सुना था ........
सुना था..दिल से करो याद जिसे,उसको हिचकियाँ आती है
यही सोच रोज हाल पूछने ,उसके घर चला जाता हूँ मै.....
सुना था..टूटे दिल से लिखी ग़ज़लों में बहुत जान होती है…
Added by pawan amba on February 25, 2013 at 5:51am — 11 Comments
हम एक दुसरे के प्रति अपना प्यार जताने को कोई न कोई तौहफा देते हैं ! कुछ ऐसा जो लेने वाले को अच्छा और दुनिया में सबसे न्यारा और कीमती लगे ! भौतिक रूप में दिया गया तौहफा ख़राब हो सकता है टूट सकता है लेकिन अगर तौहफा दिल से दिया जाये, मन से दिया जाये , भावनाओं से दिया जाये तो वो हमेशा दिलो दिमाग में रहता है ! उसकी कीमत अनमोल होती है ! अतः अपने में सबसे प्यारे व्यक्ति को तौहफा भी सबसे प्यारा देना चाहिए ! मैं ये मेरी भावनाएं शब्दों में पिरोकर अपने जीवन साथी को तौह्फे में दे रही हूँ…
ContinueAdded by Parveen Malik on February 24, 2013 at 7:30pm — 14 Comments
एक मित्र ने पूछा, "तुम कब पैदा हुए थे ?"
"शायद तब जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे, नहीं शायद गुलजारी लाल नन्दा या इंदिरा में से कोई प्रधानमंत्री था," मैंने उत्तर दिया।
"तुम्हें इतना भी याद नहीं।"
"बच्चा था न- दुनियादारी, राजनीति, से दूर।"
"अब क्या हो?"…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 24, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
कंह गोरी पनघट कहाँ,कंह पीपल की छांव।
पगडंडी दिखती नहीं,बदल रहा है गांव॥
बदल रहा है गाँव,खत्म है भाईचारा।
कुछ परिवर्तन ठीक,किन्तु कुछ नहीं गवारा॥
ग्लोबल होते गाँव,गाँव की मार्डन छोरी।
कहें विनय नादान,कहाँ पनघट कंह गोरी॥
पगडंडी ये गाँव की,सड़क बनी बेजोड़।
जो जाती है शहर को,जन्म-भूमि को छोड़॥
जन्म-भूमि को छोड़,कमाने रोजी जाते।
करते दिनभर काम,रात फुटपाथ बिताते॥
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गाँव की वो…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 24, 2013 at 12:30pm — 18 Comments
कुरबतों में खुश न थे, फुर्क़तों का ग़म भी नहीं,
पहले जैसे वो अब नहीं, पहले जैसे हम भी नहीं ।
बात जो लब पर है रुकी, जान शायद लेकर रहे,
भूलने का दिल भी नहीं, कह दे इतना दम भी नहीं ।
फिर उदासी बढ़ने लगी, शाम से पहले क्या करें,
इक यहाँ तुम भी नहीं, दूसरे मौसम भी…
Added by Harjeet Singh Khalsa on February 24, 2013 at 3:30am — 6 Comments
======ग़ज़ल=======
मौसमे गुल से अदावत सीखी
कैसे ढाना है क़यामत सीखी
हर कोई चोर नज़र में जिनकी
उनकी नज़रों से नजारत सीखी
हम गरीबों के लिए दिल दौलत
बेच के जिसको तिजारत सीखी
उसको हाथी से क्या डराते हो
जिसने चींटी से बगावत सीखी
वक़्त से तुम तो हुए संजीदा
हमने बस “दीप” शरारत सीखी
संदीप पटेल “दीप”
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 23, 2013 at 11:36pm — 13 Comments
माटी कहे कुम्हार से,
मुझको दे ऐसा आकार,
फिर न चक्का चढू कभी,
मिलूं संग निराकार ...
मुझे रंग दे नाम के रंग में,
पकुं मै तप की अगन में ,
सांचा ऐसा लादे मुझको ,
ढल जाऊं मै सत्कर्म में...
चिकना इतना करदे मुझे,
माया टिके न कोई इसपे,
घट ही में अविनाशी सधे,
हो जोत अंदर परकाशी रे ...
जग तारन कारण देह धरे,
सत्कर्म करे जग पाप हरे,
चित्त न डगमग मेरा डोले,
ध्यान तेरे…
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 23, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
मृतप्राय शिराओं में बहता हुआ
संक्रमण से सफ़ेद हो चुका खून
गर्म होकर गला देता है
तुम्हारी रीढ़ !
और तुम -
-अपनी आत्मा पर पड़े फफोलो से अन्जान
-रेंगते हुए मर्यादा की धरती पर
प्रेम कहते हो –
एक चक्रवत प्रवाहित अशुद्धि को !
तुम्हारी गर्म सांसों का अंधड़
हिला देता है जड़ तक ,
एक छायादार वृक्ष को !
और फिर कविता लिखकर
शाख से गिरते हुए सूखे पत्तों पर ,
तुम परिभाषित करते…
ContinueAdded by Arun Sri on February 23, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
बुझा चिराग तूफान बताया होगा
अँधेरा मन ही मन मुस्कराया होगा
पतंग यूँ तो चाहे ऊँची उडारी
जिस के हाथ मर्जी से उडाया होगा
जला चिराग करें जो खुंजा रोशन,
उसको अँधेरी रात ने डराया होगा
जुर्म चाहे पेट से जन्मा नहीं,मगर
भूख पेट की ने जुर्म कराया होगा
अभी ये बस्ती उस को जानती नहीं
लगता हैं इंसान बन दिखाया होगा
Added by मोहन बेगोवाल on February 23, 2013 at 7:30pm — 2 Comments
तेज धूप में छांव की आस है
रेत के बीच बढ़ रही प्यास है
हाथ में तीर और तलवार है
वो जो मेरे दिल के पास है
कथन के अर्थ को समझ लेना
अपनों की अपनों से खटास है…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 7:00pm — 22 Comments
मौलिक
अप्रकाशित
लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।
फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल…
ContinueAdded by रविकर on February 23, 2013 at 4:19pm — 7 Comments
दोस्तों देखे ग़ज़ल आप को कैसी लगी ....
आज के इस दौर में इन्सान चिन्तित है बड़ा,
दरद सहता बेहिसाबा सेज पे भीष्म पड़ा।
तोड़ पिंजरा परिन्दा उड़ भी नही सकता अभी,
क्या करे जाये कहां ये सोच चौराहे खड़ा।
बैर भाई अब यूं करे गौना विभीषन हो गया,
खून के रिश्तें बड़े मतलब बिना है क्या भला।
आग जलती देख कर यूं हाथ सारे सेकते,
हम बुझाये आग क्यों फिर घर जला उसका जला।
इश्क में मतलब जमा शामिल हुआ अन्दाज…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on February 23, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
चला जा रहा हूँ इस निर्जन पथ पर
अनजानी डगर है मंजिल अनजान
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
...........................................
आँधियों के थपेड़ो ने डराया मुझको
गरजते बादलो ने दहलाया दिल को
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
..........................................
भटक रहा कब से पथरीली राहों पर
पथिक हूँ अनजान कंटीली राहों का
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
............................................
आसन नही चलना हो कर जख्मी…
Added by Rekha Joshi on February 23, 2013 at 3:20pm — 7 Comments
जिसने खुद को ही, ज़माने से छुपा रखा है |
जाने किस शख्स ने नाम उसका, खुदा रखा है ||
सब बहाने से उसे, याद किया करते हैं |
दिल में दुनियाँ के, अजाब खौफ बिठा रखा है ||
हाथ तकदीर बनाने के ही, काम आते हैं |
क्या हथेली की लकीरों में, भला रखा है ||…
ContinueAdded by Shashi Mehra on February 23, 2013 at 2:02pm — 7 Comments
कटोरा
शादी मै लड़के के पिता ने दिखाया तेज,
माँगा भारी भरकम दहेज़,
गाड़ी एल इ डी सोना चाँदी की सूची थमाई,
डायमंड रिंग से होगी सगाई,
लड़की को ये बात न हुई गवारा,
चढ़ गया उसका पारा,
दहेज़ की बात ने उसको झकझोरा,
उसने लड़के के बाप को थमाया कटोरा,
कृपया रुखसत हों,,
इसी में समझदारी
आप रिश्ते योग्य नहीं,,
आप है भिखारी
Dr.Ajay.Khare Aahat
Added by Dr.Ajay Khare on February 23, 2013 at 1:30pm — 9 Comments
घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल|
दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||
बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|
बेटी से बेटे मिलें ,बेटा आँखें खोल||
घर की रौनक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 23, 2013 at 10:33am — 15 Comments
आँख जैसे लगी, ख़ाक घर हो गया
जुल्म का प्रेत कितना निडर हो गया ।
कुछ दरिन्दों ने ऐसी मचाई गदर
खौफ की जद में मेरा नगर हो गया ।
थी किसी की दुकाँ या किसी का महल
चन्द लम्हों में जो खण्डहर हो गया ।
है नजर में महज खून ही खून बस
आज श्मसान 'दिलसुखनगर' हो गया ।
थी ख़बर साजिशों की मगर, बेखबर !
ये रवैया बड़ा अब लचर हो गया ।
कौन सहलाये बच्चे का सर तब 'सलिल'
जब भरोसा बड़ा मुख़्तसर हो गया ।
------ आशीष 'सलिल'…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 22, 2013 at 10:00pm — 24 Comments
हर राह पर तेरी रजा
तू ही सनम तू ही खुदा
तो क्यों ही तेरे फैसलों पे
धूल सी जमी रही
बोल क्या कमी रही
क्यों ही तेरे दिल में वो, गैर ही बसा रहा,
क्यों लचकती बांह में गुल वही कसा रहा|
मैं भी तो पलाश बन बिछा था तेरी राह में,
मैं भी तो बहार सब लुटा रहा था चाह में|
क्यों दुआ में जागती
फिर आँख में नमी रही
बोल क्या कमी रही?
कैसे तेरे दिल से मैं नाम उसका खींच लूं,
या कि अपनी चाहतों के मैं गले ही भींच दूं|
तू देख मेरे हाथ…
Added by Pushyamitra Upadhyay on February 22, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
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राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी
मजहब के मंदिर मस्जिद पर बलि का बकरा आम आदमी ||
राजतंत्र के भ्रष्ट कुएं में पनपे ये आतंकी विषधर
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||
क्या है हिन्दू, क्या है मुस्लिम क्या हैं सिक्ख इसाई प्यारे
लहू एक हैं - एक जिगर है एक धरा पर बसते सारे
एक सूर्य से रौशन यह जग , एक चाँद की…
Added by Manoj Nautiyal on February 22, 2013 at 4:14pm — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on February 22, 2013 at 9:00am — 12 Comments
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