1-
ख़ातूनों का हो गया, खत्म एक संत्रास।
चर्चित तीन तलाक का, हुआ विधेयक पास।।
हुआ विधेयक पास, सभी मिल खुशी मनाएँ।
अब होंगी भयमुक्त, सभी मुस्लिम महिलाएँ।।
बीती काली रात्रि, चाँद निकला पूनों का।
बढ़ा आत्मविश्वास, आज से ख़ातूनों का।।
2-
तीस जुलाई ने रचा, एक नया इतिहास।
मुद्दा तीन तलाक पर, हुआ विधेयक पास।।
हुआ विधेयक पास, साँस लेगी अब नारी।
कहकर तीन तलाक, जुल्म होते थे भारी।।
ख़ातूनों ने आज, विजय खुद लड़कर पाई।
दो हजार उन्नीस, दिवस है…
Added by Hariom Shrivastava on July 31, 2019 at 7:51pm — 4 Comments
कैसे भूलें हम ....
पागल दिल की बात को
सावन की बरसात को
मधुर मिलन की रात को
अधरों की सौगात को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतर्मन की प्यास को
आती जाती श्वास को
भावों के मधुमास को
उनसे मिलन की आस को
बोलो
कैसे भूलें हम
नैनों के संवाद को
धड़कन के अनुवाद को
बीते पलों की याद को
तिमिर मौन के नाद को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतस के तूफ़ान को
धड़कन की पहचान को
अधरों की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2019 at 12:38pm — 4 Comments
लहू बुज़ुर्गो का मिट्टी में बहाने वालो
दागदारोँ को सरेआम बचाने वालो
बच्चोँ के हाथ में शमशीर थमाने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती
खुदा के नाम पे दुकानों को चलाने वालो
धर्म् के नाम पर इंसा को बाँट्ने वालो…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 30, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
2122 1122 1122 22
बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है
खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को
ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है
मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में
और फिर आँख न भर आए बड़ी मुश्किल है
वो हसीं वक़्त जो मिल करके गुज़ारा था कभी
फिर वही लौट के आ जाए बड़ी मुश्किल है
वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर
फिर कोई आप सा आ जाए बड़ी मुश्किल है
---
मौलिक अप्रकाशित
Added by SALIM RAZA REWA on July 29, 2019 at 9:30pm — 3 Comments
मेरा प्यारा गाँव:(दोहे )..............
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।1।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।2।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।3।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गई वो ठाँव।4।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गयी वो ठाँव।
मुझको…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2019 at 2:00pm — 7 Comments
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 29, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
जाड़े की सुबह का ठिठुरता कोहरा
या हो ग्रीश्म की तपती धूप की तड़पन
अलसाए खड़े पेड़ की परछाईं ले अंगड़ाई
या आए पुरवाई हवा लिए वसन्ती बयार
उमड़-उमड़ आता है नभ में नम घटा-सा
तुम्झारी झरती आँखों में मेरे प्रति प्रतिपल
धड़कन में बसा लहराता वह पागल प्यार
इस पर भी, प्रिय, आता है खयाल
फूल कितने ही विकसित हों आँगन में
पर हो आँगन अगर बित्ता-भर उदास
छू ले सदूर शहनाई की वेदना का विस्तार
तो…
Added by vijay nikore on July 29, 2019 at 2:49am — 4 Comments
212 212 212 212
जब से ख़ामोश वो सिसकियां हो गईं ।
दूरियां प्यार के दरमियाँ हो गईं ।।
कत्ल कर दे न ये भीड़ ही आपका ।
अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियाँ हो गईं ।।
आप ग़मगीन आये नज़र बारहा ।
आपके घर में जब बेटियां हो गईं ।।
कैसी तक़दीर है इस वतन की सनम ।
आलिमों से खफ़ा रोटियां हो गईं ।।
फूल को चूसकर उड़ गईं शाख से ।
कितनी चालाक ये तितलियां हो गईं ।।
दर्दो गम पर…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on July 28, 2019 at 12:17am — 2 Comments
*करगिल विजय*
वज्रपात कर दुश्मन दल पर, सबक सिखाया वीरों ने
किया हिन्द का ऊँचा मस्तक, करगिल के रणधीरों ने
हर खतरे का किया सामना, लड़ी लड़ाई जोरों से
पग पीछे डरकर ना खींचे, बुझदिल और छिछोरों से l
धीर वीर दुर्गम चोटी पर, कसकर गोले दागे हैं
बंकर चौकी ध्वस्त किये सब, कायर कपूत भागे हैं
किये हवाई हमला भारी, धूर्त सभी थर्राए हैं
अरि मस्तक को कुचल-कुचल कर, अपना ध्वज लहराए हैं l
जब-जब दुस्साहस करता है, दुश्मन मारा जाता है
सरहद का…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on July 26, 2019 at 7:37pm — 3 Comments
मिटाने फासले तुझको अगर हैं गुफ़्तगू कर ले
सियेगा ज़ख्म कोई सोच मत ख़ुद ही रफ़ू कर ले
**
मुक़ाबिल ख़ौफ़-ए-ग़म होजा अगर पीछा छुड़ाना है
ग़मों से भाग मत इक बार तू रुख़ रूबरू कर ले
**
नहीं महफ़ूज़ गुलशन में कली कच्ची अभी तक भी
बचा है कौन अब उसकी जो फ़िक्र-ए-आबरू कर ले
**
कोई तो दर्द है दिल में लबों पर आ नहीं पाता …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 26, 2019 at 5:30pm — 2 Comments
उजड़ गई क्यों प्यार की महफिल,कुछ भी कहा नहीं जाता
मैं सच्चा था या था बुजदिल,कुछ भी कहा नहीं जाता
दिल का टूटना जिसे कहा था वह दुनिया का खेल था इक
अब आकर जो टूटा है दिल,कुछ भी कहा नहीं जाता
सीधा रस्ता मान रहे थे जिसको हम वो उलझन थी
खुद अपने सपनों के कातिल,कुछ भी कहा नहीं जाता
इक दिन मर जाना है सबको दिल में बैठ गई ये बात
कैसा रिश्ता कैसे मंजिल,कुछ भी कहा नहीं जाता
नैतिकता अपराध बन गई अधिकारों की धरती…
ContinueAdded by मनोज अहसास on July 25, 2019 at 10:26pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
लड़खड़ाती साँस डगमग आस व्याकुल मन सदा
हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा
अनगिनत सपने सजा कर, चाहते निंदिया नयन
रात भर बेचैनियों की, है ग़ज़ब देखो प्रथा
पत्थर-ओ-फ़ौलाद की दीवारें मुझ को चुभ रहीं
आप यदि अपने महल में खुश हैं फिर तो वाह वा
सृष्टि की हर एक रचना का अलग इक सत्य है
कैसे लिख दूँ एक है व्यवहार जल औ आग का
फूल की डाली कली से फुसफुसा कर कह गई
ओढ़ ले काँटे सुरक्षा का यही है…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2019 at 4:00pm — 4 Comments
बहर :- 2122-2122-2122-212
ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा ।।
शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा।।
अब्र से शबभर गिरेंगी ओश की बूंदें मगर ।
दिन ही चढ़ते ये समां इक मस्खरी हो जाएगा।।
हाँ खुमार -ए-इश्क है बातें तो होगी रात दिन ।
जब भी उतरेगा ये सर से मयकशी हो जाएगा।।
उसके हक़ में है सियासत देखना तुम एक दिन।
जाने वो बोलेगा क्या क्या औऱ बरी हो जायेगा।।
दर्द-ओ-गम शुहरत मुहब्बत सब मिलेगा इश्क में ।
इश्क…
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 25, 2019 at 3:10pm — 3 Comments
प्रीत भरे दोहे .....
अगर न आये पास वो, बढ़ जाती है प्यास।
पल में बनता प्रीत का , सावन फिर आभासll
छोड़ो भी अब रूठना , सावन रुत में तात।
बार बार आती नहीं ,भीगी भीगी रात।।
नैन नैन को दे गए , गुपचुप कुछ सन्देश।
अन्धकार में देह से , हुआ अनावृत वेश। ।।
यौवन की नादानियाँ , सावन के उन्माद।
अंतस के संवाद का ,अधर करें अनुवाद।।
याचक दिल की याचना , दिल ने की स्वीकार।
बंद नयन में हो गया , अधरों का…
Added by Sushil Sarna on July 24, 2019 at 2:30pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी
फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी
.
अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब
करम फ़रमाँ है मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भी
.
जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू
वहां पे छोड़ देती हैं ये खुशियाँ आना जाना भी
.
बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का
कहीं पेड़ों पे भी मिलता नहीं वो आशियाना भी
.
हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से
हमारे साथ…
Added by SALIM RAZA REWA on July 23, 2019 at 9:30pm — 1 Comment
Added by Usha Awasthi on July 23, 2019 at 8:30pm — 4 Comments
- "कुण्डलिया छंद"-
=========================
तेरा मुखड़ा चाँद सा, उतर न जाए यान।
गंजा पति कहने लगा, बचना मेरी जान।।
बचना मेरी जान,दक्षिणी ध्रुव पर खतरा।
चिंता की है बात, उमरिया तेरी सतरा।।
एक जगह दो चाँद, एक तेरा इक मेरा।
मेरे सिर का एक, दूसरा मुखड़ा तेरा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-
Added by Hariom Shrivastava on July 23, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
है ख़ाक काम किया तूने जिंदगी के लिए।
मुनीर जब किया दीया न रौशनी के लिए।
बताई जो मेरी माँ ने वही तो मैं भी कही,
अ़मल कहाँ हुआ बस बात शायरी के लिए।
फ़िराग कब मिली जब ये है जिंदगी झमेला,
नसीब कब हुआ वो चाँद आशिकी के लिए।
ख्याल ढूँढ रखा जो बता सकूँ मैं तुझे,
रखी ये चीज़ जो है खास आप ही के लिए।
ख़ता कभी न हो ऐसा कहाँ लिखा है बता,
तभी हुई है कहानी ये आदमी के लिए ।
फ़जा तलाश जहाँ में कहीं यहाँ या…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 23, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
मदमस्त चलती हवाएं और कार में एफएम पर मल्हार सुनकर, पास बैठी मेरी सखी साथ में गाना गाने लगती है "सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेशी घर वापस आया" गाते गाते उसका स्वर धीमा होता गया और फिर अचानक वो खामोश हो गयी, उसको खामोश देखकर मुझसे पूंछे बिना नही रहा गया। फिर वो पुरानी यादों में खोई हुई सी मुझसे कहती है कि कहाँ गुम हो गए सावन में पड़ने वाले झूले, एक समय था जब सावन माह के आरम्भ होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे और किशोरिया गाने लगती थी..
कच्ची नीम की निबौरी, सावन…
Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on July 22, 2019 at 10:00pm — 1 Comment
बीच समंदर कश्ती छोड़े धोका गर मल्लाह करे
मंज़िल कैसे ढूंढोगे जब रहबर ही गुमराह करे
**
आज हुआ है इंसानों में प्यार मुहब्बत क्यों ग़ायब
घर घर की चर्चा है अपने अपनों से ही डाह करे
**
पानी मांग नहीं पाता है साँपों का काटा जैसे
ऐसा काम भयानक अक़्सर मज़्लूमों की आह करे
**
आज अक़ीदत और इबादत का जज़्बा गुम सा देखा
दिल में जब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 22, 2019 at 8:00pm — 2 Comments
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