Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 11:30am — 13 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 11:30am — 13 Comments
"दामादजी को छोड़ना चाहवे है, अरे! पति बिना भी कोई जगह होवे है औरत की।" पति को छोड़ मायके आयी बेटी को माँ समझाना चाह रही थी।
"माँ! मैं कोई भी काम कर अपनी बच्ची पाल लूँगीं लेकिन अब वापिस नही जाऊँगी।"
"ये क्या कह रही है तु छोरी, ऐसा आखिर क्या हो गया?"
बस माँ। मैं 'उस नशेबाज' को और बर्दाश्त नही कर सकती, सारा दिन बस पीना, हंगामा करना और.......।"
"तो क्या हुआ छोरी, तेरा बापू न पिये, मैंने तो न छोड़ दिया उसे।" माँ ने कुछ तमक कर बेटी की बात काट…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on August 23, 2015 at 11:00am — 13 Comments
221—2121—1221—212 |
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जुगनू से मांगने को चला है कि ताब दो |
बेचैन हो गया है बशर फिर नकाब दो |
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इस तिश्नगी से हम न कभी मुतमईन थे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 9:30am — 20 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
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उनकी आँखों में झील सा कुछ है
बाकी आँखों में चील सा कुछ है
सुन्न पड़ता है अंग अंग मेरा
उनके हाथों में ईल सा कुछ है
फैसले ख़ुद-ब-ख़ुद बदलते हैं
उनका चेहरा अपील सा कुछ है
हार जाते हैं लोग दिल अकसर
हुस्न उनका दलील सा कुछ है
ज्यूँ अँधेरा हुआ, हुईं रोशन
उनकी यादों में रील सा कुछ है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 23, 2015 at 12:00am — 16 Comments
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 5:00pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 21, 2015 at 10:06pm — 15 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 21, 2015 at 7:27pm — 11 Comments
Added by Harash Mahajan on August 21, 2015 at 5:28pm — 13 Comments
“अब परेशान होने से क्या होगा? मैंने पहले ही कहा था कि इतनी उधारी मत करो.”
“गज़ब बात करती हो सुधा. अगर उधार नहीं लेते तो अनु की पढ़ाई का क्या होता?”
“क्या अनु यहीं नहीं पढ़ सकती थी? कितना कहा, पर आपको तो.... जवान बेटी को विदेश भेज दिया ... बरमंगम में पढ़ाएंगे”
“बरमंगम नहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम इन ग्रेट ब्रिटेन”
“जिस जगह का नाम तक याद नहीं रहता, वहां भेज दिया बेटी को और अब परेशान हो रहे है.”
“अरे मैं परेशान इसलिए हूँ कि संपत भाई इसी हप्ते चार लाख वापस मांग रहे…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 21, 2015 at 3:41am — 20 Comments
"मम्मी स्कूल की नौकरी , बिट्टू को पढ़ाने के बाद रात का खाना बनाना मेरे बस की बात नहीं हैं।"
"लेकिन बहू घर का अन्य काम तो इस उम्र में भी मैं ही करती हूँ तो क्या तुम एक समय का खाना भी नहीं बना सकती ?"
"नहीं बना सकती क्योकि मैं नौकरी करती हूँ , आपकी तरह घर में नहीं बैठी रहती "
ससुरजी हस्तक्षेप करते हुए -
"बस बहुत हो गया बहू , आज से तुम अपनी गृहस्थी देखो और हम अपनी जिम्मेदारी खुद उठा लेंगे और फिर हम पराश्रित भी तो नहीं हैं ।"
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Archana Tripathi on August 21, 2015 at 12:00am — 15 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on August 20, 2015 at 9:41pm — 8 Comments
वो थी एक डायरी
गुलाबी जिल्द वाली
अन्दर के चिकने पन्ने
खुशनुमा छुअन लिए
मुकम्मल थी एकदम
कुछ खूबसूरत सा
लिखने के लिए I
सिल्क की साड़ियों की
तहों के बीच,
अल्मारी में सहेजा था उसे
उन मेहंदी लगे हाथों ने,
सेंट की खुशबू
और ज़री की चुभन
को करती रही थी वो जज़्ब,
हर दिन रहता था
बाहर आने का इंतज़ार
अपने चिकने पन्नों पर
प्यारा सा कुछ
लिखे जाने का इंतज़ार…
ContinueAdded by pratibha pande on August 20, 2015 at 5:00pm — 17 Comments
2122 1212 112 /22
डर के यूँ ज़िन्दगी बची तो क्या
और अगर बच नहीं सकी तो क्या
देख क्या आदमी ही जीता है ?
आदमी में है आदमी तो क्या
जब कहे को नही समझते हैं
रह गई बात अनकही तो क्या
भूख आदाब कब समझती है
बे अदब थोड़ी हो गयी तो क्या
जारी फिर चाँद ने किया फतवा
बे असर चाँदनी रही तो क्या
फूल पत्तों में आज खुशियाँ हैं
जड़ अँधेरों से है घिरी तो क्या
दुन्दुभी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 9:56am — 20 Comments
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 19, 2015 at 3:53pm — 10 Comments
सोच रही हूँ आज कौन सा गीत लिखूँ जी
आडी -तिरछी रेखाओं में भाव भरूँ जी।
मन उड़ भागा लेकर भाव के सारे पन्ने।
दिक करते हैं बोल पडौस में गव रहे बन्ने।
कभी किसी कोयलिया ने कुहु टेर लगाई ।
खुशबू पहले बौर की मुझ तक दौड़ी आई।
डाल पे झूले बैठीं सखियाँ झूल रही हैं।
मन की चिड़िया शब्द भी सारे भूल रही है।
काला कौवा बैठ मुंडेरी चीख रहा है।
आता दूर पथिक भी कोई दीख रहा है।
रात चाँदनी साज लिए लो बैंठ गई है ।
नई बहुरिया सास से…
Added by Mamta on August 19, 2015 at 3:30pm — 5 Comments
122 122 122 122
जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का
वहीं से मिला रास्ता रोशनी का
सलीबें न बदली न बदले मसीहा
वही हाल है आज तक हर सदी का
सितारे फलक से न आये उतर कर
हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का
न तुम रो सके औ हमारी अना को
सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का
समन्दर सुख़न के तलाशे बहुत से
ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का
पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई
न अहसां उठाया न बदला…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 19, 2015 at 3:00pm — 15 Comments
212—212—212----212—212—212 |
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वो बदलते नहीं है अगर, तो फ़क़त इतना चल जाएगा |
आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा |
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बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 9:30am — 15 Comments
बेटे के पास विलायत गए दीवान जी को पोते पोतियों की चाल ढाल अच्छी नही लग रही थी | उनका रातों को देर से आना, बेढंगे कपड़े पहनना, घर पर ही दोस्तों के साथ मदिरा का सेवन आदि उनको बिलकुल भी बर्दास्त नही हो रहा था |
एक दिन घर पर पार्टी चल रही थी | डीजे के तीव्र संगीत के साथ जम के मदिरापान करते लड़के-लड़कियों का हुल्लड़ करना उनको रास ना आया और उन्होंने बेटे से कह डाला कि, " ये सब क्या है विमल ? "
"बाबू जी नई पीढ़ी है | "
"नई पीढ़ी है तो क्या इस तरह..... ? "
"ये अपनी तरह से जीना चाहते…
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 19, 2015 at 1:00am — 7 Comments
बहर -2122/2122/2122/212
आज हम यह सोचते है के बिछड़ कर क्या मिला
हाँ ये सच है जो मिला उसका अलग रस्ता मिला
सोचता हूँ चाँद तारों से ज़रा मै पूछ लूँ
क्या तुम्हे भी राह में जो भी मिला तन्हा मिला
आज आँगन में कही तारा नहीं यादों भरा
छिप के कोने में पड़ा घर का हँसी प्याला मिला
मौसमो की ही तरह है इश्क की आबो हवा
जब चली तो घर मेरा दरका कही टूटा मिला
देख कर अंजाम अपना मैं बहुत हैरान हूँ
चल पड़ा जिस रास्ते पर वो ग़मों से जा…
Added by amod shrivastav (bindouri) on August 18, 2015 at 11:00pm — 15 Comments
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