शीशे में देखकर चेहरा ;बार -बार लजाये हैं ।
कभी काजल, कभी बिंदिया बार -बार सजाये हैं ॥
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सोचते अपने दिल से ;दुनिया की नजर रहे।
बहुत मिहनत…
ContinueAdded by श्रीराम on February 22, 2013 at 8:30am — 4 Comments
हे मेरे प्रियवर,हे मेरे प्रियतम !
ये अद्भुत सृष्टि और तुम अनुपम।
स्वप्न सुन्दर,सुमन सुन्दर,
किन्तु तुम सबसे सुन्दरतम।
गगन सुन्दर,नयन सुन्दर,
किलोलें करते ये हिरन सुन्दर।
नेत्रों की ये प्यास मधुर ,
और तुम सबसे मधुरतम।
हे मेरे प्रियवर,हे मेरे प्रियतम!
ये अद्भुत सृष्टि और तुम अनुपम।
रैन प्यारी,बैन प्यारे,
प्यारे ये आकाश के तारे,
प्यारे ये जल के फुब्बारे ,
और तुम सबसे अधिकतम।
हे मेरे प्रियवर,हे मेरे…
Added by Savitri Rathore on February 22, 2013 at 12:00am — 10 Comments
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कुछ चट-पटॆ शेर = मगर बड़ॆ दिलॆर ,,,,,
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एक मुशायरा कराया था,बाज़ कॆ बाप नॆ !!
नॆवलॆ की गज़ल पॆ,खूब दाद दी साँप नॆ !!१!!
शॆर की सदारत, निज़ामत थी बाघ की,
बकरॆ कॆ हाँथ पाँव लगॆ, खुद ही कांपनॆं !!२!!
मॆं-मॆं करता रहा वॊ,माइक पॆ बस खड़ा,
हिरण की नज़र लगी, हालत कॊ भाँपनॆ !!३!!
खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ !!४!!
सियार कॊ सियासती,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
आजादी के समय देश में हर तरफ दंगे फैले हुए थे। गांधी जी बहुत दुखी थे। उनके दुख के दो कारण थे - एक दंगे, दूसरा उनके तीनों बंदर खो गए थे। बहुत तलाश किया लेकिन वे तीन न जाने कहां गायब हो गए थे।
एक दिन सुबह अपनी प्रार्थना सभा के बाद गांधी जी शहर की गलियों में घूम रहे थे कि अचानक उनकी निगाह एक मैदान पर पड़ी, जहां बंदरों की सभा हो रही थी। उत्सुकतावश गांधीजी करीब गए। उन्होंने देखा कि उनके तीनों बंदर मंचासीन हैं। उनकी खुशी का ठिकाना…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 21, 2013 at 7:30am — 21 Comments
Added by Vindu Babu on February 21, 2013 at 6:11am — 17 Comments
एक गज़लनुमाँ,,,,,,,,,,,,(मसाला)
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कभी पास आनॆ का और, कभी दूर जानॆ का ॥
सलीका अच्छा नहीं मॊहब्बत मॆं तड़फ़ानॆ का ॥१॥
काबिल न थॆ हम तॊ, इनकार कर दॆतॆ हुज़ूर,
फ़ायदा क्या हुआ इतना, अफ़साना बनानॆ का ॥२॥
जिसकॊ चाहा है वॊ, किसी और का हॊ गया,
बता ऎ ज़िन्दगी क्या करूँ, मैं इस ख़ज़ानॆ का ॥३॥
वफ़ा करॆ या जफ़ा उसकी,तबियत की बात है,
मॆरा तॊ वादा है उससॆ, फ़क्त वादा निभानॆ का ॥४॥
मँहगाई मॆं मॊहब्बत निभायॆ, क्या खाकॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 4:00am — 20 Comments
जीत कर भी हार जाना होगा,
ऐसा कमाल कर दिखाना होगा |
कुछ गुजरे कुछ गुजर जाएँगे,
लम्हों का अपना अफ्शाना होगा |
रंगे खुशबु जो तलाशते हें बजार,
उन्हें भी गुलसिताँ में आना होगा |
टूटते जुड़ते ख्वाबों सी है जिंदगी,
जिंदगी है, साथ तो निभाना होगा |
अंधेरों में घिरा है सारा आलम,
तुझे भी एक चिराग जलाना होगा |
Added by मोहन बेगोवाल on February 20, 2013 at 11:00pm — 3 Comments
लघुकथा: बड़ा
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बरसों की नौकरी के बाद पदोन्नति मिली.
अधिकारी की कुर्सी पर बैठक मैं खुद को सहकर्मियों से ऊँचा मानकर डांट-डपटकर ठीक से काम करने की नसीहत दे घर आया. देखा नन्ही बिटिया कुर्सी पर खड़ी होकर ताली बजाकर कह रही है 'देखो, मैं सबसे अधिक बड़ी हो गयी.'
जमीन पर बैठे सभी बड़े उसे देख हँस रहे हैं. मुझे कार्यालय में सहकर्मियों के चेहरों की मुस्कराहट याद आई और तना हुआ सिर झुक गया.
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Added by sanjiv verma 'salil' on February 20, 2013 at 6:30pm — 5 Comments
निदान
गांव के बाहर मन्दिर में जोर-जोर से शंख और घड़ियाल बज रहे थे। एक सप्ताह से वहां पूजन चल रहा था। अब आरती हो रही थी। पण्डित जी ने आश्वस्त किया था कि नदी के कगार टूटने से गांव पर जो बाढ़ का खतरा मंडरा रहा था वह इस पूजन से टल जाएगा।
गांव वालों के पास भी कोई रास्ता नहीं था पण्डितजी की बात मानने के सिवा। जिस बात की गारण्टी सरकार नहीं दे सकती उसकी गारण्टी यदि पण्डित दे रहा हो तो बात मानने में क्या बुराई। कगार…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 20, 2013 at 5:30pm — 11 Comments
कभी काँटे बिछाते हैं कभी पलकें बिछाते हैं॥
सयाने लोग हैं मतलब से ही रिश्ते बनाते हैं॥
हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,
तुम्हें जब देख…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 20, 2013 at 4:46pm — 19 Comments
दलाली
जब अफसर के बेटे की एक लड़की से आँख लड़ गई,
आँखों के जरिये वो दिल मे उतर गई,
नाम पूछने पर लड़की ने रिश्वत बताया,
लड़के को ठंड मे भी पसीना आया,
हाथ जोड़कर लड़का…
Added by Dr.Ajay Khare on February 20, 2013 at 3:00pm — 6 Comments
दरिया के साथ कभी बहता नहीं,
वृक्ष किनारे पे अभिज रहता नहीं ।
तमन्ना है दिये जला करूं रौशनी,
आतिश के शोले मगर सहता नहीं ।
कैसे करें, क्यों करें उस पे यकीं,
मन की बात खुल के कहता नहीं ।
शहर मेरे कैसा मौसम आ…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on February 19, 2013 at 11:30pm — 2 Comments
निर्मित विश्व हुआ तुम से, तुम मात शिवे सगरे जग की,
स्थावर जंगम या लघु हो,तुम मात नियामक हो सब की,
सात्विक प्रकृति साधक पूजत भाव लिए मन ब्रम्ह सदा,
पूजत साधक धूमवती बगला तुमको यह देश मृदा//
स्वरचित/अप्रकाशित
Added by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 10:30pm — 5 Comments
घर की रौनक ,
चौधवीं का चाँद हो !
मेरी दुआ .
मेरी फ़रियाद हो !
तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,
तुम्ही मेरी गीत हो !
तुम्ही मेरी हार .
तुम्ही मेरी जीत हो !
मेरी…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 10:00pm — 1 Comment
स्नेहा सिंघानिया मेरी फेसबुक मित्र थी, उनसे फेसबुक पर चैटिंग करते दो बरस बीत गयें थे, वह बहुत ही सकारात्मक व्यक्ति थी, मैं काफी दिनों से उनसे कुछ अच्छा सीखने की उम्मीद कर रहा था और मिलने का आग्रह भी | आज इलाहाबाद का यमुना तट, सरस्वती घाट और हजारो जलती रोशनियां हमारी पहली डेटिंग के गवाह बनने वाले थे | मैं अपनी आदत के मुताबिक तयशुदा समय से पहले ही आ गया था | हेलों पढ़ाकू ! सुनकर मैं चौका, वह इसी नाम से मुझे चैटिंग के दौरान संबोधित करती थी | आवाज की दिशा में मैं मुड़ा तो काले रंग का महंगा सूट…
ContinueAdded by ajay yadav on February 19, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
मित्रों संसार में मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है कृष्ण और सुदामा की मित्रता का वृत्तांत | उसी करुण मित्रता के दृश्य को एक रचना के माध्यम से लिखने का प्रयास किया है | कृपया आप अवलोकित करें |
एक बार द्वारिका जाकर बाल सखा से मिल कर देखो
अपने दुःख की करुण कहानी करूणाकर से कह कर देखो ||
हे नाथ ! दशा देखो घर की, दुःख को भी आंसू आयेंगे
तुम्हरी , मेरी तो बात नहीं बच्चों को क्या समझायेंगे ?
भूखी , नंगी व्याकुलता के दर्शन हैं…
Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 5:55pm — 3 Comments
हे शिव स्नेह के सागर ,
भर दो प्रेम गागर ,
मोह माया के तम से,
मुक्त कीजै आकर!
बंधनों से मुक्त करो ;
इतनी कृपा कर दो !
मुझे मलिन संसार से ,
अब तो पृथक कर दो !…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 3:40pm — 5 Comments
रक्तधार
विगत संबंधों से स्पंदन करती
पुरानी रक्तधार
सूखी नदी-सी सूख चुकी है,
पर मात्र स्मृति किसी एक संबंध की…
ContinueAdded by vijay nikore on February 19, 2013 at 1:54pm — 29 Comments
एक गज़लनुमाँ ***तहज़ीब उधार लॆं
चलॊ किसी सॆ तॊ तहज़ीब उधार लॆं ,
गल्ती अपनी-अपनी हम स्वीकार लॆं !!१!!
दूसरॊं कॆ मकान मॆं झाँकनॆ सॆ…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 19, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
इधर -…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
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