थाम लो इन आंसुओं को
बह गए तो ज़ाया हो जाएंगे
इन्हें खंजर बना कर पेवस्त कर लो
अपने दिल के उस हिस्से में
जहाँ संवेदनाएं जन्म लेती हैं
उसके काँधे पर रखी लाश से कहीं ज्यादा वज़न है
तुम्हारी उन संवेदनाओं की लाशों का
जिन्हें अपने चार आंसुओं के कांधों पर
ढोते आए हो तुम
अब और हत्या मत करो इनकी
संवेदनाओं का कब्रस्तान बनते जा रहे तुम
हर ह्त्या, आत्महत्या, बलात्कार पर
एक शवयात्रा निकलती है तुम्हारी आँखों…
Added by saalim sheikh on August 26, 2016 at 1:00am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 22 22 -- बहरे मीर
छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं
और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं
वहाँ ज़मीरों की सच्चाई हम किसको समझाने जाते
दिल पे पत्थर रख के यारों रोज़ ज़रा सा मर लेते हैं
चाहे चीखें, रोयें, गायें फ़र्क नहीं उनको पड़ता, पर
जैसे बच्चा कोई डराये , वालिदैन सा डर लेते हैं
कल का नीला आसमान अब रंग बदल कर सुर्ख़ हुआ है
पंख नोच कर सभी पुराने, चल बारूदी पर लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:28pm — 18 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२
सब खाते हैं एक बोता है
ऐसा फल अच्छा होता है
पूँजीपतियों के पापों को
कोई तो छुपकर धोता है
एक दुनिया अलग दिखी उसको
जिसने भी मारा गोता है
हर खेत सुनहरे सपनों का
झूठे वादों ने जोता है
महसूस करे जो जितना, वो,
उतना ही ज़्यादा रोता है
मेरे दिल का बच्चा जाकर
यादों की छत पर सोता है
भक्तों के तर्कों से ‘सज्जन’
सच्चा तो केवल…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2016 at 11:37am — 8 Comments
हे पार्थ के सारथी, हे जसुमति के लाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
ध्वस्त किया था कंस का ,इक दिन तुमने मान
निडर हो गया कंस अब ,और हुआ बलवान
घूम रहा है ओढ़ कर ,सज्जनता की खाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
पाँचाली के चीर का ,किया खूब विस्तार
नयनों में भर नीर फिर ,तुमको रही पुकार
अंध सभा में ठोकता , दुःशासन फिर ताल
हरने जन की पीर अब ,फिर आओ गोपाल
अर्जुन का रथ थाम कर…
ContinueAdded by pratibha pande on August 25, 2016 at 8:00am — 14 Comments
यह 1980-81 की बात है । मैं दसवी क्लास में थी । स्कूल का आखरी टूर था । पता चला कि नेपाल जाना था । स्कूल के टूर साल में दो बार होते थे गर्मी और विंटर की छुट्टियों में । दिसम्बर में जाना तय हुआ था । प्रिंसिपल सर ने घोषणा की कि दिल्ली , आगरा , पटना , गया से समस्तीपुर होते हुए नेपाल जाना होगा । हम क्लास में आपस में बाते करने लगे थे । अपने अपने मनसूबों के साथ हम में एक उत्साह था । यह स्कूल का आखरी टूर था । हम सब जल्द ही बिछड़ने वाले थे । मेरे मन में था मैं भी जाऊं । पर कैसे ?? एक नोटिस मिलता था ।…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 7:00am — 9 Comments
टिमटिमाते तारे की रोशनी में
मैंने भी एक सपना देखा है ।
टुटे हुए तारे को गिरते देखकर
मैंने भी एक सपना देखा है ।
सोचता हूं मन ही मन कभी
काश ! कोई ऐसा रंग होता
जिसे तन-बदन में लगाकर
सपनों के रंग में रंग जाता ।
बाहरी रंग के संसर्ग पाकर
मन भी वैसा रंगीन हो जाता ।
सपनों से जुड़ी है उम्मीदें, पर
उम्मीदों की उस परिधि को
क्या नाम दूं ? सोचता हूं तो
मन किसी अनजान भंवर में
दीर्घकाल तक उलझ जाता…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 24, 2016 at 10:13pm — 4 Comments
१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २
याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए
जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |
गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते
सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |
मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले
शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ?
मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ
जले शमअ कोई शमो के लिए |
मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ
जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |
मौलिक…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
पास ही की झुग्गी के बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और दौड़ पडे .
"अरे मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." लूली ने जोर देकर अपने भाई से कहा और …
Added by नयना(आरती)कानिटकर on August 23, 2016 at 10:00pm — 6 Comments
122 122 122 122
मेरे दर्दो गम की कहानी न पूछो ।
मुहब्बत की कोई निशानी न पूछो ।।
बहुत आरजूएं दफन मकबरे में ।
कयामत से गुजरी जवानी न पूछो ।।
मुझे याद है वो तरन्नुम तुम्हारा ।
ग़ज़ल महफ़िलों की पुरानी न पूछो ।।
हुई रफ्ता रफ्ता जवां सब अदाएं ।
सितम ढा गयी कब सयानी न पूछो ।।
बयां हो गई इश्क की हर हकीकत ।
समन्दर की लहरों का पानी न पूछो ।।
सलामी नजर से नज़र कर गयी थी ।
वो चिलमन से नज़रें झुकानी न पूछो…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2016 at 9:00pm — 7 Comments
पड़े आफ़ात तो छुपता किसी मशहूर का बेटा
कलेजा शेर का रखता मगर मजदूर का बेटा
कहीं ऊपर जमीं के उड़ रहा मगरूर का बेटा
जमीं को चूमता चलता किसी मजबूर का बेटा
कई तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दें
पकड़कर हाथ राधा का चले जो नूर का बेटा
सिखाने पर परायों के भरा है जह्र नफरत का
चला हस्ती मिटाने को कोई अखनूर का बेटा
कदम पीछे हटा लेता जहाँ उसकी जरूरत हो
हर इक रहबर फ़कत कहने को है जम्हूर का बेटा
सरापा थाम…
Added by rajesh kumari on August 23, 2016 at 6:32pm — 23 Comments
Added by Rahila on August 23, 2016 at 1:30pm — 4 Comments
कुकुभ छंद -२
जीवन में दुःख के लिए तो, गुण जरुरी नहीं होता
हमेशा दुख है घुसपैटिया, अनाहूत पाहुन होता |
योग्यता, प्रतिभा जरूरी है, गर दिल में सुख की इच्छा
चढ़ता वही पर्वत शिखर पर, जिसमे है सशक्त स्वेच्छा |
प्रकृति कब कुपित हो लोगों से, कोई नहीं कभी जाने
करते गलती मानव जग में, कभी भूल से अनजाने |
जल प्रलय में डूबे हजारों, मकान थे नदी किनारे
ज़खमी न जाने जितने हुए, कितने अल्ला को प्यारे |
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 23, 2016 at 10:19am — 5 Comments
गुड़ मिला पानी पिला महमान को
2122 2122 212
********************************
तब नज़र इतनी कहाँ बे ख़्वाब थी
और ऐसी भी नहीं बे आब थी
नेकियाँ जाने कहाँ पर छिप गईं
इस क़दर उनकी बदी में ताब थी
गैर मुमकिन है अँधेरा वो करे
बिंत जो कल तक यहाँ महताब थी
बे यक़ीनी से ज़ुदा कुछ बात कह
ठीक है, चाहत ज़रा बेताब थी
डिबरियों की रोशनी, पग डंडियाँ
थीं मगर , बस्ती बड़ी शादाब थी
शादाब-…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 8:30am — 24 Comments
2122 2122 2122 2
मर रहे क्यूँ नाम के अखबार की खातिर
कब बने तमगे कहो फनकार की खातिर।1
लिख रहे जो बात कुछ भी काम आये तो
गर बहें आँसू किसी दरकार की खातिर।2
चाँद-सूरज जल रहे फिर मोम गलती है,
रूठते हैं कब भला उपहार की खातिर।3
बाढ़ आती है जहाँ कुछ- कुछ पनपता है
है कहाँ सब लाजिमी घर-बार की खातिर।4
खुद खुशी हित थी लिखी बहु जन मिताई ही
लिख रहे कुछ लोग निज उपकार की खातिर।5
शोखियों का शौक रखते बदगुमां कुछ…
Added by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 7:00am — 18 Comments
मैं जब स्कूल से आयी तो देखा बिशम्भर नाथ जी यानि कि मेरे चाचा जी मेरे सगे चाचा जी ड्राइंग रूम में बैठे माँ के साथ बतिया रहे थे। वही पुरानी खानदान की बातें, पुराने बुआ दादी के किस्से । मैंने देखा उन्होंने कनखियों से एक नज़र मुझ पर भी डाली है।
‘‘बेटा इधर आओ देखो चाचा जी आये हैं’’ मैं माँ की बात को अनसुना करके अपने कमरे में चली गयी। आज मुझे ‘चाचाजी’ शब्द से ही घृणा हो रही थी। जिनकी गोदी में मैं बचपन से खेलती आयी हूं जिनके लिये मैं हमेशा उनकी छोटी सी गुड़िया रही वही इस गुड़िया के शरीर से खेलना…
Added by Abha saxena Doonwi on August 22, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 22, 2016 at 9:23pm — 8 Comments
122 122 122 122
तेरी बज्म में कुछ सुनाने से पहले ।
मैं रोया बहुत गुनगुनाने से पहले ।।
न बरबाद कर दें ये नजरें इनायत ।
वो दिल मांगते दिल बसाने से पहले ।।
है इन मैकदों में चलन रफ्ता रफ्ता ।
करो होश गुम कुछ पिलाने से पहले ।।
तेरे हर सितम से सवालात इतना ।
मैं लूटा गया क्यूँ जमाने से पहले ।।
बदल जाने वाले बदल ही गया तू ।
मुहब्बत की कसमें निभाने से पहले ।।
ख़रीदार निकला है वो आंसुओं का ।
जो आकर गया…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2016 at 9:00pm — 10 Comments
क्षणिका .. १
सूखी पीली झाड़ी सरीखा बाँझ रिश्ता
अँधियाले भरी सांझ में मानो कोई घायल पक्षी
वेदनाओं की नीली गुत्थियाँ खोले
क्षणिका .. २
कुम्हलाए साँवले रिश्ते के उदास बगीचे में
सुनता हूँ, "स्नेह अभी भी है"
पर अनस्तित्व को अस्तित्व देती
उस स्नेह में अब मीठी चाशनी नहीं है
क्षणिका .. ३
गहरे अकेले प्रश्नों से बिम्बित
पुराना वेदनामय अस्तित्व ...
बहती है अभी भी रुधिर…
ContinueAdded by vijay nikore on August 22, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 22, 2016 at 10:24am — 20 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |