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May 2014 Blog Posts (119)

गजल दिल जलाते है

1222   1222   1222  1222

कहाँ से अजनबी दिल के हमारे पास आते है/

हमारे दिल में बस कर वो हमारा दिल चुराते है



हमारी‍ जिन्‍दगी भी तो अमानत होे गई जिनकी

वही अब जिन्‍दगी में आग जाने क्‍यों लगाते है





जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम



न खाये हम जहर तो क्‍या करें वो दिल जलाते है





हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते ले‍किन

न जाने क्‍यों…

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Added by Akhand Gahmari on May 31, 2014 at 10:00pm — 7 Comments

तुम और मैं

तुम और मैं कितनी सदियों से

हाँ, कितने जन्मों से,

कितने चेहरे और रूप लिये

कभी भूले से, कभी अंजाने से.

एक युग में कभी तृण बन के

अमृत जल से बरसे कहीं,

नभ में तारे बन के चमके कभी

कितनी कहानियाँ सुनी अनसुनी रहीं.

किसका सफ़र था जो हवा बन के

गुज़र रहा था पात पात

एक गुलाब खिला था वन में

कुछ महक थी बसी मकरंद में.

एक एहसास था मन के कोने में

वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,

कितने बसेरे मिले थे…

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Added by coontee mukerji on May 31, 2014 at 1:00pm — 9 Comments

जिसका वो अंश है ……

जिसका वो अंश है ……

कौन है ज़िंदा ?

वो मैं,जो सांसें लेता है

जिसका प्रतिबिम्ब दर्पण में नज़र आता है

जो झूठे दम्भ के आवरण में जीवन जीता है

या

वो मैं जो अदृश्य हो कर भी सबमें समाया है

न जिसकी कोई काया है

न जिसका कोई साया है

कितना विचित्र विधि का विधान है

एक मैं, नश्वरता से नेह करता है

एक मैं, अमरत्व के लिए मरता है

मैं के परिधान में जो मैं ज़िंदा है

वही प्रभु का सच्चा परिंदा है …

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Added by Sushil Sarna on May 31, 2014 at 12:30pm — 14 Comments

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

महाराणा प्रताप की जयंती पर समर्पित -कुंडलिया छंद

रचते है इतिहास ही,राणा जैसे वीर

माँ वसुधा के लाल ये,ये ही असली पीर 

ये ही असली पीर, युद्ध से जिनका नाता 

दुश्मन को दे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2014 at 11:00am — 14 Comments

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं ……

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं ……

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं

प्रीतम तुझ को कैसे बुलाऊँ

पल-पल ..तेरी राह निहारूं

एकांत पलों में तुझे पुकारूं

जीने की कोई आस बता दे

किस मूरत से .नेह लगाऊं

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं

प्रीतम तुझ को .कैसे बुलाऊँ

भोर व्यर्थ मेरी .साँझ व्यर्थ है

तुझ बिन मेरी प्यास व्यर्थ है

अंबर के घन .कुछ तो कह तू

कैसे नयन का ...नीर…

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Added by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 3:07pm — 12 Comments

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

1222  122  1222  122

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है

 

हवस दुनिया की बरबाद कर देती उसे भी

चलो मुफ़लिस की बेटी का रिश्ता हो गया है

 

गरीबी थी कि मजबूरी थी बच्चे की कोई…

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Added by gumnaam pithoragarhi on May 29, 2014 at 8:30pm — 15 Comments

आये अज़ल जिस गोद में ……

आये अजल जिस गोद में  ……

कितने निर्दयी हो तुम

दबे पाँव आते हो

मेरे खामोश लम्हों को

अपनी यादों से झंकृत कर जाते हो

झील की लहरों पे चाँद

लहर लहर मुस्कुराता है

मेरी बेबसी को गुनगुनाता है

सबा मेरे गेसुओं से लिपट

मेरी ख़्वाहिशों को बार बार ज़िंदा कर जाती है

तुम्हारे मुहब्बत में डूबे लम्स

मेरे लबों पे कसमसाते हैं

मगर तड़प के इन अहसासों को तुम न समझोगे

तुम क्यों नहीं समझते

मेरे तमाम…

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Added by Sushil Sarna on May 29, 2014 at 1:00pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
‘’हमारे रिश्ते‘ -अतुकांत (गिरिराज भंडारी)

‘’ हमारे रिश्ते ‘’

*****************

अगर रिश्ते सच में हैं , तो

मीलों की दूरियाँ

कमज़ोर नही करती रिश्तों की मज़बूती

मिलन की प्यास बढाती ज़रूर है

 

रिश्ते , मृग मरीचिका नहीं होते

कि , पास पहुँचें तो नज़र न आयें

भावनायें प्यासी रह जायें

 

रिश्ते

रेत मे लिखे इबारत भी नही होते

कि ,सफल हो जायें, जिसे मिटाने में

समय के समुद्र में उठती गिरती कमज़ोर लहरें भी

रिश्ते

शिला लेख की तरह…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 28, 2014 at 9:30pm — 33 Comments

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ
खिलौना हूँ मैं मिट्टी से बना हूँ

दग़ा खाने में तू रहता है आगे
दिले-नादान मैं तुझसे ख़फ़ा हूँ

सिला मुझको भलाई का भला दे
ज़ियादा कुछ नहीं मैं माँगता हूँ

मैं जबसे लौटा हूँ दैरो-हरम से
पता सबसे ख़ुदा का पूछता हूँ

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Sushil Thakur on May 28, 2014 at 8:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार…

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Added by sanju shabdita on May 28, 2014 at 7:14pm — 58 Comments

हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं

दुनिया मुझको ही पढेगी ये जरूरी तो नहीं

फ़ौज सरहद पे खडी हो चाहे दुश्मन की तरह

कोई गोली भी चलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज सागर हाथ में माना कि मेरे दोस्तों

प्यास पर मेरी बुझेगी ये जरूरी तो नहीं

इन चिरागों में भरा हो तेल कितना भी भले

रात भर बाती जलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज उसकी ही खता है खूब है उसको पता

मांग पर माफी वो लेगी ये जरूरी तो नहीं

जोड़ लो दुनिया की दौलत जीत लो हर जंग…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2014 at 12:15pm — 31 Comments

बस जा तू

गीत

मेरे ख्‍वाबो में बस जा तू तेरे हम साथ चल देगे

तेरा सूना पड़ा जीवन प्‍यार मे हम तो बदल देगे



तेरे तो साथ चलने को मेरा यह दिल तड़पता है

वि़ऱह की अाग जो जलती रही उसमें ये सुलगता है

कभी तुम पास आ देखो तुम्‍हे़ हम प्‍यारा कल देगे

मेरे ख्‍वा़बो में बस जा तू तेरे हम साथ चल देगे



खुली आँखो से देखे थे कभी हम सपनो जो तेरे

सनम तू आके बन जाना हकीकत सपनो के मेरे

तुझे छुअेगे  कभी काँटे हम काँटो को मसल देगे

मेरे ख्‍वाबो में बस जा तू तेरे हम…

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Added by Akhand Gahmari on May 28, 2014 at 10:36am — 12 Comments

बेमजा यार सफर रोज नई राहों का

2122     112 2     1122    22

**

खार  हूँ  एक  ये  सोचा   है  सभी  ने मुझको

फूल के साथ  जो  देखा  है  सभी  ने  मुझको

**

बंद सदियों  से  पड़ा  था  मैं  किसी  कोने में

खत तेरा जान के  खोला  है सभी ने मुझको

**

भोर सा रास  तुझे  आज   मगर  आया क्यूँ

तम भरी  रात जो बोला  है  सभी ने मुझको

**

दाद  वैसे  तो   मिली  बात  बुरी भी  कह दी

बस तेरी  बात  पे  कोसा  है सभी ने मुझको

**

रूह  की  बात  किसे   यार  लगी  सौदों …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2014 at 10:30am — 25 Comments

ग़ज़ल - बेख़ुदी की बात कर

(2212 2212)



या बेख़ुदी की बात कर।

या दिल्लगी की बात कर। 



तू ये बता क्या हाल है?

अपनी ख़ुशी की बात कर। 



अब उस सदी की बात क्यूँ?

तू इस सदी की बात कर। 



जो याद करता हो तुझे,

तू भी उसी की बात कर। 



या तो ख़ुदा का नाम ले,

या बंदगी की बात कर। 



जो कान में रस घोल दे,

उस बांसुरी की बात कर। 



है क्या रखा इस जंग में?

कुछ आशिक़ी की बात कर। 



जो भेंट ज्वाला की चढ़ी,

उस…

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Added by Zaif on May 28, 2014 at 9:30am — 16 Comments

तांका

सुन री सखी

दो शब्द भी प्रेम के

नही लिखती

चीखें,दर्द कराहें

लिखती हूँ प्रेम से
|



उनकी बात

कम नही सजा से

तुम्हारे साथ

बिताये हुए पल

सखी कैसे कहूँ मै
|



जीवन मेला

लिए रिश्तों का रेला

जाना था दूर

रह गया अकेला

नयनो में अन्धेरा
|…

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Added by Meena Pathak on May 27, 2014 at 11:00pm — 15 Comments

समर्पण....सॉनेट महर्षि अरविन्द

ऐ प्रकृति,सूक्ष्म आत्मा तुम रहती हो मुझमे

मैं गेह मात्र हूँ,तुम ही इसकी सत वासी

नश्वर अस्तित्व हमारा मिलने दो खुद में;

बन जाने दो मुझे अलौकिक दैवी राशी।

मन तुझे दिया,अपने मन का तुम पथ गढ़ना

सभी समर्पित इच्छाएं,ये तेरी हो जावें

पीछे कोई अंश हमारा नहीं छोड़ना

अद्भुत,नीरव सा मिलन हमारा हो जावे।

तेरा प्रेम,जग-प्राण,मेरा उर उसी संग

स्पन्दित होगा,और मेद, मेदनी हित।

नसों शिराओं में होगी…

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Added by Vindu Babu on May 27, 2014 at 11:00pm — 16 Comments

जिन्‍दगी में हमने जिनको वफा सिखाया था

2122      1222      1212   211

जिन्दगी भर जिसे हमने इश्क सिखाया था

बेवफा हम नहीं हमने उसे बताया था

दिल दुखाया नहीं हमने कभी न माने वो

आग में जल पड़े दुश्मन गले लगाया था

बात भी प्‍यार से वाे अब कभी नही करते

चाँदनी रात में जिसने कभी बुलाया था

हम मनाते रहे कसमे जिसे सभी देकर

मौत की नीद भी हमको वही सुलाया था

जल रहा…

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Added by Akhand Gahmari on May 27, 2014 at 9:30pm — 6 Comments

एक नवजात के नाम - (रवि प्रकाश)

कौन है तू, मौन मेरा या मुखर संगीत है,

शब्द है कोई मधुर या भाव शब्दातीत है।

रंग है या रेख केवल,चित्र है या तूलिका,

शेर है मेरी ग़ज़ल का,नज़्म या नवगीत है॥

.

कुछ पुरानी भंगिमाएँ,कुछ नई मुस्कान है,

सिसकियों में सुर सजे हैं,आह में भी गान है।

खोजते हैं लोग मेरा अक्स तेरी आँख में,

तू जहां से और तुझ से ये जहां हैरान है॥

.

नर्म उजली धूप का उबटन लगे जब गुनगुना,

देवदारों में हवा का बज रहा हो झुनझुना।

मौसमों की करवटों में दास्तानें पढ़ सके,…

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Added by Ravi Prakash on May 27, 2014 at 7:00pm — 16 Comments

खामोश दरिया

एक ---



मेरे, उसके बीच

बहता है

एक खामोश दरिया

जिस पे कोई पुल नहीं है

चाहूँ तो

शब्दों के खम्बो

वादों के फट्टों का

पुल खड़ा कर सकता हूँ

मगर

मुझे अच्छा लगता है

दरिया में

उतारना खामोशी से

और फिर

डूबते उतरते

उतर जाना उस पार



दो ----



अनवरत

चल रहा हूँ

नापता

शब्दों की सड़क

ताकि पहुंच सकूँ

अंतिम छोर तक

कूद जाने के लिए

एक खामोश समंदर में

हमेशा हमेशा के…

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Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 27, 2014 at 5:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल

212 1222 212 1222

हर अदा, हवाओं की शोखियाँ समझती हैं

बेखबर नहीं सबकुछ पत्तियाँ समझती हैं

 

थरथराने लगती हैं इक ज़रा छुअन से ही

बागबाँ है या भँवरे डालियाँ समझती हैं

 

दर्द कितना है कैसा लग रहा है मुझको ये

मेरे ज़ख़्म से लिपटी पट्टियाँ समझती हैं

 

आजकल निगाहों को क्या हुआ ज़माने की

तज़्रिबे को चेहरे की झुर्रियाँ समझती हैं

 

हसरतें हदों को ही भूलने लगी हैं आज

फिक्र को बड़ों की वो बेड़ियाँ…

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Added by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2014 at 4:00pm — 18 Comments

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