For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,125)

मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं

मैं कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,

मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,

भेद-भाव के दरया को,

पाटने की कोशिश  में,

सूरज के घर में चाॅंद का,

संदेशा  लेकर जाता हॅूं, हाॅं,

मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।

खुशियों को ढ़ूंढ़ने निकला हॅूं,

मिल भी गयी दुखदायी खुशी,

दुखदायी खुशी के चक्कर में,

हसीन गम को भूल जाता हॅूं।, हाॅं,

मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।

ऐशो-आराम की जिंदगी मिली है,

आराम से सोता पर क्या करूॅं,

पहले हजारों अर्धनिद्रा से…

Continue

Added by Manoj kumar shrivastava on December 3, 2017 at 1:00pm — 4 Comments

पलकों में प्यार

समय की कोई अनदेखी गुमनाम कढ़ी

संभावनाओं की  रूपक  रश्मि से  भरी

प्राण-श्वास को पूर्ण व पुलकित करती

पेड़ों की छायाएँ घटती मिटती बढ़ती-सी

धरती के गालों पर छायाएँ बेचैन नहीं थीं

किसी मीठे समीर की मीठी कोमल झकोर

हँसा कर फूलों को करती थी आत्म-विभोर

प्रात की नई उमंगों में भू को नभ से जोड़ते

जिज्ञासा की उजली चादर के फैलाव में हम

कोरे बचपन में एक ही पथ पर थे साथ चले

आयु की मामूली सच्चाईओं से घिरे हम…

Continue

Added by vijay nikore on December 3, 2017 at 12:36am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हमने जितने कंटक बोये, इस जीवन में चुनने हैं (गीत 'राज')

गीत

धरती अम्बर पर्वत नदियाँ,सबके ताने सुनने हैं

हमने जितने कंटक बोये, इस जीवन में चुनने हैं

सर्दी गर्मी की मार सही

या बिन मौसम बरसात सही

चंदा तारों से जगमग हों

या काली नीरव रात सही 

हमको तो अभिलाषाओं के,ताने बाने बुनने हैं

हमने जितने कंटक बोये,इस जीवन में चुनने हैं

इक मजहब की दीवार मिले  

या वर्ण वर्ग की रार मिले  

तेरे मेरे  की खाई हो

या द्वेष जलन का हार मिले

हमको तो रिश्तों के मानक ,खामोशी से गुनने…

Continue

Added by rajesh kumari on December 2, 2017 at 7:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल- रातें हुईं पहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

बह्र- मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन



रातें हुईं पहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

वो दिल गई उजाड़ बताओ मैं क्या करूँ।



इज़हारे इश्क जो किया तो उसने गाल पर,

मारे हैं ताड़ ताड़ बताओ मैं क्या करूँ।



पल्लू से उसके फिर से मैं बँध जाऊँ दोस्तो,

कोई नहीं जुगाड़ बताओ मैं क्या करूँ।



क्या दिन थे वो हँसीन कभी छत पे राह में

होती थी छेड़छाड़ बताओ मैं क्या करूँ।



मेरे खिलाफ उसने कटा दी एफआईआर,

जाना है अब तिहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।



तन्हा हूँ और… Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 2, 2017 at 6:48pm — 30 Comments

लघुकथा -– आँखें -

लघुकथा -– आँखें  -

"सुबोध, यह क्या हिमाक़त है। मुझे पता चला है कि तुमने एक अंधी लड़की से शादी करने का फ़ैसला किया है"?

"जी पिताजी, आपने बिलकुल सही सुना है"।

"तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया। तुम एक अरबपति व्यापारी की इकलौती संतान हो। साथ ही जाने माने डाक्टर भी हो। तुम्हारे लिये कितने बड़े घरानों से रिश्ते आ रहे हैं, कुछ पता है"?

"मगर मेरा फ़ैसला अटल है"।

"ऐसी क्या वज़ह है जो तुम परिवार के मान सम्मान और प्रतिष्ठा को दॉव पर लगा कर उस मामूली से परिवार की लड़की से…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on December 2, 2017 at 6:16pm — 10 Comments

केक के बोलते टुकड़े (लघुकथा)

इस बार उसकी ज़िद पर उसके जन्मदिन पर उसकी फ़रमाइश मुताबिक ख़ास लोगों को आमंत्रित किया गया था। तीन दिन लगातार छुट्टियां होने के बावजूद ताऊजी, चाचा-चाची या उनके बच्चे... कोई भी नहीं आया था। हां, दादा-दादी आये थे और आज सुबह वापस भी चले गए थे। आज उसे स्कूल जाना था, लेकिन मम्मी-पापा के समझाने के बावजूद आज वह स्कूल नहीं गया।

"बहुत हो गया गुड्डू! अब चुपचाप पढ़ने बैठ जाओ, घर पर ही तुम्हारी क्लास लगेगी आज!" मम्मी के सख़्त आदेश पर वह पढ़ने तो बैठ गया, लेकिन अतीत में खोया रहा अपने ताऊजी, चाचा-चाची और… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 2, 2017 at 1:04pm — 9 Comments

"एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ"

2122 2122 2122

एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।
मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।

कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।
उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।

मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।
सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।

ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।
मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।

जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।
हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।


सुरेन्द्र इंसान

मौलिक व अप्रकाशित

Added by surender insan on December 2, 2017 at 1:00pm — 23 Comments

देशभक्त तो पैदा कर

दलगत राजनीति से दूर होना चाहिए,

देशहित करने का सुरूर होना चाहिए,

बेशक विचारों में भेद हो सकता है,

पर राष्ट्रहित हो तो गुरूर होना चाहिए,

सत्ता से प्रेम और विपक्ष से गिला नहीं,

किसी दल से भी मैं कभी मिला नहीं,

पर प्रबलता से देशहित में कहता हूँ,

जो देश का है, मैं उसकी पार्टी में रहता हूँ,

और जो भी विपक्षी हो, उससे कहता हूँ,

मतदाता से नहीं, देश से वायदा कर,

मैं सिर्फ तुझे ही सत्ता में चुनूँगा पहले,

पहले अपनी पार्टी में देशभक्त तो पैदा… Continue

Added by Manoj kumar shrivastava on December 2, 2017 at 8:41am — 8 Comments

तो दोष क्या है

1222 1222 122



(बिना कोई मात्रा गिराए हिंदी ग़ज़ल)



पलायन का वरण तो दोष क्या है ।

प्रगति पर है ग्रहण तो दोष क्या है ।।



न अपनाओ कभी तुम वह प्रसंशा।

पृथक हो अनुकरण तो दोष क्या है ।।



जिन्हें शिक्षा मिली व्यभिचार की ही ।

करें सीता हरण तो दोष क्या है ।।



मरी हो सभ्यता प्रतिदिन जहां पर ।

नया हो उद्धवरण तो दोष क्या है ।



अनावश्यक अहं की तुष्टि से बच ।

करेंगे संवरण तो दोष क्या है ।।



वो भूखों मर रहा है कौन… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2017 at 8:23am — 5 Comments

जिंदगी तुझ पर ये दिल भी, कर गया कुर्बान क्यों?

बेखब़र क्यों हो गया तू?   हो  गया  अनजान  क्यों?

ज़िंदगी तुझ पर ये दिल भी, कर गया कुरबान क्यों?

बेबसी  कुछ  भी  नहीं  थी,  जिंदगी  के   दरमियाँ,

चार दिन का बन गया फिर, तू मिरा महमान क्यों?

पूछती   है  हाल …

Continue

Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:30pm — 4 Comments

निशब्द संसार

तुम शब्द हो

और मैं अर्थ

तुम हो तो मैं हुं

शब्द बिन अर्थ बेकार

निशब्द संसार

 

तुम प्रीत हो

और मैं जोगन…

Continue

Added by जयति जैन "नूतन" on December 1, 2017 at 7:30pm — 3 Comments

लघुकथा--रिटर्न गिफ़्ट

" सबसे पहले मैं आप सभी उपस्थित महानुभावों , परम मित्रों , परिजनों , रिश्तेदारों और मीडिया जगत के तमाम साथियों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ । आप सभी ने मेरे छोटे से आग्रह पर उपस्थित होकर मेरा मान बढ़ाया । मैं कोई बहुत बड़ा आदमी नहीं हूँ । साधारण-सा , अदना-सा आपके बीच का आदमी हूँ । कई दिनों से बेचैनी में था । सोच रहा था अपने अट्ठावनवें जन्म दिन पर क्या रिटर्न गिफ्ट दूँ ? तो मैं आप सभी के समक्ष घोषणा करता हूँ आज के अपने अट्ठावनवें जन्म दिन पर रिटर्न गिफ्ट के तौर पर जीते जी अपनी एक किडनी दान करता… Continue

Added by Mohammed Arif on December 1, 2017 at 12:35am — 18 Comments

राजमार्ग का एक हिस्सा(लघुकथा)

राजमार्ग का एक हिस्सा(लघुकथा)



भारी गाड़ियों के आवागमन से कम्पित होता,तो कभी हल्की गाड़ियों के गुजरने से सरर्सराहट महसूस करता हूँ।  घोर कुहरे में  इंसानों की दृष्टि जवाब दे जाती है, मगर मैं दूर से ही दुर्घटना की संभावना  को भांपकर सिहर उठता हूँ।



देखता हूँ नई उम्र को मोटरसाइकिलों पर करतब करते निकलते हुए। बेपरवाही जिसके शौंक में शामिल है।



हाल ही की  तो बात है,ऐसा करते हुए उस किशोर की बाइक गिर कर कचरा हो गई थी। पीछे से आते ट्रक ने दल दिया था उसे। मेरा काला शख्त सीना… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 30, 2017 at 11:42pm — 16 Comments

बदनाम इतिहास

आकाओं की आवाज़
मौनी हो गई है,
इस शहर की सियासत
बौनी हो गई है,
सोच के साथ-साथ,
कर्मों में भी दरख़्त है,
मेरे मसीहा का पेशाना,
पिंडारियों सा सख्त है,
शायद उसे याद नहीं कि
आदमी केवल हाड़-मास है,
कल का चर्चित रहा डाकू,
आज का बदनाम इतिहास है....

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Manoj kumar shrivastava on November 30, 2017 at 11:07pm — 5 Comments

हो भी सकता है

1222 1222 1222 1222

तुम्हारे जश्न से पहले धमाका हो भी सकता है ।

ये हिंदुस्तान है प्यारे तमाशा हो भी सकता है ।।



अभी मत मुस्कुराओ आप इतना मुतमइन होकर ।

चुनावों में कोई लम्बा खुलासा हो भी सकता है ।।



ये माना आप ने हक़ पर लगा रक्खी है पाबन्दी ।

है मुझमें इल्म गर जिंदा गुजारा हो भी सकता है ।।



मिटा देने की कोशिश कर मगर वो जात ऊंची है ।

खुदा को रोक ले उसका सहारा हो भी सकता है ।।



न मारो लात पेटों पर यहां भूखे सवर्णो के ।

कभी सरकार… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 30, 2017 at 5:30pm — 4 Comments

कागज़ के घोड़े (लघुकथा)राहिला

कार्यालय में कई दिनों तक बिना सूचना के अनुपस्थित रहने के वाले सुरेश कुमार को कमिश्नर साहब ने निलंबित क्या किया।वह हर कर्मचारी के लिए चर्चा का विषय बन गये।सब उनकी दबंगई और ईमानदारी के कायल हुए बगैर ना रह सके। आखिर उन्होंने मंत्री जी के दामाद के खिलाफ जो कार्यवाही की थी। वहीं निलंबन की खबर पाते ही उसी शाम ,एक मिठाई का डिब्बा लेकर सुरेश कुमार , कमिश्नर साहब के सरकारी बंगले पर पहुँच गए।

"नमस्कार सर!"

"नमस्कार ,नमस्कार कहो कैसे आये।"

"बस सर! आपको धन्यवाद कहना था। और यह एक छोटी सी… Continue

Added by Rahila on November 29, 2017 at 11:49am — 7 Comments

आत्म-संवाद

समय के साँचे में कुछ भभका सहसा

गुन्थन-उलझाव व भार वह भीतर का

चिन्ताग्रस्त, तुमने जो किया सो किया

वह प्रासंगिक कदाचित नहीं था

न था वह स्वार्थ न अह्म से उपजा

किसी नए रिश्ते की मोह-निद्रा से प्रसूत

ज़रूर वह तुम्हारी मजबूरी ही होगी

वरना कैसे सह सकती हो तुम

मेरी अकुलाती फैलती पीड़ा का अनुताप

तुम जो मेरे कँधे पर सिर टिकाए

आँखें बन्द, क्षण भर को भी

मेरा उच्छवास तक न सह सकती थी

और अब…

Continue

Added by vijay nikore on November 29, 2017 at 7:51am — 15 Comments

ग़ज़ल - ज़माना खराब है

मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन



हर सू है मारधाड़ ज़माना ख़राब है।

खोलो नहीं किवाड़ ज़माना ख़राब है।



गुन्डों को सीख दे के मुसीबत न मोल लो,

ये देंगे घर उजाड़ ज़माना ख़राब है।



ले दे के अपना काम कराओ किसी तरह

कर लो कोई जुगाड़ ज़माना ख़राब है।



बच्चे भी तंज कसते हैं मुझ पर अदा के साथ,

हँसते हैं दाँत फाड़ ज़माना ख़राब है।



पहले कभी हमारे भी क्या ठाठ बाट थे,

अब झोंकते हैं भाड़ ज़माना खराब है।



अब दो टके में भी न कोई पूछता मुझे,

मैं… Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 28, 2017 at 10:50pm — 11 Comments

चोर-मन

चोर-मन

कमर खुजाती उस स्त्री पर

पंजे मारकर बैठ गई आँख

मदन-मन खुजाने लगा पांख |

अभी उड़ान भरी ही थी कि

पीठ पर पत्नी ने आके ठोका

रसगुल्लामुँह हो गया चोखा |

जवाब में रख दीं बातें इमरती

छत की धूप और सुहानी सरदी

सचेती स्त्री संभल के चल दी |

बहलाने लगा मूंगफली के बहाने

चोर-मन ढूंढता बचने के ठिकाने

भर चिकोटी पत्नी लगी मुस्कुराने |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by somesh kumar on November 28, 2017 at 9:36am — 4 Comments

अब न कोई जंग हारा कीजिये

2122 2122 212

अब न कोई जंग हारा कीजिये ।।

अब बुलन्दी पर सितारा कीजिये ।



चाहिए गर कामयाबी इश्क़ में ।

रात दिन चेहरा निहारा कीजिये ।।



चाँद को ला दूं जमी पर आज ही ।

आप मुझको इक इशारा कीजिये ।।



बेखुदी में कह दिया होगा कभी ।

बात दिल मे मत उतारा कीजिये ।।



पालिये उम्मीद मत सरकार से ।

जो मिले उसमे गुजारा कीजिये ।।



ले लिए हैं वोट सारे आपने ।

काम भी कुछ तो हमारा कीजिये ।।



अब मुकर जाते हैं अपने, देखकर… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 28, 2017 at 2:00am — 13 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
17 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service