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रोला गीत

अपना काम निकाल,भूल हमको वो जाता।
कहता उसको आम,बना जो भाग्य विधाता॥
मन पछताये खूब,बेल विष नेता बोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

हमको ले पहचान,वोट लेना जब होता।
सबसे दुआ-सलाम,कौल जमके वह करता॥
सुधरा चतुर सियार,लगे हर जन को गोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

जीता चतुर सियार,चाल अब बदली उसकी।
भूला सारे कौल,हौल अब मन में उठती॥
टूटे सारे ख्वाब,हृदय विह्वल हो रोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 27, 2013 at 6:57pm — 14 Comments

आखरी वादा

आखरी वादा ..........

मैं तुझे भूल जाऊं,ना कभी याद आऊँ

यह आखरी वादा तुमने मुझसे ही लिया

जिस पल भी तेरी याद आयी

उस पल को ही मिटा दिया

काश, हवाओं को भी कुछ कह जाती 

मौसमो को भी यह कसम दे…

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Added by pawan amba on February 27, 2013 at 3:58pm — 5 Comments

दोहा मुक्तिका: नेह निनादित नर्मदा संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:

नेह निनादित नर्मदा

संजीव 'सलिल'

*

नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.

भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..



नर्तित 'सलिल'-तरंग में, बिम्बित मोहक नार.

खिलखिल हँस हर ताप हर, हर को रही पुकार..



विधि-हरि-हर तट पर करें, तप- हों भव के पार.

नाग असुर नर सुर करें, मैया की जयकार..



सघन वनों के पर्ण हैं, अनगिन बन्दनवार.

जल-थल-नभचर कर रहे, विनय करो उद्धार..



ऊषा-संध्या का दिया, तुमने रूप निखार.

तीर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 27, 2013 at 6:30am — 26 Comments

मै आतंकी बनूँ अगर- माँ खुद "फंदा" ले आएगी

हम सहिष्णु हैं भोले भाले मूंछें ताने फिरते

अच्छे भले बोल मन काले हम को लूटा करते

भाई मेरे बड़े बहुत हैं खून पसीने वाले

अत्याचार सहे हम पैदा बुझे बुझे दिल वाले

कुछ प्रकाश की खातिर जग के अपनी कुटी जलाई

चिथड़ों में थी छिपी आबरू वस्त्र लूट गए भाई

माँ रोती है फटती छाती जमीं गयी घर सारा

घर आंगन था भरा हुआ -कल- कोई नहीं सहारा

बिना जहर कुछ सांप थे घर में देखे भागे जाते

बड़े विषैले इन्ही बिलों अब सीमा पार से आते

ज्वालामुखी दहकता दिल में मारूं काटूं…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना

एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें



उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |

झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |



शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,

पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |



गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,

कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |



आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,

जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |



मैंने पल भर झूठ-सच पर…

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Added by वीनस केसरी on February 26, 2013 at 10:00pm — 29 Comments

"कभी हँस भी लिया करो जी "

बस लो भाई राम का नाम ,

बन जायेंगे बिगड़े काम !!



आशिकी का बुखार चढ़ा है ,

आशिकी में करना है नाम!

भेजो ऐसी सुन्दर कन्या ,

जो पिलाए इश्क का ज़ाम!!



इधर ढूंढा,उधर ढूंढा,

हो गई सुबह से शाम !

बेबस ,लाचार सा बैठा .

छोड़कर सब अपने काम !



गर्ल्स होस्टल के चक्कर काटकर,

बन गया हूँ उनका दुश्मन!

लड़कियाँ खोज़ती रहती मुझको ,

लिए हाँथ हाकी तमाम !



गर पिट गया तो गम नहीं ,

चलो ये दर्द भी सह लूँगा !

लेकिन अंत में भेज…

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Added by ram shiromani pathak on February 26, 2013 at 9:22pm — 5 Comments

दम तोड़ देगी

कविता कराह रही है

गली के नुक्कड़ पर पड़ी हुई

 

तेज रफ्तार जिंदगी

रौंदकर चली गयी उसे

 

स्वार्थ और वासना के वस्त्रों पर

प्रेम की ओढ़नी ओढ़े

समाज तमाशबीन…

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Added by बृजेश नीरज on February 26, 2013 at 7:33pm — 13 Comments

समय चक्र

जगाता रहा

समय का चाबुक

जन जन को !

निगाहों पर

तस्वीरों के निशान

उभर आते !

सोयी आँखों में

सपने बनकर

बिचरते हैं !

संकेत देते

बढ़ते कदमो को

संभलने का !

इंसानी तन

लिप्त था लालसा में

नजरें फेरे !

संभले कैंसे

रफ़्तार पगों की

बेखबर दौड़े !

रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’

Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 26, 2013 at 7:30pm — 4 Comments

बोल मेरे अर्पण

बोल मेरे अर्पण

तुझको क्‍या लुभाए

डैनें बांध रहना

या उड़ना जग उठाए

मूड़ता जो माथा

है वह अनादि गाथा

आवर्त की ये रूनझुन

पथ में सभी ने पाए

रोहित न हो तू लोहित

आकर है तू तो शोभित

स्‍वर दे जरा गमक दे

अनहद तुझे बुलाए

इक दृष्टि अपलक दे

सोंधी सी इक धमक दे

यह चक्र जो अनघ है

सबको ही आजमाए

नीरव निशा जो रहती

श्‍यामल सी चोट सहती

भासित उसी से…

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Added by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 10:54am — 4 Comments

शाम आना है सुब्ह जाना है-- ग़ज़ल सलीम रज़ा रीवा

                  || ग़ज़ल ||

शाम आना  है  सुब्ह     जाना है ||

दिल सितारों  से क्या लगाना है…
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Added by SALIM RAZA REWA on February 25, 2013 at 9:00pm — 4 Comments

जूनून -ए-इश्क में आबाद, ना बर्बाद हो पाए मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना ,आज़ाद हो पाए

दोस्तों एक गजल लिखने की कोशिश की है अपने कुछ मित्रों के सहयोग से आशा है आप लोग अवलोकित करके मुझे मार्गदर्शित करेंगे |

+++++++++++++++++++++++++++++

जूनून -ए-इश्क में आबाद, ना बर्बाद हो पाए 

मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना ,आज़ाद हो पाए ||



कहानी तो हमारी भी बहुत ,मशहूर थी लेकिन 

जुदा होकर न तुम शीरी न हम, फरहाद हो पाए ||



न कुछ तुमने छुपाया था ,न कुछ हमने छुपाया था 

न तुम…

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Added by Manoj Nautiyal on February 25, 2013 at 6:00pm — 12 Comments

रस की हो बरसात

नेता जन नायक बने, उत्तम हो पहचान,      

अभिनेता नेता बने, रखे हास्य का मान ।

************************************** 
खलनायक नेता बने,रखे विरोधी शान,     
नेता अभनेता बने, माइक पर ही ध्यान। 
***************************************
संसद में गर कवि रहे,छंदों में हो बात,    …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 25, 2013 at 5:00pm — 20 Comments

OBO सदस्य डॉ सूर्या बाली को “अनस्टापेबल इंडियन” पुरस्कार

साथियों बड़े हर्ष के साथ सूचित करना है कि ओ बी ओ सदस्य डॉ सूर्या बाली "सूरज" को विगत दिनों होटल ताज नई दिल्ली में भारत के उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी द्वारा पुरुस्कृत किया गया | यह पुरस्कार डॉ बाली की एक डाक्टर के तौर पर की गयी सामाजिक सेवाओं के लिए है जिसे आप…

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Added by Admin on February 25, 2013 at 4:30pm — 27 Comments

प्यार होना चाहिए ...

दिलनशीं और पुरमहक, किरदार होना चाहिए |

प्यार है दिल में अगर, तो प्यार होना चहिये ||

अहद कर लो, ना बुराई हम करेंगे, उम्र भर |

चाहो गिर्द अपने अगर, गुलज़ार होना चाहिए ||

छोड़ के खुदगार्जियाँ, खल्क-ए-खुदा की सोचिये |

मुफलिस-ओ-लाचार का, गमख्वार होना चाहिए ||

राह की दुश्वारियाँ, सब दूर करने के लिए |

हमसफ़र, हमराह, रब्ब सा, यार होना चाहिए ||

जानते हो मायने, गर लफ्ज़े-उल्फत के ‘शशि’ |

तब मोहम्मद मुस्तफ़ा से, प्यार…

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Added by Shashi Mehra on February 25, 2013 at 2:00pm — 7 Comments

दुआ

जिसके हक़ में, मैं सदा, दिल से दुआ करता रहा |

वो हमेशा, मुझपे जाने, क्यूँ शुबहा करता रहा ||

दोस्त था कहने को मेरा, दोस्ती न कर सका |

दोस्ती के नाम पर ही वो, दगा करता रहा ||

हमकदम था चल रहा, पर हमनफस न बन सका |

मैं भला करता रहा, और वो बुरा करता रहा…

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Added by Shashi Mehra on February 25, 2013 at 2:00pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आवरण

जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर

टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
 छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||

Added by rajesh kumari on February 25, 2013 at 12:07pm — 22 Comments

मैं तो पानी हूँ

नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,

जिसने मुझको आधार दिया,

पल पल मर कर जीने का

सपना ये साकार किया !

हिम शिखर के चरणों से मैं,

दुःख मिटाने निकला था,…

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Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 25, 2013 at 10:00am — 8 Comments

कच्चा रास्ता( कविता)

कच्चे रास्ते में, रास्ता होने की,

असली खुश्बू होती है।

वह चलता है और चलाता है

उसमें खुद को बदलने की हिम्मत है

वह कभी अहम नहीं करता।

वह बरसात की खुशबू को,

सुंदरता को,अच्छी तरह से परख़ता,

पहचानता है।

क्योंकि वह बरसात को सीने से लगा लेता है

वह आस-पास के पेड-पौधों से नहीं शर्माता।

उसे पता है कि शर्म उसकी खुशियों को रोकती है

उसे यह भी पता है

कि यह काम लोगों का है उसका नहीं।

वह अपने तन को धूल…

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Added by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 9:30am — 20 Comments

मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले-

मौलिक

अप्रकाशित

मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ ।

खटमल स्लीपर सेल बना, रेकी रेका ऐंठ ।



रेकी…

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Added by रविकर on February 25, 2013 at 9:14am — 10 Comments

सुना था ........

सुना था ........



सुना था..दिल से करो याद जिसे,उसको हिचकियाँ आती है

यही सोच रोज हाल पूछने ,उसके घर चला जाता हूँ मै.....

सुना था..टूटे दिल से लिखी ग़ज़लों में बहुत जान होती है…

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Added by pawan amba on February 25, 2013 at 5:51am — 11 Comments

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