Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 5, 2017 at 9:30am — 23 Comments
मुझे याद है
जानबूझ कर वो मेरा सामान भूल जाना....
ज़ोर देकर तुमने
जिसे कहा बार बार कि ले जाना ...
कि इसी बहाने
चोरी से तुम उसे रख दोगी...
और मुझे फिर
एक बहाना मिल जाएगा
इस तरह मुस्कुराने का....
मौलिक और अप्रकाशित।
Added by ASHUTOSH JHA on January 4, 2017 at 8:00pm — 14 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 4, 2017 at 4:03pm — 17 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:00pm — 16 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 3, 2017 at 11:30pm — 27 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 3, 2017 at 10:00pm — 13 Comments
चांदनी ... (क्षणिका)
तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे
घूरता रहा
रकीबों सा
निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 3, 2017 at 5:40pm — 23 Comments
पिया खड़े है सामने,
घूंघट के पट खोल।
चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,
आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।
आधी ताकत लोक की,
अपनी पीड़ा बोल।
पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,
लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।
वो आयेंगे लौटकर,
सारी धरती गोल।
जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,
आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।
हिम्मत से मिटना सहज,
जीवन का ये झोल।
अपने…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 10:00am — 31 Comments
2122 2122 2122
बात कहने का सही लहज़ा नहीं है
या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है
वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है
पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है
गर दशानन आज भी है आदमी में
औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?
जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक
उसका दावा है कि वो भटका नहीं है
ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली
लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है
योजनायें उच्च –निम्नों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 9:30am — 30 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 10:03pm — 14 Comments
तुम्हारे स्नेह की रंगीन रश्मि
मैं उद्दीप्त
गंभीर-तन्मय ध्यानमग्न
कहीं ऊँचा खड़ा था
और तुम
मुझसे भी ऊँची ...
वह कहकहे
प्रदीप्त स्फुलिंगों-से
हमारी वार्ताएँ मीठी
चमकती दमकती
आँखों में रोशनी की लहर-सी
तुम्हारी बेकाबू दुरंत आसमानी मजबूरी
बरसों पहले की बात
अचानक चाँटे-सी पड़ी
ताज़ी है आज भी
गुंथी तुमसे
उतनी ही मुझसे
बिंध-बिंध जाती है
वेदना की छाती को…
ContinueAdded by vijay nikore on January 2, 2017 at 8:40pm — 22 Comments
Added by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 7:00pm — 19 Comments
बह्र : ११२१ २१२२ ११२१ २१२२
जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है
न यहाँ तेरा भला है न वहाँ तेरा भला है
अभी तक तो आइना सब को दिखा रहा था सच ही
लगा अंडबंड बकने ये स्वयं से जब मिला है
न कोई पहुँच सका है किसी एक राह पर चल
वही सच तलक है पहुँचा जो सभी पे चल सका है
इसी भोर में परीक्षा मेरी ज़िंदगी की होगी
सो सनम ये जिस्म तेरा मैंने रात भर पढ़ा है
यदि ब्लैकहोल को हम न गिनें तो इस जगत…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 1, 2017 at 8:19pm — 15 Comments
2122 1212 22
श्याम तेरी अलक में खो जाऊं
एक न्यारे खलक में खो जाऊं
नेह से आँख जो हुयी बोझिल
बंद तेरी पलक में खो जाऊं
तू अँधेरे में काश दिख जाये
और मैं उस झलक में खो जाऊं
रूप ऐसा कि थे सभी पागल
मैं उसी छवि-छलक में खो जाऊं
है सुना वह तेरा ठिकाना है
तो चलूँ उस फलक में खो जाऊं
(मौलिक /अप्रकाशित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 8:00pm — 13 Comments
ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )
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(फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन)
क़ौले उलफत निभाना नये साल में |
मुझ को मत भूल जाना नये साल में |
क्यूँ हैं बाहर खड़े घर में आ जाइए
कीजिए मत बहाना नये साल में |
हाथ ही मिल सके अपने बीते बरस
दिल को दिल से मिलाना नये साल में |
इक कॅलंडर नया घर की दीवार पर
है ज़रूरी लगाना नये साल में |
सिर्फ़ गमगीन आशिक़…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2017 at 5:50pm — 16 Comments
ओजोन की परत में अब छेद खल रहा है
धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है
उन्नति के नाम पर हैं ये कारनामे अपने
तालाब पाट घर के हम बुन रहे हैं सपने
खेतों में चौगनी है माना फसल बढ़ी पर
सब्जी अनाज फल में बिष खा रहे हैं अपने
नूतन प्रयोग अपना खुद हमको छल रहा है
धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है
ये गंदगी का ढेर जो चारो तरफ लगाया
इस गंदगी के ढेर को खुद हमने है बढ़ाया
हम खूब समझते है परिणाम जानते है
पर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 3:33pm — 12 Comments
नवबर्ष पर हार्दिक शुभकामनाये
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
कुमकुम रोली से रंग धरती
दर पर वन्दनवार लगाये
जान दे रहे हैं सरहद पर
आज भारती के जो लाल
उनके सीने हैं फौलादी
उन्हें डराएगा क्या काल
मुल्क पड़ोसी को अब आओ
हम उसकी औकात दिखाएं
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
अश्क बहाने से होती
तौहीन शेर दिल वीरों की
अश्कों से बलिदान…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 1:38pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 1, 2017 at 10:30am — 28 Comments
वह अपनी धुंधली आँखों से बीत रहे वर्ष की पीठ पर बने रंग बिरंगे चित्रों को बहुत गौर से निहार रही थी, वह अभी उनमें छुपे चेहरों को पहचानने का प्रयास ही कर रही थी कि सहसा वे चित्र चलने फिरने और बोलने लग पड़ेI
"माँ जी! कितनी दफा कहा है कि इन बर्तनों को हाथ मत लगाया करोI"
नये टी सेट का कप उससे क्या टूटा उसके घर में कलेश ने पाँव पसार लिए थेI
अगले दृश्य में नए साल की इस झांकी को होली के रंगों ने ढक लियाI
"बेटा ये बहू की पहली होली है, तो इस बार त्यौहार धूमधाम से..."…
Added by योगराज प्रभाकर on January 1, 2017 at 12:01am — 14 Comments
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