अपनी आबरू बेच जब
हाथ में नोट आया
लड़की ने नोट पर
अंकित गांधी के चित्र पर
अपनी बेबस नजरों को गड़ाया
गांधी बहुत ही शर्मिंदा हुए
अपनी खुद की नजरों को
जमीं में गड़ता पाया
नहीं मिला पायें नजर
आंसुओं से डबडबाई नजरों से
देश के हालत पर चीत्कार से…
Added by savitamishra on August 21, 2014 at 1:00pm — 24 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 20, 2014 at 11:17pm — 20 Comments
कविता गीत ग़ज़ल रूबाई।
सबने माँ की महिमा गाई।।
जल सा है माँ का मन निर्मल
जलसा है माँ से घर हर पल
हर रँग में रँग जाती है माँ
जल से बन जाता ज्यों शतदल
माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल
माँ गुलाबजल, माँ है संदल
जल-थल-नभ, क्या गहरी खाई।
माँ की कभी नहीं हद पाई।
कविता गीत----------------
माँ फूलों की बगिया जैसी
रंगों में केसरिया जैसी
माँ भोजन में दलिया जैसी
माँ गीतों में रसिया जैसी
माँ…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 20, 2014 at 11:04pm — 12 Comments
2222 2222 2222 222
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देता है आवाजें रूक-रूक क्यों मेरी खामोशी को
थोड़ा तो मौका दे मुझको गम से हम आगोशी को
***
कब मागे मयखाने साकी अधरों ने उपहारों में
नयनों के दो प्याले काफी जीवन भर मदहोशी को
***
देखेगी तो कर देगी फिर बदनामी वो तारों तक
अपना आँचल रख दे मुख पर दुनियाँ से रूपोशी को
***
बेगानों की महफिल में तो चुप रहना मजबूरी थी
अपनों की महफिल में कैसे अपना लूँ बेहोशी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2014 at 11:21am — 24 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
करेंगे होम ही, लेकर सभी आसार बैठे हैं
जिगर वाले जला के हाथ फिर तैयार बैठे हैं
ज़रा ठहरो छिपे घर में अभी मक्कार बैठे हैं
जलाने को तुम्हारे हौसले तैयार बैठे हैं
बहारों से कहो जाकर ग़लत तक़सीम है उनकी
कोई खुशहाल दिखता है , बहुत बेज़ार बैठे हैं
समझते हैं तेरे हर पैंतरे , गो कुछ नहीं कहते
तेरे जैसे अभी तो सैकड़ों हुशियार बैठे हैं
तुम्हें ये धूप की गर्मी नहीं लगती यूँ ही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 20, 2014 at 9:30am — 32 Comments
" कितने गंदे लोग हैं , छी , सब तरफ गन्दगी ही गन्दगी , उधर किनारे चलते हैं " कहते हुए लड़का बड़े प्यार से हाथ पकड़ कर उसे किनारे ले गया और आँखों में आँखें डाल कर खो गए दोनों |
" साहब मूंगफली ले लो , टाइम पास " |
" ठीक है , दे दो " , और फटाफट पैसे देकर रुखसत किया उसको |
पता ही नहीं चला , कब मूंगफली ख़त्म हो गयी और अँधेरा हो गया | दोनों उठ कर चलने लगे |
लेकिन जैसे ही लड़की ने झुक कर छिलके उठाये , लड़के का हाथ अपने गाल पर चला गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on August 20, 2014 at 2:00am — 23 Comments
मंदबुद्धि और भोला रामदीन वर्षों से अपने परिवार व् गाँव से दूर , दूसरे गाँव में काम करके अपने परिवार में अपनी पत्नी व् बेटे का पालन करते-करते, विगत कुछ महीनों से बहुत थक चुका है. शरीर से बहुत कमजोर भी हो गया है , आखिर उम्र भी पचपन-छप्पन के लगभग जो हो गई. अब तो कभी-कभी खाना ही नही खा पाता. पहले कई वर्षों तक रामदीन का मालिक उसके परिवार तक उसकी पगार पंहुचा दिया करता था. अब रामदीन का बेटा बड़ा हो गया है, कमाने भी लगा है अपने ही गाँव में. कुछ महीनों से उसकी पगार लेने भी आता जाता…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 20, 2014 at 1:12am — 42 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या खुद एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 19, 2014 at 9:18pm — 31 Comments
मिले है आज हम दोनो हसीं इक शाम हो जाये
कसम दो तोड़ तुम उसकी चलो इक जाम हो जाये
पड़ा सूखा मरे भ्ूाखो नहीं कोई हमें पूछे
कही ऐसा न हो यारो कि कल्लेआम हो जाये
नहीं रखते कभ्ाी धीरज किसी भी काम में यारो
बचा लो नाम तुम मेरा न वो बदनाम हो जाये
तुम्हारे प्यार में जानम मरेगें डूब कर सुन लो
मरा पागल दिवाना है न चरचा आम हो जाये
मिलेगा अब नहीं जीवन मिला इक बार जो तुमको
करो कुछ काम अब ऐसा तुम्हारा नाम हो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on August 19, 2014 at 8:16pm — 15 Comments
हे प्रभु, सुन !
कर दें अँधेरा
चारों तरफ.. .
उजाले काटते हैं / छलते है !
लगता है अब डर
उजालें से
दिखती हैं जब
अपनी ही परछाई -
छोटी से बड़ी
बड़ी से विशालकाय होती हुई.
भयभीत हो जाती हूँ !
मेरी ही परछाई मुझे डंस न ले,
ख़त्म कर दे मेरा अस्तित्व !
जब होगा अँधेरा चारों ओर
नहीं दिखेगा
आदमी को आदमी !
यहाँ तक कि हाथ को हाथ भी.
फिर तो मन की आँखें
स्वतः खुल जाएँगी !
देख…
Added by savitamishra on August 19, 2014 at 2:00pm — 20 Comments
प्रिय मोहन तेरे द्वार खड़ी मैं,
कबसे से रही पुकार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।
मैं तो अज्ञानी, अभिलाशी,
तेरे दरश की प्यारे!
जीवन पार लगा दो मेरा,
बस मन यही पुकारे।
खुशियों से भर दो ये झोली,
ओ मेरे साँवरिया!
तेरे पीछे दौड़ी आऊँ,
बन के मैं बाँवरिया।
मोह रहे हैं मन को मेरे,
श्याम तेरे ये नयना!
दिन में सुकून ना पाऊँ तुम बिन,
रात मिले ना चैना।
मुझ अबला को सबला कर दो,
जग…
Added by Pawan Kumar on August 19, 2014 at 1:14pm — 8 Comments
२१२२ २१२२ २१२
जंग दौलत की छिड़ी है रार क्या
आदमी की आज है दरकार क्या १
जालसाजी के घनेरे मेघ है
हो गया जीवन सभी बेकार क्या२
लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३
छल रहे है दोस्ती की आड़ में
अब भरोसे का नहीं किरदार क्या ४
गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर
हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या ५
धुंध आँखों से छटी जब प्रेम की
घात अपनों का दिखा गद्दार क्या६
इन…
ContinueAdded by shashi purwar on August 18, 2014 at 9:30pm — 8 Comments
तुम हुए मंच-दाँ जब से मन निहाई हो गया
यों मगर खाली निहाई पीटने से क्या हुआ |
सोन-माटी के कबाड़े क्यों नजर आते नहीं
सिर्फ़ बातों की हथौड़ी से धरा सब रह गया |
तुम हुए रहनुमा मकसद घर से बाहर चल पड़े
पर तुम्हारी रहबरी ने…
ContinueAdded by Santlal Karun on August 18, 2014 at 5:00pm — 18 Comments
यदा यदा हि धर्मस्य--------
1
मानव देह धरी अवतारी, मन सकुचौ अटक्यो घबरायो।
सच सुनके कि देवकीनंदन हूँ मैं जसुमति पेट न जायो।
सोच सोच गोकुल की दुनिया, सब समझंगे मोय परायो।
सुन बतियन वसुदेव दृगन में, घन गरजो उमरो बरसायो।
कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं, कौन घड़ी पल छिन इहँ आयो।
कछु दिन और रुके मधुसूदन, फिरहुँ विकल कल चैन न पायो।
परम आत्मा जानैं सब कछु, ‘आकुल’ मानव देह धरायो।
कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण, श्यामहिं चित्त तनिक…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 18, 2014 at 5:00pm — 7 Comments
१-
जहाँ अश्रु की बूँदें
रोने वालों के दुखों को,
दुखों की सान्ध्रता को
कम कर देती है
वहीं पर यही अश्रु बूँदें
रोने वालों से भावनाओं से जुड़े
उनके अपनों को
बेदम भी कर देती है
२-
संयत नहीं हो पाए अगर आप
अपने भाव के साथ
तो वही भाव,
कहे गये शब्दों के अर्थ बदल देता है
और वहीं
अगर आप सही नहीं समझ पाए शब्दों को
तो शब्द,
आपके चहरे से प्रकट
भावों के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 18, 2014 at 2:30pm — 25 Comments
मन में सद्विचार रहे, नेक करे वह काम,
फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करे निष्काम
कर्म करे निष्काम, भाव संतोषी पाते
काम क्रोध मद लोभ स्वार्थ के रंग दिखाते
कर लक्षमण सद्कर्म नम्रता रहे वचन में
गीता में सन्देश, रहे निश्छलता मन में ||
(2)
करे प्रशंसा स्वयं की, और स्वयं से प्रीत,
आत्म मुग्ध के आग्रही, ये दर्पण के मीत
ये दर्पण के मीत, संग चमचों के रहते
अपने को सर्वोच्च अन्य को तुच्छ समझते
कह लक्ष्मण कविराज इन्हें भाती…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 18, 2014 at 2:00pm — 19 Comments
मानसून की देर से, खेतहि फटे दरार,
ताके किसना मेघ को, आपस में हो रार.
मानसून की अधिकता, बारिश हो घनघोर
उजड़ा घर अरु खेत अब, देखत सब चहु ओर
तीव्र पानी प्रवाह से, वन गिरि भी थर्राय
नर पशु पानी में बहे, किसको कौन बचाय .
उथल पुथल भइ जिंदगी, कहते जिसे विकास.
जलवायु दूषित हुई, आम हो गया ख़ास
राग द्वेष का जोर है, प्रीती नहीं सुहाय,
भाई से भाई लड़े, संचित धन भी जाय..
फैशन की अब होड़ है, फैशन…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:30am — 19 Comments
Added by seemahari sharma on August 18, 2014 at 1:23am — 12 Comments
कृष्ण पक्ष की अष्टमी ,मध्यरात का काल
मथुरा में पैदा हुआ ,मोहक छवि का बाल ||
कृष्ण लला की झाँकियाँ ,करती भाव विभोर
आई जो जन्माष्टमी ,धूम मची चहुँ ओर ||
पुत्र देवकी वासु के ,पले यशोदा धाम
तारे सबकी आँख के,कृष्ण रखा था नाम ||
दोस्त सुदामा कृष्ण से ,देकर गए मिसाल
शासक,सेवक का मिलन,करता सदा कमाल ||
कृष्ण बचाने द्रौपदी ,अब तो लो अवतार
दुशासन हैं,गली गली , करते अत्याचार ||
युग पुरुष श्री कृष्ण थे…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on August 17, 2014 at 9:55pm — 19 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
.
इरादे मैं यकीनन आज भी छोटे नहीं रखता,
मगर आँखों में अब अपनी तेरे सपने नहीं रखता.
.
बड़ी शिद्दत से अपने इश्क़-ओ-रंजिश मै निभाता हूँ
ख़बर रखता तो हूँ सबकी मगर फ़ितने नहीं रखता.
.
दिखाएगा वही सबको जो होंगे सामने उसके,
छुपाकर आईना कोई कभी चेहरे…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on August 17, 2014 at 9:30pm — 7 Comments
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