दिखा दे आईना मिला दे खुदी से
अब ऐसे कोई इम्तहान नहीं होते ......
मसीहा के घर न उगे ज्यों मसीहा
बेईमान के हमेशा बेईमान नहीं होते.......
गलियों के ज़िम्मे वो मासूम बचपन
जिनके सर निगेहबान नहीं होते ........
किस्से उनके भी कम नहीं होते
जिनके कभी दर्ज़े बयान नहीं होते ......
महलों में ही चलती हैं…
Added by amita tiwari on March 26, 2016 at 8:04pm — 9 Comments
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको
कुछ मीत मनाने हैं मुझको
जो अब तक पूरे हो न सके
वो गीत बनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
कब मौसम जाने रूठ गया
कब शाख से पत्ता टूट गया
जो रिश्तों में हैं सिसक रहे
वो दर्द अपनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
क्यूँ नैन शयन में बोल उठे
क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे
अवगुंठन में तृषित हिया के
अंगार मिटाने …
Added by Sushil Sarna on March 26, 2016 at 6:22pm — 10 Comments
74
आस
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पलकों भरे प्यार को हम
नित आस लगाये रहे देखते,
मुट्ठी भर आशीष के लिये
कल, कल कहकर रहे तरसते,
कल की जिज्ञासा ले डूबी सारा जीवन
हम हाथ मले बेगार बटोरे रहे तड़पते।।
तिनके ने नजर चुराई ऐंसी,
हम मीलों जल में गये डूबते,
विकराल क्रूर भंवरों में फिर,
बहुविधि क्रंदन कर रहे सिसकते,
सब आस साॅंस में सूख गयी,
हम तमपूरित जलमग्न तहों में रहे भटकते।।
संरक्षण भी जो मिला हमको,
निर्देशों की बौछार लिये,…
Added by Dr T R Sukul on March 26, 2016 at 3:14pm — 4 Comments
दरार – ( लघुकथा ) -
मीरा और मोहन कितने खुश थे जब उनके परिवार वालों ने उनके प्रेम विवाह को मंज़ूरी दे दी!मीरा के तो पैर ज़मीन पर ही नहीं पड रहे थे! हनीमून के लिये श्रीनगर गये!दौनों की खुशियां सातवें आसमान पर थीं!
एक दिन अंतरंग क्षणों में, कसमे वादे के दौर में, मीरा ने मोहन को अपने साथ हुई एक घटना सुना दी,” वह जब सोलह साल की थी!उसके दूर के रिश्ते के मामाजी ने उसके साथ ज़बरदस्ती की थी! उसने मॉ को रो रो कर सारा वाकया सुनाया! वह चाहती थी कि पुलिस में शिकायत कर दो! पर मॉ ने…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 26, 2016 at 11:50am — 10 Comments
Added by Seema Singh on March 26, 2016 at 11:29am — 5 Comments
गज़ल....बह्र----२१२२, ११२२, ११२२, २२
आम के बाग में महुआ से मिलाया उसने.
मस्त पुरवाई हसीं फूल सजाया उसने.
शुद्ध महुआ का प्रखर ज्ञान पिलाया उसने'
संग होली का मज़ा प्रेम सिखाया उसने.
ज़िन्दगी दर्द सही गर्द छिपा कर हॅसती,
चोट गम्भीर भले घाव सिलाया उसने.
ताल-नदियों में अड़ी रेत झगड़ती रहती,
लाज़-पानी के लिये मेघ बुलाया उसने.
वक्त की खार हवा घात अकड़ पतझड़ सब,
होलिका खार की हर बार जलाया…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2016 at 12:30am — 4 Comments
Added by amita tiwari on March 25, 2016 at 8:30pm — 2 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 25, 2016 at 12:30pm — 1 Comment
कलाधर छंद......होलिका दबंग है
विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु रखने का प्राविधान है. अर्थात २, १ गुणे १५ तत्पश्चात एक गुरु रखकर इस छंद की रचना की जाती है. इस प्रकार इसमें इकतीस वर्ण होते हैं. संदर्भ अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की पुस्तक " छंद माला के काव्य-सौष्ठव" में ऐसे अनेकानेक सुंदर छंद विद्यमान हैं..
यथा----…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2016 at 12:00pm — 4 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२
जीवन भर ख़ुद को दुहराना
इससे अच्छा है मर जाना
मैं मदिरा में खेल रहा हूँ
टूट गया जब से पैमाना
भीड़ उसे नायक समझेगी
जिसको आता हो चिल्लाना
यादों के विषधर डस लेंगे
मत खोलो दिल का तहखाना
सीने में दिल रखना ‘सज्जन’
अपना हो या हो बेगाना
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 24, 2016 at 10:19pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 24, 2016 at 8:11am — 2 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 23, 2016 at 3:00pm — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 23, 2016 at 12:25pm — 5 Comments
गज़ल.....१२२ १२२ १२२ १२२
हमारे घरों का उजाला लिये जो.
हंसीं शशि मलाला सितारा लिये जो.
लड़ी गोलियों से बिना खौफ खाये
खुले आसमां का हवाला लिये जो.
दुआ यदि सलामत कयामत भी हारे
ये तारिख बलन्दी की माला लिये जो.
चुरा कर खुशी ज़िन्दगी लूट लेते-
उन्हीं से मुहब्बत–फंसाना लिये जो.
ये होली-दिवाली मिले ईद-सत्यम
हंसी फाग समरस तराना लिये जो.
सुखनवर....केवल प्रसाद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 11:58am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 23, 2016 at 10:48am — 4 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 10:31am — 2 Comments
क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ
कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने
बस आशा का गीत हमेशा गाया मैंने
जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ
जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है
मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी
सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी
वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है
आया है जो आज उसे निश्चित है जाना
इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?
इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे
फिर भी रे इंसान…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2016 at 10:44pm — 31 Comments
धूसरित था मलिन-मुख हम स्वच्छ दर्पण कर रहे
झूठ को अपना लिया हर सत्य से अब डर रहे
अवधान तुमने किया था
हमने उसे माना नहीं
पाखण्ड यौवन का सदा
उद्दाम था जाना नही
पत्र अब इस विटप-वपु के सब समय से झर रहे
चेतना या समझ आती
है मगर कुछ देर से
बच नहीं पाता मनुज
दिक्-काल के अंधेर से
जो किया पर्यंत जीवन अब उसी को भर रहे
हम अकेले ही नहीं
संतप्त है इस भाव में
जल रहा है अखिल…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2016 at 7:50pm — 12 Comments
मन बहुत उदास है ...
जाने क्यूँ आज
मन बहुत उदास है
वज़ह भी कोई ख़ास नहीं
फिर भी एक
अंजानी से उदासी ने
हृदय में पाँव पसार रखे हैं //
लगता है शायद
कुछ ऐसा रह गया
जो अपनी पूर्णता को
प्राप्त न कर सका हो //
या फिर कोई लम्हा
शब की चादर में
अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ
धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते
जाग गया हो //
या फिर कोई याद
तन्हाईयों में रक्स करती
उदासी के घरौंदे में…
Added by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 4:25pm — 4 Comments
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत -
कुंडलिया छंद
=========
होली का त्यौहार ये, लगता सदा बहार
भारत वासी मानते, सतरंगी त्यौहार,
सतरंगी त्यौहार, मनाते घर घर खुशियाँ
बजता ह्रदय मृदंग, रंग बरसाते हुरियाँ |
लक्ष्मण देखे लोग,बनाते अपनी टोली
जीजा साली संग, खेलते खुलकर होली |
(2)
होली में दिल खोलकर, करे आप सत्कार
घर में खुशियों के लिए,आया यह त्यौहार
आया यह त्यौहार, यहाँ पर सभी मनाते
फाग खेलते…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2016 at 10:48am — 4 Comments
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