खुश हो जाते हैं वे
पाकर इत्ती सी खिचड़ी
तीन-चार घंटे भले ही
इसके लिए खडा रहना पड़े पंक्तिबद्ध ...
खुश हो जाते हैं वे
पाकर एक कमीज़ नई
जिसे पहनने का मौका उन्हें
मिलता कभी-कभी ही है
खुश हो जाते हैं वे
पाकर प्लास्टिक की चप्पलें
जिसे कीचड या नाला पार करते समय
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...
ऐसे ही
एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते…
Added by anwar suhail on January 4, 2014 at 9:33pm — 9 Comments
जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में
मुब्तला हूँ हुस्न की रानाइयों में/१
आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत
चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२
दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत
हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३
सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ
छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४
वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on January 4, 2014 at 9:00pm — 25 Comments
आज गहरे अंतस में
न जाने कैसी
अजीब सी
छाया बन रही है
लगातार जारी है
समझने की नाकाम कोशिश ....
मगर छाया नहीं सुलझती
दौड़ रहा हूँ ...
बीते हुये कल के
हर एक के जानिब को
शायद वो हो ...
नहीं वो नहीं है ...
अच्छा वो हो सकता है
मगर कहाँ भागूँ
कितना भागूँ ...
बहुत दूर आ चुका हूँ
वापस जाना मुमकीन नहीं हैं
अंतस में
छाया और गहरी
होती जा रही…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on January 4, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,
भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,
वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 4:12pm — 36 Comments
अंजान जिन्दगी से
उड़ती पतंगो की तरह
सोलह बसंत पार
चली साजन के घर
सजाये सपने प्यार के
चाहत के अरमान के
मगर तबाह हुई
जिन्दगी मेरी
उनके झूठ से
राम कृष्ण के वंशज
जमाना कर्जदार
बेटा परिवार का दिवाना
परदेश कमाता
परिवार का रखवाला
शर्मीला,शांत, सुशील
बड़े अरमान से पाला
सर्वगुण सम्पन्न है
क्या क्या सुनी कहानी
सपनो को मिली हवा
हकीकत हकीकत थी
ना छुट पायी…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on January 4, 2014 at 3:00pm — 13 Comments
उसका रुमाल …..
टप,टप
टप,टप
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें
सन्नाटे को तोड़ने का
अनवरत प्रयास कर रही थीं
और साथ ही प्रयास कर रही थी वो
अनगिनित बारिशों में
भीगी रातों की भीगी यादें
कहर ढाती बारिश का
तूफ़ान तो रुक जाता है
लेकिन तबाही का मंजर
दूर तक साथ जाता है
जाने सावन…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2014 at 12:30pm — 28 Comments
ला ला ल ला ल ला ला ल ला ला ला ला ल ला
महफ़िल तू आज फिर से सजाने की बात कर
हसरत जवा है पीने पिलाने की बात कर
चिलमन कहाँ से आया तेरे मेरे बीच में
चिलमन हटा ये नजरें मिलाने की बात कर
चिलमन हटा तो मुखड़े को घूंघट में यूं छुपा
गुल की कली न ऐसे जलाने की बात कर
जलवे जो तेरे पहली दफा देखे थे कभी
इक बार फिर वो जलवे दिखाने की बात कर
हाथों में हाथ तेरे हों बस इतनी आरजू
जन्मों की…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2014 at 10:00am — 25 Comments
जाग उठी सड़कें उन्हें बस सच बयानी चाहिए
कह दो संसद से न कोई लंतरानी चाहिए
देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर
ऐ तिजारत ! अब तुझे नज़रें झुकानी चाहिए
मैं बना दूँ अपनी पेशानी पे सजदे की लकीर
तू बता तुझको दिलों पर हुक्मरानी चाहिए ?
धूप में जलना पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक
जिद है बच्चों की उन्हें कुछ जाफरानी चाहिए
प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख
जिक्र जब मेरा …
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2014 at 10:00am — 23 Comments
जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(१)
जो ज़िंदगी जिया कि
जैसे हो किराए का मकान
रहा तैयार हर समय
जो साँस का लिए सामान
सुखों की कोई चाह नहीं
दुखों में कोई आह नहीं
डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(२)
जो चल दिया तो चल दिया
जिसे नहीं सबर है कुछ
नदी है क्या पहाड़ क्या ,
नहीं जिसे ख़बर है कुछ
जो नींद से बिका नहीं
थकन…
Added by ajay sharma on January 4, 2014 at 12:00am — 13 Comments
भारत और रेल का जनरल डब्बा
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है,
जनरल के डब्बे में जीकर बचपन रोज पला करता है।
हो चाहे व्यवसाय दुग्ध का,
रोज रोज का ऑफिस…
ContinueAdded by Neeraj Dwivedi on January 3, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )
शिल्प = प्रत्यॆक चरण मॆं १५ मात्रायॆं तुकान्त गुरु+लघु कॆ साथ,
=========================================
भॊर भयॆ प्रभु लक्ष्मण संग !! उड़त गगन महुँ विविध विहंग !!
कहुँ कहुँ भ्रमर करहिँ गुँन्जार !! नाचहिँ कहुँ कहुँ झूमि पुछार !!
मन्द पवन सुचि शीत बयार !! मानहुँ गावत मंगलचार !!
लॆन प्रसून गयॆ फ़ुलवारि !! बंधु लखन सँग राम खरारि !!
पहुँचॆ पुष्प-वाटिका जाइ !! स्वागत करत सुमन मुस्काइ !!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 7:30pm — 28 Comments
दीवाने भी अज़ब हैं वो जो महफ़िल लूट लेते हैं ।
के सिर कदमों में रखते हैं और दिल लूट लेते हैं ।
कि जिन लहरों के तूफानों ने लूटी कश्तियाँ लाखों ,
उन्हीं लहरों के आवेगों को साहिल लूट लेते हैं ।
शाख से टूटकर अपनी बिखर जाते हैं जो तिनके ,
बनाने को घरौंदे उनको हारिल लूट लेते हैं ।
अदब तो दोस्ती का है पर अदायें दुश्मनों सी हैं ,
के हमारा चैन उनके नैन कातिल लूट लेते हैं ।
मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on January 3, 2014 at 4:30pm — 19 Comments
जब रातें होंगी अधूरी सी ,
न बातें होंगी पूरी सी ,
न हाथों में हाथ होगा ,
न तेरा मेरा साथ होगा ,
क्या ऐसा भी कोई मंज़र होगा ?
याद में तेरी आँखों से आँसु छलक जाते ,
अब हम हर सपनों में बस तुझे ही पाते ,
इस वीराने में भी जन्नत सा मज़ा आता ,
अगर हम एक दूसरे के हो जाते।
क्या ऐसा भी कोई मंज़र होगा ?
सुलघति हुई गलियों में होगा चलना ,
काँटों भरी राहों में होगा मिलना ,
बस प्यार तेरा पाना ही होगी मेरी मंज़िल ,
मेरे…
Added by M Vijish kumar on January 3, 2014 at 2:00pm — 11 Comments
मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,
हकीकत के सीने में दफ़्न,
कुछ इच्छाओं की
उन धुँधली यादों को,
मेरे सपनों की लाशों को,
अब तक ढो रहा हूँ मैं…
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया..
आज मुझे लगता है
मैंने बहुत कुछ खो दिया,
पहले जो खोया है..
उसे याद कर,
और फिर,
उन्हीं यादों में खोकर,
एक लम्बा सफर तय किया,
मगर,
आज मुझे लगा
कि मैं…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 3, 2014 at 11:07am — 38 Comments
राजनीति की शतरंज में
पैदल बिल्कुल सीधा चलता है
किंतु उसे केवल तिरछा मारने का अधिकार होता है
पैदल को रोकने के लिए उसके सामने एक पैदल लगा देना काफ़ी होता है
इसलिये पैदल संख्या में सबसे ज्यादा होते हुये भी
सबसे कमजोर मोहरा माना जाता है
कोई पैदल अगर बचते बचाते विपक्षी के घर में घुस जाय
और सारे राज जान ले
तो उसे फौरन मार दिया जाता है
या फिर वो जो बनना चाहे बना दिया जाता है
ऊँट बेचारा जो वास्तव में हमेशा सीधा…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 2, 2014 at 9:22pm — 17 Comments
जब से उनका यहाँ आना जाना हुआ
दिल हमारा भी उनका दिवाना हुआ /
साथ तेरे का जो छूट जाना हुआ
तब से सबका यहाँ आना जाना हुआ /
माँग तेरी भरूं आ सितारों से मैं
ऐसा कह जो गया फिर न आना हुआ /
माँग सूनी हुई जो सितारों भरी
माथे की बिंदी छिनना बहाना हुआ /
राहतें अब कहाँ चैन दिल को कहाँ
मत कुरेदो जख्म ये पुराना हुआ /
याद आती रही रात भर थी मुझे
भूल वो अब गया इक जमाना हुआ /
उसके आने की टूटी है…
Added by Sarita Bhatia on January 2, 2014 at 7:30pm — 20 Comments
नदी मर गयी,
बहुत तड़पने के बाद.
घाव मवादी था.
आती है अब महक.
अब शहर में गिद्ध नहीं आते.
कुत्ते लगाते हैं दौड़
उसकी मृत देह पर
फिर भाग खड़े होते हैं.
नदी जवान थी, खूबसूरत.
वह थी चिर यौवना.
भर देती थी जीवन से.
खेलती थी , करती थी अठखेलियाँ,
छूकर कभी इस किनारे को
कभी उस किनारे को.
उछालती जल, करती कल्लोल,
भिंगोती तट के पीपल को.
पुरबाई में पीपल का पेड़
झूम कर करता था…
ContinueAdded by Neeraj Neer on January 2, 2014 at 6:01pm — 24 Comments
ग़ज़ल
फाइलातुन फइलातुन फैलुन \ फइलुन
२१२२ ११२२ २२ \ ११२
वर्ना अन्जान शहर लगता है
माँ जो होती है तो घर लगता है |
दौर कैसा है नई नस्लों का,
वक़्त से पहले ही पर लगता है |
है इधर रंग बदलती दुनिया,
मैं चला जाऊं उधर लगता है |
जाने किस दर्द से गुज़रा होगा ,
शेर जज़्बात से तर लगता है |
इस ऊंचाई से न देखो मुझको ,
दूर से सौ भी सिफर लगता है |
इन चटख फूलों में मकरंद नहीं ,
ये दवाओं का असर लगता है |…
Added by Abhinav Arun on January 2, 2014 at 4:30pm — 40 Comments
नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें कुछ खास
आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हरिक डाली
मौसम घर का बदल गया ,
फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
भीगे से अहसास
दरक गये दरवाजे घर के
आंधी थी आयी
तिनका तिनका भी उजड़ गया
बेसुध है माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास
चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
नयी जगह घबराय
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे समझाय
ऊँची ऊँची अटारियों पे…
Added by shashi purwar on January 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments
शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द
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शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,
मत्तगयंद सवैया छन्द (१)
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पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!
सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!
रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!
हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
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