नही आता लगाना दिल करे हम क्या बताओ तुम
हकीकत जिन्दगी की याद मुझको मत दिलाओ तुम
कभी बचपन नही देखा जवानी फर्ज में गुजरे
रहा तन्हा हमेशा मैं न मेरे पास आओ तुम
हुआ था प्यार मुझको भी मगर वो भूल थी मेरी
निभा सकता न अब मैं प्यार मुझसे दूर जाओ तुम
ग़ज़ल कहता नहीं हूँ मैं नहीं मैं गीत हूँ लिखता
लिखूँ आवाज बस दिल की न उसको गुनगुनाओ तुम
मिले है दर्द लाखो पर सदा ही मुस्कुराता हूँ
छुपे जो अश्क…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on July 18, 2015 at 12:30pm — No Comments
‘मंत्री जी ! ‘भाई’ अब फिर से नयी ‘डिमांड’ कर रहा है। पिछले हफ्ते डी.आई.जी. साहिब को ‘सेवा’ पहुँचाई है और अभी ‘पार्टी फंड’ भी जमा करवाना है । आपको तो पता ही है कि आपके इलेक्शन के वक्त भी हम किसी भी तरह पीछे नहीं हटे थे। तो फिर कभी ‘भाई’ तो कभी पुलिस। ऐसे कैसे चलेगा ?’
‘अरे परेशान काहे हो रहे हो। अब अकेले तुम्हारी वजह से ही तो इलेक्शन नहीं न जीते हैं हम... सभी ने साथ दिया था हमारा और ध्यान भी तो सभी का ही रखना पड़ेगा ना। और तुम घबरा काहे रहे हो, ऊ ससुरा जो पुल बना रहे हो ना उसमें से दो…
Added by Ravi Prabhakar on July 18, 2015 at 12:08am — 9 Comments
दो सरल रेखाएं
जब एक बिंदु पर आकर मिलती हैं
एक ऋजु कोण का निर्माण करती हैं
ऋजु कोण से अधिक कोण
क्रमश:
घटती दूरी
और
फिर न्यून कोण
न्यूनतम करती हुई
दोनों रेखाएं एक दूसरे से मिल जाती है
तब उनके बीच बनता है- शून्य कोण
समय की चोट खाकर
दोनों रेखाएं
अलग होती हुई
सामानांतर बनती है
और
अनन्त पर जाकर मिलती हैं
या फिर विपरीत दिशाओं में
और दूर
और दूर
होती…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 17, 2015 at 8:55pm — 8 Comments
क्यारी देखी फूल बिन ,माली हुआ उदास ।
कह दी मन की बात सब, जा पेड़ों के पास ॥
हिन्दी को समृद्धि करन हित, मन में जागी आस ।
गाँव गली हर शहर तक ,करना अथक प्रयास ॥
कदम बढ़ाओ सड़क पर ,मन में रख कर विश्वाश ।
मिली सफलता एक दिन ,सबकी पूरी आश ॥
सूरज चमके अम्बर में , करे तिमिर का नाश ।
अज्ञानता का भय मिटे, फैले जगत प्रकाश ॥
चंदा दमकी आसमान ,गई जगत में छाय ।
हिन्दी पहुंची जन जन में, तब बाधा मिट जाय ॥
हिन्दी हमारी ताज अब, सबको रख कर पास…
ContinueAdded by Ram Ashery on July 17, 2015 at 6:54pm — 3 Comments
लघुकथा - अग्नि परीक्षा –
"रचना, तू यह क्या कर रही है, मुझे तो यह तेरा कदम सही नहीं लग रहा, पति पत्नी के बीच की दरार को जितनी जल्दी हो घटाना चाहिये पर तू तो और बढा रही है "!
"मॉ ,अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है,अब मेरी बर्दास्त की सीमा समाप्त हो चली है, हर वक्त ताने"!
"नहीं बेटी ,स्त्री की बर्दास्त का तो कभी अंत ही नहीं होता, फ़िर तेरे साथ तो दो बच्चों का भी जीवन जुडा है"!
"मॉ ,झगडे की मुख्य वज़ह भी तो ये बच्चे ही हैं, राकेश तो यह मानने को तैयार ही नहीं कि ये बच्चे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 17, 2015 at 11:30am — 4 Comments
" इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास , सोच समझ कर माँगा और खर्च किया करो ", पति की आवाज़ उसके मन को मथ रही थी | काश उसने भी नौकरी की होती तो आज पार्टी के लिए पैसे मांगने की नौबत तो नहीं आती | यही सब सोचती किचन की ओर बढ़ी थी कि अचानक उसके कदम ठिठक गए | दरवाजे से उसकी नज़र पड़ गयी थी कामवाली पर जो नीचे रखे प्लेट्स में से निकाल कर पूरी वगैरह अपने पल्लू में बांध रही थी |
फिर उसने एक प्लेट में ढेर सारा खाने का सामान रखा और थोड़ी दूर से आवाज़ लगायी " बाई , ये प्लेट भी धुलने में रख देना "|
उसे बाई को…
Added by विनय कुमार on July 16, 2015 at 10:38pm — 12 Comments
बंधन
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डाक्टर श्रीवास्तव की शुरू से आदत रही कि वे खुद और उनका स्टाफ समय पर अस्पताल पहुँचे। ज्यादातर वे समय से पहले अस्पताल पहुँच जाते ताकि अन्य राजकीय औपचारिकताओं के निर्वहन में खर्च होने वाले समय की प्रतिपूर्ति की जा सके और अधिक से अधिक मरीज देखे जा सकें। अपने सरल स्वभाव और मानवीय संवेदनाओं में अग्रणी होने के नाते क्षेत्र में बहुत लोंक प्रिय थे। मरीजों की भीड़ लगी थी और डाक्टर साहब तल्लीन थे सेवा भाव में। तभी मंत्री जी का आगमन हुआ। मंत्री का रूतबा और दबदबा दोनों ही कुछ ज्यदा…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 16, 2015 at 6:00pm — 6 Comments
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
ख़ुदाई जब आए हुनर में उतर कर
ख़ुदा बोलता है बशर में उतर कर
भरोसा न हो मेरी हिम्मत पे जानम
तो ख़ुद देख दिल से जिगर में उतर कर
इसी से बना है ये ब्रह्मांड सारा
कभी देख लेना सिफ़र में उतर कर
महीनों से मदहोश है सारी जनता
नशा आ रहा है ख़बर में उतर कर
तेरी स्वच्छता की ये कीमत चुकाता
कभी देख तो ले गटर में उतर कर
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 4:14pm — 12 Comments
जरुरी नहीं कि हम दोषी हों
मिल जाती है सजा
अक्सर निरपराध को भी
हो जाती हैं दुर्घटनाएं
बिना हमारी गलती के भी
जरुरी नहीं कि लोग
हमसे खुश ही हों
बिना वज़ह भी हो जाती हैं
गलतफहमियां
और बिगड़ जाते हैं रिश्ते
जरुरी नहीं कि जो हम सोचें
वो सही ही हो
क्यूंकि हर चीज़ का
होता है एक दूसरा भी पहलू
जो नहीं देख पाते हम
जरुरी नहीं कि हम जन्म लें
एक ऐसे वातावरण में
जो हो जीने के लिए आदर्श
पर ये बहुत जरुरी है कि
बनायें…
Added by विनय कुमार on July 16, 2015 at 4:03pm — 6 Comments
रामप्रकाश बाबू ने बस थोड़ी सी बेवफाई ही तो शुरू किया दफ्तर में अपने ईमान से कि सब जादू सा बदलने लगा . ईमान का स्तर थोडा नीचे क्या किया,रहन सहन ,खान-पान ,ऐश-मौज सबका स्तर ऊंचा होते गया . उड़ान ने ऐसी रफ़्तार पकड़ी कि साथ के यार दोस्त वहीँ नीचे ही रह गएँ .
होली का दिन था ,शहर की महँगी मिठाइयाँ टेबल पर सजी रखी हुई थीं . यारों की टोली आ रही थी......... लेकिन ये क्या कोई उनकी तरफ आया ही नहीं उन्होंने हाथ भी हिलाया पर सब आपस में मशगूल थें .आज अलमारी में रखे नोटों पर हाथ फिराने इच्छा नहीं हुई…
ContinueAdded by Rita Gupta on July 16, 2015 at 12:30pm — 5 Comments
लघु कथा - मुर्गी का अंडा –
नज़ीर भाई और रसूल मियां वर्षों से पडौसी थे!नज़ीर भाई की टैक्सियां चलती थी और रसूल मियां घर के पिछवाडे ही मुर्गी पालन और अंडे बेचने का काम करते थे!
एक दिन एक मुर्गी नज़ीर भाई के अहाते में घुस गयी!पीछे पीछे रसूल मियां उसे पकडने दौडे!रसूल मियां ने देखा कि मुर्गी ने नज़ीर भाई के अहाते में अंडा दे दिया!नज़ीर भाई ने अंडा उठा लिया!रसूल मियां ने मुर्गी को पकड लिया,साथ ही नज़ीर भाई से अंडा भी मांगने लगे!
नज़ीर भाई साफ़ मुकर गये,"अरे रसूल मियां ,यह अंडा तो मैं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 16, 2015 at 11:51am — 10 Comments
तलाश
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निकल पड़ा हूँ
रोज की तरह आज भी
तलाश में ?
रोटी की
गोल हो , पतली या मोटी
जली काली , सफ़ेद
क्या फर्क
स्वाद तों एक ही होगा
कैसे ढूंढ लेते हो
अंतर
पांच सितारा होटल के नीचे पड़े
बजबजाते कूड़े में पडी
और
सुखिया के चूल्हे में सिंकी
सोंधी गंध वाली रोटी में
तुम्हें पता है ?
भूख कैसी होती है ?
मैं जानता हूँ।
मौलिक और अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 16, 2015 at 11:45am — 4 Comments
२२ २२ २२ २
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यार कभी तू ऐसा कर
रस्ता मेरा देखा कर
याद किया बरसों तुझको
इक पल तू भी सोचा कर
अपने दाम लगा फिर तू
हाट लगा कर बेचा कर
सूरज चाँद पकड़ने में
जुगनू को मत छोड़ा कर
फोन खरीदा महँगा तो
इक दो कॉल मिलाया कर
बन झूठा बीमार कभी
रस्ता सबका ताका कर
तेरा भी है नाम…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 16, 2015 at 11:17am — 3 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2 ---
पेडों पर इल्जाम लगा वो ख़ुद की खातिर जीता है
सोच रहा हूँ मैं सागर क्या अपना पानी पीता है ?
झूठा- सच्चा , सही ग़लत ये सब बे पर की बातें हैं
दिखे फाइदा, सच को मोड़ो जिसको जहाँ सुभीता है
सभी उँगलियाँ अलग हो गईं अहम बीच में आने से
चुल्लू में कुछ रुका नहीं , जो रीता था, वो रीता है
शब्द कोश बस रट लेने से भाव नहीं पैदा होता
व्यर्थ हाथ में रख लेना क़ुरआन बाइबिल गीता…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 7:39am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 1:00am — 10 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 12:10am — No Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 12:06am — No Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 12:02am — No Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 15, 2015 at 11:50pm — No Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 15, 2015 at 11:48pm — No Comments
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