गँगा जल की कुण्डलियां, भर लाए शिव भक्त
कावड़ ले मनमोहिनी ,सब को करें आसक्त||
शिव नगर हरिद्वार की, महिमा अपरमपार
कावड़ मेले हैं लगे , सजे हुए बाजार||
नारे बोल बम बम के ,गूँज रहे चहुँ ओर
मस्त मलंग घूम रहे, मिल सब करते शोर||
आए पूरे देश से , बम बम करते आज
त्रिलोचन महादेव का , तिलक कर रहे आज||
लाखों भक्त शंकर का, करते हैं अभिषेक
शिवरात्री है आ गई, माथा तू भी टेक||
बम बम करते आ गए ,शिव के सेवादार …
Added by Sarita Bhatia on August 5, 2013 at 11:00am — 5 Comments
आज सच तुझसे कहूँ
बिन तेरे कैसे रहूँ
इक दिन न इक रात
अन्तरंग यह बात...
सांसों में अब मिठास है
कड़वाहट अब न पास है
जब से तू है साथ
अन्तरंग यह बात...
जुल्फ तेरी घनघोर घटा
लहराएँ तो सर्द हवा
प्यार तेरा बरसात
अन्तरंग यह बात...
नयन तेरे मधुशाला हैं
बाहें तेरी, मेरी माला हैं
पाक मेरे जज्बात
अन्तरंग यह बात...
मर जाऊं मिट जाऊं मैं
तुझ संग ही जी पाऊँ…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2013 at 11:00pm — 27 Comments
पर्वत राज हिमालय जिसका मस्तक है
जिसके आगे बड़े बड़े नतमस्तक है
सिन्धु नदी की तट रेखा पर बसा हुआ
गंगा की पावन धारा से सिंचित है
जिसको तुम सोने की चिड़िया कहते थे
छोटे बड़े जहाँ आदर से रहते थे
जहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिला
जहाँ कभी न श्याम श्वेत का भेद हुआ
जिसको राम लला की धरती कहते है
गंगा यमुना सरयू जिस पर बहते है
जिस धरती पर श्री कृष्णा ने जन्म लिया
जहाँ प्रभु ने गीता जैसा ज्ञान दिया
जहाँ निरंतर वैदिक…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 4, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
तुम पिंजरे में बंद मुर्दा ज़िन्दगी के सिवा कुछ भी तो नहीं ,
अपने आप को ,आज़ाद पंछी मान बैठे हो ,
तुम्हारी तनी हुई मुट्ठियाँ ,बढ़ते कदम ,
बीवी बच्चों को देख, अपाहिज हो जाते हैं ,
तुम्हारे मस्तक की मांसपेशियां ,
पेट की तरफ देख ,अनाथ हो जाती है ,
तुम्हारी जुबान ,साहब को देख ,…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on August 4, 2013 at 6:00pm — 4 Comments
पीर पंचांग में सिर खपाते रहे ।
गीत की जन्मपत्री बनाते रहे ।
हम सितारों की चौखट पे धरना दिये
स्वप्न की राजधानी सजाते रहे ।
लाख प्रतिबंध पहरे बिठाये गये
शब्द अनुभूतियों के सखा ही रहे
आँसुओं को जरूरत रही इसलिये
दर्द के कांधे के अँगरखा ही रहे
श्वास की बाँसुरी बज उठी जब कभी
हम निगाहें उठाते लजाते रहे।
पर्वतों से मचलती चली आ रही,
गीत गोविन्द मुग्धा नदी गा रही,
पांखुरी-पांखुरी खिल गई रूप की
भोर लहरा रही, चांदनी गा…
Added by Sulabh Agnihotri on August 4, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
टूट तो जाने ही थे
अन्तस् के बंध;
विष से उफनाये वे-
कटुता के छंद !
शब्द ही तो थे...
वह उद्दात्त मन का…
ContinueAdded by Vinita Shukla on August 4, 2013 at 4:00pm — 34 Comments
कितने कितने सूरज चमके
पर अँधियारा शेष रहा
तेरे मेरे मन के अंदर
इक संशय फल फूल रहा।।
सरपत के ढेरों झाड़ उगे
तन छू ले कट जाता है
इन बबूल के काँटों से भी
भीतर तक छिल जाता है
सावन की बौछारों में भी
मन उपवन सब सून रहा।।
तुम मिलते हो मुझको जैसे
इक गुजरी तरुणाई सी
भाव खिलें डाली पर कैसे
वह रूखी मुरझाई सी
साज संवार व्यर्थ रहा सब
धूल भरा यह रूप रहा।।
चिड़ियों ने…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 3:00pm — 28 Comments
मैं सपने बेचता हूँ।
आज के, कल के,
और कभी कभी तो बरसों बाद के भी।
इन सपनों की ज़रुरत नहीं तुम्हें।
इनका अहसास मैंने दिलाया है,
तुम्हारे जेहन में घुसकर...
तुम्हारे डर को कुरेदकर।
मैं और मुझ जैसे सैकड़ों लोग,
झांकते हैं,
तुम्हारे गुसलखानों में,
तुम्हारी रसोई में,
तुम्हारे ख्वाबगाहों में।
मुझे पता है,
कितनी दफा ब्रश करते हो तुम,
कैसे रोता है तुम्हारा बच्चा गीली नैपी में, और
क्यूँ तुम्हारे चेहरे की चमक खो…
Added by Arvind Kumar on August 4, 2013 at 7:30am — 11 Comments
जीवन में मत जमीर को पलभर सुलाइए।
सोने लगे तो फेंक के पानी जगाइए।
बेगैरतों के शह्र में रहते जो शौक से,
अपने घरों की लाज को उनसे बचाइए।
अनमोल रत्न शील ही होता जहान में,
यूँ कौड़ियों के मोल इसे मत लुटाइए।
जिसने दिये हों सात वचन सात जन्मों के,
केवल उसी के सामने घूँघट उठाइए।
बीमारियाँ चरित्र की लगती हैं छूत से,
पीड़ितजनों के पास जियादा न जाइए।
बस दागदार करते जो घर की दीवारों को,
वैसे चिराग हाथ से…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2013 at 7:17pm — 16 Comments
कागज़ के फूलों को सजाया जा रहा है | |
हरे भरे बागों को मिटाया जा रहा है | |
क्या होगा हाल उन कश्तियों का , |
जिन्हें सुर्ख रेत पर चलाया जा रहा है | |
कैसे सूखे आँसू उन ग़मगीन आँखों का … |
Added by Shyam Narain Verma on August 3, 2013 at 3:54pm — 8 Comments
चांदनी फिर पिघलने लगी है
आँसुओं से धुली वो इबारत
गीत बनकर मचलने लगी है।
रोते-रोते हुए पस्त शिशु से,
भावना के विहग सो गये थे
सांझ की डाल सहमी हुई थी,
भोर के पुष्प चुप हो गये थे
फिर अचानक हुई कोई हलचल,
जैसे लहरा गया कोई आंचल
उनके दिल से उठी एक बदली
मेरी छत पे टहलने लगी है।
इक गजल पर तरह दी किसी ने,
भूला मुखड़ा पुनः गुनगुनाया
प्यार से साज की धूल झाड़ी,
मुद्दतों बाद फिर से उठाया
तार…
Added by Sulabh Agnihotri on August 3, 2013 at 3:30pm — 25 Comments
Added by विवेक मिश्र on August 3, 2013 at 3:09pm — 26 Comments
Added by Admin on August 3, 2013 at 12:00pm — 8 Comments
Added by Ashish Srivastava on August 3, 2013 at 11:00am — 4 Comments
बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
१२२२, १२२२
दिवाना दिल जिगर कर दो,
इधर भी तो नज़र कर दो,
फलक से चाँद लाऊं मैं,
इशारा तुम अगर कर दो,
अकेले रास्ता मुश्किल,
सुहाना तुम सफ़र कर दो,
हजारों मैं ग़ज़ल कह दूँ,
सरल थोड़ी बहर कर दो,
पिला दो हाँथ से अपने,
सुधा बेशक जहर कर दो,
मुहब्बत मैं अजय कर दूँ,
कहानी तुम अमर कर दो...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2013 at 10:30am — 16 Comments
इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…
ContinueAdded by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments
किसान हीरा की पत्नी घाट से जो मटका भर कर लाती थी, उसमें छोटा सा छेद हो गया था| उस पर हाथ रखते रखते भी पानी ज़मीन पर गिर ही जाता| जैसे तैसे वो पानी लेकर आती थी|
उसने अपने पति से इस बात की शिकायत की कि, अब इस मटके से पानी भरना संभव नहीं है, आप नया मटका ले आओ| हीरा थोड़ा व्यस्त था, जब तक वो नया मटका खरीदता, तब तक पुराने मटके का छेद काफी बढ़ गया और बहुत सारा पानी तो रास्ते में ही गिर जाता|
नया मटका आते ही पुराना मटका हीरा की पत्नी ने बाहर फैंक दिया, वहां काफी कीचड़ थी,…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 1:00am — 8 Comments
उसके लिए कहना कितना आसान था,
सुखों के लिए बिक रहा मेरा ईमान था |
जो दुखों के पंख लगा के घर में आता है,
उसकी खुशामदीद का क्यों अरमान था |
तय की थीं मंज़िलें जिन्होंने दोस्ती की
वो कह गए कि उनका बड़ा एहसान था |
मैनें खोद के देखा इंसानियत की परतों को
ना तो वहां रूह थी और कहाँ इंसान था |
आओ छुपा दें हर ग़म को आखों में ही
सुख को सुखाना कहां इतना आसान था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 12:00am — 10 Comments
सावधान रहो
सतर्क रहो
किस किस से
कब कब
कहाँ कहाँ
हमेशा रहो
हरदम रहो
जागते हुए भी
सोते हुए भी
क्या कहा ?
ख्वाब देखती हो
किसने कहा था
बंद करो
कल्पना की कूची से
आसमान में रंग भरना
उड़ना चाहती हो ?
क़तर डालो पंखो को
अभी के अभी
ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो
अरे तुम तो खिलखिलाती भी…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:30pm — 43 Comments
प्रथम प्रयास
- - - - - - - - -
1. बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।
शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।
कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।
कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥
2.
सादर है अधिकार तुम्हें तुम रूप-सुधा अविराम लुटाना।
तारक,हीरक या मणि-कांचन-मंडित जीवन पे इतराना।
यौवन की चिनगी दिखला कर प्रेम-हुताशन भी सुलगाना।
प्यास बुझे न नदी-जल से जब सागर के तट गागर लाना॥…
Added by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 8:00am — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |