Added by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 8:03pm — 9 Comments
मन वीणा के झनके तार ,
पिया मिलन की आई रात |
सकुचाती , इठलाती पहुँची द्वार ,
पिया मिलन की मन में आस ||
उनके रंग में रंग जाऊँगी ,
दूजा रंग न मन भाऊँगी |
अधरों पर अधरों की लाली ,
खिल मन में इठलाऊँगी ||
आज रति ने छेड़ी मधुतान ,
पिया मिलन की मन में आस ||
गलबाहों का हार पहनाकर ,
मंद – मंद मुसकाऊँगी |
श्वासों की मणियों से ,
भावों को खूब सजाऊँगी ||
आज आया जीवन में मधुमास ,
पिया…
ContinueAdded by ANJU MISHRA on March 24, 2015 at 5:33pm — 10 Comments
(यहाँ प्रति दोहे में वृत्यानुप्रास है किन्तु सम्पुर्ण रचना में छेकानुप्रास है अंतर यह है की वृत्यानुप्रास में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति होती है जबकि छेका में अनेक वर्णों की )
गा-गाकर गौरव गिरा गरिमामय गन्धर्व
गीर्वाण गुरु, गीतिमय , गान-ज्ञान गुण गर्व I
भक्त भगवती भारती भूरि भावमय भव्य
भावशवलता, भ्रान्तिता भ्रमित भनिति भवितव्य I
वीणापाणि वरानना वरे विदुष विद्वान
वाणी-वाणी वत्सला वर्ण-वर्ण वरदान I
शुभ्र…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 11:00am — 31 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं
कहूं मरहम इसे या खंजरों का वार ही समझूं
कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझ को लगती है
तेरी बातों को बातें ही या फिर इकरार ही समझूं
वो डर के भेडियों से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि मैं ऐतवार ही समझूं
तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है
तुझे कातिल कहूं मैं या इसे उपकार ही समझूं
पड़े ओंठों पे ताले पलकें उठती…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 10:00am — 22 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 24, 2015 at 9:31am — 16 Comments
गुल से है परेशां गुलिस्तां सारा
भंवरे से दिल लगाने की ज़िद उसकी नहीं गवारा
मगर गुल जानता है कि आज काँटों का साथ
फिर माली के हाथों किसी अंजान के साथ
गुलशन से बिदाई का मसला है सारा
बिछुड़ने का फिक्र नहीं उसको
कल का क्या.... आज तो जी लेने दो उसको
काट शाख़ से सब सूंघेंगे एक दिन
फिर अगले दिन मसल डालेंगे ये उसको
भंवरा तो रोज़ आ कर चूमता है
मंडराता है चारो तरफ लुभाता है उसको
अपनी गुंजन के गीत सुनाता है
और सुबह फिर मिलने का वादा दे जाता…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 8:16am — 10 Comments
दो विदाई, अब तो कहीं दूर निकल जाएँगे ,
अब तो ये गीत कहीं और जा के गाएँगे !
आदमी कुछ भी नहीं, एक एहसास तो है,
शुन्य जैसा ही सही, एक आकाश तो है !
टूटा बिखरा हो कहीं, एक विश्वास तो है,
इस हक़ीकत को हम ,अब न भुला पायेंगे !
दो विदाई, अब तो कहीं दूर निकल जाएँगे ,
अब तो ये गीत कहीं और जा के गाएँगे !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on March 24, 2015 at 2:57am — 14 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
ज़िंदगी किस कदर इक सफ़र बन गयी
अनलिखी ये कहानी खबर बन गयी
बात छोटी सही सबके मुह जो चढ़ी
बात खींची गयी फिर रबर बन गयी
राह चलते हुये बज उठी सीटियाँ
सादगी कामिनी की ज़हर बन गयी
बेवफाई मिली आग दिल में जली
बेअदब आज मेरी नज़र बन गयी
चाह हमने रखी रोशनी की अगर
आरज़ू ही हमारी कबर बन गयी
ईश्क की इक नज़र कैद में जो मिली
हथकड़ी टूटकर इक तबर बन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 23, 2015 at 1:00pm — 14 Comments
हर हीरा किसी हसीना के
गले का हार नहीं बनता !
हर हसीना के गले को
हीरों का हार नहीं मिलता !
कई हीरे ज़मी में दबे रहते हैं
कोयलों की गोद में
सोये पड़े रहते हैं !
उनको तराशने वालों का
औजार नहीं मिलता !
न कमी हसीना के हुस्न में है
न हीरों की गुणवत्ता में !
बस किस्मत के खेल हैं सारे
किसी को वोह मिल जाते हैं
और हमें प्यार नहीं मिलता !!
***************************
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 23, 2015 at 12:42pm — 15 Comments
चलते चलते ……
1.
एक कतरा
देर तक
बहते बहते
कपोल पर ही सो गया
शायद
अभी इंतज़ार बाकी था
2.
ये अलस्सुब्ह
किसकी नमी को छूकर
बादे सबा आई है
खुली पलक का
कोई ख़्वाब
सिसकता रह गया शायद
3.
तेरे हर वादे पे
यकीं करता रहा
पर तुझे यकीं न आया
मैं हर लम्हा तुझपे
सौ सौ बार मरता रहा
मेरी मौत को भी तूने
मेरी नींद समझा
नज़र भर के भी तूने
न देखा मुझको …
Added by Sushil Sarna on March 23, 2015 at 12:30pm — 28 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ - हजज मुसम्मन सालिम |
चमन में फूल खिलते हैं खुशी का राज होता है | |
ख़ुशी में झूमते भौंरे मजे से काज होता है | |
खिले जब फूल डाली में नजारा ही बदल जाये… |
Added by Shyam Narain Verma on March 23, 2015 at 12:15pm — 12 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
ज़ुल्फ़ का घन घुमड़ता रहा रात भर
बिजलियों से मैं लड़ता रहा रात भर
घाव ठंडी हवाओं से दिनभर मिले
जिस्म तेरा चुपड़ता रहा रात भर
जिस्म पर तेरे हीरे चमकते रहे
मैं भी जुगनू पकड़ता रहा रात भर
पी लबों से, गिरा तेरे आगोश में
मुझ पे संयम बिगड़ता रहा रात भर
जिस भी दिन तुझसे अनबन हुई जान-ए-जाँ
आ के ख़ुद से झगड़ता रहा रात भर
---------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2015 at 11:54am — 22 Comments
गौरैया
खुश थी
चोंच मे सतरंगी सपने लिये
आसमान मे उड रही थी
उधर,
गिद्ध भी खुश था
गौरैया को देखकर
उसने अपनी पैनी नजरे गडा दी
मासूम गौरैया पे,
और दबोचना चाहा अपने खूनी पंजे मे
गौरैया, घबरा के भागी पर कितना भाग पाती ??
आखिर,
गिद्ध के पंजे मे आ ही गयी
गौरैया फडफडा रही थी, रो रही थी
गिद्ध खुश था अपना शिकार पा के
कुछ देर बाद
गौरैया अपने नुचे और टूटे पंखों के साथ
लहूलुहान जमीं पे पडी…
ContinueAdded by MUKESH SRIVASTAVA on March 23, 2015 at 11:30am — 9 Comments
221 1222 221 1222
तू आज नहीं आयी तो जान ये जानी है
मैं रोज कहूँ ऐसा ये बात पुरानी है
......
कुछ वादे तेरे झूठे कुछ तोड दिये मैंने
ये कैसी मुहब्बत है ये कैसी कहानी है
...
बस चाँद सितारे हैं जो साथ जगे मेरे
उनके ही सहारे से अब याद भुलानी है
..
जिस रोज उतर जाये उस रोज चले आना
कुछ दिन ही चलेगा बस ये जोश जवानी है
....
सच यार कहूँ दिल से हैं बात ये सब झूठी
तेरा मैं दिवाना हूँ तू मेरी दिवानी है
--------------…
Added by umesh katara on March 23, 2015 at 9:30am — 18 Comments
212---1222---212---1222 |
|
धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती |
ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती |
|
ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 9:17am — 38 Comments
“अरे!! भाई.. दोनों में से एक बैल तो अभी दांत वाला है, ठीक से कीमत बता. फिर बिना दांत वाला वैसे ही लेजा, उसका क्या करूँगा मैं..? आखिर खली-भूसा भी महंगा पड़ता है..”
“पटेल भैया .. दांत वाले की ही कीमत है, बुढ्ढे बैल को मुझ से भी कौन खरीदेगा..? यहीं खूंटे भी ही मरने दो..”
नजदीक ही पटेल भैया के बीमार पिता, चारपाई पर पड़े सारी बातें सुन रहे थे...
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2015 at 9:21pm — 28 Comments
दीवारों में दरारें-4
मीना का घर रामनवमी के दिन
“मीना,भोग तैयार है |- - - जाS ,लडकियों को बुला ला|”
“जी मम्मी |”
“अरी मीना,यूँ सुबह-सुबह कहाँ चली ?” चौखट पर बैठे अख़बार पढ़ रहे दादा जी ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा
“भोग लगाने के लिए कन्याओं को बुलाने |”मीना ने धीमी आवाज़ में कहा
“अच्छा-अच्छा,जा जल्दी जा,पड़ोस में छोटी लड़कियाँ वैसे ही कम हैं अगर दूसरे लोग उनके घर पहले चले गए तो हमें ईंतज़ार करना पड़ेगा |”
“जी,दादा जी |”कहकर वो…
ContinueAdded by somesh kumar on March 22, 2015 at 9:00pm — 8 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 22, 2015 at 8:00pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
मोतियों को गूंथकर धागा सदा हँसता गया
जंग खाये रास्तों को कांरवाँ चमका गया
ओस से भीगे बदन पर थी नजर खुर्शीद की
प्यास उसकी खुद बुझाकर फूल इक खिलता गया
बन गये अफ़साने कितने और नगमें जी उठे
जब जमीं ने सर उठाया आसमां झुकता गया
कहकशाँ में यूँ नहाई चाँदनी जल्वानशीं
नूर उसका देखकर महताब भी पथरा गया
हुस्न की मलिका कली की देख वो अँगड़ाइयां
चूम कर रुख्सार उसके दफअतन भँवरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 22, 2015 at 6:30pm — 24 Comments
नया बना भवन अपने रूप और बनावट पर मुग्ध हो रहा था | तभी अंदर से ईंट ने आवाज़ दी " क्यों इतने आत्ममुग्ध दिख रहे हो , रूपवान तो हम भी हैं "|
" हुँह , तुम्हारा रूप किसे दिखता है , सब तो मुझे ही देखते हैं ", भवन ने इतराते हुए कहा |
छड़ ने , कंक्रीट ने भी यही बात दुहरायी , भवन ने वैसे ही जवाब दिया |
ईंट बोली गर मैं हट जाऊं ? कंक्रीट बोला मैं पकड़ ढीली कर दूँ ? छड ने कहा मैं टेढ़ी हो लटक जाऊं?
भवन थोड़ा सोच में पड़ गया |
" तुम इसलिए खूबसूरत दिख रहे हो क्योंकि तुममे हमने अपनी खूबसूरती…
Added by विनय कुमार on March 22, 2015 at 12:18am — 26 Comments
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