चैत्र पवित्र नवरात्री , साल नया ये खास.
गुडी पडवा में नींव पड़े, चहुंदिश सुख की आस.
सुख दुख गतिक्रम सृष्टि का, चले सनातन चक्र.
किसी…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 11, 2013 at 6:00am — 4 Comments
समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं
अर्गला स्तोत्र को हिंदी में छंदबद्ध करने का प्रयास किया है
अथ अर्गला स्तोत्र
ॐ
शिवा जयंती माता काली, भद्रकाली है नाम
क्षमा स्वधा कपालिनी स्वाहा, बारम्बार प्रणाम
दुर्गा धात्री माँ जगदम्बे, जपता आठों याम
मात मंगला हे चामुंडे, हरो क्रोध अरु काम
सबकी पीड़ा हरने वाली, तुमको नमन हजार
व्याप्त चराचर में तुम माता, तेरी जय जयकार
जय दो यश…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 11:00pm — 17 Comments
नववर्ष
नव वर्ष हमारा आ भी गया, शुभ कामना छा भी गया।
इक वर्ष हमारा गुजर गया,इक वर्ष हमारा बढ़ भी गया।।
हम इस वर्ष को प्यार करें, मिलकर शांति बिहार करे।
नहीं जात-पात आडम्बर हो,मिल सम्प्रदाय विचार करें।।
यहां आतंक वाद की बेला है,चहुं दिश जग अंधियारा है।
इस वर्ष के नूतन प्रभात से, हमको आतंक मिटाना है।।
नववर्ष हमारा हो मंगल, जन-जन की विकृति दूर करें।
न भेद-भाव न धर्म-देश, विश्वबंधुत्व का स्वर गूंज…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2013 at 10:21pm — 13 Comments
संप्रेषित शुभकामना, स्वजन करें स्वीकार
नव-संवत शुभ आगमन, सृष्टि सृजन त्यौहार
सृष्टि-सृजन त्यौहार, पुलक शुभ वर्ष मनाएँ
मनस चरित व्यवहार साध निज गौरव पाएं
संकल्पित हो कर्म, धर्म को करें प्रतिष्ठित
राष्ट्र करे उत्थान, भावना शुभ संप्रेषित
Added by Dr.Prachi Singh on April 10, 2013 at 8:30pm — 28 Comments
पढ़ लिख कर आगे बढ़ें, बनें नेक इन्सान ।
अच्छी शिक्षा जो मिले, बच्चें भरें उड़ान ।।
बच्चे कोमल फूल से, बच्चे हैं मासूम ।
सुमन की भांति खिल उठें, बनो धूप लो चूम ।।
देखो बच्चों प्रेम ही, जीवन का आधार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 10, 2013 at 5:06pm — 11 Comments
नव-संवत्सर कीशुभ कामनाए
-लक्ष्मण लडीवाला
बीत गया वर्ष विगत,नव संवतसर आया,
गत का आकलन कर,आगे अवसर लाया।
स्व का गत रहा कैसा, स्व हो अब कैसा,
करे नवा कुछ ऐसा, हो दो पग आगे जैसा।
नव-संवत्सर का प्रारम्भ होता दुर्गा पूजा से,
घट-स्थापना, उगा नया धान नए जवारे से ।
शक्ति की प्रतिक मान करते देवी कि पूजा,
प्रेरणा स्वरूप है देवी,मिलती जिनसे ऊर्जा |
जिसके बिना चल न सके दुनिया का…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2013 at 3:30pm — 8 Comments
रंग भरे
फागुन के चेहरे
संग रीता
सुख चैन
टनटन करती
भाग रही फिर
अग्निशमन की वैन
होंठ चाटता
बेबस राजू
सोच रहा
फिर आज
चूते छप्पर
सर्द रात दे
तुष्ट नहीं क्यों ताज
तैर रही
उसकी आंखों में
मात-पिता की देह
आवास इंदिरा
के नीचे ही
कुचल गया
जो नेह
है तो वो
जनजाति का पर
पाए कहां प्रमाण
दैन्य रेख पर
अमला…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 10, 2013 at 1:18pm — 7 Comments
घरनी -कविता | |
सदा चैन की बंशी बजती , जब घर में खुशहाली हो | |
जंगल में मंगल हो जाता , साथ अगर घरवाली हो | |
एक म्यान में दो तलवारें , चैन कहाँ मिल पायेगा | |
यदि यार का दखल हो घर में ,… |
Added by Shyam Narain Verma on April 10, 2013 at 11:12am — 7 Comments
Added by manoj shukla on April 10, 2013 at 11:07am — 6 Comments
क्या न लिखूँ
दोपहर घर में बैठा मैं, कुछ,
सोच रहा,मस्तिस्क में आ रहे,
विषय कई,पर उलझन है की,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।
शब्दों और वाणी में, आज,
अनुशासन है नहीं, फिर भी,
समय देशकाल को विचारकर,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।
लिखने से तूफ़ान आ जाता,
लिखने से संबंध बिगड़ते,और,
सत्ता गिर जाती है ,इसीलिये,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।
लिखने से मन के भाव आते,
कटु सत्य निकल जाता है,
आ…
Added by akhilesh mishra on April 10, 2013 at 11:00am — 5 Comments
मैं कौन हू ,मैं क्या हू ,
नही जानता ,
मैं खुद ही स्वयं को ,
नहीं पहचानता ,
मैं स्वप्न हू या कोई हक़ीकत ,
मैं स्वयं हू या कोई वसीयत ,
जैसे किसी कॅन्वस पर उतारा हुआ ,
रंगों की बौछारों से मारा हुआ ,
हर किसी के स्वप्न की तामिर हू मैं ,
हक़ीकत नही निमित तस्वीर…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:58am — 15 Comments
ख्वाब यूँ तूफ़ानी हो गए ,
रिश्ते भी जिस्मानी हो गए
,
बदले करवट ज़िंदगी , हर पल हर छिन ,
लक्ष्य भी आसमानी हो गए ,
क्या दिखाएँ जलवा , अपने अश्कों का ,
गम ही किसी की , मेहरबानी हो गए ,
नहीं आता रोना उनके सितम पे ,
फिक्रे वफ़ा , किस्से कहानी हो गए ,
बेहया हो गया ये आँखों का परदा ,
सुना हे जबसे , वे रूमानी हो गए ,
छोड़ दिया मिलना गैरों से हमने ,
बंधन दिलों के ,बेमानी हो गये…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:48am — 6 Comments
देखो जबरदस्त होसला अफजाई ,
बैरी बने बादल और आग चिराग ने लगाई ,
करेंगे अपने बूते , खामोशी से संवाद ,
चौंकाना चाहती हे , दिल से , तन्हाई ,
आशा की लौ मे , मेरी वापसी के संकेत ,
दे ही देगी , तेरी चौतरफ़ा रुसवाई ,
कगार पे आ पहुँचा , अब रोमानी पहलू ,
महज संजोग नहीं है , तेरी बेवफ़ाई ,
थाम ली कमान , आख़िरकार मुहानो की हमने ,
फूटते हुए लावो की , अब…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:00am — 2 Comments
जिधर भी देखा दर्द ही दर्द मिले ,
अपने साए से हुए , चेहरे सर्द मिले ,
किया बेगाना सरे राह हमको ,
मिले भी तो , ऐसे हमदर्द मिले ,
था ज़माना गुलाबी कभी जिनका ,
वही दर्द ए दिल के मारे , आज जर्द मिले ,
गुमान ना था इस कदर कहर नाज़िल होगा ,
फाक़त खंडहर , वो भी ज़रज़र मिले ,
आज़िज़ हे हम अपने ही लहजे से ,
दुरुस्त जिनको समझा , वोही ख़ुदग़र्ज़ मिले…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:00am — 10 Comments
कारोलीन एक छोटा सा गाँव . यह उन्नीस सौ साठ की बात है . हमारे पड़ोस में एक औरत अपने
छः साल के बेटे के साथ रहने आयी . वह बहुत झगड़ालू थी . वह आये दिन किसी न किसी से लड़ाई करती रहती . वह जब भी किसीको निशाना बनाती अपने बेटे से कहती जाओ उसे पत्थर से
मारो . वह परित्यक्ता थी, अकेली थी , इसीलिये लोग कुछ नहीं कहते और उससे हर सम्भव दूरी बनाये रखते . लोगों की चुप्पी को वह कायरता समझ बैठी .
उसके घर के समीप एक बड़ा सा मैदान था . शाम के वक्त हम सभी गाँव के बच्चे उसमें खेलने जाते थे.…
Added by coontee mukerji on April 9, 2013 at 11:01pm — 5 Comments
इत्ते सारे लोग यहाँ हैं
इत्ती सारी बातें हैं
इत्ते सारे हंसी-ठहाके
इत्ती सारी घातें हैं...
बहुतों के दिल चोर छुपे हैं
सांप कई हैं अस्तीनों में
दांत कई है तेज-नुकीले
बड़े-बड़े नाखून हैं इनके
अक्सर ऐसे लोग अकारन
आपस में ही, इक-दूजे को
गरियाते हैं..लतियाते हैं
इनके बीच हमें रहना है
इनकी बात हमें सुनना है
और इन्हीं से बच रहना है...
जो थोड़ें हैं सीधे-सादे
गुप-चुप, गम-सुम
तन्हा-तन्हा से जीते हैं…
Added by anwar suhail on April 9, 2013 at 8:44pm — 6 Comments
साथ क्या है ?
एक भ्रम के सिवाय
एक भुलावा रिश्तों का
झूठा दिलासा अपनों का
क्या सच में कोई होता है साथ ?
आखिर को झेलने होते हैं
दुःख अकेले
उठानी होती है पीड़ा
टीसों की
जज्ब करना होता है दर्द
खुद ही
साथ चलते अपने
साथ चलते रिश्ते
कब तक कितने साथ होते हैं?
अकेला पैदा हुआ इंसान
ताउम्र होता है अकेला
उसकी ख़ुशी ,दुःख
भी नहीं होते सिर्फ उसके
जुड़े होते हैं वे भी दूसरों से
और उनकी मर्जी…
Added by Kavita Verma on April 9, 2013 at 8:01pm — 4 Comments
Added by बृजेश नीरज on April 9, 2013 at 6:59pm — 12 Comments
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on April 9, 2013 at 6:00pm — 5 Comments
सच बोलने वालो
तुमको हमेशा सूली पर लटकाया गया
मगर यह गलत कहाँ है
तुम्हारे कारण
आहत होती हैं कितनी भावनाएँ,
शून्य से शिखर तक पहुँचते-पहुँचते
कितने शीशे टूट जाते है
सच बोलने वालो
तुम अलगाव वादी हो
तुमसे बर्दाशत नहीं होती
अखंडता की भावना
तुम्हें मसीहाई सूझती है
तुम्हें अप्राकृतिक सुन्दर अट्टालिकाएँ नहीं दिखतीं
केवल भूखे लोग दीखते हैं
जोर से बोलने पर
सच भी जोरदार माना जा रहा है
तारे भी सूरज है…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 5:00pm — 5 Comments
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