दोहा
बज रही बड़ी जोर की, चुनावी शंखनाद ।
निंद उड़े जहां उनकी , तुम दिल रख लो हाथ ।।
सोरठा
लोकतंत्र पर्व एक, उत्सव मनाओं सब मिल ।
बढ़े देश का मान, कुछ ऐसा करें हम मिल ।।
ललित
वोट का चोट करें गंभीर, अपनी शक्ति दिखाओं ।
जो करता हो देश हित काज, उनको तुम जीताओं ।।
गीतिका
देश के मतदाता सुनो, आ रहा चुनाव अभी ।
तुम करना जरूर मतदान, लोकतंत्र बचे तभी ।।
राजनेता भ्रश्ट हों जो, मुॅह बंद…
ContinueAdded by रमेश कुमार चौहान on October 23, 2013 at 10:36pm — 5 Comments
अचानक कुछ होने का भय
कभी-कभी आत्मा को क्या पता क्यूँ..?
पहले से बोध करा देता है, कभी कभी सहसा
अचानक
ऐसा न हो कि
न छत्र न छाया न प्रथम सीढ़ी
और न ही कोई.....!
कहीं वक़्त का खोखलापन
मेरी आत्मा की गंभीरता
को तहस-नहस न कर दे..
मत भय खा चुप..! चुप व शांत रह
तू डरेगा तो क्या होगा..?
मत डर, कुछ नही होगा..रे
बस शांत होकर पीता जा..पीता जा
तुझे कभी कुछ नही होगा
लगने दे इल्जाम और लगाने दे
तू तो…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 10:30pm — 34 Comments
युगो युगो से जल रहा है रावण
मगर रावण आज तक मरा नही
जलते दिखाया रावण गत साल बाबा ने
मगर रावण अभी मरा नहीं
लूट रहा सरे राह सीता कि इज्जत
घूम रहा खुले आम है
मगर ,राम का अभी पता नहीं
युगो से जल रहा रावण
मगर आज तक रावण मरा नहीं
चला रहा तीर की जगह गोलीया अब वह ...
निर्दोश की जान लेने केा
औरतो केा बेवा बच्चों केा अनाथ कर रहा है
मगर ,राम का अभी पता नहीं…
Added by Akhand Gahmari on October 23, 2013 at 9:00pm — 7 Comments
जिनके मुँह में नहीं बतीसी भार्इ साहब ,
चले बजाने वो भी सीटी भार्इ साहब।
.
भारी भरकम हाथी पर भारी पड़ती है ,
कभी - कभी छोटी सी चींटी भार्इ साहब।
.
काट रहे हैं हम सबकी जड धीरे-धीरे ,
करके बातें मीठी - मीठी भार्इ साहब।
.
मंहगार्इ डार्इन का ऐसा कोप हुआ है ,
पैंट हो गर्इ सबकी ढीली भार्इ साहब।
.
प्रजातंत्र में गूँगी लड़की का बहुमत से ,
रखा गया है नाम सुरीली भार्इ साहब।
.
सबको रार्इ खुद को पर्वत समझ रहा…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2013 at 8:30pm — 10 Comments
कोमल काया फूल सी, अति मनमोहक रूप ।
तेरे आगे चाँद भी, लगता मुझे कुरूप ।।
भोलापन अरु सादगी, नैना निश्छल झील ।
जो तेरा दीदार हो, धड़कन हो गतिशील ।।…
Added by अरुन 'अनन्त' on October 23, 2013 at 6:00pm — 25 Comments
दिए दिन, महीने, बरस
जीवन के अनमोल पल
तुम्हारी तल्खियों से
आहत जख्मों को छुपा
मुस्कान की सौगात दी
कोमल भावनाएं
इच्छाओं की आहूति दी
कायम रखी
तुम्हारी मिल्कियत
वजूद को मिटा कर
फिर भी
तुम छीनते रहे मुझसे
मेरे हिस्से का वक्त
तुम्हें मंजूर नही
मेरा खुद के लिए
जीना
तृप्त ना हो सकीं
तुम्हारी इच्छाएं
छीन लेना चाहते हो
मेरा आस्तित्व
मेरी अभिलाषाएं
मेरा सब कुछ
हक से लेने वाले…
Added by Meena Pathak on October 23, 2013 at 4:30pm — 28 Comments
बच्चन पूछे केबीसी में , रट लो शायद काम आए।
अमीरों की नई सूची बनेगी, शायद तेरा नाम आए॥
प्याज के संग जो रोटी खाये, गरीब नहीं कहलाएंगे।
तैंतीस रुपये कमाने वाले,…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 23, 2013 at 3:30pm — 15 Comments
बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122
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ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी
कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी
चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से
लगी चोट दिल पर…
Added by शकील समर on October 23, 2013 at 1:36pm — 19 Comments
विसंगति
अंतरंग मित्र
हितैषी मेरे
हँसती रही हैं साँसें मेरी
स्वप्निल खुशी में तुम्हारी
सँजोए कल्पना की दीप्ति
फिर क्यूँ तुम्हारी खुशी के संग
यूँ उदास है मन
आज
अपने लिए ...?
यादों के झरोखों के इस पार
पावन-समय-पल कभी भटकें
कभी लहराएँ, मंडराएँ
ले आएँ रश्मि-ज्योति द्वार तुम्हारे
हँस दो, हँसती रहो, तारंकित हो आँचल
मुझको तो अभी गिनने हैं तारे
सुदूर-स्थित…
ContinueAdded by vijay nikore on October 23, 2013 at 1:00pm — 22 Comments
न बिजलियाँ जगा सकीं,
न बदलियाँ रुला सकीं।
अड़ी रहीं उदासियाँ,
न लोरियाँ सुला सकीं।
न यवनिका ज़रा हिली,
न ज़ुल्फ की घटा खिली।
उठे न पैर लाज के,
न रूप की छटा मिली।
जतन किए हज़ार पर,
न चाँद भूमि पे रुका।
अटल रहे सभी शिखर,
न आस्मान ही झुका।
चँवर कभी डुला सके,
न ढाल ही उठा सके।
चढ़ा के देखते रहे,
न तीर ही चला सके।
वहीं कपाट बंद थे,
जहाँ सदा यकीन था।
जिसे कहा था हमसफ़र,
वही तमाशबीन…
Added by Ravi Prakash on October 23, 2013 at 12:00pm — 37 Comments
निकले धूप और कभी बादल हैं पिघलते रहें
मौसमों की फितरतों में है की बदलते रहे
कभी पके कभी फुटे लौंदे गए रौंदे गए
मस्त होके जिंदगी के सांचे में ढलते रहे
शिकवा नहीं जीवन के है उतार और चढाव से
तकदीर के जानों पे हम ख़ुशी ख़ुशी पलते रहे
मुश्किलों तो आएँगी हज़ारों राह में मगर
कारोबार-ए-जिंदगी के कारवां चलते रहे
आयें लाखों तूफां पर उम्मीदें बुझ सकें नहीं
हौसलों के साए में चराग ये जलते…
ContinueAdded by शरद कुमार on October 22, 2013 at 10:14pm — 11 Comments
2212/2212/2122/212
दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से
यूँ भूल कर हमको भला क्या मिला संसार से
यूँ जानकर रुसवा किया आज महफ़िल में भला
जो तोड़कर नाता चले क्यूँ भला इस पार से
चुप सी है धड़कन मेरी अब दिल भी है खामोश तो
घायल हुआ दिल मेरा खंज़र चुभा किस धार से
नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा
वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से
वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं
दिल भी…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 22, 2013 at 9:30pm — 22 Comments
जाने किस आशंका से
त्रस्त मन /
झंझावात मे
नन्हा सा दिया /
अब बुझा कि तब बुझा /
अर्थहीन शब्दों के सहारे
घिसटती ज़िन्दगी
क्या यही है ?
किम्वदन्ति बन गई है
तथागत को मिली शान्ति /
आत्म मंथन करने पर
कालिख ही कालिख हाथ लगी /
दोषारोपण सवेरो पर ,
सूरज की किरणे
किसी अंधी गली में सोई मिली ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'
Added by ARVIND BHATNAGAR on October 22, 2013 at 9:30pm — 11 Comments
समतल उर्वर भूमि पर
उग आयी स्वतंत्रता
जंगली वृक्ष की भांति
आवृत कर लिया इसे
जहर बेल की लताओं ने
खो गयी इसकी मूल पहचान
अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .
..
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
… नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on October 22, 2013 at 7:30pm — 17 Comments
कुछ सपने केवल सपने ही रह जाते हैं
बिना पूरे हुये, बिना हकीकत हुये
और हमे वो ही अच्छे लगते हैं
अधूरे सपने, बिना अपने हुये
हम जी लेते हैं
उसी अधूरेपन को
उसी खालीपन को
सपने की चाहत में
जानते हुये भी ....
सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
यथार्थ को छोड़कर
परिस्थिति से मुह मोड़कर
हम जीते हैं सपने में
सपने हम रोज देखते हैं
कुछ ही सपनो को हम जीते हैं
बाकी सपने सपने ही रह…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on October 22, 2013 at 7:00pm — 10 Comments
122, 122, 122, 122
कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है,
है इंसान कैसा, जो रोया नहीं है??
***
मेरी बात मानों, न यूँ ज़िद करो अब,
दुखाना किसी दिल को अच्छा नहीं है.
***
सभी है किसी और की खाल ओढ़े,
तेरे शह्र में, कोई सच्चा नहीं है.
***
मुझे देख रंगत बदलता है अपनी,
वगरना वो बीमार लगता नहीं है.
***
लगाया करो आँख में…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 6:27pm — 13 Comments
!!! नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से !!!
दुर्मिल सवैया - (आठ सगण-112)
तन श्वेत सुवस्त्र सजे संवरें, शिख केश सुगंध सुतैल लसे।
कटि भाल सुचन्दन लेप रहे, रज केसर मस्तक भान हसे।।
हर कर्म कुकर्म करे निश में, दिन में अबला पर ज्ञान कसे।
नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से, मन से अति नीच सुयोग डसे।।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 6:20pm — 29 Comments
२१२२ १२१२ २२
जिंदगी और इम्तिहान न ले
कुछ भी ले ले मेरा गुमान न ले
मशविरा है यही फकीरों का
यूं कभी दी हुई ज़बान न ले
राह आसां नहीं है उल्फत की
नन्हे से दिल मे आसमान न ले
चल खिलोनों से खेलते हैं हम
तू अभी हाथ में कृपान न ले
जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता
असलहों से भरी दुकान न ले
खुल के जी खुद भी, सब को दे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 22, 2013 at 12:30pm — 29 Comments
जहाँ पर्वत पिघल रहा होगा
चरागे इश्क जल रहा होगा
परिंदे लौटने लगे घर को
चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा
बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये
कोई बच्चा मचल रहा होगा
गलितयों से जो दोस्ती कर ले
वो अपने हाथ मल रहा होगा
नयन हैं तिश्नगी भरे उसके
कोई तो ख्वाब पल रहा होगा
भरे है दर्द वो मगर न कहे
उसे अपना ही छल रहा होगा
छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा
जले जो दीप आँधियों में भी
वो गर्दिशों को खल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 12:27pm — 23 Comments
१२२२,१२२२,१२२२,१२२२
.
वो लेतें है शिकायत में, कि लेतें है मुहब्बत में,
हमारा नाम लेतें है वो अपनी हर ज़रूरत में,
***
मै राजा और तुम रानी, ये दुनियाँ सल्तनत अपनी,
हक़ीक़त में नहीं होता, ये होता है हिक़ायत में.
***
ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,
छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में.
***
मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर,
गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 9:40am — 24 Comments
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