Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 7, 2015 at 8:23pm — 6 Comments
क्रिकेट मैच जीतने के बाद मोहल्ले के लड़के जश्न मनाते हुए एक टीले पर बैठे हुए थे। मोटू सोनू ने अपनी टाइट शर्ट के बटन सही करते हुए कहा- "अब मैं करता हूँ आमिर खान की नकल ! टी.वी. पे वो नया विज्ञापन देखा है न....
"हम अब भी वहीं के वहीं खड़े हैं, न हम बदले, न हम मोटे हो रहे हैं।
ये तो कमबख़्त कपड़ों की है शरारत, जो अपने आप छोटे हो रहे हैं! "
"वाह, क्या बात है, इसी पे पैरोडी हो जाये। बोल संजू अब तू बोल "- उनमें से एक ने कहा।
संजू शुरू हो गया- "हम अब भी वहीं खड़े हैं, न हम बदले,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2015 at 11:00am — 6 Comments
१२२ /१२२ /१२२ /१२२
उजाले बहाये धधक करके रोये
फ़लक पे सितारे चमक करके रोये।
कोई चाँदनी बेवफ़ा तो थी वर्ना
क्यूँ सीना जलाये दहक करके रोये।
नमक इश्क का पी बहुत थीं ये आँखें
अदा अब ये सारे नमक करके रोये।
जो गम हम मिटाने चले जाम उठाने
तो पैमाँ भराये छलक करके रोये।
तेरी खुश्बुओं से घर आँगन भराया
शजर फूल सारे महक करके रोये।
सलामत रहे तू दुआ है हमारी
ये सुन गम…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 7, 2015 at 9:24am — 11 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 6, 2015 at 11:09pm — 3 Comments
तुम न समझ पाओगे .....
तुम न समझ पाओगे
मुहब्बत की ज़मीन पर
कतरा कतरा बिखरते
रूमानी अहसासों के सायों का दर्द
तुम तो बुत हो
सिर्फ बुत
जिसपर कोई रुत असर नहीं करती
तुम से टकराकर
हर अहसास संग -रेज़ों में तक़सीम जाता है
और साथ चलते साये का वज़ूद
सिफर में तब्दील हो जाता है
रह जाते हैं बस शानों पर
स्याह शब में गुजरे चंद लम्हे
जो आज मुझे किसी माहताब में
लगे दाग़ की तरह लगते हैं
तुम्हारी याद का हर अब्र
मेरी चश्म…
Added by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 9:42pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 6, 2015 at 6:13pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 6, 2015 at 6:02pm — 2 Comments
औपचारिकता – ( लघुकथा )
शहर के मशहूर,युवा व्यवसायी और समाजसेवी राहुल जी का सडक हादसे में निधन हो गया!पार्थिव शरीर घर आ गया था!सारा शहर उमड पडा था!कोठी में पैर रखने को जगह नहीं थी!मातम का माहौल था!औरतों के रोने के अलावा अन्य कोई आवाज़ नहीं आरही थी! करीबी लोग दाह संस्कार की व्यवस्था में लगे थे!
राहुल जी के बहनोई विनोद जी भी मौजूद थे!मगर वे जब से आये थे , तभी से अपने मोबाइल को कान से लगाये हुए थे!अन्य सभी उपस्थिति लोगों ने माहौल की नज़ाकत को देखते हुए अपने मोबाइल बंद कर दिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 6, 2015 at 5:25pm — 6 Comments
Added by kanta roy on October 6, 2015 at 4:00pm — 12 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2015 at 12:07pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2015 at 8:29am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2015 at 7:31am — 6 Comments
Added by shashi bansal goyal on October 5, 2015 at 8:44pm — 7 Comments
कुम्हार हैं हम
सपनों को दीयों
हंडियों
और गुल्लकों की
शक्ल देते हुए
समय और बाज़ार से बेख़बर
चाक के साथ
घुमाते हैं अपनी ज़रूरतें
नही जानते
कि चाक है हमारी पृथ्वी
और बदलने के लिए
समय और मौसम
पृथ्वी का अपने अक्ष पर
घूमना आवश्यक है......
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Jayprakash Mishra on October 5, 2015 at 4:27pm — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 5, 2015 at 9:26am — 8 Comments
उलटी गंगा
बात जब तक घर में थी, सभी परिवार के मैंबर उसे समझा रहे थे । ये तुम गलत कर रहें हो ,रौशनी का ख्याल हमें पहले रखना चाहिए था, न कि अब हमसाया के घर की तरफ खिड़की रख कर । मगर वह अपनी फौजियों सी ज़िद छोड़ नहीं रहा था ।
पड़ोसी तो इस कि बारे पहले ही विरोध दर्ज करवा चुके थे, “क्योंकि कि बिल्डिंग के पीछे कोई अधिकारित रास्ता न होने की वजह से अपना हक भी नहीं बनता है” उसकी घर वाली ने कहा। पड़ोसी के पास अब क़ानूनी करवाई कि सिवाए कोई चारा नहीं रहा था । पर फिर…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 4, 2015 at 7:30pm — 3 Comments
1222 1222 122
बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ
मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ
बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ
जो समझा वो सदा नम ही रहा फिर
मै आँसू ! आँखों से बहता रहा हूँ
महज़ इक बूँद समझा तिश्नगी ने
भँवर के वास्ते तिनका रहा हूँ
जलादूँ एक तो बाती किसी की
इसी उम्मीद में दहका रहा हूँ
मुझे मानी न पूछें ज़िन्दगी का
अभी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 10:43am — 28 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2015 at 10:31am — 20 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 4, 2015 at 12:38am — 16 Comments
Added by Samar kabeer on October 3, 2015 at 11:41pm — 13 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |