सत्यांजलि
धन्य धन्य हे मात तू, धन्य हुआ यह पूत।
असहायों की मदद कर, यश-धन मिला अकूत।।1
क्षितिज द्वार पर नित्य ही, कुमकुम करे विचार।
स्वर्ण किरण के जाल में, क्यों फॅसता संसार।।2
उपकारी बन कर फलें, ज्यों दिनकर का तेज।
दिन भर तप कर दे रहा, रात्रि सुखद की सेज।।3
धर्म कार्य जन हित रहे, चींटी तक रख ध्यान।
मात्र द्वेष निज दम्भ रख, ज्ञानी भी शैतान।।4
जनहित मन्तर धर्म का, स्वार्थी पगे अधर्म।
सच्चा सेवक त्यागमय,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2015 at 9:30pm — 8 Comments
मदर्स दे आने वाला है बस एक दिन के लिए
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माँ क्यों चुप हो कुछ बोलो तो ?
अपने मन की पीड़ा को
मेरे आगे खोलो तो
माँ तुम क्यों चुप हो ?
कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन
तुमने अपने को…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on April 30, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे
तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे
रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे
लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे
गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे
पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे…
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 5:30pm — 22 Comments
सैलाब
मानव-प्रसंगों के गहरे कठिन फ़लसफ़े
अब न कोई सवाल
न जवाब
कहीं कुछ नहीं
"कुछ नहीं" की अजीब
यह मौन मनोदशा
अपार सर दर्द
ठोस, पत्थर के टुकड़े-सा
हृदय-सम्बन्ध सतही न होंगे, सत्य ही होंगे
वरना वीरान अन्तस्तल-गुहा में
दिन-प्रतिदिन पल-पल पल छिन
गहन-गम्भीर घावों से न रिसते रहते
दलदली ज़िन्दगी के अकुलाते
अर्थ अनर्थ
कुछ हुआ कि झपकते ही पलक
विश्व-दृश्य…
ContinueAdded by vijay nikore on April 30, 2015 at 11:10am — 14 Comments
“माँ! तुम कह रही थी न, शादी कर ले ! सोचता हूँ, कर ही लूँ।“
“कोई पसंद है क्या ? बता दे ?”
“हाँ पसंद तो है । मेरे साथ काम करती है। तुम्हें और पिता जी को ऐतराज तो नहीं होगा ?“
“हमें क्यों ऐतराज होगा भला ! तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है। पर हाँ! लड़की मांगलिक नही होनी चाहिए!, अपने से छोटी जाति की भी नहीं , और स्वागत में कोई कमी भी न हो !“
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on April 29, 2015 at 6:30pm — 20 Comments
बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था
एक असीम ताकत
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on April 29, 2015 at 6:28pm — 16 Comments
रे पथिक, रुक जा! ठहर जा! आज कर कुछ आकलन
बाँच गठरी कर्म की औ’ झाँक अपना संचयन
हैं यहाँ साथी बहुत जो संग में तेरे चले
स्वप्न बन सुन्दर सलोने कोर में दृग की पले,
प्रीतिमय उल्लास ले सम्बन्ध संजोता रहा
या कपट,छल,तंज से निर्मल हृदय तूने छले ?
ऊर्ध्वरेता बन चला क्या मुस्कुराहट बाँटता ?
छोड़ आया ग्रंथियों में या सिसकता सा रुदन ?.......रे पथिक..
कर्मपथ होता कठिन, तप साधता क्या तू रहा ?
या नियतिवश संग…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on April 29, 2015 at 5:00pm — 22 Comments
उसकी सासें गातीं हैं सरगम
अौर रात रक़्स करती है/
मैं चाँद की डफली बजाता हूँ,
मगर ये गीत जाने कौन गाता है!
हमने चाँद को चिकुटी काटी /
शरारत सूझी/
उसे प्यार आया, फिर सहलाया /
और,
दे गया चाँदनी रात भर के लिये.
उसे चाँद दे दिया
और ख़ुद चाँदनी ले ली.
ठग लिया यूँ आसमाँ को आज हमने.
सुना है,
आसमां सितारों से शिकायत करता है.
रात की मिट्टी में,
तेरी यादों की एक डाली रोपी
जज्बात से सींचा उसे,
फिर,…
Added by shree suneel on April 29, 2015 at 4:00pm — 16 Comments
२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ - रजज मुसम्मन सालिम |
कोई दबा घर में कहीं आशा लगाये और का | |
इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का | |
बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर … |
Added by Shyam Narain Verma on April 29, 2015 at 3:01pm — 11 Comments
पापा तुम बहुत याद आते हो ..
समय की बेलगाम रफ़्तार ने
पापा आपकी छत्रछाया से
साँसों के प्रवाह से
आपको मुक्त कर दिया
दुनिया कहती हैं कि ईश्वर है कहाँ ?
शायद दुनिया पागल हैं
पर पापा आप ही तो ईश्वर का रूप हो
मुझसे पूछे ये दुनिया, जब पिता नहीं होते
तो ईश्वर के नाम से जाने जाते है
आपके जाने के बाद
तमाम कोशिशों के बावजूद
सामने की दीवार पे
आपकी तस्वीर नहीं लगा…
Added by sunita dohare on April 29, 2015 at 1:30pm — 14 Comments
में अपने छोटे बेटे के साथ शहर में रहता हुI और मेरी घरवाली गाव में बड़े बेटे के साथ रहती हैI समय के अनुसार जायदाद के साथ साथ हमारा भी बंटवारा हो गयाI आज उसकी बहुत याद आ रही थीI फ़ोन में रिचार्ज खत्म होने की वजह से कई दिनों से उस से बात नहीं हो पाईI पिछले तीन दिनों से बेटे को बोल रहा थाI पर बेटे को ऑफिस में टाइम नहीं मिलने की वजह से रिचार्ज नहीं करवा पायाI आज भी में बेटे को ऑफिस जाते समय रिचार्ज याद दिला रहा थाI तभी बहु की पीछे से आवाज आई, बावजी - आप को कितनी बार बोला…
ContinueAdded by harikishan ojha on April 29, 2015 at 12:40pm — 19 Comments
Added by Samar kabeer on April 29, 2015 at 10:43am — 29 Comments
22/22/22/22 (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा,
तो कैसे तकदीर लिखेगा.
.
जंग पे जाता हुआ सिपाही,
हुस्न नहीं शमशीर लिखेगा.
.
राज सभा में मर्द थे कितने,
पांचाली का चीर लिखेगा.
.
ईमां आज बिका है उसका,
अब वो छाछ को खीर लिखेगा.
.
कोई राँझा अपनें खूँ से,
जब भी लिखेगा, हीर लिखेगा.
.
शेर कहे हैं जिसने कुल दो,
वो भी खुद को मीर लिखेगा.
.
नहीं जलेगा वो ख़त तुझसे,
जो आँखों का…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2015 at 9:04am — 24 Comments
जिंदगी में कोई
क्यूँ नहीं मिलता
एक नया तूफ़ान
क्यूँ नहीं खिलता
मैं भी देख लूँ जी के
ऊँचे टीलों पे
क्या होते हैं एहसास
इन कबीलों के !
मैं भी उड़ लूँ
तूफ़ानी फिज़ाओं में
जानता हूँ एक दिन
तूफ़ान थम जायेंगे
फिर खुशिओं के
उत्सव ढल जायेंगे
और बेवफाईओं के
ख़ामोश पल आयेंगे !
मौत आ जाये बेधड़क
तूफ़ान के बवंडर में
न होने से तो
कुछ होना अच्छा होगा
प्यार ना मिलने से तो
मिलकर खोना अच्छा…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 7:35am — 12 Comments
उन दिनों जमशेद पुर में फैक्ट्री में फोर्जिंग प्लांट पर मेरी ड्यूटी थी फोर्जिंग प्लांट अत्यंत व्यस्त हो चुके थे। मार्च के महीने में टार्गेट पूरा करने प्रेशर जोरो पर था । बिजली के हलके फुल्के फाल्ट को नजर अंदाज इसलिए कर दिया जाता था क्यों कि सिट डाउन लेने का मतलब था उत्पादन कार्य को बाधित करना जिसे बास कभी भी बर्दास्त नहीं कर सकते थे । फिर कौन जाए बिल्ली के गले में घण्टी बाँधने । जैसा चल रहा है चलने दो बाद में देखा जायेगा । सेक्शन में लाइटिंग की सप्लाई की केबल्स को बन्दरों ने उछल कूद…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 28, 2015 at 5:30pm — 4 Comments
Added by मनोज अहसास on April 28, 2015 at 5:17pm — 3 Comments
एक जोर बड़ी आवाज हुयी
जैसे विमान बादल गरजा
आया चक्कर मष्तिष्क उलझन
घुमरी-चक्कर जैसे वचपन
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अब प्राण घिरे लगता संकट
पग भाग चले इत उत झटपट
कुछ ईंट गिरी गिरते पत्थर
कुछ भवन धूल उड़ता चंदन
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माटी से माटी मिलने को
आतुर सबको झकझोर दिया
कुछ गले मिले कुछ रोते जो
साँसे-दिल जैसे दफन किया
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चीखें क्रंदन बस यहां…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2015 at 4:30pm — 18 Comments
2212 2212 2212
आसान राहों पे ले आती है मुझे
उसकी दुआ है, लग हीं जाती है मुझे.
ये शोर दिन का चैन लूटे है मेरा
औ' रात की चुप्पी जगाती है मुझे.
किस किस को रोकूं कौन सुनता है मेरी
ये भीङ पागल जो बताती है मुझे.
कूचे में जो मज्कूर है उस्से अलग
दहलीज़ तो कुछ औ' सुनाती है मुझे.
पहलू में मेरे बैठी है मुँह मोङ कर
ये ज़िन्दगी यूँ आजमाती है मुझे.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shree suneel on April 28, 2015 at 3:36pm — 24 Comments
अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है
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मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है
अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी
तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं
कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे
दुनिया को
लेकिन आपको ये जानना चाहिये कि ,
इस उजाले की पहुँच बाहरी है
किसी के अन्दर फैले अन्धेरों तक पहुँच नही है इनकी
भ्रम में न रहें
कानून अगर सही सही पाले जायें
तो, ये व्यवस्था देते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 28, 2015 at 11:30am — 27 Comments
Added by Ravi Prakash on April 28, 2015 at 11:30am — 10 Comments
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