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वो रंजिश में ताने दिए जा रहे हैं

122 122 122 122

******************

वो रंजिश में ताने दिए जा रहे हैं,

हैं अपने मगर मुझको तड़पा रहे हैं ।

.

सिफर हो चला हूँ मैं ख़्वाबों से खुद ही,

तभी गम के बादल बहुत छा रहे हैं ।

.

बसी दिल में उनकी वो तस्वीर ऐसी,

कि बनकर वो साये चले आ रहे हैं ।

.

सुना है कि मिलती दुआओं से मंज़िल,

नमाज़-ए-महब्बत पढ़े जा रहें हैं ।

.

मैं रोया हूँ इतना छुपा कर वो आँहें,

पुराने थे रिश्ते जो इतरा रहे हैं…

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Added by Harash Mahajan on April 14, 2018 at 11:30am — 13 Comments

पथरीली डगर  - लघुकथा –

पथरीली डगर  - लघुकथा –

"माँ, अब से हम अकेले स्कूल नहीं जाया करेंगे"?

"क्यों, क्या हुआ, मेरी बच्ची"?

 "आप बापू से बोलो, हमें स्कूल छोड़ने और लेने आया करें"।

"अरे कुछ बतायेगी भी कि बस एक ही रट लगा रखी है"?

"क्या बतायें, कुछ बताने लायक बात हो तब ना"?

"बिटिया, तेरे बापू को काम पर जाना होता है। कैसे तेरे साथ जायेगा"?

"तो फिर हम पढ़ाई छोड़ देते हैं"?

"कैसी बात करती है मेरी लाड़ो? तू हमारी इकलौती संतान है। हम दोनों तेरे भविष्य के लिये ही तो रात…

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Added by TEJ VEER SINGH on April 13, 2018 at 3:45pm — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकान्त कविता : अजन्मी कविता

सुबह-सुबह मॉर्निंग वॉक से लौट
चाय की चुस्कियों के साथ बैठते ही
कविता के कुछ कीड़े 
कुलबुलाने लगे...
कितना कुछ करता है न 
एक अभियंता समाज के लिये 
सड़क, पुल, अस्पताल, विद्यालय
नाली, गली, मस्जिद, देवालय…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2018 at 1:30pm — 16 Comments

नवगीत- चल दिया लेकर तगारी -बसंत

चल दिया लेकर तगारी

© बसंत कुमार शर्मा

 

सिर्फ रोटी के लिए बस,

खट रही है उम्र सारी.

सूर्य निकला भी नहीं, वह,

चल दिया लेकर तगारी.

 

ठण्ड, बारिश, धूप तीखी,

वार…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2018 at 9:30am — 16 Comments

एक ग़ज़ल -कठुआ की आसिफ़ा में नाम

२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२

.

तेरी ख़ातिर कुछ न हम कर पाए प्यारी आसिफ़ा

क्या ये तेरी मौत है या फिर हमारी आसिफ़ा?   

.

एक हम हैं जो लड़ाई देख कर घबरा गए

एक तू जो सब से लड़ कर भी न हारी आसिफ़ा.

.

ऐ मेरी बच्ची, ज़मीं तेरे लिए थी ही नहीं

सो ख़ुदा भी कह पड़ा वापस तू आ री आसिफ़ा.

.

हुक्मराँ इन्साफ़ देगा ये तवक़्क़ो है किसे

क़ातिलों की भी मगर आएगी बारी आसिफ़ा.

.

इतनी लाशों से घिरा मैं लाश क्यूँ होता नहीं  

सोच कर क्यूँ तुझ को मेरा दिल है भारी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2018 at 5:28pm — 16 Comments

जीवन .....क्षणिकाएं :....

जीवन .....क्षणिकाएं :....

1. 

सूरज

सागर की लहरों पर

तैरती

अपनी रश्मियों के ढेर को

काटता-छाँटता रहा

ताकि

मिल सके

रोशनी

हर किसी को

हर किसी के

नसीब की

.... .... .... .... .... ....

2.

देखा जो

आसमाँ से

उतरते हुए

लाल सूरज को

सागर के आँगन में

घबरा गया

मयंक

कि कहीं

सागर वीचियों पर

उसका अस्तित्व

मेरे अस्तित्व का

हरण न करले

..... .... ....…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2018 at 2:00pm — 7 Comments

कुछ हाइकु

पढ़ाते रहे

कभी पढ़ जो पाते

बच्चे का मन ।

 

आदर्शवाद ?

हुआ किताबी भाषा

धूल फाँकता ।

 

घर आँगन

सूना, मन उदास

बची है आस

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on April 12, 2018 at 12:52pm — 6 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

जाम छलका है पास आ जाओ ।

ले के खाली गिलास आ जाओ ।।

जिंदगी फिर बुला रही है तुझे ।

लब पे आई है प्यास आ जाओ ।।

हिज्र के बाद चैन मिलता कब ।

मन अगर है उदास आ जाओ ।।

तीरगी बेहिसाब कायम है ।

चाहिए अब उजास आ जाओ ।।

कोई बैठा है मुन्तजिर होकर ।

मत लगाओ कयास आ जाओ ।।

आ रहे हैं तमाम भौरे अब ।

गंध में है मिठास आ जाओ…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 11, 2018 at 10:03pm — 7 Comments

बेटियां

बदल रही परिवेश बेटियां,करके अद्भुत काम

विश्व पटल पर आगे आकर,रोशन करती नाम ll

श्रम के बल से जीत रही हैं,स्वर्ण पदक हर बार

निज प्रतिभा से कर जाती हैं,  सारी बाधा पार ll

सुरम्य धरती का हर कोना , बेटी से गुलजार

स्नेह भावमय जग को करती,सदा लुटाती प्यार ll

अंगारों पर चलना सीखी , बेटी बनी जुझार

कठिन घड़ी जब भी आती है,जमकर करती वार ll

सीख सको सीखो बेटी से, जीवन का हर सार 

दया धर्म समता ममता की ,…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on April 11, 2018 at 7:09pm — 6 Comments

ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )

ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )



(मफ ऊल-फाइलात-मफाईल-फाइलुन/फाइलात)



इक़रार में छुपा हुआ इनकार देख कर।

डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर ।

जो आरज़ूए दीद थी काफूर हो गई

रुख़ पर पड़ी निक़ाब की दीवार देख कर ।

दिल की ख़ता है और निशाना जिगर पे है

तीरे नज़र चलाइए सरकार देख कर ।

अगला निशाना तू ही है दहशत पसन्द का

हँस ले तू ख़ूब घर मेरा मिस्मार देख कर ।

शायद बना लिया गया फिर…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 4:39pm — 23 Comments

ढाक के तीन पात (लघुकथा)

चुनाव नतीज़ों के साथ ही एक तरफ़ 'जीत' के जश्न हैं तो दूसरी तरफ़ 'हार' में छिपी प्रोत्साहक 'जीत' के जश्न हैं! जीते हुओं के चेहरों पर ' वैसी' मुस्काने नहीं हैं, जो असली में होती हैं! हारकर भी 'जीत' महसूस करने वालों के चेहरों पर कुछ अज़ीब सी मुस्कानें हैं! आम चुनावों में  विजेता दलों के संगठन और उसे अच्छी टक्कर देने वाला, नेस्तनाबूद माना जाने वाला इकलौता विरोधी संगठन, दोनों के ख़ास नेताओं के समक्ष ढेरों प्रश्न हैं!लोकतांत्रिक देश का आम आदमी भौंचक्का सा मीडिया पर अपनी…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 4:06am — 11 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जिस दिन वो मुझसे प्यार का इजहार कर दिया ।

इस जिंदगी को और भी दुस्वार कर दिया ।।

चिंगारियों से खेलने पे कुछ सबक मिला ।

घर को जला के मैंने भी अंगार कर दिया ।।

उठने लगीं हैं उंगलियां उस पर हजार बार ।

मुझको वो जब से हुस्न का हकदार कर दिया ।।

शायद पड़ी दरार है रिश्तों की नींव में ।

किसने दिलों के बीच मे दीवार कर दिया ।।

मांगा था मैंने एक तबस्सुम भरी नज़र…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 11, 2018 at 12:05am — 13 Comments

आज फिर ....

आज फिर ....

नहीं जला

चूल्हा

उसके घर

आज फिर

घर से निकला

उदासी में लिपटा

काम की तलाश में

एक साया

आज फिर



लौट आया

रोज की तरह

खाली हाथ

आज फिर

पेट में

क्षुधा की ज्वाला

सड़क पर

काम की ज्वाला

नौकरियों में

आरक्षण की ज्वाला

ज्ञान गौण

प्रश्न मौन

उलझन ही उलझन

माथे पर

चिंताओं को समेंटे

यथार्थ से निराकृत

खाली हाथ

लौट आया

आज…

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Added by Sushil Sarna on April 10, 2018 at 8:13pm — 10 Comments

कभी इबादते-गुज़र

कभी इबादतें-गुज़र, कभी मयपरस्ती है जवानी में,
कभी ठण्ड हैं महताब जैसी, कभी आग हैं पानी में!

कभी ख्याले-बुतां, कभी खौफ़े-खुदा हैं जिंदगानी में,
बस यही दो ख्याल रहे हैं इस जिस्म-ए-फ़ानी में!

मैं जख्मी हो जाता हूँ सुनके उनके लफ्ज़-ए-तंग,
एक जंग सी जीतनी होती हैं उनसे बात बनानी में!

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Added by Tariq Azeem Tanha on April 9, 2018 at 11:37pm — 3 Comments

जज़्बात

जज़्बात

(अतुकांत)

हर फ़ल्सफ़:  यूँ बयाँ न ही हो तो अच्छा

शबे-वस्ल  हमेशा  मीठी  तो  नहीं होती

रात-अँधेरे जब नींद ओझल हो आँखो से

चले आते हैं मेरे ही फ़ल्सफ़े डसने मुझको

मेरा कहा आज कलामे मुस्तदाम न सही

या अल्फ़ाज़ मेरे चरागे आस्मानी न सही

जानता हूँ सोचेगा कर्दगार खुदा ही कभी

क़लमदस्त का कलाम ऐसा बुरा तो न था

रहमत होगी तब खुदा की, बुलाएगा मुझ्रे

रिहाइश के वास्ते…

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Added by vijay nikore on April 9, 2018 at 3:51pm — 14 Comments

ग़ज़ल नूर की- ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में

२२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२

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ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में

क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर  जाने किस नादानी में.  

.

कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की

इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.

.

तैर नहीं सकते थे माना लेकिन चल तो सकते थे

डूब मरे हैं कुछ बेचारे टखनों से कम पानी में.  

.

जादू का इक झूठा कपड़ा पहने फिरते हैं साहिब

और ठगों की पौ-बारह है उनकी इस उर्यानी में.

.

पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 12:30pm — 35 Comments

गीत में ढलता रहा

स्वप्न मनभावन हृदय में,

रात-दिन पलता रहा.

गीत पग-पग साथ मेरे,

हर समय चलता रहा

 

पीर लिख कर कागजों में

रोज दिल अपना दुखाया.

प्रेम के दो शब्द लिखकर,…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:00am — 10 Comments

अवलम्बन (लघुकथा)

'भीड़' से हासिल अपने अनुभवों के मुताबिक़ मरियल से बुज़ुर्ग मियां-बीवी अपने कटोरे लेकर बहुचर्चित धरने वाली जगह पर कुछ मिलने की उम्मीद से पहुंचे। काफी देर तक भीड़ और अपने खाली कटोरों को ताकते हुए वे मंचीय भाषण सुनते रहे। फिर निराश होकर वहां से लौटने लगे।
"चलो मियां, किसी बड़े मंदिर या गुरुद्वारे की तरफ़ चलते हैं!" अपनी अधनंगी से पोती को गोदी में लेते हुए बीवी ने शौहर से कहा।
"हां चलो, वहीं…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 9, 2018 at 4:54am — 11 Comments

मानवता की मौत -- लघुकथा –

मानवता की मौत -- लघुकथा –

 दिल्ली की ब्लू लाइन बस में आश्रम से सफ़दरगंज अस्पताल जाने के लिये एक बूढ़ी देहाती औरत अपने साथ एक जवान गर्भवती स्त्री को लेकर चढ़ रही थी।

"अरे अम्मा जी, बस में पैर रखने को जगह नहीं है। इस बाई की हालत भी ऐसी है कि ये खड़ी भी न हो पायेगी। कोई और सवारी देख लो"? बस कंडक्टर ने सुझाव दिया|

"एक घंटो हो गयो, खड़े खड़े। लाड़ी के दर्द शुरू हो गये। अस्पताल पहुंचनो जरूरी है| सारी सवारी गाड़ियों की हड़ताल है, सरकार ने पेट्रोल के दाम बढ़ा दिये, इसलिये| घनी मजबूरी है…

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Added by TEJ VEER SINGH on April 8, 2018 at 8:02pm — 12 Comments

ग़ज़ल -- तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था // दिनेश कुमार

221 - - 2121 - - 1221 - - 212

तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था

सब कुछ था मेरे पास मगर मैं उदास था

जीवन के मयकदे में कुछ हालत थी यूँ मेरी

होंठों पे प्यास हाथ में खाली गिलास था

हर आदमी के ज़ेह्न में रक़्साँ थी बेकली

दुनियावी ख़्वाहिशात का हर कोई दास था

आह्वान बंद का था सियासत के नाम पर

होगा नहीं वबाल फ़क़त इक क़यास था

भगवे हरे में बँट गया फिर शह्रे-दुश्मनी

चारों तरफ़ इक आलमे-ख़ौफ़ो-हिरास था

तूफ़ाँ में रात जिसका सफ़ीना बचा…

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Added by दिनेश कुमार on April 8, 2018 at 6:25pm — 12 Comments

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