22 22 22 22 22 22
कैसे दुर्योधन को कोई मोहन कह ले
और सुदामा मित्र बने तो, दुश्मन कहले
मुझको तेरी बाहों का घेरा जन्नत है
मेरी बाहों को चाहे तू बन्धन कह ले
मै रातों को चीख, नींद से उठ जाता हूँ
तू समझे तो इसको मेरी तड़पन कह ले
अब केवल कंक्रीट दिखेंगे शहर नगर में
बन्द आँख कर तू इसको ही मधुबन कह ले
विष ही वमन किया हर पत्ता, हवा चली जब
तू उन बीजों को बोया, तू चंदन कह…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:03pm — 17 Comments
“अब बोल चारू कैसे आना हुआ कैसे याद आ गई आज मेरी ” जूही ने चाय के प्याले हटाते हुए प्यार से ताना देते हुए कहा|
“बस ये समझ ले मेरा उस जगह से मन भर गया तू यहाँ मेरे लिए मकान ढूँढ ले ”|
“फिर भी बता न क्या हुआ?”
“तुझे याद होगा मैंने एक बार बताया था कि मेरे घर के ठीक सामने सड़क के दूसरी पार गाडियालुहारों ने अपनी झोंपड़ियाँ डाल रक्खी हैं | जिनका काम लोहे से औजार व् बर्तन बनाना फिर उनको आस पास के घरों में बेचना होता है” |
“हाँ हाँ याद है…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 2, 2016 at 11:28am — 23 Comments
Added by kanta roy on August 2, 2016 at 10:26am — 20 Comments
कल से आगे ...........
‘‘इतनी देर लगा दी आने में ! जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती।’’ यह चन्द्रनखा थी। उसका यौवन उसके भीतर हिलोरें मार रहा था। अब वह कोई कुछ वर्ष पहले वाली अल्हढ़ बालिका नहीं रही थी, पूर्णयौवना हो गयी थी। भाइयों का अंकुश उस पर था नहीं। एक भाई वर्षों से लंका से दूर था, दूसरा महाआलसी, सदैव नशे की सनक में रहता था और तीसरे को अपने धर्म-कर्म और राज-काज से ही अवकाश नहीं था। भाभियों को उसकी गतिविधियों का पता ही नहीं चलता था, चलता भी तो वह उनका अंकुश मानने को तत्पर ही कहाँ…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on August 2, 2016 at 9:43am — 2 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 2, 2016 at 9:30am — 17 Comments
Added by Ashutosh Kumar Gupta on August 2, 2016 at 3:20am — 7 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 1, 2016 at 9:30pm — 15 Comments
वागीश्वरी सवैया
वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो, जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं?
न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में,शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं!
जला प्रेम का दीप देखो दिलों में, मिलेगा तुम्हें वो सदा ही यहीं।
जहाँ नेह-निष्काम निष्ठा भरा हो, सखे! ईश का भी ठिकाना वहीं।।
दुर्मिल सवैया
दुख जीवन में अति देख कभी, मन को नर हे! न निराश करो।
रहता न सदा दुख जीवन में, तुम साहस से मन धीर धरो।।
रजनी उपरांत विहान नया, अँधियार घना मत देख डरो।
लघु-दीप जला…
Added by रामबली गुप्ता on August 1, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
221 1221 1221 122
यूँ ज़िन्दगी में खुशियों सी वो बात नहीं है,
बिछुड़ा है जरा साथ मगर मात नहीं है |
मैं शिकवों भरी शामो सहर देख रहा हूँ,
ये घाव उठा दिल पे है सौगात नहीं है |
चलने लगी है आखों में रुक-रुक के ये नदिया,
ये गम का दिया रंग है बरसात नहीं है |
क्यूँ काल से उम्मीद रखूँ कोई रहम की,
है कर्मों की ये बात कोई घात नहीं है |
कुछ लोग लुटाते हैं शबो रोज़…
ContinueAdded by Harash Mahajan on August 1, 2016 at 3:00pm — 12 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 2:30pm — 7 Comments
संशोधित
2122 1122 1122 112/22
मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले
यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले
आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ
बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले
अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं
पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले
चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले
दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 2:30pm — 15 Comments
इक माँ होती है ....
कितना ऊंचा
घोंसला बनाती है
नयी ज़िन्दगी का
ज़मीं से दूर
घर बनाती है
अपने पंखों से
अपने बच्चों को
हर मौसम के
कहर से बचाती है
न जाने कहाँ कहाँ से लाकर
अपने बच्चों को
दाना खिलाती है
पंख आते हैं
तो उड़ना सिखाती है
नए पंखों को
आसमां अच्छा लगता है
ज़मी से रिश्ता बस
सोने का लगता है
देर होते ही मां
घोंसले पे आती है
नहीं दिखते बच्चे
तो बैचैन हो जाती है
सांझ होते…
Added by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 2:27pm — 14 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 1, 2016 at 2:00pm — 6 Comments
प्रायश्चित
सेवा निवृति के 6 माह पूर्व सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए चंदा एकत्रित करने वाली विभागीय समिति को सहयोग करने हेतु कनिष्ठ अधिकारी शुक्ला को लगाया | एक जगह सी.बी.आई द्वारा रिश्वत के मामले में समिति के साथ ट्रैप होने पर उसे भी निलंबित कर दिया गया | सेवा निवृति पर न्यायालय से निर्णय होने तक देय परिलाभ रोक दिए गए | किसी के बताने पर वह एक पहुंचें हुए ज्योतिषी से मिला जिसने शुक्ला की व्यथा सुनाने के बाद बताया कि घर के देवी देवता नाराज है ? उन्हें मनाने का उपाय…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2016 at 11:58am — 4 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on August 1, 2016 at 11:28am — 10 Comments
2122 2122 212
जानवर भी देख कर रोने लगा
न्याय अब काला हिरण होने लगा
आइने की तर्ज़ुमानी यूँ हुई
आइने का अर्थ ही खोने लगा
हंस सोचे अब अलग किसको करूँ
दूध जब पानी नुमा होने लगा
ऐ ख़ुदा ! कैसा दिया तू आसमाँ
था यक़ीं जिस पर, क़हत बोने लगा
बदलियों ! कुछ तो रहम दिल में रखो
चाँद अब तो साँवला होने लगा
आग से बुझती कहाँ है आग , फिर
जब्र से क्यूँ ज़ब्र वो धोने लगा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 9:00am — 23 Comments
पूर्व से आगे .........
उसी दिन से जिस दिन वेद ने पिता ने मंगला के महामात्य जाबालि के यहाँ पढ़ने जाने की बात की थी घर में उथल-पुथल मची हुई थी। जैसा अपेक्षित था वैसा ही हुआ था, बल्कि उससे भी बुरा। उसी क्षण से अम्मा ने मंगला के हाथ पीले करने की अनिवार्यता की घोषणा कर दी थी। मंगला, वेद और उनकी भाभी तीनों ही डाँट-फटकार की आशा कर रहे थे। उनके हृदयों में कहीं एक आशा की किरण भी साँस ले रही थी कि शायद बाबा अम्मा को भी राजी कर ही लें। बाबा नाराज तो हुये थे किंतु यह समझाये जाने पर कि यह…
Added by Sulabh Agnihotri on August 1, 2016 at 8:39am — No Comments
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