22 22 22 22 22 22 - बहरे मीर
अर्थ निकालें, उनको लाली हम भी दे दें
जो भी मर्ज़ी आये गाली हम भी दे दें
किसी शहर में हुआ सुना है आज धमाका
कोई खुश है, आओ ताली हम भीं दे दें
दूर बहुत, आये हैं अपने आकाओं से ,
थोड़ी सी उनको रखवाली हम भी दे दें
थाली के बैंगन वैसे तो साथ लगे. पर
कोई कारण, कोई थाली हम भी दे दें
वैसे तो तैनाती दिखती सभी बाग़ में
फर्दा की खातिर कुछ माली हम भी दे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 9:22am — 10 Comments
Added by sarita panthi on August 6, 2016 at 8:23am — 5 Comments
भारत में हर मास में, होता इक त्यौहार
केवल सावन मास है, पर्वों से भरमार |1|
रस्सी बांधे साख में, झूला झूले नार
रिमझिम रिमझिम वृष्टि में, है आनन्द अपार |२|
जितने हैं गहने सभी, पहन कर अलंकार
साथ हरी सब चूड़ियाँ, बहू करे श्रृंगार |३|
काजल बिन्दी साड़ियाँ, माथे का सिन्दूर
और देश में ये नहीं, सब हैं इन से दूर |४|
कभी तेज धीरे कभी, कभी मूसलाधार
सावन में लगती झड़ी, घर द्वार अन्धकार…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 6, 2016 at 8:00am — 4 Comments
गाय हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है..
हमको कुछ नहीं आता है
कि, गाय हमारी माता है !
गाय हमारी माता है
और हमको कुछ नहीं आता है !?
जब गाय हमारी माता है
हमको कुछ क्यों नहीं आता है ?
गाय हमारी माता है
फिरभी हमको कुछ नहीं आता है !
फिर क्यों गाय हमारी माता है..
जब हमको कुछ नहीं आता है ?
तो फिर, गाय हमारी कैसी माता है
कि हमको कुछ नहीं आता है ?
चूँकि गाय हमारी माता है..
क्या…
Added by Saurabh Pandey on August 6, 2016 at 1:30am — 19 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 5:46pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 4, 2016 at 11:00pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 4, 2016 at 7:29pm — 11 Comments
" तुमसे कुछ भी कहना बेकार है । तुम कभी नहीं सुधर सकते । जाने कितनी बार जेल जा चुके हो , हर बार कहते हो बस यह आखरी चोरी है , फिर वही करने लग जाते हो । तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार वालों को जो परेशानियाँ होती है , तुमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया ......।"रमेश अपने दोस्त को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर वह दोस्त तो !!!
"बन्द करो अपनी शिक्षा दिक्षा नहीं सुनना तुमसे कोई भाषण । मेरी मर्ज़ी जो चाहूँ करूँ । बचपन से करते आया हूँ । घर में किसीने नहीं रोका अब यह मेरी बेरी बीवी जब से आई है…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 4, 2016 at 3:30pm — 11 Comments
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल
कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल
कुछ…
ContinueAdded by Madan Mohan saxena on August 4, 2016 at 1:03pm — 3 Comments
Added by रामबली गुप्ता on August 4, 2016 at 12:37pm — 8 Comments
कल से आगे ..........
‘‘दोनों बाहर आओ जरा। कुछ वार्ता करनी है।’’ रावण के सो जाने पर सुमाली ने वजृमुष्टि और मारीच से कहा।
दोनों कुटिया से निकल आये। जो मंथन सुमाली के मस्तिष्क में चल रहा था वहीं इनके मस्तिष्कों में भी चल रहा था। रावण की मनस्थिति लंका के सर्वनाश की द्योतक थी। रावण की अनुपस्थिति में विष्णु के लिये उन्हें पुनः समाप्त करना बच्चों का खेल ही था। विष्णु के लिये उन पर आक्रमण करने के लिये कुबेर के साथ किया घात ही पर्याप्त कारण था। और देखो तो विष्णु की टाँग यहाँ भी अड़ी थी।…
Added by Sulabh Agnihotri on August 4, 2016 at 9:14am — No Comments
Added by Rahila on August 4, 2016 at 6:30am — 17 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:00pm — 11 Comments
Added by kanta roy on August 3, 2016 at 2:35pm — 12 Comments
कल से आगे ..............
सुमाली ठीक एक वर्ष बाद वहीं पहुँच गया जहाँ उसने रावण को छोड़ा था। उसके साथ मारीच और वजमुष्टि भी थे। रावण उस कुटिया में नहीं था। उन्होंने चारों ओर खोजा, थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी कुटिया के बाहर बैठा रावण उन्हें दिख गया। वहाँ पहुँचते ही वे चैंक कर रह गये। रावण की गोद में एक छोटी से कन्या थी जो उसकी छाती में दूध खोजने की व्यर्थ प्रयास कर रही थी। सामने एक चिता जल रही थी। रावण का मुँह उतरा हुआ था जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। बाल बिखरे हुये, आँखें लाल जैसे कई…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on August 3, 2016 at 10:07am — No Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 3, 2016 at 7:00am — 1 Comment
कौन है जो घंटी बजा रहा है,?चौकीदार तुम से काम ढंग से नही होता तो काम छोड़ दो।
'मेडम जी एक बुड्डा आया है,जिद्दी है कहता मिलना ज़रूरी है।
"देख राजू आख़िरी चेतावनी है तेरे लिये आलतू ,फ़ालतू लोगों को भगा नही सकता चले आते है समय बेसमय।
लगता हैवह इनाम की आस में आया है , हमारे टामी का विज्ञापन पढ़कर।"
अरे! क्या कह रहे हो राजू उसे बैठक में बैठाओ ,पानी,चाय लेते आना ,अभी आती हूँ।
बाहर ससुर को देखकर मालकिन के पाँव तले ज़मीन खिसक गई ।
"बेटा ,टामी वृद्धाश्रम आ गया था मेरे…
Added by Nita Kasar on August 2, 2016 at 9:00pm — 8 Comments
कितना अच्छा होता .....
कितना अच्छा लगता है
फर्श पर
चाबी के चलते खिलौने देखकर
एक ही गति
एक ही भाव
न किसी से कोई गिला
न शिकवा
ऐ ख़ुदा
कितना अच्छा होता
ग़र तूने मुझे भी
शून्य अहसासों का
खिलौना बनाया होता
अपना ही ग़म होता
अपनी ही ख़ुशी होती
न लबों से मुस्कराहट जाती
न आँखों में नमी होती
सब अपने होते
हकीकत की ज़मीं न होती
ख़्वाबों का जहां न होता
बस ऐ ख़ुदा
तूने हमें भी वो चाबी अता की होती…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 7:30pm — 24 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 2, 2016 at 6:12pm — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 बहरे मीर
फोकट की ये बातें हमको मत गिनवाओ
नकली उख़ड़ी सांसें, हमको मत गिनवाओ
खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ?
आज हुई प्रतिघातें, हमको मत गिनवाओ
वर्षों से सूरज का ख़्वाब दिखाते आये
अब तो काली रातें हमको मत गिनवाओ
शहर शहर को तोड़ तोड़ के गाँव करो तुम
बची खुची चौपालें हमको मत गिनवाओ
फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी
कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ
क्षितिज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:05pm — 12 Comments
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