

फिर कोशिश होती है

बाहर निकालने की

नये शब्द निर्माण कर

फिर कोई नई अङचन

पैदा हो जाती है

बहुत बार कोशिशें होती हैं

हर बार नाकाम होता हूँ

अबकी बार दिल कङा किया

जो बात कहनी है

वो कहके… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 1, 2013 at 10:38am — 9 Comments

तुमसे मिलने का असर है मुझ पर --- मीना पाठक

कभी चाह थी बहुत दिल मे 

कि छू लूँ मैं भी बढ़ा के हाथ 

मिट्टी,हवा,पानी इन सब को 

पीछे छोड़ शून्य को 

जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की

थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की 

जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी 

जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी 



फिर घेरा ऐसा बादलों ने निराशा के 

खुद से बातें करती,हंसती,रोती,बावली 

सी, ना चाह रही जीने की ना…

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Added by Meena Pathak on February 28, 2013 at 8:30pm — 21 Comments

"नेता जी "

झूठे वचन हैं जिसके ,भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ ,नेता उसका नाम !!


नेता उसका नाम,जो लूटकर ही खाये !
बेचकर शर्म लाज,स्वयं को सही बताये !!


दिखता बंदरबाट ,तो जनता क्यूँ न रूठे !
नहीं रहा विश्वास ,सभी नेता है झूठे!!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
(मौलिक/अप्रकाशित )

Added by ram shiromani pathak on February 28, 2013 at 8:27pm — 9 Comments

तुम एक धारा

तुम अविराम हृदय में

गहरे पैठे जाते हो

कैसे रोकूं तुमको कि

जाने क्या कर जाते हो

 

तुमसा दूजा कौन जगत में

जिसका मैं विश्वास करूं

पर तुम हो मेरे मन में…

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Added by बृजेश नीरज on February 28, 2013 at 8:17pm — 18 Comments

क्यूंकि तुम प्रेम हो और प्रेम मैं भी हूँ .......

मैं प्रेम हूँ 

तुम भी तो प्रेम ही हो 

प्रेम से हट कर 

क्या नाम दूँ 

तुम्हें भी और मुझे भी ...

कितनी सदियों से 

और जन्मो से भी 

हम साथ है 

जुड़े हुए एक-दूसरे के 

प्रेम में 

हर जन्म में तुमसे 

मिलना हुआ 

लेकिन मिल के भी मेल 

ना हो सका 

प्रेम फिर भी रहा 

तुम में और मुझ में भी 

चलते जा रहें है 

समानांतर रेखाओं की तरह 

साथ हो कर भी साथ…

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Added by upasna siag on February 28, 2013 at 3:30pm — 17 Comments

खास आपके लिए

खास आपके लिए

लाया मैं मिठा सपना

क्या मैं इस योग्य हूँ

मुझे अब तक नहीं पता

इस बात का कि

मैं ला सकता हूँ

आपके लिए मीठा सपना।



लोग कहते हैं मुझको

कि मैं नहीं हूँ योग्य

किसी के लिए कुछ भी

मीठा ला सकने में

ला सकता हूँ मैं सिर्फ

कङवा ही कङवा।



पहली बार लाया था मैं

बङा ही मन लगाकर

किसी अपने के लिए

एक मनपसन्द चीज

मेरे ख्याल से

नहीं पूछा था उसको

कि क्या है उसका मनपसन्द।



देखकर इतना गुस्सा… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on February 28, 2013 at 12:49pm — 10 Comments

शपथ

अभिचार सा

करता

छिड़कता जल

चला था,

शून्‍य पथ

धर अफीमी

रूप कोई

रात थी

बेहद सुरत

कुछ धुरंधर

मेघ भी तो

कर गए

नि:शब्‍द ही

गलफड़े भर

श्‍वांस भरके

थे खड़े

कुछ दर्द भी

ढह ना पाई

रोशनी पर

ना हुई

पथ से विपथ

करबले की

ओर बढ़ते

पांवों में थी

जो शपथ

Added by राजेश 'मृदु' on February 28, 2013 at 12:31pm — 9 Comments

मन मोहे सरकार

 सन्दर्भ :-रेल बजट 
-लक्ष्मण लडीवाला 
 
पवन एक्सप्रेस आ गई, लेकर के सौगात,
उम्मीदे हजार बढ़ी,  सुविधाओं की बात । …

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 28, 2013 at 10:11am — 18 Comments

कुछ चट-पटॆ सॆर ...मॆरॆ मौला

कुछ चट-पटॆ सॆर ...मॆरॆ मौला

मॆरी बद्दुआ मॆं तासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला,

इस कुर्सी कॊ बबासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला !!१!!

ना चल सकॆ न बैठ पायॆ,सलीकॆ सॆ कभी,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments

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