आज मौक़ा पाते ही बाबूजी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा- "देखो छोटे, या तो तुम्हारी पत्नी और तुम हमारी परम्परा के अनुसार चलो, या फिर अपने रहने की कोई और व्यवस्था कर लो!"
"क्यों बाबूजी, आपको हमसे क्या परेशानी होने लगी है?" छोटे ने हैरान हो कर पूछा।
"बेटे, परेशानी मुझे उतनी नहीं, जितनी बड़े को और उसके परिवार को है! उसे बिलकुल पसंद नहीं है घर पर भी फूहड़ पहनावा, बाज़ार का जंक और फास्ट फूड वग़ैरह और तुम्हारी पत्नी की बोलचाल! बच्चों से भी बात-बात पर 'यार' कहना, तू और तेरी कहकर बात करना!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 9, 2016 at 4:00pm — 16 Comments
१)
जन्नत से आगे इक जहान तेरा…
Added by M Vijish kumar on June 9, 2016 at 10:30am — 6 Comments
दर्द मेरी कविता में नहीं है ... दर्द मेरी कविता है।
दर्द के भाव में बहाव है, केवल बहाव, .. कोई तट नहीं है, कोई हाशिया नहीं है जो उसकी रुकावट बने।
पत्तों से बारिश की बूँदों को टपकते देख यह आलेख कुछ वैसे ही अचानक जन्मा जैसे मेरी प्रत्येक कविता का जन्म अचानक हुआ है। कोई खयाल, कोई भाव, कोई दर्द दिल को दहला देता है, और भीतर कहीं गहरे में कविता की पंक्तियाँ उतर आती हैं।
दर्द एक नहीं होता, और प्राय: अकेला नहीं आता। समय-असमय हम नए, “और” नए, दर्द झोली…
ContinueAdded by vijay nikore on June 9, 2016 at 9:49am — 3 Comments
22 22 22 22 22 22
बात सही है आज भी , यूँ तो है प्राचीन
जिसकी जितनी चाह है , वो उतना गमगीन
फर्क मुझे दिखता नहीं, हो सीता-लवलीन
खून सभी के लाल हैं औ आँसू नमकीन
क्या उनसे रिश्ता रखें, क्या हो उनसे बात
कहो हक़ीकत तो जिन्हें, लगती हो तौहीन
सर पर चढ़ बैठे सभी , पा कर सर पे हाथ
जो बिकते थे हाट में , दो पैसे के तीन
बीमारी आतंक की , रही सदा गंभीर
मगर विभीषण देश के , करें और…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 9, 2016 at 7:30am — 40 Comments
सड़क के मुख्य मार्ग से २१ कि.मी. कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाती जीप चली जा रही थी। जीप में पीछे बैठे कर्मचारी ने मुझसे कहा साहब २ कि.मी. बाद सुनारिया गांव है, वहाँ का एक किसान पिछले ६-७ साल से नहीं मिल रहा है, जब देखो, तब झोपड़ी बंद मिलती है, आज मिल जाये, तो उसे निपटाना है,बहुत पुराना कर्ज बाकी है,मैंने कहा कितना बाकी है ? वो बोला बाकी तो ५००० है, पर ७-८ साल का बाकी है।
तभी जीप सुनारिया पहुँच गई , दो-तीन कर्मचारी तेजी से उतरे और झोपड़ी की तरफ लपके पर झोपड़ी बंद थी , दरवाजे…
ContinueAdded by Rajendra kumar dubey on June 8, 2016 at 8:00pm — 3 Comments
(१) दुर्मिल सवैया ....करुणाकर राम
करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.
अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.
वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.
तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.
(२) किरीट सवैया ...अनुप्राणित वृक्ष
कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.
तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल विंदु समस्त विशेष…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 8, 2016 at 8:00pm — 8 Comments
Added by maharshi tripathi on June 8, 2016 at 2:06pm — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 8, 2016 at 11:30am — 14 Comments
क्यों कोई आया है ,
जान लेते हो ,
चेहरा पढ़ लेते हो ,
अनकहा , सुन लेते हो ,
आंसू जो बहे ही नहीं ,
देख - सुन लेते हो।
********************
सपने उन्हें दिखाते हो ,
पूरे अपने करते हो।
********************
अपनी सब जरूरतें जानते हो ,
गरीब की रोटी भी जानते हो।
********************
जान कहाँ बसती है , जानते हो ,
उनकीं भी जान है , जानते हो।
********************
सरकार में हो ,
पर सरकार से ऊपर हो।…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 11:30am — 7 Comments
22 22 22 22 22 2
तुम केवल परिभाषा जानो ,अच्छा है
और अमल सब हमसे चाहो, अच्छा है
देव सभी हो जायें तो , मुश्किल होगी
पाठ लुटेरों का भी रक्खो , अच्छा है
पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से
इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है
समदर्शी होता है ऊपर वाला, पर
छोड़ो भी , तुम काटो- छाँटो, अच्छा है
सूरज ,चाँद, सितारे, दुनिया को छोड़ो
चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है
धड़ सारा कालिख में है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 8:00am — 24 Comments
कलाधर छंद .........तने- तने मिले घने
वृक्ष की पुकार आज, सांस में रुंधी रही कि, वायु धूप क्रूर रेत, चींखती सिवान में.
मर्म सूख के उड़ी, गुमान मेघ में भरा कि, बूंद-बूंद ब्रह्म शक्ति, त्यागती सिवान में.
डूबती गयी नसीब, बीज़ कोख में लिये, स्वभाव प्रेम छांव भाव, रोपती सिवान में.
कोंपलें खिली जवां, तने- तने मिले घने, हसीन वादियां बहार, झूमती सिवान में.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 7, 2016 at 6:30pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2016 at 10:47am — 18 Comments
२१२२ २१२२ २१२
ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए
जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए
घोंसला भी साथ उनके उड़ गया
रह गया वो हाथ में तिनके लिए
फूल को तो ले गई पछुआ हवा
रह गई बस डाल मालिन के लिए
फूल चुनकर बांटता उनको रहा
खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए
क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए
अपने आंगन में खिले अपने नहीं
फूल जंगल में खिले किन के…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 7, 2016 at 10:47am — 14 Comments
देश में रहकर मुहब्बत, देश से करते चलो!
देश आगे बढ़ रहा है, तुम भी डग भरते चलो.
.
देश जो कि दब चुका था, आज सर ऊंचा हुआ है,
देश के निर्धन के घर में, गैस का चूल्हा जला है
उज्ज्वला की योजना से, स्वच्छ घर करते चलो.
देश में रहकर............
.
देश भारत का तिरंगा, हर तरफ लहरा रहा,
ऊंची ऊंची चोटियों पर, शान से फहरा रहा,
युगल हाथों से पकड़ अब, कर नमन बढ़ते चलो.
देश में रहकर............
.
देश मेरा हर तरफ से, शांत व आबाद…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on June 7, 2016 at 8:30am — 18 Comments
"क्या कर रहा है बे, सब खा-पी रहे हैं और तू अपने स्मार्ट फोन में भिड़ा हुआ है!" थ्री-स्टार होटल में चल रही ज़बरदस्त पार्टी में दोस्तों के बीच बैठे दीपक ने असलम से कहा।
"माह-ए-रमज़ान का चाँद दिख गया है, मुबारकबाद के ढेरों संदेशों के जवाब दे रहा हूँ!" - असलम ने सोशल साइट्स पर अपना संदेश सम्प्रेषित करते हुए कहा और कोल्ड-ड्रिंक पीने लगा। आज वह दोस्तों से लगाई शर्त हार गया था, सो इतनी महँगी पार्टी देनी पड़ी थी।
"यार, ये तो बता कि तू भी सचमुच कल से रोज़े रखेगा, कैसे रह लेता है भूखे-प्यासे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 7, 2016 at 1:00am — 15 Comments
क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा
वो वफ़ा की बात करके बेवफ़ा हो जाएगा
रास्ता पुरख़ार है या मौसमे गुल से भरा
जब भी निकलोगे सफ़र में सब पता हो जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी
रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा
धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब
दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा
कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर
शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा
अपने…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 6, 2016 at 11:56pm — 14 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 6, 2016 at 9:32pm — 12 Comments
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 6, 2016 at 9:30pm — 17 Comments
"तुम लोगों की बातचीत सुन रहा था। बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते हो, लगता है काफी पढ़े-लिखे हो!" आलोक नेे गृह-निर्माण कार्य में लगे कारीगरों से कहा।
"नहीं साहब, हम तो अंगूठा छाप हैं!" बड़े कारीगर ने ईंट के ऊपर सीमेंट-गारा डालकर उस पर दूसरी ईंट जमाते हुए कहा।
"तो फिर इतनी अच्छी हिन्दी कैसे बोल लेते हो?"
"हम पढ़-लिख नहीं पाये, तो टीवी देखकर पढ़े-लिखों की भाषा ध्यान से सुनकर सीखते हैं, आप लोगों की बातें सुनकर भी कुछ सीख लेते हैं!" कारीगर ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा।
"लेकिन तुम लोग तो…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 6, 2016 at 4:30pm — 9 Comments
अपना मकां बना जाता है ....
कितना अजीब होता है
उससे अपनापन निभाना
जो न होकर भी
सबा की मानिंद
करीब होता है
ये दिल
अपने रूहानी अहसास को
बड़ी निर्भीकता से
उस अदृश्य देह को कह देता है
जिसे देह की उपस्थिति में
व्यक्त करने में
इक उम्र भी कम होती है
हम उसे कह भी लेते हैं
और उसकी
अदैहिक अभिव्यक्ति को
बंद किताबों में
सूखते गुलाबों की
गंध की तरह
पढ़ भी लेते हैं
वो न…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 6, 2016 at 1:09pm — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |