संसद भवन के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे हुए उन युवाओं को दो महीनों से अधिक का समय हो गया था पर न तो किसी अख़बार में इसकी कोई ख़बर थी और न ही न्यूज़ चैनल्स पर चर्चा।
“इन बेरोज़गार लौंडों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।” बड़ी-बड़ी मूँछों वाले उस स्थानीय बुज़ुर्ग ने अपने पास खड़े अधेड़ से कहा। “कुछ नहीं मिला तो सरकार को ही बदनाम करने में लग गए।”
“कह क्या रहे हैं ये लोग?” अधेड़ ने जिज्ञासा व्यक्त की।
“कह रहे हैं कि जब देश की जनता भूखों मर रही है तो कोई…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 25, 2018 at 4:30pm — 9 Comments
अरण्य घन
सुन स्वर लहरी
मादल थाप
पवन मंद
बिखरे मकरंद
नव अंकुर
ढीठ हवाएँ
पत्ते बुहार रहीं
पतझड़ में
पर्वत नाले
पार करती चली
चंचल नदी
मेघ ढिठौना
तपते आकाश में
बरसेगा क्या
… मौलिक एवं अप्रकाशित
(मादल की थाप का प्रसंग आशापूर्ण देवी जी की कहानी से )
Added by Neelam Upadhyaya on June 25, 2018 at 3:00pm — No Comments
सुबह जरूर आयेगी - लघुकथा –
वह रात सूरज और संध्या के जीवन की ऐसी रात थी कि दोनों की ही अग्नि परीक्षा की घड़ी आगयी थी। कौन खरा उतरेगा , यह तो ऊपर वाला ही तय करेगा ।
दोनों की शादी को जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए थे कि दोनों ने अकेले पिक्चर देखने, वह भी नाइट शो, का प्रोग्राम बना लिया। शहर के बिगड़े माहौल को देखते हुए घर में कोई भी उनके इस फ़ैसले से खुश नहीं था। मगर सूरज की ज़िद और अति आत्मविश्वास के आगे सब चुप थे। क्योंकि वह एक फ़ौज़ी अफ़सर जो था।
फ़िल्म देखकर निकले तो सूरज…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 25, 2018 at 12:40pm — 12 Comments
अदेह रूप ...
सर्वविदित है
देह का शून्यता में
विलीन होना
निश्चित है
मगर
अदेह चेतना
सृष्टि में व्याप्त
चैतन्य कणों से
निर्मित
आदि अंत से मुक्त
अनंत
अभिश्रुति की
अभिव्यंजना है
मुझे तुमसे मिलने के लिए
उन अदृश्य कणों से निर्मित
धागों की अदेह को
अपने चेतन में
अवतरित करना होगा
मैं
मेरी देह सी
अतृप्त नहीं रह सकती
मैं
तुमसे
अवश्य मिलूंगी
अपने
अदेह रूप…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 11:59am — 10 Comments
अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जिन्दगी में अजीब सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशियाँ डालने के लिए यह कदम उठाया था लेकिन...पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद....चंद दिनों पूर्व जिन ख्यावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा लग रहा था....
तेरे पर्दापर्ण की खबर सुन किलकारी सुनने को व्याकुल थे.....तब तेरे अस्तित्व से वो अपरिचित थे तो जिठानी जी की दुःख…
ContinueAdded by babitagupta on June 24, 2018 at 3:00pm — 8 Comments
अमर हो गयी .. (लघु रचना )
स्मृति गर्भ में
एक शिला
साकार हो उठी
भाव अस्तित्व
उदित हुआ
शिला की दरारों से
आसक्ति
अदृश्यता की घाटियों से
प्रवाहित हो
स्मृतियों वीचियों पर
अक्षय पल सी
सुवासित हो
अमर हो गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 24, 2018 at 1:27pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
दूरियां नजदीकियां बन तो गयी हैं आजकल
पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए
माँ पिता सारे मरासिम गुम हुए इस दौर में
रोटियों के फेर में मजबूर कितने हो गए
भूल जाओगे मुझे तुम एक दिन मालूम था
इश्क में मेरे मगर मशहूर कितने हो गए
पत्थरों पर सर पटककर फायदा कोई नहीं
उसके दर पर ख्वाब चकनाचूर कितने हो गए
रात काली नागिनों सी डस रही है आजकल
हमनशीं थे कल तलक मगरूर…
ContinueAdded by Neeraj Neer on June 24, 2018 at 11:35am — 20 Comments
काल कोठरी
निस्तब्धता
अँधेरे का फैलाव
दिशा से दिशा तक काला आकाश
रात भी है मानो ठोस अँधेरे की
एक बहुत बड़ी कोठरी
सोचता हूँ तुम भी कहीं …
ContinueAdded by vijay nikore on June 24, 2018 at 1:22am — 37 Comments
2122 2122 212
जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।
काफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्जिदों में सर झुकाना आ गया ।।
दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।
दोस्तों को आजमाना आ गया ।।
एक आवारा सा बादल देखकर ।
आज मौसम आशिकाना आ गया ।।
क्या उन्हें तन्हाइयां डसने लगीं ।
बा अदब वादा…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2018 at 4:24pm — 19 Comments
जाने के बाद ... लघु रचना
गुज़र गयी
एक आंधी
तुम्हारे स्पर्शों की
मेरी देह की ख़ामोश राहों से
समेटती हूँ
आज तक
मोहब्बत की चादर पर
वो बिखरे हुए लम्हे
तुम्हारे
जाने के बाद
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 23, 2018 at 4:00pm — 12 Comments
Added by Sarthak on June 22, 2018 at 11:19pm — 7 Comments
है धुआँ-धक्कड़ और बवाल
चेहरे-चेहरे लिक्खे सवाल
कर नेकी दरिया में डाल
बाबा खेल-खिलांवे भइय्या
नाचे भक्तिन ताल-तलईय्या
चोर सियार सब होशियार
मूड़ी काटे भए चमार
ये सूअर हैं, हरामखोर हैं
इनकी लें हम उतार खाल
(उपरोक्त पंक्तियाँ ढोंगी बाबाओं के संदर्भ में हैं)
है धुआँ-धक्कड़ और बवाल
चेहरे-चेहरे लिक्खे सवाल
कर नेकी दरिया में डाल
जात अहीर, अहीरन के साथे
देश-मुल्क अब किसके…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 22, 2018 at 7:30pm — No Comments
“कितने हसीन थे वो दिन जब पूरे आसमान पर अकेले मेरा राज हुआ करता था।” अपनी पतंग को माँझे से बाँधते हुए छोटा सा वह लड़का अपने सुनहरे अतीत में खो गया।
अपने मोहल्ले में तब वो अकेले ही पतंग उड़ाने वाला हुआ करता था। न तो उसे कोई रोकने वाला था और न ही टोकने वाला। वह पूरी तरह से स्वतंत्र था। उस वक़्त उसकी बस एक ही हसरत होती, “एक दिन अपनी पतंग चाँद तक ले जाऊँगा।”
मगर यह ज़्यादा दिन चला नहीं। धीरे-धीरे उसके मोहल्ले में दूसरे पतंगबाज़ भी आने लगे। उनके आते ही आसमान में…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 22, 2018 at 5:37pm — 8 Comments
मोबाइल पर मेल का नोटिफिकेशन देख मोहन की आँखें चमक उठीं।शायद पायल का मेल हो।जल्दी से मेल खोला..हाँ ,ठीक 17 दिन बाद पायल का मेल था।अक्सर मेल नोटिफिकेशन देख खिल जाता है मोहन लेकिन अक्सर मायूसी ही हाथ लगती।खैर देखूं तो सही क्या लिखा है...अपने चश्मे को ठीक करता हुआ मोहन मेल पढ़ने लगा।"56 को हो गईं हूँ मैं और आप भी 60-65 तो होंगे ही,अब तो बता दो क्या मायने रखती हूँ मैं?और क्यों?" पिछले 40 सालों से ये सवाल कई बार पूछा था पायल ने लेकिन "कुछ सवालों को लाजबाब रहने दो" कह कर हर बार टाल गया मोहन।पर…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 22, 2018 at 5:30pm — 20 Comments
इक आवारा तितली सी मैं
उड़ती फिरती थी सड़कों पे...
दौड़ा करती थी राहों पे
इक चंचल हिरनी के जैसे ...
इक कदम यहाँ इक कदम वहाँ
बेपरवाह घूमा करती थी...
कर उछल कूद ऊँचे वृक्षों के
पत्ते चूमा करती थी...
चलते चलते यूँ ही लब पर
जो गीत मधुर आ जाता था...
बदरंग हवाओं में जैसे
सुख का मंजर छा जाता था...
बीते पल की यादों से फिर
मैं मन ही मन भरमाती थी...
इठलाती थी बलखाती थी
लहराती फिर…
Added by रक्षिता सिंह on June 21, 2018 at 11:30pm — 16 Comments
बहुत कुछ , बहुत हास्यास्पद है ,
फिर भी किसी को हंसी आती नहीं।
बहुत कुछ , बहुत दुखदायी है ,
फिर भी आंसू किसी को आते नहीं।… 1.
बाज़ार भी अजीब जगह है
जहां आप शाहंशाह होकर भी
रोज बिक तो सकते हैं , पर एक
दिन को भी अपनी पूरी हुकूमत में ,
पूरा बाज़ार खरीद नहीं सकते ………. 2 .
बहुत शिकायतें हैं हवा से
कि बुझा देती हैं चिरागों को ,
चलो एक चिराग ही बिना
हवा के जला के दिखा दो। ……….. 3…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2018 at 8:30pm — 13 Comments
कुछ क्षणिकाएं :
1
शुष्क काष्ठ
अग्नि से नेह
असंगत आलिंगन
परिणति
मूक अवशेष
................
2
त्वचा हीन
नग्न वृक्ष
अवसन्न खड़े
अकाल अंत की
आहटों के मध्य
.............................
3
ईश्वर
किसी देवता का
सर्जन नहीं
गढ़त है वो
इंसान की
..........................
4
करता रहा
प्रतीक्षा
एक शंख
नाद के लिए
चिर निद्रा में सोये
मरघट में…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 4:04pm — 14 Comments
बातें ...
लम्हों की आग़ोश में
नशीली सी रातों की
शीरीं से अल्फ़ाज़ की
महकती बातें
बे हिज़ाब रातों की
शोख़ी भरी शरारतों की
तन्हाई में भीगी
बरसाती बातें
आँखों के सागर में
जज़्बात की कश्ती में
यादों के साहिल पे
सुलगती बातें
जिस्म की पनाहों में
अनदेखी राहों में
दिल की गुफ़ाओं में
बहकती बातें
मोहब्बत के मौसम में
आँखों की शबनम में
ग़ज़ल की करवटों…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 12:30pm — 14 Comments
गंगा सूख गयी - लघुकथा –
प्यारी "माँ"
तुम्हारी ऊँच नीच की तमाम नसीहतों को दरकिनार करते हुए, मैंने अपने परिवार से बड़े और धनवान खानदान के रवि से प्रेम विवाह किया था। हालांकि हम सब बहुत खुश थे। मेरे प्रति सब का व्यवहार बेहद आत्मीय था।
एक साल बाद गुड़िया ने जन्म लिया। अचानक से परिवार के लोगों का नज़रिया बदल गया। शायद सब को पुत्र की चाहत थी। गुड़िया को तो कोई भी गोद लेना तो दूर, छूता तक नहीं था। यहाँ तक कि रवि, उसका पिता होने के बावज़ूद , उसे प्यार नहीं करता था। मुझे यह सब बहुत…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 21, 2018 at 8:47am — 16 Comments
कश्मीर अभी ज़िंदा है आँसू गैस में
डल झील की बर्फ में फैले ख़ून में
जवान बेटे की मौत पर दहाड़े मारती माँ में
ईद की खुशियों में शामिल होते मातम में
जवान बेटों के अगवा होने में
आतंकियों के दुष्कर्म में
कश्मीर अभी ज़िंदा है सीज़फायर उल्लंघन में
बर्फ की वादियों में ख़ून के कोहरे में
डरी सहमी , सिसकती रंगीन कालीनों में
गलियों , चौराहों से रोज़ गुज़रते जनाज़ों में
बंद खिड़की , दरवाज़ों से झाँकते मासूमों में
देश विरोधी तकरीरों में
कश्मीर अभी ज़िंदा है जलती…
Added by Mohammed Arif on June 21, 2018 at 12:58am — 18 Comments
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