जब जब हैं आतंकी आये
बिल में चूहे सा घुस जाये
खो जाए उसकी आवाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
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नाम जपे नित भाईचारा.
भाई को ही समझे चारा
ऐसे झपटे जैसे बाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
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प्लेटफार्म पर सदा घसीटे
मारे दौड़ा दौड़ा पीटे
इम्तहान क्या दोगे आज
क्या सखि पोलिस ? नहिं सखि राज !
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चलती जिसकी अज़ब गुंडई
कहे, निकल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 9:30am — 48 Comments
1.
समय कहे।
जीवन रहा सदा,
जीवन रहे।।
2.
ये समंदर ।
मरता नहीं कभी,
मरी लहर।।
Added by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 12:59am — 4 Comments
(१) रंक जले राजा जले, कौन सका है भाग |
सबके अंदर खौलती, एक क्षुधा की आग ||
(२) ज्वाल क्षुधा में वो भरी, कहीं न ऐसा ताप |
जल के जिसमें आदमी, कर जाता है पाप ||
(३) भूख बड़ी बलवान है, ना लेने दे चैन |
दौड़ें सब इसके लिए, दिन हो चाहे रैन…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 22, 2012 at 8:51pm — 12 Comments
किसी को याद कर रोये, किसी को रुलाना याद आया,
जब जब तुझे जाते देखा, तेरा लौट आना याद आया..
हर सुर-साज़ देखा जब, बिकता हुआ कीमतों में
हमें तब तेरा यूँ ही, गुनगुनाना याद आया
यूं तो मेरा हाल भी न पूछा, ताउम्र किसी ने
शाम-ऐ-रुखसत पे ही क्यों सब फ़साना याद आया
उनको फुर्सत ही कहाँ, इस पल की यहाँ
और दिल तुझे वो किस्सा पुराना याद आया?
फूल को नोच कर उनके मिलने का यकीं करना
अपने मुकद्दर को यूं भी आज़माना याद…
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 22, 2012 at 8:00pm — 2 Comments
नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय,
सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय.
मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई.
तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई.
'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू.
नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 22, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
बाघ सरीखा जब वह गरजे,
भीडू अक्खी मुम्बई लरजे
राजनीति की नई आवाज़
क्या सखि उद्धव ?
नहीं सखि राज …
Added by Albela Khatri on August 22, 2012 at 7:28pm — 12 Comments
मुझ पर एक एहसान करो
ढंग से अपना कर्म करो
अलख ज्योति जला के हृदय
नवीन युग का निर्माण करो
मुझ पर एक एहसान करो
आँधियों को भी चलने दो
जख्मो को भी बनने दो
जूझते रहो हर समस्या से
जब तक ना इसका
समूल विनाश करो
मुझ पर एक एहसान करो
निपुण स्वयं को इतना करो
कथन करनी में भेद ना हो
स्र्मृति चिन्ह बने तेरे कदम
आयाम ऐसे खड़े करो
मुझ पर एक एहसान…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 22, 2012 at 5:46pm — 7 Comments
जश्न-ए-ईद
रिपोर्ट : दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
Photo:Deepak kulluvi,Jawed naqvi sahib,Krishna,Md.Hamid Khan Sahib,Arundhati Roy,Yasmin Khan,Kumud,Zoya & her friends
जश्न-ए-ईद मनाने का खूबसूरत मौक़ा हमें इस बार फिर हिन्दोस्तान की जानी मानी हस्तियों के साथ हिदो'स्तानी शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक 'मोहम्मद…
ContinueAdded by Deepak Sharma Kuluvi on August 22, 2012 at 1:02pm — 3 Comments
सात समुद्र पार कर,
आई पिया के द्वार ,
नव नीले आसमां पर,
झूलते इन्द्रधनुष पे ,
प्राणपिया के अंगना ,
सप्तऋषि के द्वार ,
झंकृत हए सात सुर,
हृदय में नये तराने |
.........................
उतर रहा वह नभ पर ,
सातवें आसमान से ,
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर ,
पार सब करता हुआ ,
प्रकाशित हुआ ये जहां
आलोकिक आनंदित
वो आशियाना दीप्त |
...............................
थिरक रही अम्बर में ,
अरुण की ये…
Added by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 11:21am — 9 Comments
आज लड़ रहे है भाई-भाई,बन के हिन्दू मुसलमान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
काबा और कैलाश के रोज मुद्दे उछल रहे है.
इनके आंच पे गावं-नगर-कसबे जल रहे है.
सिसक रही है इंसानियत,खोकर अपना आत्मसम्मान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
इस्मत लूटी जा रही है,सरेआम आज नारी की.
बढ़ रही है रोज आबादी, गुंडे बलात्कारी की.
बेबस लाचार जनता की,बड़ी मुश्किल में है प्राण.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.…
Added by Noorain Ansari on August 22, 2012 at 8:00am — 1 Comment
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 21, 2012 at 11:33pm — 4 Comments
इस तरह दूर वो आजकल हो गई।
जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई।
इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,
जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।
बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,
प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।
आम की भोर पर भंवरे जो आ गये
मुस्कुराहट मधुरता का फल हो गई।
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।
सूबे सिंह…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on August 21, 2012 at 10:18pm — 20 Comments
मन की बेकल धरती पर जब, कोई बदरी छा जाए
जब बात पुरानी कोई आकर, मेरी याद दिला जाए
तब नाम हमारा लेकर खुद को, नींदों में तुम भर लेना
स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को बंद कर लेना
आस मिलन की घुल जाए, हर अंगडाई हर करवट में
जब बस जाए बस मेरा चेहरा,माथे की हर सलवट में
जब बेसुध से ये कदम तुम्हारे, दौडें बरबस देहरी को
जब मेरे आने की आहट, तुम सुन बैठो हर आहट में
तब मेरा नाम लिखे हाथों को, हारी पलकों पर धर लेना
स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को…
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |
लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 7:11pm — 24 Comments
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
जग सा ही बदहाल रहा हूँ
फटा-चिटा कल टाल रहा हूँ
किसी ठूँठ सा जड़ित धरा पर
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
हरित प्रभा, बिखरी तरुणाई
पतझड़ पग जब फटी बिवाई
ओस कणों पर प्यास लुटाए ...
घूर्णित पथ बेहाल चला हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
पतित-पंथ को जब भी देखा
दिखी कहाँ आशा की रेखा
बड़ी तपिश, था झीना ताना…
Added by राजेश 'मृदु' on August 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
चाँद पर रख दिए हमने कदम
विकास कर रहे हैं हर दम
पहुंचे हैं आज यहाँ हम सदियों में.
पर आज भी पूजा जाता है चाँद
मेरे गांव/शहर की गलियों में ,
और चौथ का व्रत रखती हैं महिलाएं
खुश करने को अपने सुहाग को,
बी. एस.सी करती है पढ़ती हैं विज्ञान को,
पर आज भी दूध पिलाती है नागपंचमी पर नाग को.
चाहे जितना कर लो तुम विकास वो अब भी मिथकों पर है मरती .
उनके लिए आज भी शेष नाग पर टिकी है धरती !!!!!
Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2012 at 3:00pm — 13 Comments
१. मंहगाई
दिल को देती है तन्हाई,
कभी ना होती उसकी भरपाई !
तुम क्या जानों पीर पराई ,
क्यों सखा सजनी, ना सखा मंहगाई !!
२. नेता
वो जब भी आये बलईयाँ लेता ,
सबके हाल पर चुटकी लेता !
रोज नये आश्वासन देता,
क्यों सखी साजन, ना सखी नेता !!
Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2012 at 1:30pm — 12 Comments
यहाँ वृक्ष हुआ करते थे
जो कभी
लहलहाते थे
चरमराते थे
उनके पत्तों का
आपस का घर्षण
मन को छू लेता था
उनकी डालों की कर्कश
कभी आंधी में
डराती थी मन को |
बारिश के मौसम की
खुशबू और ताज़गी
कुछ और बढ़ा देती थी
जीवन को ||
उन वृक्षों की पांत
अब नहीं मिलती
देखने तक को भी
लेकिन , हाँ !
वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे…
Added by Yogi Saraswat on August 21, 2012 at 1:00pm — 20 Comments
"अलविदा दोस्तों "
मिल जाते हैं
लोग
बहुत से लोग
रहगुजर पे
कुछ बेगाने
अपने से
और कुछ अपने
बेगाने से
सवाल उठने लगते हैं
जहन में
बार- बार
कौन है यार ?????
तन्हाई क्या है
अकेलापन
या जुदाई का एहसास
यार से
किसी अपने से
ये अपना कैसे हो गया ???
और ये बेगाना कैसे ???
अच्छा है
बुरा है
अपना है
बेगाना तो बेगाना है
कुछ पैदाइशी अपने हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 21, 2012 at 12:25pm — 16 Comments
हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां
क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां
आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ
दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां
चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां
इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ
इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं …
Added by Albela Khatri on August 21, 2012 at 10:30am — 37 Comments
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