नारी नेता जीव दो, लीला अपरम्पार
नेता देश उजाड़ते, रचती घर को नार
नेता हमको चाहिए, बूझे जन की बात
सूरज बन चमका करे, दिन हो या फिर रात
वोट जरूरी है बहुत, देना सोच विचार
निर्भय हो मत डालना, जन्म-सिद्ध अधिकार
धर्म-कर्म के नाम पर, मत डालो तुम वोट
गरल बहुत हम पी चुके, रहे न कोई खोट
सात बजे से शुरू हो, छः पर होता अंत
कार्य करें सब समय से, रखते गुण यह संत
साथ-साथ हम सब चलें, पावन यह त्यौहार…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 10:00pm — 16 Comments
वो गंगा की धारा
वो निर्मल किनारा
जहाँ माँ थी लेटी
हमें कुछ न कहती
हमें याद है वो
निर्मल सा चेहरा
अभी कुछ था कहना
अभी कुछ था सुनना
याद आ रहा था
माँ का तराना
जिसे गाया करती थी
माता हमारी ...
उठाया करती
वो गाकर तराना
मगर आज वो लेटी
हमे कुछ न कहती
पानी था निर्मल
वो अश्रु की धारा
रोके न रुकी थी
वो आँखों की धारा
वही था वो सूरज
वही था…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 20, 2014 at 7:54pm — 6 Comments
पलक पर अश्क मत लाओ मेरे जो बाद बाकी है
फ़साना खत्म है मेरा मगर कुछ याद बाकी हैं
मेरा चर्चा करेंगे लोग महफिल में के जश्नों में
समझलेना दिवाने आज भी आबाद बाकी हैं
हजारों मिन्नतें करलीं खुदा के वास्ते उनसे
रहीं कुछ हसरतें बाकी फकत फरियाद बाकी हैं
मेरे कातिल मेरे दुश्मन जरा कुछ हौंसला रखना
बचाने को मेरी खातिर के कुछ इमदाद बाकी हैं
अ़मन के दुश्मनों से भी जरा कहदो जहाँ वालो
अभी तक आज तक इस देश में आजाद…
ContinueAdded by umesh katara on April 20, 2014 at 7:26pm — 17 Comments
आदमी
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ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं
बौने लोग
विकृति और स्वभाव
एक दूजे के
पर्यायवाची
चाहरदीवारी के मध्य
शून्य…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 6:41pm — 34 Comments
छाँह में छिपना चाहता हूँ ...
तुम कहते हो मैं भी
चाँद की चाँदनी को पी लूँ ?
कल हर भूखे का
भोजन निश्चित है क्या ?
आशा-अनाशा की उलझी
परस्पर लड़ती हुई हवाएँ…
ContinueAdded by vijay nikore on April 20, 2014 at 2:09pm — 20 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
उँगलियों पर हो निशाँ आँखों में पर पट्टी नहीं
मुल्क की जम्हूरियत बस इंतिखाबी ही नहीं
है यही मौका कि बदलें देश की तक़दीर हम
ये न फिर कहना पड़े उम्मीद ही बाकी नहीं
हाल क्या होगा हमारा गर्म होगी जब धरा
होगा आँखों में समंदर पर कहीं पानी नहीं
गिर पड़ा वो आखरी पत्ता शजर से टूट के
अब रही कोई बहारों की निशानी भी नहीं
सूख जायेगा चमन होगी हवा में आग सी
फूल होगा याद में…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 20, 2014 at 9:35am — 18 Comments
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास
वियोग की है वेदना
या पारगमन है पास
मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
तू गाती तो आता
यह वसंत मदमाता
तू आती तो आता
मलयानिल महकाता
तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
कलि कुसुम का यह देश
रह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
हौले से तुम गाना…
Added by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:30pm — 9 Comments
अश्क आँखों में …
अश्क आँखों में हमारी ......हैं निशानी आपकी
जान ले ले न हमारी .......ये बेज़ुबानी आपकी
आपकी खामोशियों का ......शोर अब होने लगा
हो न जाए आम ये .....दिल की कहानी आपकी
लाख चाहा अब न देखें ...आपके ख़्वाबों को हम
क्या करें कम्बख़्त नीदें भी ...हैं दिवानी आपकी
आप मुज़मिर हैं हमारी ...रातों की तन्हाईयों में
बिस्तर की सलवटों में हैं ...यादें सुहानी आपकी
जीने के वास्ते जिस्म से ..सांसें ज़ेहद…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 19, 2014 at 3:26pm — 2 Comments
बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ
वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२
मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.
हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,
आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,
यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,
रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:30pm — 40 Comments
गुणीजनों की शान में, हाज़िर दोहे पाँच
मिले ज्ञान जो छंद का, कभी न आए आँच
करें ब्रह्म का ध्यान हम, पीटें नहीं लकीर
भेदभाव सब छोड़ दें, रंग-जाति तकदीर
सबसे पहले हम जगें, जागे फिर संसार
करें कर्म अपने सभी, सुमिरें पवन कुमार
मज़ा सवाया और है, मज़ा अढ़ाई और
मज़ा मिले तब आम का, घने लगे जब बौर
कन्या पूजन वे करें, राखें उनकी लाज
होती अम्बे की कृपा, बनते सारे काज
वाणी कबिरा की भली, प्रेम राह जग जोत…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 19, 2014 at 10:30am — 31 Comments
2122 1212 22 /112
आज फिर से बवाल लेते हैं
प्रश्न कोई उछाल लेते हैं
प्यास का हल कोई हमीं करलें
वो समझने में साल लेते हैं
उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले
वो जो सब का मलाल लेते हैं
तेग वो ही चलायें, खुश रह लें
आदतन, हम जो ढाल लेते हैं
आज कश्मीर पर हो हल कोई
आओ सिक्का उछाल लेते हैं
भूख, उनके खड़ी रही दर पर
रिज़्क जो- जो हलाल लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 18, 2014 at 5:00pm — 40 Comments
रदीफ़ -के लिये
काफ़िया -शुभकामनाओं ,संभावनाओं , याचनाओं
अर्कान -2122 ,2122 ,2122 ,212
है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये
आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये .
नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये
हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये .
है बड़ा मुश्किल समझना जिंदगी की धार को
माँगते अधिकार हैं सब वर्जनाओं…
Added by dr lalit mohan pant on April 18, 2014 at 1:29am — 21 Comments
यह जीवन का चक्र है,पतझड़ फिर मधुमास!
बस कुछ दिन की बात है,हो क्यों मित्र उदास!!
नेता नित नित गढ़ रहे ,नये नये भ्रमजाल !
जनता भूखों मर रही,इनकी मोटी खाल !!
स्वाभिमान को बेचकर,क्रय कर लाये लोभ!
जानबूझकर ढो रहे,केवल कुंठित क्षोभ!!
झूठा ही इक बार तो,कर दो यूँ इकरार!
जीवित हो जाऊँ पुनः,कह दो मुझसे प्यार!!
माना तुमको है नहीं,अब तो मुझसे प्यार!
किया करो हँसकर कभी,बातें ही दो चार!!…
Added by ram shiromani pathak on April 17, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
चुनाव
भरे नहीं थे पिछले घाव
लो फिर आगया चुनाव
मुद्दों की मलहम लेकर
घर-घर बाँट रहे हैं
फिर नए साजिश की
क्या ये सोच रहे हैं ?
धर्म मज़हब की लेकर आड़
करते नित नए खिलवाड़
फिर शह-मात की बारी है
सियासी जंग की तैयारी है
आरोप प्रत्यारोप का
भयंकर गोला बारी है
विकास की उम्मीद लिए
परिवर्तन पर परिवर्तन
लेकिन थमता नहीं यहाँ
कुशासन का ये नर्तन
कहीं मुँह बड़ा हुआ…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on April 17, 2014 at 6:30pm — 8 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:30pm — 34 Comments
वो गयी न ज़बीं से …
आबाद हैं तन्हाईयाँ ..तेरी यादों की महक से
वो गयी न ज़बीं से .मैंने देखा बहुत बहक के
कब तलक रोकें भला बेशर्मी बहते अश्कों की
छुप सके न तीरगी में अक्स उनकी महक के
सुर्ख आँखें कह रही हैं ....बेकरारी इंतज़ार की
लो आरिज़ों पे रुक गए ..छुपे दर्द यूँ पलक के
ज़िंदा हैं हम अब तलक..... आप ही के वास्ते
रूह वरना जानती है ......सब रास्ते फलक के
बस गया है नफ़स में ....अहसास वो आपका
देखा न एक…
Added by Sushil Sarna on April 17, 2014 at 5:13pm — 10 Comments
मैं सबसे प्रेम करता था|
मेरे प्रेम को
एक मोबाइल कॉल की तरह अग्रेषित किया
मेरे अपनों ने ही
चमकते सिक्कों की ओर|
मेरे परिवार में मैं मूर्ख कहलाया |
मेरा लक्ष्य प्रेम था,
इसलिए…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 17, 2014 at 12:44pm — 9 Comments
मेरे अंजुमन में रौनकें बेशक़ कम होंगी ज़रूर
क्या सोच के दोज़ख़ की तरफ़ चल दिए हज़ूर
आपने तो एक बार भी मुड़के देखा नहीं हमें
न जानें था किस बात का अपने आपपे गरूर
यह वक़्त किसी के लिए रुक जाएगा यहाँ
निकाल देना चाहिए सबको दिमाग़ से यह फ़ितूर
चढ़ जाए एक बार तो हर्गिज़ उतरता ही नहीं
क़लम का हो शराब का हो या शबाब का हो सरूर
मासूम से थे हम 'दीपक' शायर 'कुल्लुवी'हो गए
हमसे क्या आप खुद से भी हो गए बहुत दूर
दीपक…
ContinueAdded by Deepak Sharma Kuluvi on April 17, 2014 at 11:30am — 12 Comments
मनमोहन छंद : लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.
अब तक थी जो ,सुलभ डगर
आगे साथी,कठिन सफ़र
सँभल-सँभल कर ,रखें कदम
साथ चलेंगे ,जब- जब हम
सब काँटों को ,चुन-चुन कर
फूल बिछाएँ,पग-पग पर
आजा चुन लें ,राह नवल
जहाँ प्यार के ,खिलें कँवल
फूल हँसेंगे ,खिल-खिलकर
कष्ट सहेंगे, मिलजुलकर
पथ का होगा, सही चयन
सही दिशा में,…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 17, 2014 at 11:30am — 20 Comments
2122 2122 212
आँसुओं को यूँ मिलाकर नीर में
ज्यों दवा हो पी रहा हूँ पीर में
**
हाथ की रेखा मिटाकर चल दिया
क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में
**
कौन डरता जाँ गवाने के लिए
रख जहर जितना हो रखना तीर में
**
हर तरफ उसके दुशासन डर गया
मैं न था कान्हा जो बधता चीर में
**
माँ के हाथों सूखी रोटी का मजा
आ न पाया यार तेरी खीर में
**
शायरी कहता रहा…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 10:30am — 15 Comments
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