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दोहे - एक प्रयास

शब्दों के भण्डार से, भरके मीठे बोल,

बेंचो घर-घर प्रेम से, दिल का ताला खोल,

नैनो से नैना मिले, बसे नयन में आप,

मधुर-मधुर एहसास का, छोड़ गए हो छाप,

मुख में ऐसे घुल गया, जैसे मीठा पान,

भाता सबको खूब है, दोहों का मिष्ठान,

मन में लागी है लगन,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 12:13pm — 15 Comments

कलयुग

मान है,सम्मान है.

पर ईमान नही.

धन है दौलत है,

पर नियत नही.

चाह आसमान में उड़ने की,

पर मेहनत नही.

मंजिले है राहे है,

पर मुसाफ़िर नही.

मंदिर है भगवान है,

पर भक्त नही.

माँ है बाप है ,

पर सेवा नही.

भाई है बहन है,

पर प्यार नही.

नेता है भ्रष्टाचार है,

पर विकास नही.

संत है सत्संग है,

पर सत्संगति नही.

जन्म है मृत्यु है,

पर भय नही.

Added by Aarti Sharma on January 30, 2013 at 11:30pm — 24 Comments

बधू चाहिए,

बधू चाहिए, बधू चाहिए

अपने लल्ला के लिए एक बधू चाहिए

सुंदर सुशील पढ़ी लिखी गृह कार्य में दक्ष

सीता गीता रीता या मधु चाहिए

दहेज़ चाहिए न दान चाहिए

आपका प्यार व सम्मान चाहिए

लल्ला हमारा है गुणों की खान

देखने में लगता है सलमान खान

बी ई की पढ़ाई करी है 

हमने लाखों में फीस भरी है 

अच्छे पैकेज का वो कर रहा वेट

शादी में…

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Added by Dr.Ajay Khare on January 30, 2013 at 11:00pm — 8 Comments

बहुत अच्छी है या रिश्वत बुरी है

वो जो कहते थे के चाहत बुरी है

दिवाने हो गए हालत बुरी है

बना अंधा फखत मगरूर कर दे

बढे गर इस कदर ताकत बुरी है

पचा पाए नहीं खैरात की जो

वही कहते हैं के दावत बुरी है

गँवा चैनो सकूँ ईमान अपना

पता पड़ता है के दौलत बुरी है

कहो मत बेबफा हमको हमनवा  

क़ज़ा दे दो न ये जिल्लत बुरी है

उसे लगता है दिल्लगी हँसना

मेरे हँसने की यूँ आदत बुरी है  

कतारों में खड़े रहना है…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 10:06pm — 6 Comments

प्रेम की बात करते हो

प्रेम की बात करते हो बड़े ही गर्व में रह कर 

प्रेम जब हो गया तुमको पहन ली शर्म की चादर ||



जहाँ पर प्यार होता है वहां इनकार होता है 

वहीँ इकरार की खातिर तड़पते हैं कई रहबर ||



गुरूर-ए -इश्क में रहना रिवाज -ए -हुस्न की फितरत

अदाओं की पनाहों में मिटे आशिक कई बनकर ||



तुम्हे मालूम है जब भी हमारा दिल धड़कता है 

मुझे मालूम होता है तुम्हारी याद है दिलबर…

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Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 9:45pm — 1 Comment

व्यर्थ न निकले साँस

नवधा भक्ति पर आधारित दोहे
*लक्ष्मण लडीवाला
मन प्रपंच में नहि लगे, व्याकुलता बढ…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

देश हमारा

देश हमारा

देश हमारा कितना प्यारा , बोलें सब मीठी बोली ।

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई  , सब  मिलकर खेलें होली ।

बहती रहतीं पावन  नदियाँ , सबकी भरतीं हैं झोली ।

हरे भरे फसल उगाकर ही , लोग मानते रंगोली ।

मुकुट  जिसका हिमालय जैसा , ऐसा देश हमारा है ।

जिसका पांव पाखरे निसदिन , हिन्द सागर की धारा है ।

वेष  भूषा अलग अलग है , अलग अलग ही है बोली ।

सभी लोग आदर करते हैं , एक रहे  चाहे टोली  ।

देश की शान पर  मरते हैं , ऐसा देश हमारा है ।

विश्व विजयी तिरंगा झंडा  , हम…

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Added by Shyam Narain Verma on January 30, 2013 at 2:40pm — 4 Comments

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती…

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Added by Ashok Kumar Raktale on January 30, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे/चौबारे क्‍यों हमें डराय

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे

चौबारे क्‍यों हमें डराय.. .

उदयाचल का

कोई जादू

कंगूरों पर

चल ना पाय

**कल जोड़े

भयभीत किरण भी

पल-पल काया

खोती जाय

पड़े तीलियों

के भी टोंटे

झूठे दीपक कौन जलाय ?

कहो दर्द के.....................

रोटी-बेटी

पर चिनगारी

रोज पुरोहित

ही रख आय

उलटा लटका

सुआ समय का

बड़े नुकीले

सुर में गाय

हर फाटक…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 12:30pm — 12 Comments

कभी नहीं बन सकता

कभी नहीं बन सकता हूँ मै हरिश्चंद्र जी का अनुगामी

..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||

कितने ही शब्दों को मैंने सच्चाई से डरते देखा

अपने ही भावों को अक्सर अंतर्मन में मरते देखा

दुःख की सर्द सुबह और रातें पीड़ा की गर्मी भरते हैं

आहों की स्वरलहरी दबकर आत्मपीड मंथन करते हैं

कल्पित दुनिया नहीं मिटा सकती है सच की सूनामी

..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||

नहीं मिला है मुझे अभी तक दर्पण जैसा परम हितैषी

खोजे केवल मुझको मुझमे…

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Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 12:16pm — 7 Comments

क्या जाने ..!!

कब होंगीं बातें 

क्या जाने ..!!
 
खटरागों से 
भरी जिंदगी ,
बिसरा प्रेम 
और बंदगी !
जिनमें…
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Added by भावना तिवारी on January 30, 2013 at 12:16pm — 10 Comments

ग़ज़ल : बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

आदरणीय गुरुजनों, मित्रों एवं पाठकों यह ग़ज़ल मैंने तरही मुशायरा अंक -३१, हेतु लिखी थी परन्तु समय न मिलने के कारण न तो प्रस्तुत कर सका और नहीं है मुशायरे में अच्छी तरह से भाग ले सका. क्षमा प्रार्थी हूँ सादर

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,

कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,

बदलता गया…

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Added by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 11:19am — 18 Comments

रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने

जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने

खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने



फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको

कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने



सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन

हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने



अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है

रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने



खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ

जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??



संदीप पटेल "दीप"



जुरत-आमोज - साहस सिखाने…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 29, 2013 at 9:09pm — 14 Comments

"धमाके के बाद "

क्यूँ छलक रहा अश्रु मेरा ,
क्यूँ जा रहा सुख मेरा !
करुणा बढ रही ह्रदय में ,
हाहाकार है स्वरों में !!

क्या ज़िन्दगी यहाँ सस्ती है ,
यह शमशान या बस्ती है !
जहाँ करते आमोद -प्रमोद सानन्द,
अब वीरान पड़ा है भू-खंड !

क्यूँ हो रहे तुम अधीर ,
प्रश्न करते ये मृत शरीर!
दिल से बस आह !निकलती,
जिनकी पूर्ति नम ऑंखें करती!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on January 29, 2013 at 7:19pm — 7 Comments

कोरा कागज़

कोरा कागज़

अगर तू चाहती तो कभी भी

कोरे कागज़ पर मुझको

अँगूठा लगाने को कह सकती थी

और जानती हो, मैं..

मैं ‘न’ न कहता ।

उस कोरे कागज़ पर फिर

तुम कुछ भी लिख सकती थी।



तुमने मेरे नाम पर मुझसे

अधिकार माँगा

मैंने वह आँखें मूँद के दे दिया,

पर जब "तुम्हारे" अपने नाम पर तुमने

मुझसे अधिकार माँगा,

मेरे ओंठों पर हर पल नाम तुम्हारा था,

अत: यह अधिकार मैं तुम्हें दे न सका ।



मेरे धुँधँले-धुँधले सुलगते वजूद ने

नीदों…

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Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 3:00pm — 17 Comments

संस्मरण .... अमृता प्रीतम जी

संस्मरण ... अमृता प्रीतम जी

यह संस्मरण एक उस लेखक पर है जिसने केवल अपनी ही ज़िन्दगी नहीं जी, अपितु उस प्रत्येक मानव की ज़िन्दगी जी है जिसने ज़िदगी और मौत को,खुशी और ग़म को, एक ही प्याले में घोल कर पिया है  ... जिसके लिए ज़िन्दगी की "खामोशी की बर्फ़ कहीं से भी टूटती पिघलती नहीं थी।"

यह संस्मरण उस महान कवयित्रि पर है जो सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही...."पर मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई आवाज़ दे, और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी…

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Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 1:00pm — 17 Comments

"पैसे की दुनियां "

वाह रे पैसा ,

पैसे का अहंकार !

पैसे से सबकुछ

खरीदने को तैयार !

तो जाओ !!

पैसे से दो बूंद,

आंसू खरीद लाओ!

पैसे से खुशियों की,

एक दुकान तो लगाओ !

पैसे से रोते बच्चे को ,

एक मीठी नींद सुला दो !

वर्षों से खड़े वृक्षों को

थोड़ी सी सैर करा दो!!

पैसे से किसी का

दर्द कम कर दो

पैसे से किसी के दिल में

प्यार और सदभावना भर दो !

पैसे से ओंस की बूंदों में,

रजत आकर्षण डाल दो!

वीरान पड़े…

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Added by ram shiromani pathak on January 28, 2013 at 1:30pm — 3 Comments

परेशानियाँ

बिन बुलाये आ जाती हैं

कहने पर कहाँ जाती हैं

और हम भी दिन- रात

सोते- जागते

उठते-बैठते 

उन्ही को याद करते हैं

उन्ही के बारे में सोचते हैं

उनके बिन जैसे जीना मुहाल है  

हमारे पास वक़्त नहीं है

और वो ठहरे फ़ुरसतिया 

फिर भी कौन ऐसा है 

जो नहीं करता उनकी खातिर

आखिर हैं तो अपनी ही न

छोड़ भी तो नहीं सकते

जीने के लिए वही तो वजह है

.

.

.

.

.

कितनी अजीज होती हैं न !

ये "परेशानियाँ"



संदीप पटेल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 27, 2013 at 8:42pm — 5 Comments

उडती चिड़िया काट लिए ‘पर’ कहाँ प्यार है ??

भारत देश हमारा प्यारा, न्यारा इसका संविधान है

शीतल  धवल दुग्ध धार है कहीं उबलता क्या विधान है

तरह तरह की भाषा बोली हैं हम जोली

दुश्मन-मित्र हैं अपने घर ही कहीं है गोली

आस्तीन के सांप बनाये रखना दूरी

तिलक देख है  फंस -फंस जाती भोली-

जनता ! त्राहि -त्राहि कर न्याय मांगती

मुंह में राम बगल में छूरी  कहाँ जानती…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on January 27, 2013 at 12:58pm — 2 Comments

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