Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:03pm — 10 Comments
समीक्षा: उपन्यास ‘पहचान’
जद्दोजहद पहचान पाने की
-जाहिद खान
किसी भी समाज को गर अच्छी तरह से जानना-पहचाना है, तो साहित्य एक बड़ा माध्यम हो सकता है। साहित्य में जिस तरह से समाज की सूक्ष्म विवेचना होती है, वैसी विवेचना समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी मिलना नामुमकिन है। कोई उपन्यास, कहानी या फिर आत्मकथ्य जिस सहजता और सरलता…
ContinueAdded by anwar suhail on March 12, 2013 at 9:00pm — 1 Comment
जय! जय! जय! बजरंग बली!
हे! बजरंगी दया तुम्हारी, सदा राम नाम गुन गाया है!
तेरी ही कृपा से मैंने, प्रभु पाद सरस रस पाया है!! जय.....
तेरे अन्तरमन में ज्यों, सिया राम छवि सुख छाई है!
मन उत्कण्ठा अविकार लिये, मैंने भी अलख जगाई है!! जय.....
कृपा करो हे! पवन पुत्र, फिर वरद तुम्हारा आया है!
तेरी ही कृपा दृष्टि से, यह सम्मान पुनः मिल पाया है!!
जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!
जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!!
के’पी’सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 6:42pm — 4 Comments
चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (1)
देश में बहती है जो गंगा वह है क्या?
वह पानी की धारा है या ज्ञान की?
भई दोनों ही तो बह रही हैं साथ साथ, शताब्दियों से!
आज इक्कीसवीं शताब्दि में लेकिन दृष्य कुछ और है.
इस महान् देश की दो महान् धारायें अब शाष्वत नहीं, शुद्ध नहीं, मल रहित नहीं.
धारा में फंसा है ज्ञान या ज्ञान में फंस गई है धारा!
कौन…
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 12, 2013 at 5:30pm — 14 Comments
फागुन के रंग छंदों के संग
सवैया
गोल कपोल गुलाल लगे तन सोह रही अति सुंदर चोली
केश घने घन से लगते करते अति चंचल नैन ठिठोली
रूप अनूप धरे हँसती कह कोयल सी मन मोहक बोली
रंग फुहार करे मदमस्त लगे तन मादक खेलत होली
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 12, 2013 at 3:30pm — 2 Comments
बनिक भए
रंगरेज मेरे
बिछुआ, पायल
बेहाल सखी
फन काढ़
समीरन लाल चले
अंतर धधके सौ ज्वालमुखी
गठ जोड़ नयन
स्वादे आहट
कनखी जी का
जंजाल सखी
इत राग महावर
झाईं पड़े
उत फागुन है उत्ताल सखी
मन के झूमर
चुप बैठ गए
चूते अमिया
दुरकाल सखी
भ्रू-चाप चुने
महुआ नागर
मुसकै भदवा बैताल सखी
रस रस गलती
चलती चरखी
हर आस भई
पातालमुखी
अरदास…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 1:52pm — 11 Comments
दूर करैं सब कष्ट महा प्रभु ,जाप करो शिव शंकर नामा !
जो नर ध्यान धरै नित शंकर ,ते नर पावत शंकर धामा !!
ध्यान लगाय भजो नित शंकर ,लालच मोह सबै तजि कामा !
जो भ्रमता भव बंधन में तब,पावत ना वह जीव विरामा !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 12:31pm — 8 Comments
अँधेरे में डूबकर
सन्नाटे से बतियाता
वो वीराना
समय से दौड़ में पिछड़ा
वह बेबस, कर्महीन खंड है…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 12, 2013 at 12:04pm — 18 Comments
प्रेम नाम है-- अहसास का,
अहसास जो करे -
कर सकता है,अभिव्यक्त वही।
घर आँगन में प्यारी सी,
कलियों की खुशबु से महक
सास का…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 11:30am — 28 Comments
--छन्द --
तन जरत, मन बरत, लगत सर, टप-टप टपकत चलत रकत धर।
हरत न भव-भय मन इरष कर, हर-हर बरषत झरत छपर घर।।
तन क्षरत मन कस न ठगत नर, जल घट भर-भर भरत नगर सर।
तन-मन-धन सब धरन कंत घर,हस-हस मरकर सरग चलत नर।।4
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाषित रचना
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 10:40am — 7 Comments
दोहा --:ःबम-बम भोलेःः--
तन मन भय रगड़ भसम, सब गण करत बखान!
कण कण सत रज तम रमत,समरथ सकल इशान!!1
चरण कमल रज लख करत,शत शत नमन महेश!
भजत भजन हर हर भवम, भय तज मरम गणेश!!2
सगर-तगड़-तरवर-तरन, हर जन धरत परान!
अलख झलक नर मन समझ,पल क्षण बनत महान!!3
जनत झरत लट पट उड़़त, हलचल अवघड़ जान!
तमस शमन भव भय हरत, सत मन बरगद शान!!4
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 10:30am — 6 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:00am — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 12, 2013 at 7:58am — 5 Comments
जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है |
तब तो समझूं, मुन्तज़िर हूँ, मुन्तज़र मेरा भी है |
जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |…
Added by वीनस केसरी on March 12, 2013 at 3:30am — 8 Comments
पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है।
खौफ़ में साये में जीने का हुनर मेरा भी है॥
क़त्ल, दहशत, बम धमाके, हैं दरिंदे हर तरफ,
वहशतों के दौर…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 11, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
ये बहारें ये फिजा सौगात तेरी आ गयी है
चांद ने घूंघट उतारा बात तेरी आ गयी है
याद आई, तू न आया, क्या गिला करना किसी से
रात भर आंसू बहाएं बात तेरी आ गयी है
इन घटाओं ने न जाने कौन सा जादू किया जो…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 11, 2013 at 10:18pm — 11 Comments
कलियुग मंथन
कलिकाल अकाल बढ़ा जग मा। अस मात विक्राल हलाहल सा।।
जन जीव अजीव समीर दुःखी । जगती तल अम्बर ताल बसी।।
सब देव अदेव गंधर्ब डरे । ब्रहमा - विशनू - महदेव कहे ।।
अब तो बस एक उपाय करें। गुरू नाम जपें सब राम रटे ।।
जग मा रस गंध सुगन्ध बहे । भजनादि संकीर्तन गूॅज रहे ।।
मन -मान समान धरे उर मा। सतसंग उमंग अनन्य रस मा।।
कह गीत सुनीति कही सुनहीं। पर मान बढ़ाहि बुझाइ सही ।।
इतना कहिके प्रभु जोरि हॅसें । कलि काल सुमीत मिले जिनसे।।
चित शान्ति विचार उठा नभ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 11, 2013 at 9:56pm — No Comments
मौलिक/अप्रकाशित
नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर ।
यह नारा कमजोर था, नारा नारीखोर ।
नारा नारीखोर, लगे सड़कों…
ContinueAdded by रविकर on March 11, 2013 at 9:04pm — 4 Comments
(1)तपता तन
सूरज की किरणें
लाचार जन
(2)धूप का घर
तरुवर की छाया
ठंडी बयार
(3)सभी बेकल
अनुभव करते
उष्ण कम्बल
(4)संध्या हो जाये
रजनी आगमन
सभी मगन
(५) उड़ती जाती
बंद मुठ्ठी में कैद
भाप बनती
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 11, 2013 at 8:45pm — 8 Comments
इस सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव ह्रदय में अपने अस्तित्व को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं। 'मैं कौन हूँ' 'इस धरती पर मेरे आगमन का क्या औचित्य है' ' वह कौन है जो इस सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करता है'…
ContinueAdded by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on March 11, 2013 at 8:30pm — 4 Comments
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