बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती
गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती
नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती
नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती
मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती
माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती
थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना
रात को देर से आना फिर…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 1:04pm — 14 Comments
रोहित का आठवाँ जन्मदिवस है मम्मी पापा उत्साहित हैं, कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते उसके जन्म दिवस की पार्टी की तैयारी में, तन मन से लगे हैं ये सोचकर की शायद उनका लाडला नार्मल हो जाए उसके चेहरे पर एक बार मुस्कराहट वापस आ जाए|
पापा ने बड़े प्यार सेपूछा ”बोलो बेटा क्या लोगे ? जो भी तुम इस बर्थ डे पर मांगोगे मैं तुम्हे वही लाकर दूंगा"
” पापा मुझे एक तोता ला दो”|
सुनते ही जैसे पापा को पंख लग गए तुरंत एक तोते का पिंजरा ले आये| मम्मी पापा दोनों की ख़ुशी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 8, 2015 at 10:28am — 32 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 9:42am — 27 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
---------------------------------------------------
बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !!
आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)
टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,
पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)
घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,
पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३)
श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,
लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४)
खूब रॊतीं थी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 8, 2015 at 3:30am — 12 Comments
१ २ २ २ १२ १ २२२
बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥
किसे कहते कि बेवफा है वो ,
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,
अचानक सामने जो आया है ॥
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,
हमारे के लिए बनाया है ॥
हुआ है एहसास जन्नत का ,
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥
कहाँ होशो-हवास की बातें ,
किसी पे जब शबाब आया है ॥
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥
मौलिक /अप्रकाशित
Added by Nazeel on April 7, 2015 at 9:30pm — 15 Comments
चंचल नदी
बाँध के आगे
फिर से हार गई
बोला बाँध
यहाँ चलना है
मन को मार, गई
टेढ़े चाल चलन के
उस पर थे
इल्ज़ाम लगे
उसकी गति में
थी जो बिजली
उसके दाम लगे
पत्थर के आगे
मिन्नत सब
हो बेकार गई
टूटी लहरें
छूटी कल कल
झील हरी निकली
शांत सतह पर
लेकिन भीतर
पर्तों में बदली
सदा स्वस्थ
रहने वाली
होकर बीमार…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 1:44pm — 28 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 1:30pm — 27 Comments
चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी
डोर बनी थी कड़वाहट की बस कसती चली गयी
रंग भरे थे ख्वाब उसके, मंजिल तलक था जाना
राह उसकी बस लाल रंग में बदलती चली गयी
खुशियाँ ही चाहती थी वो अपनों की आँखों में
कालिख क्यों उनके चेहरे बिखरती चली गयी
जीना ही तो चाहती थीं न वो दिलों में बसकर
बेटियाँ तो तस्वीर बनकर लटकती चली गयी
चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने
इच्छायें दायरों में ही "निधि" बंधती चली…
Added by Nidhi Agrawal on April 7, 2015 at 1:30pm — 9 Comments
221 2121 1221 212
लोगों के दरमियान उड़ाई हुई तो है
हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है
हों तेरे दिल में रश्क़ो हसद तो हुआ करे
आखिर ये आग तेरी लगाई हुई तो है
सच ही कहा ये आपने आज़ार देखकर
इक चोट मेरे दिल ने भी खाई हुई तो है
गलियों में ये पड़े हुए खाशाक* देखिये *कूड़ा करकट
इस शह्र में कहीं पे सफाई हुई तो है
चटखी हैं उँगलियाँ वो भुजायें फड़क गईं
शामत किसी की “आप” में आई हुई तो…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 7, 2015 at 12:11pm — 28 Comments
बह्र : 221 2121 1221 212
रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है
पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है
अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे
ये आग आप ही की लगाई हुई तो है
बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं
महलों के आसपास खुदाई हुई तो है
खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए
छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है
क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा
ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 11:52am — 20 Comments
1222 1222 1222 122
खुदा तेरी ज़मीं का जर्रा जर्रा बोलता है
करम तेरा जो हो तो बूटा बूटा बोलता है
किसी दिन मिलके तुझमें, बन मै जाऊँगा मसीहा
अना की जंग लड़ता मस्त कतरा बोलता है
बिछड़ना है सभी को इक न इक दिन, याद रख तू
नशेमन से बिछड़ता जर्द पत्ता बोलता है
हुनर का हो तू गर पक्का तो जीवन ज्यूँ शहद हो
निखर जा तप के मधुमक्खी का छत्ता बोलता है
बहुत दिल साफ़ होना भी नही होता है अच्छा
किसी का मै न हो पाया,ये शीशा…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:00am — 16 Comments
मैंने हमेशा,तुमको
एक शान्त ,स्थिर,
धैर्य चित्त रखते हुये
एक समुद्र की तरह चाहा है
मगर क्या तुमने किया
खुद को नदी की तरह
मुझको समर्पित
कदाचित नहीं ।।
नदी ,समुद्र में कूद जाती है
खुद का अस्तित्व मिटाकर
मगर अमर हो जाती है
समुद्र की मुहब्बत बनकर
हमेशा के लिये
और बहती रहती है
युगों युगों तक समुद्र
के हृदय में ।।
मैं समुद्र हूँ
तुम नदी हो
मैं तुम्हें मनाने भी चला आऊँ
मगर मेरे…
Added by umesh katara on April 7, 2015 at 8:00am — 10 Comments
दस दॊहा,,,(व्यसन मुक्ति)
==================
धुँआ उड़ाना छॊड़दॆ, मत भर भीतर आग !
सड़ जायॆंगॆ फॆफड़ॆ, हॊं अनगिनत सुराग़ !!(१)
जला जला सिगरॆट तू, मारॆ लम्बी फूंक !
रॊग बुलाता है स्वयं, कर कॆ भारी चूक !!(२)
बीड़ी सिगरिट फूँक कर, करॆ दाम बर्बाद !
मीत न आयॆं पूछनॆं,जब तन बहॆ मवाद !!(३)
कैंसर सँग टी.बी. मिलॆ,जैसॆ मिलॆ दहॆज़ !
खूनी खाँसी अरु दमा,अंत मौत की सॆज़ !!(४)
मजॆ उड़ाता है अभी, गगन उड़ाता छल्ल !
खूनी खाँसी जब उठॆ, रक्त बहॆगा भल्ल…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 7, 2015 at 1:55am — 5 Comments
21122---21122---2112 |
|
हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस |
बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस |
|
हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी … |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 12:56am — 31 Comments
Added by Samar kabeer on April 7, 2015 at 12:00am — 30 Comments
Added by maharshi tripathi on April 6, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on April 6, 2015 at 10:08pm — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 12:00pm — 16 Comments
चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है
22 22 22 22 22 2
***********************************
याद मुझे वो अक्सर ही आ जाती है
चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है
आग चढ़ी वो दूध भरी काली मटकी
वो मिठास अब कहाँ कहीं मिल पाती है
वो कुतिया जो संग आती थी खेतों तक
उसके हिस्से की रोटी बच जाती है
छुपा छुपव्वल वाली वो गलियाँ सँकरीं
दिल की धड़कन , यादों से बढ़ जाती है
डंडा पचरंगा खेले जिस बरगद…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 6, 2015 at 11:44am — 27 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 6, 2015 at 8:20am — 23 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |