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कुछ कह मुकरियाँ

जब जब हैं आतंकी आये

बिल में चूहे सा घुस जाये  

खो जाए उसकी आवाज़

क्या सखि नेता? नहिं सखि राज! 

______________________

नाम जपे नित भाईचारा.

भाई को ही समझे चारा 

ऐसे झपटे जैसे बाज़

क्या सखि नेता? नहिं सखि राज! 

______________________

प्लेटफार्म पर सदा घसीटे

मारे दौड़ा दौड़ा पीटे

इम्तहान क्या दोगे आज

क्या सखि पोलिस ? नहिं सखि राज !

_______________________

चलती जिसकी अज़ब गुंडई 

कहे, निकल…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 9:30am — 48 Comments

दो हाइकु- समय कहे।

1.

समय कहे।

जीवन रहा सदा,

जीवन रहे।।

2.

ये समंदर ।

मरता नहीं कभी,

मरी लहर।।

Added by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 12:59am — 4 Comments

भूख : दोहे

(१) रंक जले राजा जले, कौन सका है भाग |

सबके अंदर खौलती, एक क्षुधा की आग ||

(२) ज्वाल क्षुधा में वो भरी, कहीं न ऐसा ताप |

जल के जिसमें आदमी, कर जाता है पाप ||

(३) भूख बड़ी बलवान है, ना लेने दे चैन |

दौड़ें सब इसके लिए, दिन हो चाहे रैन…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 22, 2012 at 8:51pm — 12 Comments

किसी को याद कर रोये





किसी को याद कर रोये,  किसी को रुलाना याद आया,

जब जब तुझे जाते देखा, तेरा लौट आना याद आया..



हर सुर-साज़ देखा जब, बिकता हुआ कीमतों में

हमें तब तेरा यूँ ही, गुनगुनाना याद आया





यूं तो मेरा हाल भी न पूछा, ताउम्र किसी ने

शाम-ऐ-रुखसत पे ही क्यों सब फ़साना याद आया



उनको फुर्सत ही कहाँ, इस पल की यहाँ

और दिल तुझे वो किस्सा पुराना याद आया?



फूल को नोच कर उनके मिलने का यकीं करना

अपने मुकद्दर को यूं भी आज़माना याद…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on August 22, 2012 at 8:00pm — 2 Comments

'आरोग्य कुंडली'

नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय,

सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय. 

मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई.

तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई.

'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू.

नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on August 22, 2012 at 7:30pm — 16 Comments

तीन ताज़ा कह-मुकरियां







बाघ सरीखा जब वह गरजे,

भीडू अक्खी मुम्बई लरजे

राजनीति की नई आवाज़

क्या सखि उद्धव ?

नहीं सखि राज  …





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Added by Albela Khatri on August 22, 2012 at 7:28pm — 12 Comments

मुझ पर एक एहसान करो

 

मुझ पर एक एहसान करो

ढंग से अपना कर्म करो

अलख ज्योति जला के हृदय

नवीन युग का निर्माण करो

मुझ पर एक एहसान करो

 

आँधियों को भी चलने दो

जख्मो को भी बनने दो            

जूझते रहो हर समस्या से

जब तक ना इसका

समूल विनाश करो

मुझ पर एक एहसान करो

 

निपुण स्वयं को इतना करो

कथन करनी में भेद ना हो

स्र्मृति चिन्ह बने तेरे कदम

आयाम ऐसे खड़े करो

मुझ पर एक एहसान…

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Added by PHOOL SINGH on August 22, 2012 at 5:46pm — 7 Comments

जश्न-ए-ईद रिपोर्ट : दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

जश्न-ए-ईद

 

रिपोर्ट : दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

Photo:Deepak kulluvi,Jawed naqvi sahib,Krishna,Md.Hamid Khan Sahib,Arundhati Roy,Yasmin Khan,Kumud,Zoya & her friends

जश्न-ए-ईद मनाने का खूबसूरत मौक़ा हमें इस बार फिर हिन्दोस्तान की जानी मानी हस्तियों के साथ हिदो'स्तानी शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक 'मोहम्मद…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 22, 2012 at 1:02pm — 3 Comments

पिया का घर

सात समुद्र पार कर,

आई पिया के द्वार ,

नव नीले आसमां पर,

झूलते इन्द्रधनुष पे ,

प्राणपिया के अंगना ,

सप्तऋषि के द्वार ,

झंकृत हए सात सुर,

हृदय में नये तराने |

.........................

उतर रहा वह नभ पर ,

सातवें आसमान से ,

लिए रक्तिम लालिमा

सवार सात घोड़ों पर ,

पार सब करता हुआ ,

प्रकाशित हुआ ये जहां

आलोकिक आनंदित

वो आशियाना दीप्त |

...............................

थिरक रही अम्बर में ,

अरुण की ये…

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Added by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 11:21am — 9 Comments

कविता: कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.

आज लड़ रहे है भाई-भाई,बन के हिन्दू मुसलमान.

कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.



काबा और कैलाश के रोज मुद्दे उछल रहे है.

इनके आंच पे गावं-नगर-कसबे जल रहे है.

सिसक रही है इंसानियत,खोकर अपना आत्मसम्मान.

कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.



इस्मत लूटी जा रही है,सरेआम आज नारी की.

बढ़ रही है रोज आबादी, गुंडे बलात्कारी की.

बेबस लाचार जनता की,बड़ी मुश्किल में है प्राण.

कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.…



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Added by Noorain Ansari on August 22, 2012 at 8:00am — 1 Comment

राजनीति दंश है

॥राजनीति दंश है॥
(घनाक्षरी छंद)
*****************************
ये राजनीति दंश है,कौरव कंस वंश है,
ईश यदुवंश अवतार होना चाहिए।
लुटेरे या भिखारी हैं,अथवा भ्रष्टाचारी हैं,
इनसे तो युद्ध आर पार होना चाहिए॥
क्रान्ति आज आहवान,तोड़ सब व्यवधान,
अब हिन्दुस्तान में हुंकार होना चाहिए।
भ्रष्टतंत्र ध्वस्त तंत्र,विकृत विक्षिप्त तंत्र,
गणतंत्र हंत पे प्रहार होना चाहिए॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 21, 2012 at 11:33pm — 4 Comments

प्रेम ग़ज़ल

इस तरह दूर वो आजकल हो गई।

जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।

देह तेरी  किसी  बेल  जैसी लगे,

आई बरसात धुलकर नवल हो गई।

इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,

जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।

बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,

प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।

आम की भोर पर भंवरे जो आ गये

मुस्कुराहट मधुरता  का  फल हो गई।

एक बरसात आई तुम्हारी तरह,

और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।

                                      सूबे सिंह…

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Added by सूबे सिंह सुजान on August 21, 2012 at 10:18pm — 20 Comments

मन की बेकल धरती पर

मन की बेकल धरती पर जब, कोई बदरी छा जाए

जब बात पुरानी कोई आकर, मेरी याद दिला जाए

तब नाम हमारा लेकर खुद को, नींदों में तुम भर लेना

स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को बंद कर लेना



आस मिलन की घुल जाए, हर अंगडाई हर करवट में

जब बस जाए बस मेरा चेहरा,माथे की हर सलवट में

जब बेसुध से ये कदम तुम्हारे, दौडें बरबस देहरी को

जब मेरे आने की आहट, तुम सुन बैठो हर आहट में



तब मेरा नाम लिखे हाथों को, हारी पलकों पर धर लेना

स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 10:00pm — 8 Comments

व्यथा जमाई की (हास्य) : मनहरण घनाक्षरी

ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,

काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |

लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,

साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |

पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 7:11pm — 24 Comments

भ्रम जीने का पाल रहा हूं

भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

जग सा ही बदहाल रहा हूँ

फटा-चिटा कल टाल रहा हूँ

किसी ठूँठ सा जड़ित धरा पर

भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

 

हरित प्रभा, बिखरी तरुणाई

पतझड़ पग जब फटी बिवाई

ओस कणों पर प्यास लुटाए ...

घूर्णित पथ बेहाल चला हूँ

भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

 

पतित-पंथ को जब भी देखा

दिखी कहाँ आशा की रेखा

बड़ी तपिश, था झीना ताना…

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Added by राजेश 'मृदु' on August 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments

पढ़ती हैं विज्ञान को--------!!!

चाँद पर रख दिए हमने कदम
विकास कर रहे हैं हर दम
पहुंचे हैं आज यहाँ हम सदियों में.
पर आज भी पूजा जाता है चाँद
मेरे गांव/शहर की गलियों में ,
और चौथ का व्रत रखती हैं महिलाएं
खुश करने को अपने सुहाग को,
बी. एस.सी करती है पढ़ती हैं विज्ञान को,
पर आज भी दूध पिलाती है नागपंचमी पर नाग को.
चाहे जितना कर लो तुम विकास वो अब भी मिथकों पर है मरती .
उनके लिए आज भी शेष नाग पर टिकी है धरती !!!!!

Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

कह-मुकरियां

१. मंहगाई

दिल को देती है तन्हाई,
कभी ना होती उसकी भरपाई !
तुम क्या जानों पीर पराई ,
क्यों सखा सजनी, ना सखा मंहगाई !!

२. नेता

वो जब भी आये बलईयाँ लेता ,
सबके हाल पर चुटकी लेता !
रोज नये आश्वासन देता,
क्यों सखी साजन, ना सखी नेता !!

Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2012 at 1:30pm — 12 Comments

कंक्रीट के वृक्ष

यहाँ वृक्ष हुआ करते थे

जो कभी

लहलहाते थे

चरमराते थे

उनके पत्तों का

आपस का घर्षण

मन को छू लेता था

उनकी डालों की कर्कश

कभी आंधी में

डराती थी मन को  |

बारिश के मौसम की

खुशबू और ताज़गी

कुछ और बढ़ा देती थी

जीवन को  ||



उन वृक्षों की पांत

अब नहीं मिलती

देखने तक को भी

लेकिन , हाँ !

वृक्ष अब भी हैं

वही डिजाईन

वही उंचाई

शायद उंचाई तो कुछ

और भी ज्यादा हो

मगर इनसे…

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Added by Yogi Saraswat on August 21, 2012 at 1:00pm — 20 Comments

अलविदा दोस्तों

"अलविदा दोस्तों "



मिल जाते हैं

लोग

बहुत से लोग

रहगुजर पे

कुछ बेगाने

अपने से

और कुछ अपने

बेगाने से



सवाल उठने लगते हैं

जहन में

बार- बार

कौन है यार ?????



तन्हाई क्या है

अकेलापन

या जुदाई का एहसास

यार से

किसी अपने से



ये अपना कैसे हो गया ???

और ये बेगाना कैसे ???

अच्छा है

बुरा है

अपना है

बेगाना तो बेगाना है



कुछ पैदाइशी अपने हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 21, 2012 at 12:25pm — 16 Comments

भिड़ रही हैं परवतों से राइयां

हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ

ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां



क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को

मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां



आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ

सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ



दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का

भिड़ रही हैं परवतों से राइयां



चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में

लाज रख लेना तू मेरी साइयां



इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी

मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ



इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं …

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Added by Albela Khatri on August 21, 2012 at 10:30am — 37 Comments

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